देश के प्रधानमंत्री व समस्त राजनेता दें जवाब कि देश को कब मिलेगा न्याय ?


नई दिल्ली (प्याउ)। भले ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित तमाम मुख्यमंत्री व न्यायाधीश देश में तीन करोड़ से अधिक लंबित मुकदमों को त्वरित गति से फेसला करने के लिए भारी संख्या में न्यायाधीशों की जरूरत पर जोर दे रहे हो। 7 अप्रेल को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित मुख्यमंत्रियों व मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए तीन करोड़ से अधिक लंबित मुकदमों पर गहरी चिंता प्रकट करते हुए जोर दिया कि  निचली न्यायपालिका के बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए केंद्र से और अधिक धन दे कर न्यायिक व्यवस्था को और मजबूत किया जाएगा। सम्मेलन की अध्यक्षता भारत के प्रधान न्यायाधीश अल्तमस कबीर ने की। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, देश में वर्तमान प्रति दस लाख जनसंख्या पर 15.5 जजों का अनुपात को पूरी तरह अपर्याप्त बता रहे हों परन्तु पूरे सम्मेलन में कोई भी इस बात पर ध्यान ही नहीं दे पाया कि आजादी के 65 साल बाद भी देश को अंग्रेजी दासता से मुक्ति दिलाने व भारतीयों को अपनी देश की भाषा में न्याय दिलाने के लिए जो महत्वपूर्ण कार्य आजादी हासिल करने के तुरंत बाद की जानी चाहिए थी वह आज 65 साल बाद भी शुरू ही नहीं हुआ। यह देश के साथ सबसे बड़ा अन्याय है। देश में न्याय के नाम पर यह अंग्रेजी की गुलामी व न्याय का गला घोंटने जेसे कार्य है। न जाने भारतीयों को कब अपने सम्मान व लोकतंत्र का भान होगा। संसार के सबसे संवृद्ध संस्कृति व वैज्ञानिक भाषाओं वाले विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में राजकाज के साथ न्याय की भाषा वही फिरंगी भाषा अंग्रेजी आजादी के 65 साल बाद भी बलात थोपी जाये यह उस देश के आत्मसम्मान, लोकशाही व न्याय प्रणाली पर किसी कलंक से कम नहीं है।

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