उत्तराखण्ड सरकार के मैदानी क्षेत्रों के मोह में पटरी से उतर चूके सीमान्त जनपदों व गैरसैंण में खुले केन्द्रीय आदर्श महाविद्यालय
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र के अनुरोध प र केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री द्वारा उधमसिंह नगर तथा हरिद्वार जनपद में 2 आदर्श महाविद्यालयों की स्थापना के लिये स्वीकृति
नई दिल्ली (प्याउ)। जहां इन दिनों उत्तराखण्ड की जनता राज्य गठन की जनांकांक्षाओं, शहीदों व आंदोलनकारियों को साकार करने के लिए प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए सड़कों पर आदंोलनरत हैं वहीं प्रदेश सरकार जनभावनाओं का सम्मान करने के बजाय अपने पंचतारा मोह में अंधी हो कर मैंदानी जनपदों में ही केन्द्रीय आदर्श महाविद्यालयों को खुलवा कर जनता के जख्मों में नमक छिडकने का काम कर रही है।
इसका नजारा 17 जनवरी को तब उजागर हुआ जब इस सीमान्त प्रांत उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र के अनुरोध पर केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री द्वारा उधमसिंह नगर तथा हरिद्वार जनपद में 02 आदर्श महाविद्यालयों की स्थापना के लिये स्वीकृति प्रदान की। 17 जनवरी को मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने नई दिल्ली में केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर से मुलाकात कर प्रदेश में संचालित सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान एवं मध्याह्न भोजन योजना आदि से सम्बन्धित विभिन्न विषयों पर व्यापक विचार विमर्श किया। इसी में मुख्यमंत्री के अनुरोध पर केन्द्रीय मंत्री ने प्रदेश में दो आदर्श महाविद्यालय खोलने को स्वीकृति प्रदान की। जबकि प्रदेश हकीकत यह है राज्य गठन के 17 सालों से प्रदेश में सत्तासीन सरकारों की पंचतारा मोह में ग्रसित होने के कारण राज्य गठन आंदोलन के प्रारम्भ से पहले ही जनता, आंदोलनकारियों व पूर्व उप्र सरकार द्वारा तय की गयी राजधानी गैरसेंण के बजाय देहरादून में ही बलात कुण्डली मार के बैठे रहने से इस सीमान्त प्रदेश के अधिकांश पर्वतीय जनपदों में शिक्षा, चिकित्सा व शासन पूरी तरह से पटरी से उतर गया है। इसका मुख्य कारण सरकार की देहरादूनी मंशा को भांपते हुए पर्वतीय जनपदों से अधिकांश कर्मचारी देहरादून व मैदानी जनपदों में किसी भी कीमत पर अपना स्थानांतरण कराने में ही समर्पित रहते है। इससे पर्वतीय जनपदों में शिक्षा, चिकित्सा व रोजगार आदि से उपेक्षित हो गया है। इन्हीं के अभाव के कारण लोग प्रदेश व देश के मैदानी जनपदों में पलायन कर रहे है। इस कारण जहां सीमान्त जनपदों से भयंकर पलायन हो रहा है। गांव के गांव उजड़ रहे है। इससे देश की सुरक्षा को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है। यहां पर बड़ी संख्या में पर्वतीय जनपदों में राष्ट्र विरोधी तत्व घुसपेट कर रहे है। देश की पहली सुरक्षा पंक्ति समझी जाने वाले सीमान्त क्षेत्रों की आबादी के पलायन से देश की सुरक्षा पर गंभीर खतरा मंडराने लगा है। परन्तु पंचतारा सुविधाओं में धृतराष्ट्र बने उतराखण्ड के हुक्मरानों को न जनभावनाओं का भान है व नहीं देश की सुरक्षा का। राज्य गठन से लेकर आज 17 सालों में प्रदेश के हुक्मरानों ने जनभावनाओं को रौदकर जहां सदियों से भारतीय संस्कृति व सुरक्षा के लिए मर मिटने वाले उत्तराखण्डियों का जीना हराम कर उनको पलायन के लिए मजबूर कर दिया है। प्रदेश के हुक्मरानों की इस भूल का अहसास दिल्ली के मठाधीशों को न तो राज्य गठन के समय रहा व नहीं आज ही है। अगर एक पल भी इनको देश व देश की संस्कृति के ध्वजवाहकों के प्रति रहता तो ये अविलम्ब गैरसैंण राजधानी बनाते और वहां पर गैरसैंण सहित पर्वतीय जनपदों में पटरी से उतर चूके शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार व शासन को मजबूती प्रदान करते।
17 जनवरी को केन्द्रीय शिक्षा मंत्री के साथ हुई उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री की हुई बैठक में एन.आई.टी. श्रीनगर में 02 परिसरों में निर्माण कार्य किए जाने, आर.टी.ई. में राज्य सरकार को धनराशि की प्रतिपूर्ति किए जाने एवं रमसा योजना के अंतर्गत शेष धनराशि रूपए 211 करोड़ अवमुक्त किए जाने पर भी सहमति बनी। केन्द्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर में आपदा प्रभावित निर्माण कार्यों के लिए अवशेष धनराशि प्रदान किए जाने एवं रूसा योजना के अंतर्गत महाविद्यालयों के उच्चीकरण एवं प्रयोगशाला आदि की स्थापना हेतु धनराशि उपलब्ध किए जाने पर भी केन्द्रीय मंत्री द्वारा सहमति प्रदान की है।
मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र ने राज्य की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से लगे 27 विकासखण्डों में आवासीय विद्यालय स्थापित किए जाने के अनुरोध पर केन्द्रीय मंत्री श्री जावड़ेकर ने गम्भीरता पूर्वक विचार करने की बात कही। मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने केन्द्रीय मंत्री से यह भी अपेक्षा की कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत निजी विद्यालयों एवं बच्चों को दी जाने वाली धनराशि भी सर्व शिक्षा अभियान की सामान्य गतिविधियों में सम्मिलित किया जाए। मुख्यमंत्री ने यह भी अनुरोध किया कि मा. उच्च न्यायालय में दायर जनहित याचिका के अनुरूप विद्यालयों में भौतिक संसाधन जैसे शौचालय, पेयजल, फर्नीचर, कम्प्यूटर, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, मिड डे मील एवं छात्रवृत्ति आदि की व्यवस्था हेतु धनराशि की अधिकता को ध्यान में रखते हुए इसके लिए अलग से धनराशि प्रदान करने का अनुरोध किया।
इस अवसर पर शिक्षा मंत्री अरविन्द पाण्डेय, उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डाॅ.धन सिंह रावत, अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश, सचिव डाॅ.भूपेन्द्र कौर औलख एवं श्रीमती राधिका झा भी उपस्थित थे।
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र के अनुरोध प र केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री द्वारा उधमसिंह नगर तथा हरिद्वार जनपद में 2 आदर्श महाविद्यालयों की स्थापना के लिये स्वीकृति
नई दिल्ली (प्याउ)। जहां इन दिनों उत्तराखण्ड की जनता राज्य गठन की जनांकांक्षाओं, शहीदों व आंदोलनकारियों को साकार करने के लिए प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए सड़कों पर आदंोलनरत हैं वहीं प्रदेश सरकार जनभावनाओं का सम्मान करने के बजाय अपने पंचतारा मोह में अंधी हो कर मैंदानी जनपदों में ही केन्द्रीय आदर्श महाविद्यालयों को खुलवा कर जनता के जख्मों में नमक छिडकने का काम कर रही है।
इसका नजारा 17 जनवरी को तब उजागर हुआ जब इस सीमान्त प्रांत उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र के अनुरोध पर केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री द्वारा उधमसिंह नगर तथा हरिद्वार जनपद में 02 आदर्श महाविद्यालयों की स्थापना के लिये स्वीकृति प्रदान की। 17 जनवरी को मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने नई दिल्ली में केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर से मुलाकात कर प्रदेश में संचालित सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान एवं मध्याह्न भोजन योजना आदि से सम्बन्धित विभिन्न विषयों पर व्यापक विचार विमर्श किया। इसी में मुख्यमंत्री के अनुरोध पर केन्द्रीय मंत्री ने प्रदेश में दो आदर्श महाविद्यालय खोलने को स्वीकृति प्रदान की। जबकि प्रदेश हकीकत यह है राज्य गठन के 17 सालों से प्रदेश में सत्तासीन सरकारों की पंचतारा मोह में ग्रसित होने के कारण राज्य गठन आंदोलन के प्रारम्भ से पहले ही जनता, आंदोलनकारियों व पूर्व उप्र सरकार द्वारा तय की गयी राजधानी गैरसेंण के बजाय देहरादून में ही बलात कुण्डली मार के बैठे रहने से इस सीमान्त प्रदेश के अधिकांश पर्वतीय जनपदों में शिक्षा, चिकित्सा व शासन पूरी तरह से पटरी से उतर गया है। इसका मुख्य कारण सरकार की देहरादूनी मंशा को भांपते हुए पर्वतीय जनपदों से अधिकांश कर्मचारी देहरादून व मैदानी जनपदों में किसी भी कीमत पर अपना स्थानांतरण कराने में ही समर्पित रहते है। इससे पर्वतीय जनपदों में शिक्षा, चिकित्सा व रोजगार आदि से उपेक्षित हो गया है। इन्हीं के अभाव के कारण लोग प्रदेश व देश के मैदानी जनपदों में पलायन कर रहे है। इस कारण जहां सीमान्त जनपदों से भयंकर पलायन हो रहा है। गांव के गांव उजड़ रहे है। इससे देश की सुरक्षा को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है। यहां पर बड़ी संख्या में पर्वतीय जनपदों में राष्ट्र विरोधी तत्व घुसपेट कर रहे है। देश की पहली सुरक्षा पंक्ति समझी जाने वाले सीमान्त क्षेत्रों की आबादी के पलायन से देश की सुरक्षा पर गंभीर खतरा मंडराने लगा है। परन्तु पंचतारा सुविधाओं में धृतराष्ट्र बने उतराखण्ड के हुक्मरानों को न जनभावनाओं का भान है व नहीं देश की सुरक्षा का। राज्य गठन से लेकर आज 17 सालों में प्रदेश के हुक्मरानों ने जनभावनाओं को रौदकर जहां सदियों से भारतीय संस्कृति व सुरक्षा के लिए मर मिटने वाले उत्तराखण्डियों का जीना हराम कर उनको पलायन के लिए मजबूर कर दिया है। प्रदेश के हुक्मरानों की इस भूल का अहसास दिल्ली के मठाधीशों को न तो राज्य गठन के समय रहा व नहीं आज ही है। अगर एक पल भी इनको देश व देश की संस्कृति के ध्वजवाहकों के प्रति रहता तो ये अविलम्ब गैरसैंण राजधानी बनाते और वहां पर गैरसैंण सहित पर्वतीय जनपदों में पटरी से उतर चूके शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार व शासन को मजबूती प्रदान करते।
17 जनवरी को केन्द्रीय शिक्षा मंत्री के साथ हुई उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री की हुई बैठक में एन.आई.टी. श्रीनगर में 02 परिसरों में निर्माण कार्य किए जाने, आर.टी.ई. में राज्य सरकार को धनराशि की प्रतिपूर्ति किए जाने एवं रमसा योजना के अंतर्गत शेष धनराशि रूपए 211 करोड़ अवमुक्त किए जाने पर भी सहमति बनी। केन्द्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर में आपदा प्रभावित निर्माण कार्यों के लिए अवशेष धनराशि प्रदान किए जाने एवं रूसा योजना के अंतर्गत महाविद्यालयों के उच्चीकरण एवं प्रयोगशाला आदि की स्थापना हेतु धनराशि उपलब्ध किए जाने पर भी केन्द्रीय मंत्री द्वारा सहमति प्रदान की है।
मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र ने राज्य की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से लगे 27 विकासखण्डों में आवासीय विद्यालय स्थापित किए जाने के अनुरोध पर केन्द्रीय मंत्री श्री जावड़ेकर ने गम्भीरता पूर्वक विचार करने की बात कही। मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने केन्द्रीय मंत्री से यह भी अपेक्षा की कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत निजी विद्यालयों एवं बच्चों को दी जाने वाली धनराशि भी सर्व शिक्षा अभियान की सामान्य गतिविधियों में सम्मिलित किया जाए। मुख्यमंत्री ने यह भी अनुरोध किया कि मा. उच्च न्यायालय में दायर जनहित याचिका के अनुरूप विद्यालयों में भौतिक संसाधन जैसे शौचालय, पेयजल, फर्नीचर, कम्प्यूटर, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, मिड डे मील एवं छात्रवृत्ति आदि की व्यवस्था हेतु धनराशि की अधिकता को ध्यान में रखते हुए इसके लिए अलग से धनराशि प्रदान करने का अनुरोध किया।
इस अवसर पर शिक्षा मंत्री अरविन्द पाण्डेय, उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डाॅ.धन सिंह रावत, अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश, सचिव डाॅ.भूपेन्द्र कौर औलख एवं श्रीमती राधिका झा भी उपस्थित थे।
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