हकीकत को कोई नक्कार नहीं सकता
अपने भागीरथों व सपूतों पर नाज होता है हर समाज को
कई लोगों को इस बात से दुखी हैं कि धोनी व उन्मुक्त आदि प्रदेश में बसे आज की दुनिया के चमकते सितारे खुद को उत्तराखण्डी नहीं अपितु जिस शहर व प्रदेश में वे रहते हैं खुद को उसी का बताते हैं। व्यवहारिक दृष्टि से यह उचित भी है। क्योंकि अगर धोनी जैसे लोग उस धरती जिसने उनको सामान्य से देश का महानायक बनाने का आसमान दिया व सम्मान दिया को अपना न बता कर अपना मूल का बतायेंगे तो, वहां के लोगों की भावनाये बेहद आहत होगी। इसलिए एक कुशल व सफल व्यक्ति के रूप में धोनी ने यही कहा व किया जो उसको करना चाहिए था। वो अपने को भले ही झारखण्ड का मानता रहा परन्तु अपनी शादी उसने उत्तराखण्डी युवती से ही की। यह है उसका असली पहचान व उत्तर। धोेनी ने कई समय अपनी असली पहचान को उजागर किया भी। हाॅं उत्तराखण्डी आपदा के बारे में धोनी ने संवेदना के वो दो शब्द तक नहीं बोले जो उनके ही कनिष्ठ साथी शेखर धवन ने कहे। उत्तराखण्डियों को आशा थी , उनको कम से कम संवेदना तो प्रकट करनी ही चाहिए थी। परन्तु धोनी बोलने से अधिक करने में विश्वास करता हैे। यह भी सम्भव है कि वह अपनी पत्नी के साथ अपने ट्रस्ट द्वारा भारत आने पर कुछ करने ेका मन बना चूका हो। धोनी गुपचुप काम करने के लिए जाना जाता है।
पर हकीकत तो यह हैे कि मात्र कहने से कुछ नहीं होता,। इसांन जो होता है । कहीं रहने या धर्म व नाम बदलने के बाद भी लोग दिल से स्वीकार नहीं करते । धोनी हो या कोई अन्य वे उत्तराखण्ड मूल के हैं। इस सच को चाहे धोनी या उन्मुक्त आदि कोई कितना भी नकार लें परन्तु हकीकत को ही जनता स्वीकार करती है। धोनी क्या इस हकीकत तो न तो ओबामा ही बदल पाया राष्ट्रपति बनने के बाद भी । भारत के विभाजन की पुरजोर मांग करके पाक गये लाखों मुस्लिमों को वहां की धरती में आज भी मुजाहिर कह कर अपमानित किया जाता है। इसी प्रकार का दर्द श्रीलंका में कई एक शताब्दी पहले गये तमिलों को आज भी श्रीलंका स्वीकार नहीं कर पा रहा है। ये दुनिया उसको उसी नजर से आंकलन करती है। जेसे अंग्रेज हिन्दुस्तानियों को ब्लेक डाग से अधिक अंग्रेज नहीं मानते थे, हिटलर यहुदियों को किस नजर से देखता रहा, खुद को उत्तराखण्डी न मानने व समझने वाले उत्तराखण्डियों के भ्रम को मुलायम सिंह यादव ने उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन के प्रारम्भिक दौर में मैदान से खदेड़ने का बयान दे कर ही दूर कर दिया था। खुद को मुस्लमान मानने वाले अहमदिया व शिया मुस्लमानों के साथ पाकिस्तान में कैसे सलूक होता है। कमजोर आदमी को सदैव असुरक्षा का भय होता है। न जाने किन परिस्थितियों में धोनी आदि ने झारखण्डी समाज में अपना स्थान बनाया। झारखण्ड ने उनको जो नाम दिया, सम्मान व दौलत दिया और अपनत्व दिया हो सकता है धोनी के खुद को झारखण्डी कहने से झारखण्डियों की भावना जरूर आहत होती। यह मनोविज्ञानिक सत्य है कि हमेशा कमजोर वर्ग व व्यक्ति अपनी पहचान छुपाता है और जो समाज सम्पन्न व समृद्ध है उसका ंअंधानुशरण करता है। परन्तु अपनो की उन चमकते सितारों से दो शब्द अपनत्व की आश लगाना भी मानवोचित प्रवृति है। हर इंसान को इसका ध्यान रखना चाहिए। हाॅं ये अभी युवा अवस्था में है। लड़कपन में इंसान को उतनी सुध नहीं होती जितनी वयस्क लोगों में।
वैसे उत्तराखण्ड से अपने व अपने परिजनों की जीवन पालन के लिए अपने गांव से बाहर देश प्रदेश में नौकरी व रोजगार करने के लिए जाने वालों के दिलों में अपनी धरती , अपने लोगों व समाज के प्रति जो अथाह प्रेम रहता है उसका एकाशं भी अपने घर गांव में रहने वाले लोगों में देखने को नहीं मिलता है। पलायन करने वाले चाहे अपने गांव से निकल कर उत्तराखण्ड के कस्बों में रहते हो या दिल्ली, मुम्बई आदि महानगरों तथा अमेरिका, लंदन आदि विदेश में रहते हो, इनका दिल व दिमाग हमेेशा अपनी धरती के लिए धड़कता है। उत्तराखण्ड के बारे में तो यही हकीकत है कि यहां का 5 दशक पहले तक उत्तराखण्ड के गांवों में विद्यालय, पंचायती भवन, प्रतिभावान गरीब बच्चों की शिक्षा, चिकित्सालय खोलना, नहर, सड़क ही नहीं रोजगार व इलाज कराने का काम लाहौर, करांची, दिल्ली, लखनऊ रहने वाले उत्तराखण्डी मूल के लोगों ने अपना पेट काट कर किया। आज की पीढ़ी ने इतनी प्रबुद्ध हो गयी कि इन भागीरथों के योगदान को नकारने का काम करने लगी। इससे बडा दुर्भाग्य क्या हो सकता है। इसके साथ एक सच्चाई यह भी है कि चमकते हुए हर सितारे पर उसका अपना परिवार, समाज व देश गर्व तो करता है परन्तु उसकी असफलता पर उसको अकेेले ही दर्द सहने के लिए छोड़ने का काम भी करते है।
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