स्वयं को पाक साफ रखते हुए बाबा रामदेव करें भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कुरूक्षेत्र का ऐलान



स्वयं को पाक साफ रखते हुए बाबा रामदेव करें भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कुरूक्षेत्र का ऐला
बाबा रामदेव के द्वारा देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रखर मोर्चा खोलने से बौखलाये कांग्रेसिंयो ने बाबा रामदेव पर जो उनकी अकूत 1100 करोड़ रूपये से अधिक की सम्पतियों का आरोप लगाया, उससे पूरा देश हैरान है कि सच क्या है। इस मामले में एक बात साफ है कि देश में चंद लोगों के पास अरबों खरबों की अकूत सम्पति है। जो अधिकांश कालाधन के रूप में है। इस मामले में एक ही बात देश की जनता चाहती है कि बाबा का भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान तो अच्छा हैं, परन्तु बाबा रामदेव भी भ्रष्टाचारियों से स्वयं से दूर रखे व अपने अभियान की पावनता की भी रक्षा करें। वे कांग्रेसी या अन्य भ्रष्टाचारियों से न घबरायें अगर वे पाक साफ रहेंगे तो पूरा देश उनके साथ हैं अगर उन्होंने भी नेताओं की तरह दोहरा आचरण किया तो महाकाल सबकों बेनकाब करता है। बाबा रामदेव को निर्भीक हो कर अपने आप को भ्रष्टाचारियों के खिलाफ निर्मम प्रहार करते हुए भ्रष्टाचार से त्रस्त इस देश की जनता को सही दिशा देनी चाहिए। जब बाबा रामदेव को भ्रष्टाचार में आकंठ घीरे उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री ईमानदारी का सर्टिफिकेट देंगें तो जनता कैसे विश्वास करेगी। बाबा रामदेव को जिस प्रदेश में उनका मुख्यालय स्थित हैं उस प्रदेश के भ्रष्टाचार पर भी बेझिझक खुला विरोध करना चाहिए, जिसके कुशासन के खिलाफ देश की मीडिया ने भी शर्मनाक मूकता साध रखी है। जनता उनके द्वारा उत्तराखण्ड में हो रहे भ्रष्टाचार पर उनकी मूकता पर हैरान है। जनता सब जानती है इसलिए बाबा रामदेव को अपना दामन साफ रखते हुए कांग्रेस या किसी भी दल या व्यक्ति के भ्रष्टाचारियों से दूरी बनाते हुए देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति देनी चाहिए। देश की जनता को इस बात से कोई शिकवा नहीं है कि बाबा के पास 1100 करोड़ की सम्पति है। बाबा के पास जो सम्पति है वह देश के हित में काम आ रही है, जग कल्याण के लिए काम आ रही है। बाबा को अपने आपपास अपने तथाकथित समर्थकों के आचरण से भी सजग रहना चाहिए। देश की जनता के विश्वास को बनाये रखें।  अन्याय के खिलाफ सदैव कुरूक्षेत्र में रत रहने वाला  भगवान श्रीकृष्ण की अपारकृपा का सदा भागी  मैं उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूॅ। केशव केशव कूकिये मत कूकिये अषाड......पर भी विश्वास करता हूूॅ।  जिस प्रकार से अरूणाचल में बाबा रामदेव पर कांग्रेसी सांसद ने अपशब्द कह कर शब्दवाणों का हमला किया, उसके बाद कांग्रेस के रणनीति महासचिव दिग्गी राजा ने कटघरे में रखने की कोशिश की, उसके बाद बाबा राम देव पर और इस प्रकार के सियासी हमले की आशंका निरंतर बढ़ गयी है। बाबा राम देव को चाहिए कि वे इन भ्रष्टाचारियों को पोषक करने वाले तमाम राजनैतिक दलों के मंसूबों को भांपते हुए किसी भी कीमत पर देश को इन तत्वों के रहमोकरम पर छोड़ कर पलायन न करे। पूरा देश उनके साथ है। जरूरत है सही दिशा में सही नियत से काम करने की। मेने तो पहले भी दो टूक शब्दों में कहा है।  शाबास बाबा रामदेव जी! जो आपने मात्रा अपनी मुक्ति या मठ से आगे जनकल्याण व राष्ट्र कल्याण के महान कार्य करने का संकल्प लिया। प्राणीमात्रा के कल्याण के लिए भारत को महान राष्ट्र बनाने के लिए देश को एक सशक्त राजनैतिक विकल्प देने का मन बनाया। देश के गौरवशाली अतीत को पिफर से हासिल करने के लिए जनता को जागृत कर भारत स्वाभिमान संगठन बनाने का काम किया। आकण्ठ भ्रष्टाचार में डूब चूके इस देश को बचाने के लिए जनकल्याण के लिए समर्पित संतों को आगे आना ही चाहिए। जो देश व प्राणीमात्रा की इस दुदर्शा को भी देख कर मूक अपने मठो व गुपफाओं में मस्त हैं उनकी संतई पर मुझे शंका है? आज देश का दुर्भाग्य यह है कि सनातन ध्र्म की ध्र्मध्वजा का वाहक आदि गुरू शंकराचार्य जी ने जिन चार पीठों के आचार्य को शंकराचार्य नाम की पदवी दे कर विभूषित किया है वे आज अपने अपने मठों , पदों व जातिवाद में इस कदर पफंस गये हैं कि उन्हें न तो देश की इस त्रासदी की चिंता है व नहीं देश में इस चंगैजी प्रवृति का विरोध् प्रकट करने का साहस तक रहा है। नहीं तो क्या कारण है कि आज देश में नामधरी दर्जनों स्वयंभू शंकराचार्यों के बाबजूद देश की लोकशाही में आज प्रतिदिन हजारों बेगुनाह गौवंश की निर्मम हत्या हो रही है। अपने पदों, मठों व चरणपादुकाओं को पुजावनें में डूबे भगवाधरियों को एक बात सापफ समझ लेनी चाहिए कि इस देश में संतों की पूजा पदों से नहीं उनके व्यक्तित्व व संतई से होती है। यहां पर ज्ञानदेवजी, कबीरदास जी, रैदास जी, गुरू गोविन्द सिंह जैसे महान संतों की अमर व्यक्तित्व किसी पद या मान्यता की मोहताज नहीं है। अन्याय के खिलापफ चन्द्रगुप्त को तैसार करने वाले चाणाक्य व शिवाजी महाराज को तैयार करने वाले समर्थ गुरू रामदास की आज भारत को नितांत जरूरत है। आज भारतीय संस्कृति से अनजान जनवादी विचारकों व यो(ाओं को इस बात का भान तक नहीं है जिस जनवाद की कल्पना माक्र्स व माओं ने की थी वह अपने आप में अध्ूरा हैं, समग्र जनवाद युगो पहले भगवान श्रीकृष्ण ने इसी पावन ध्रती भारत में उद्घोष किया है कि जड़ चेतन सभी में परमात्मा है यानी सभी परमात्मा के स्वरूप है। सभी में खुद को व परमात्मा को देखने, समझने व जानने का मूल मंत्रा दिया था। इससे बड़ा सत्यवाद व जनवाद दूसरा क्या हो सकता है। इसको समझे बिना भारत में जनवाद लाने का प्रयत्न करना भी अपना संघर्ष खुद कमजोर करना है।
 स्वामी रामदेव बधई के पात्रा इस लिए भी है कि उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के परम वचनों को सिरोधर्य कर अन्याय के खिलापफ लोकशाही के कुरूक्षेत्रा में शंखनाद करके भारतीय संस्कृति की प्राचीन संत परमपरा को जीवंत करने का कार्य किया।   इस देश व मानवता का दर्द को समझते हुए देश की राजनीति को सही दिशा देने का काम किया। नहीं तो देश के संतों में एक कुविचार ने जकड़ रखा है। संतन को सिकरी क्या काम! इस विचार के लोगों ने देश को, मानवता को जिनता नुकसान पहुंचाया उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। जबसे इस देश को संतों व महात्माओं ने इस देश के हुक्मरानों के हाथों छोड़ी तब से देश की यह दुर्दशा हुई। देश को शताब्दियों की गुलामी का दंश सहना पड़ा। देश को आजादी के बाद राजनैताओं व नौकरशाहों के चंगैजी दंश झेलना पड़ रहा है। संतों ने जब से सिकरी क्या काम वाली प्रवृति को अंगीकार किया, तबसे देश पतन की गर्त में ध्ंस गया है। संत केवल अपनी मुक्ति या अपने मठो तक सीमित नहीं होता है। वह तो जगत कल्याण के लिए संत बनता है। नहीं तो इस देश में संतों ने कभी समाज व मानव को इन निरंकुश, सत्तालोलुप हुक्मरानों के भरोसे नहीं छोड़ा। संतों ने हमेशा हुक्मरानों पर हमेशा नैतिक अंकुश में रख कर सददिशा देने का महत्वपूर्ण कार्य किया। अनाचारी व निरंकुश हुक्मरानों से समाज की रक्षा के लिए कभी विश्वामित्रा बन कर तो कभी परशुराम बन कर संतों ने सद्दिशा देने का काम किया। संत मानवता को निरंकुश हुक्मरानों के रहमोकरम पर छोड़ कर उनकी चैंगेजी जुल्मों व अनाचार को देख कर कभी मूक नहीं रहा। यही इस देश की सनातन परंपरा रही।
जब-जब संतों व ध्र्म गुरूओं ने द्रोणाचार्य, कृपाचार्य की तरह अपने निहित स्वार्थों में अंध्े हो कर अधर््म का साथ देने का कृत्य किया तब-तब भारत को पतन का दंश झेलना पड़ा। संत वही जो परम् सत्य को जान कर जन-जन के कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित करे। अपने मठ व अपनी मुक्ति के लिए ही जीने वाले लोग कभी सच्चे संत नहीं कहलाये। इसी लोककल्याण के लिए समर्थ गुरू श्रीरामकृष्ण परम्हंस ने अपनी परम् मुक्ति की लालशा से शिष्य बनने के लिए अपनी शरण में आये स्वामी विवेकानन्द को कड़ी पफटकार लगाते हुए कहा था कि तुम पशुवृति से उपर उठो! मात्रा अपनी मुक्ति के लिए मै तुम्हें अपना शिष्य नहीं बनाऊंगा? मैने तुम्हे जगत कल्याण के लिए अपना शिष्य बनाने के लिए चुना है। मैं तुम्हारी मुक्ति से तब तक तुम्हें वंचित करता हॅू जब तक तुम एक संत का सबसे बड़ा कार्य जनकल्याण के कार्य को पूरा नहीं करोगे। यही तुम्हारी गुरू दक्षिणा होगी यही तुम्हारा जीवन का परम् मुक्ति है। अपने गुरू का परम् अर्थ समझने वाला मुमुक्षु का चिर अभिलाषी नरेन्द्र को जगतकल्याण के कार्य में लगा कर स्वामी रामकृष्ण जी ने सारे संसार में स्वामी विवेकानन्द बना कर अमर कर दिया। यही जीवन व भारतीय संस्कृति का परम् रहस्य है। भगवान श्रीकृष्ण ने जिस परम सत्य को कुरूक्षेत्रा में अपनत्व के मोह में जकड़े हुए महायो(ा अर्जुन को गीता के परम ज्ञान से दूर किया, वह ज्ञान ही यही है कि संसार में जड़ चेतन में परमात्मा है। प्राणी को किसी भी हालत में असत् , अध्र्म, अत्याचारी का साथ नहीं देना चाहिए। असत् का साथ देने वाला चाहे भीष्म पितामह व महादानी कर्ण जैसे कितना भी महान परमयो(ा क्यों न हो वह ध्र्म-अध्र्म के कुरूक्षेत्रा में सदा सत् के आगे नष्ट हो जाते है। इसलिए अन्याय का मूक समर्थन करने वाले भी अन्यायी के पक्ष में खड़े होते है। इसलिए आज देश व प्राणीमात्रा के कल्याण के लिए स्वामी रामदेव सहित सभी संतों व प्रबु( जनों का प्रथम कत्र्तव्य यही है कि वह जीवन के कुरूक्षेत्रा में वर्तमान सत्तालोलुप ध्ृतराष्ट्र के दुर्योध्नो व दुशासन जैसे हुक्मरानों का विरोध् करके जनता को सद विकल्प प्रदान करें।
आज देश की  जनता अपने आप को ठगी सी महसूस कर रही है। यहां के राजनेताओं व नौकरशाहों के चंगैजी व काले कारनामों से वे हैरान हैं। देश में विकासपुरूष के नाम से देश के सबसे वरिष्ठ अनुभवी राजनेता नारायणदत्त तिवारी का आंध््रप्रदेश के राजभवन में जो रूप देखा उससे राजनेताओं पर उनका रहा सहा विश्वास पूरी तरह से डिगा दिया। इससे पहले कांग्रेस से छले गयी भारत के आम जनमानस की आशाओं पर जब संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवक अटल -आडवाणी के कुशासन ने अपनी पदलोलुपता का बज्रपात किया तो लोगों को भगवान राम व राष्ट्रवाद के नाम पर राजनीति करने वाले भी कालनेमी के कलयुगी अवतार लगे। राष्ट्रवाद व भारतीयता की झण्डेबरदार संघ पोषित भाजपा के पदलोलुप मठाध्ीशों के आगे संघ की विपफलता व पंगुता देख कर लोग हैरान है।  जनता राजनेताओं व देश के नौकरशाहों से निराश हो ही चूकी है। परन्तु इस सप्ताह  जिस प्रकार से साध्ु संतों का एक के बाद एक विकृत चेहरा सामने आ रहा है उससे जनता दंग है कि अब कौन करेगा मेरे देश की रक्षा?  किस पर करे देश की जनता विश्वास। कौन करेगा भगवान श्रीकृष्ण की ‘संभवामी युगे...युगे वाली अमरवाणी को साकार।  इस पखवाड़े  इच्छाधरी सांई बाबा, दक्षिण भारत के बड़े संत स्वामी नित्यानन्द,  सहित कई संत रंग रंगेलियां व अनैतिक कृत्यों में सरेआम बेनकाब हुए। ऐसे में देश की जनता को एक आशा की किरण दिखाई दे रही है योग गुरू बाबा रामदेव। जिन्होंने अपने योग कार्यक्रमों को राष्ट्रवाद की सद् दिशा दी है।
सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में योगगुरू रामदेव द्वारा भारत की रक्षा व मजबूती के लिए राजनीति के दंगल में उतरने की मंशा से देश के तमाम राजनैतिक दलों में एक प्रकार का हड़कम्प मचा हुआ है। जिस तेजी से योगुरू बाबा रामदेव की कीर्ति पूरे विश्व में लहरा रही है तथा जिस प्रकार से वे देश की व्यवस्था के शु(िकरण करते हुए इसे मजबूत बनाने के लिए जनता से खुला आवाहन कर रहे हैं उससे भारतीय लोकशाही को दलों की दलदल में जमीदोज कर चूके राजनैतिक दलों के मठाध्ीशों की रातों की नींद व दिन का चैन पर ग्रहण सा लग गया है। उनको यह भय सताने लगा है कि बाबा रामदेव अगर इसी प्रकार से लोगों को जागृत करके भारत की शताब्दियों से मृतप्रायः आत्मा को जागृत करने का काम करने में सपफल हो गये तो उनका देश को दोनों हाथों से लुटने व लुटाने का राजनीति की आड़ में पफल पफूल रहा चंगैजी ध्ंध चैपट हो जायेगा। खासकर जिस प्रकार से अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए देश की अध्किांश राजनैतिक पार्टियां जाति-ध्र्म व क्षेत्रावाद का संकीर्ण जहर के गटर में देश की लोकशाही को ध्केलकर पूरी व्यवस्था को भ्रष्ट कर लूट रहे है। उससे देश में आम जनता के लिए लोकशाही एक स्वप्न बन गया है। यहां पर आम आदमी जहां एक तरपफ मंहगाई, भ्रष्टाचार से पूरी तरह से त्रास्त है वहीं आज आम आदमी से वर्तमान तंत्रा दूर हो गया है। आम आदमी से शिक्षा, चिकित्सा व न्याय तथा रोजगार इन लोकशाही के स्वयंभू ठेकेदारों ने षडयंत्रा के तहत दूर कर दिया है। ऐसे में आज देश का आम आदमी अपनी रोजी रोटी के लिए इतना व्यथित है कि उसे इस समस्या के निदान के मूल व उसके निदान के बारे में सोचने तक की पफुर्सत तक नहीं है।
मुझे आशा हैं कि स्वामी रामदेव जी अपने संकल्प व अपने नैतिक दायित्व का निर्वहन करते हुए आगामी 2014 के लोकसभा चुनाव में चुनावों में अपने दल को उतारेंगे। वे इन राजनेतिक दलों की चंगेजी से भारत की रक्षा करने के लिए लोकशाही के कुरूक्षेत्रा के मैदान से पलायन नहीं करेंगे। भगवान श्री कृष्ण ने प्राणीमात्रा को यह दिशा दी है कि सत पुरूष जय व पराजय, हानि व लाभादि के द्वंद से उपर उठ कर अन्याय के खिलापफ कुरूक्षेत्रा में उतरना चाहिए। यही मानव जीवन का सबसे बड़ा ध्र्म है। क्योंकि इसी में ध्र्म व मानवमात्रा का कल्याण है। हालांकि राजनीति में कई संत उतरे हैं, वे किसी पार्टी या अपने पदों के लिए इन दलों के कहार बन कर रह गये हैं। सतपाल महाराज कांग्रेसी बन कर रह गये। कई संत भाजपाई। महेश योगी ने अजय पार्टी बना कर कुछ इस दिशा में कदम बढ़ाने चाहे परन्तु वे इसमें सपफल नहीं हो सके। अब शंखनाद बाबा रामदेव जी कर रहे हैं।  दलगत राजनीति से उपर उठ कर देश व प्राणीमात्रा के कल्याण के लिए राजनीति में उतरने की हुंकार भरने के लिए लोकशाही के कुरूक्षेत्रा में भगवान श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र के प्रतीक ‘प्यारा उत्तराखण्ड’ की बाबा रामदेव को लख-लख बधईयां। मेरा भी मानना है कि केशव-केशव कुकये मत कुकये अषाड़.......। आशा है बाबा रामदेव जी लोकशाही के कुरूक्षेत्रा से पलायन नहीं करेंगे। केवल उनकों इस बात का ध्यान रखना होगा कि मुर्दों से नगर नहीं बसते हैं कब्र्रे ही सजती है। जो लोग पदलोलुप, जातिवादी, क्षेत्रावादी व निहित स्वार्थों में अंध्े होते हैं वे मुर्दों से बदतर होते है। हरिद्वार की जिस पावन नगरी में आपने पातंजलि योगाश्रम बना रखा है वह पावन नगरी भी जिस राज्य उत्तराखण्ड में है वहां के शासक बने तिवारी, खंडूडी व निशंक ने किस प्रकार से उन जनांकांक्षाओं को रौंदा है जिनको साकार करने के लिए यहां के असंख्य आंदोलनकारियों ने भारतीय लोकशाही का विश्व में परचम पफेहराने के उद्देश्य से राव-मुलायम सिंह दुशासनों का दमन सह कर भी राज्य का गठन करने के लिए सरकार को विवश किया था। सत्पुरूष असत को त्याग कर सत को आत्मसात करता है। इसलिए कुरूक्षेत्रा को पफतह के लिए हजारों मुर्दों की नहीं पांच ही पांच पांड़वों की ही जरूरत होती है।
शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमों।

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