चीन की गुण्डागर्दी के आगे, भारतीय नेतृत्व का शर्मनाक व राष्ट्रघाती आत्मसम्र्पण
चीन सीमा पर सबसे कमजोर उत्तराखण्ड की सीमा पर 65 साल से रेल मार्ग नहीं बना पाया भारत
चीन द्वारा भारतीय सीमा के अंदर 19 किमी आ कर बलात काबिज हो कर इसे अपना हिस्सा ही मान रहा है व बडी बेशर्मी से चीन अपने इस कृत्य को जायज ठहरा रहा है। यही नहीं चीन ने भारत नेतृत्व की कायरना गुहार को नजरांदाज करते हुए इस क्षेत्र में न केवल कब्जा किया है अपितु यहां पर अपने कई टेण्ट भी लगा कर भारत के स्वाभिमान व अखण्डता को रौंदते हुए खुली गुण्डागर्दी दिखा रहा है। वहीं की मनमोहन सरकार चीन से एक घण्टे में यह क्षेत्र मुक्त कराने के बजाय ममना बन कर उससे कठोरता से दो टूक शब्दों की चेतावनी देने का साहस तक नहीं जुटा पा रहा है। क्या ऐसी अक्ष्मय हरकत संसार का कोई भी देश स्वीकार कर सकता है। कभी नहीं। अभी उत्तर कोरिया ने अपने एकता व अखण्डता के लिए न केवल दक्षिण कोरिया अपितु अमेरिका को भी जिस लहजे में धमकाया था उससे अमेरिका ही नहीं अपितु पूरा विश्व सहम गया था। परन्तु भारतीय हुक्मरानों ने चीन से ही नहीं पाक से भी भारत के हजारों वर्ग किमी क्षेत्र को अपनी नपुंसकता के कारण गंवा दिया। वहीं बांगलादेश भी भारत को आंखे दिखा रहा है।
हालत इतनी शर्मनाक है कि भारतीय नेतृत्व इस समस्या पर चिंता प्रकट कर रही भारतीय जनमानस को इस मुद्दे को ही तुल न देने की सीख दे रहा है। तमाम फलेग बैठकों में भारत गुहार लगा रहा है कि यह क्षेत्र भारत का हे और चीन ने इस पर कब्जा कर लिया परन्तु चीन भारत के दावे को नकारते हुए इसे अपना हिस्सा बता कर यहां से हटना तो रहा दूर अपितु चीन ने यहां ंपर कई तम्बू गाड कर अपनी सैनिक चोकी का ही निर्माण कर दिया है। देश की जनता इस बात से हैरान है कि भारत सरकार, चीन से सम्बंध तोड़ने के बजाय बेशर्म व ताकत में अंधे चीन से बार बार गिडगिडा रही है और अब बेशर्म हो कर अपने विदेश मंत्री को चीन भेज रही है। भारत सरकार भूल गयी कि चीन बातों की नहीं ताकत की भाषा को समझता है। भारत की नाक को कटाने के लिए उतारू भारत सरकार की नपुंसकता को देख कर आम जनता जहां स्तब्ध है वहीं भारत की जांबाज सेना व सैन्य समीक्षक भी हैरान है।
सबसे हैरानी की बात यह है कि भले ही चीन लद्दाख वाले क्षेत्र में इस समय घुसपेट कर रहा है परन्तु उसके लिए सबसे आसान उत्तराखण्ड से लगी 330 किमी सीमा है। यहां 12 दरें हैं जहां से चीन को भारत में घुसना अन्य जगहों के बजाय आसान है। उत्तराखण्ड में चीन से लगे सीमान्त जनपद चमोली व पिथौरागढ़ की सीमा से लगे 12 ऐसे दर्रे हैं जो प्रायः बर्फ की मोटी चादर से ढके होने के बाद भी सुरक्षित नहीं हैं। ये दर्रे मुलिंग ला से लेकर लिपूलेख तक हैं। पहले इन्हीं दर्रो से चीन व तिब्बत के साथ स्थानीय व्यापारिक लेनदेन होता था। जहां हिमालयी सीमा पर चीन ने सीमा के नजदीक रेल व मोटर मार्ग युद्ध स्तर पर बना कर पूरे विश्व को अपनी ताकत का अहसास करा दिया है वहीं भारत ने इस सीमा को पूरी तरह से नजरांदाज कर दिया है।
चीन द्वारा भारतीय धरती पर कब्जा करने की घटना पर भारतीय हुक्मरानों ने जिस प्रकार शर्मनाक कायरता प्रदर्शित की जा रही है उससे पूरे विश्व में भारत की जगहंसाई हो रही है। दो सप्ताह हो गये हैं परन्तु भारत सरकार को इस बात की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रही है कि वह चीन को चंद घण्टे में भारत की जमीन छोड़ने की दो टूक चेतावनी दे रही है। महाशक्ति बनने के भारत का दावा तार तार हो गया है। सरकार की इस शर्मनाक कायरता को देख कर आम भारतीय जनमानस स्तब्ध व शर्मसार है। वहीं सरकार की इस आत्मघाती सम्पर्ण से जांबाज भारतीय सेना का मनोबल को भी आंच आ रही है।
गौरतलब है कि इन दिनों लद्दाख में भारतीय इलाके में चीन की घुसपैठ का मामला बड़ा विवाद बन सकता है। यह इलाका पूर्वी लद्दाख के दौलत बेग ओलदी में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से दस किलोमीटर भीतर है। दौलत बेग ओल्दी इलाके में की है, जहां उन्होंने अपने टेंट लगा दिए हैं। यह इलाका करीब 17 हजार फीट की ऊंचाई पर है। ऐसा नहीं की यह पहली बार हो रहा है। चीन न केवल लद्दाख व अरूणाचल अपितु उत्तराखण्ड से लगी सीमाओं पर बार बार अतिक्रमण कर करता है। परन्तु क्या मजाल की कैलाश मानसरोवर सहित हजारो वर्ग मील भारतीय भू भाग को 1962 व उसके बाद काबिज चीन से संसद द्वारा चीन द्वारा बलात कब्जायी हजारों किमी वर्ग भारतीय भू भाग को दो बार हर हाल में वापस लेने के संकल्प के बाबजूद भारतीय हुक्मरान चाहे किसी भी दल के हों चीन से इस भू भाग को मांगने का साहस तक नहीं जटा पा रहे है। यही नहीं भारतीय हुक्मरानों की इसी कायरता से पाक ने भी कब्जाये कश्मीर का एक बडा भू भाग चीन को खैरात समझ कर दे दिया है परन्तु भारत के हुक्मरान इस का प्रचण्ड विरोध करने का साहस तक नहीं जुटा पा रहे है।
आजादी के बाद चीन से लगे सबसे संवेदनशील सीमान्त उत्तराखण्ड में रेलमार्ग निर्माण के नाम पर केवल सर्वेक्षण व रेल लाइनों की मंजूर करने की घोषणायें करने के अलावा इन 65 सालों में आजाद भारत की सरकारें कुछ महत्वपूर्ण कार्य अभी तक नहीं कर पायी। विगत कुछ साल पहले सीमा पार चीन द्वारा रेल व सडक मार्ग बनाने के कारण जो पहल भारत सरकार ने देश की सुरक्षा के लिए युद्धस्तर पर करना था वह कार्य करने में अभी तक भारत सरकार व रेल मंत्रालय पूरी तरह से असफल रहे। देश की सुरक्षा के नाम पर चीन से लगी उत्तराखण्ड की सीमा पर रेल व मोटर मार्ग बनाने के सबसे सर्वोच्च दायित्व को पूरा करने में भारत के हुक्मरान कितने ईमानदार है यह देश विगत 65 सालों से देख रहा है परन्तु विगत पांच साल से देश के हुक्मरानों की लोगों के आंखों में धूल झोंकने के कृत्य से उपेक्षित उत्तराखण्डियों सहित पूरा देश भौचंक्का है। देशवासी ही नहीं विश्व के रक्षा विशेषज्ञ देश की सुरक्षा के प्रति इस प्रकार की आत्मघाती उपेक्षा को देख कर हैरान है कि भारत कैसे चीन का मुकाबला करेगा।
इस बजट में इस राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण रेल निर्माण के बारे में कोई उल्लेख तक नहीं है। परन्तु इस पर देश की बागडोर संभालने के लिए बेताब हो रही मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने भी कभी इसे मुख्य मुद्दा बना कर सरकार को कटघरे में खड़ा करने की पहल तक नहीं की। इससे साफ हो गया है कि देश के हुक्मरानों को ही नहीं हुक्मरान बनने के लिए बेताब दलों को भी कहीं दूर दूर तक चिंता तक नहीं है। भाजपा कि देश की सरकार का इस बारे में कितनी ईमानदारी से कार्य कर रही है। यह केवल सतपाल महाराज या भगतसिंह कोश्यारी की मांग नहीं अपितु यह देश की सामरिक सुरक्षा की सबसे बड़ी मांग है। परन्तु उत्तराखण्ड में भाजपा व कांग्रेस सहित सभी नेताओं को एक स्वर में केन्द्रीय सरकार पर निरंतर दवाब बनाना चाहिए। इसके बारे में एक बात का उल्लेख करना भी जरूरी है कि यह रेल मार्ग निर्माण को केवल किसी नेता विशेष की प्रतिष्ठा, जीत या हार का प्रश्न न बना कर देश के सुरक्षा का गंभीर जरूरत मान कर इसको तत्काल युद्धस्तर पर निर्माण करना चाहिए। सप्रंग सरकार की प्रमुख सोनिया गांधी ने इस रेलमार्ग के उदघाटन समारोह में न जा कर साफ कर दिया कि उनको व उनके सलाहकारों में राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति न तो दूरदर्शिता व नहीं समझ। इससे एक बात साफ हो गयी कि कांग्रेसी नेतृत्व को इंदिरा गांधी की तरह देश, पार्टी व आम जनता के हितों के प्रति सटीक निर्णय लेने की कुब्बत नहीं है और नहीं उनके पदलोलुपु सलाहकार जो उनको आम जनता व पार्टी कार्यकत्र्ताओं से अपने निहित स्वार्थ की पूर्ति के लिए षडयंत्र के तहत दूर रखे हुए है, में है।
इससे साफ है कि देश के हुक्मरानों को न चीन द्वारा किये गये सन् 1962 के आक्रमण की तरह न तो देश की चिंता है व नहीं देश के जांबाज सैनिकों की कुछ चिंता। हजारों जांबाज सैनिक हमने 1962 की लडाई में देश के तत्कालीन हुक्मरानों की लापरवाही के कारण मजबूरी में खोया । बिना तैयारी के सैनिकों को चीन के आगे झौंक दिया। अब भी इसी प्रकार के कृत्य किये जा रहे है। बिना सामरिक तैयारी के कैसे देश की सुरक्षा होगी। जबकि अमेरिका व चीन दोनों भारत को युद्ध की भट्टी में धकेलने के लिए पाक सहित सभी पडोसी देशों में अपने टिकाने बना खतरनाक षडयंत्र रच रहे हैं परन्तु भारत सरकार ठोस रणनीति बनानी तो रही दूर सामान्य ढ़ग से सीमान्त प्रदेश में बनने वाली रेल मार्ग को भी बनाने के लिए कछुवे की गति से चला कर देश को सामरिक ताकत को कुंद करने का काम कर रही है। अगर इनको रत्ती भर भी चिंता रहती तो यह रेल मार्ग अब तक कबका बन जाता। अब देश की प्रबुद्ध जनता को चाहिए कि वह अपने निहित स्वार्थो में डूबे हुक्मरानों सहित तमाम राजनेताओं को इस राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण व सीमान्त प्रदेश के चहुमुखी विकास के लिए जरूरी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलमार्ग का निर्माण । देश की हुक्मरानों को एक बात साफ याद रखनी चाहिए कि देश में हर चीज बडे नेताओं के चुनाव क्षेत्र में ही हो तो देश का विकास नहीं हो सकता। सभी जगह रायबरेली, इटवा व दिल्ली जैसा विकास होना चाहिए तभी देश का समग्र विकास होगा। परन्तु विकास से अधिक महत्वपूर्ण है देश की सुरक्षा, जिसकी उपेक्षा करने वाले हुक्मरान कभी देश के हितैषी तो हो नहीं सकते । इनकी यह उदासीनता देश को नहीं अपितु देश के दुश्मन को ही फायदा पंहुचाता है।
शेष श्री कृष्ण कृपा।
हरि ओम तत्सत। श्रीकृष्णाय् नमो।
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