भारतीय भाषा आंदोलन  अब संसद की चैखट जंतर मंतर पर 


1988 से 14 साल संघ लोकसेवा आयोग पर भारतीय भाषाओं में संघ लोकसेवा आयोग की प्रमुख परीक्षायें आयोजित कराने व अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता का समाप्त करने की मांग को लेकर देश में भारतीय भाषाओं की अस्मिता व सम्मान के संघर्ष के रूप में जाना गया।
इसमें जहां पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह की सरपरस्ती में भाषा आंदोलन के क्रांतिकारी पुरोधा पुष्पेन्द्र चैहान व स्व. राजकरण सिंह जी एवं अनैक साथियों के ऐतिहासिक संघर्ष को समर्थन देने के लिए संघ लोकसेवा आयोग में 14 साल तक चले इस धरने के समर्थन देने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी,व वीपीसिंह, आडवाणी सहित देश के चार दर्जन से अधिक सांसद, पूर्व राज्यपाल ही नहीं देश के अग्रणी पत्रकार, समाजसेवी व जागरूक देश भक्त भी सम्मलित हुए। परन्तु दुखद है यहां के शासकों ने सत्तासीन होते ही राष्ट्र को उसकी जुबान में सम्मान, शिक्षा, रोजगार व प्रतिष्ठा देने की सुध तक नहीं रही।
आज इसी से आक्रोशित है कर भाषा आंदोलनकारी संसद की चैखट राष्ट्रीय धरनास्थल जंतर मंतर पर 21 अप्रैल से धरना दे रहे है।
आज शर्मनाक बात यह है कि आज भी संघ लोकसेवा आयोग ने अपनी प्रमुख परीक्षाओं में भले ही अंग्रेजी की अनिवार्यता का फंदा देश के गले से भारी विरोध के बाद हटा तो दिया है परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से वह और खतरनाक ढ़ग से बनाया हुआ हैं। सिविल सेवा की परीक्षा के अलावा अन्य प्रमुख परीक्षाओं जो भारतीय तंत्र की रीढ़ समझी जाती है उनमें आज भी बेशर्मी से अंग्रेजी भाषा में जारी है।
अंग्रेजी भाषा में रंगे परीक्षा
सम्मलित चिकित्सा सेवा परीक्षा
इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा
भारतीय वन सेवा परीक्षा
स्पेशल क्लास रेलवे अप्रेंटिस परीक्षा
भारतीय आर्थिक सेवा
भारतीय सांख्यिकी सेवा परीक्षा
भूविज्ञानी परीक्षा 
सहित अन्य प्रमुख परीक्षाओं में अंग्रेजी का एकाधिकार शर्मनाक ढ़ग से जारी है।
प्रस्तुत है देश के अग्रणी राष्ट्रवादी नेता अटल बिहारी वाजपेयी जी का 6 जनवरी 1989 को लिखा संघ लोकसेवा आयोग पर चल रहे भारतीय भाषाओं के आंदोलन के समर्थन के लिए भाषा आंदोलनकारी ओम प्रकाश जी के लिए लिखा पत्र। दुर्भाग्य यह रहा कि इस पत्र को लिखने वाले अटल बिहारी वाजपेयी जो स्वयं इस आंदोलन में सम्मलित हुए और संसद ही नहीं संयुक्त राष्ट्र में गरजे । परन्तु जब सत्ता में आये और प्रधानमंत्री बने तो वे भारतीय भाषाओं की बात भूल गये। उनकी सरकार में ही संसार का सबसे लम्बा चले इस भाषा आंदोलन को संघ लोकसेवा आयोग से उखाड़ फेंका गया। हिन्दी के महानायक समझे जाने वाले वाजपेयी जब प्रधानमंत्री बने तो उनकी सरकार ने ‘इडिया इज राइजिंग व साइनिग नाउ’ का कांग्रेस से भी बदतर राग छेड़ दिया। इस विश्वासघात से आज भी  देश भक्त भाषा आंदोलनकारी उबर नहीं पाये। 
आज फिर 21 अप्रैल 2013 को भाषा आंदोलनकारियों ने भारतीय भाषा आंदोलन के पुरोधा पुष्पेन्द्र चैहान व भाषा आंदोलन के महासचिव देवसिंह रावत अपने तमाम राष्ट्रभक्त साथियों के साथ संसद की चैखट-राष्ट्रीय धरना स्थल-जंतर मंतर में देश को अंग्रेजी की गुलामी (संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं व सर्वोच्च न्यायालय -उच्च न्यायालय) से मुक्त करा कर देश की जनता को उनकी भाषा में शिक्षा, सम्मान, रोजगार व न्याय दिलाने के लिए आंदोलन का अलख जगाये हुए है। सभी देशभक्तों से अनुरोध है कि आजादी के 65 साल बाद भी देश की आजादी को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करने के लिए भाषा आंदोलन में सम्मलित होने की कृपा करें।
जय हिन्द ! वंदे मातरम् 

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