भगवान राम नहीं विकास पुरूश तिवारी की छत्राछाया चाहिए भाजपा को



भगवान राम नहीं विकास पुरूश तिवारी की छत्राछाया चाहिए भाजपा को
क्हां गयी भाजपा की नेतिकता
देश की राजनीति में कब कौन किसके साथ होगा यह कहा नहीं जा सकता। कब कौन किसका दूश्मन व कब कोन किसका मित्रा बन जाय। कब किसको पार्टियां भ्रष्टाचारी बताये व कब किसको विकास पुरूष बता दे। ऐसा ही अजीबो गरीब नजारा उत्तराखण्ड में भी दिखाई दे रहा है। वहां पर प्रदेश सरकार के दीन दयाल उपाध्याय की जयंती पर जिस प्रकार से 11 पफरवरी को एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया। इसमें भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गड़करी, प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्राी तिवारी व प्रदेश के मुख्यमंत्राी सहित तमाम बड़े नेता आसीन थे। जो प्रदेश सरकार की गरीबों को सस्ता अनाज देने की योजना का शुभारंभ कर रहे थे।
गडकरी जी तो शायद नये थे परन्तु
प्रदेश भाजपा के नेताओ ंको तो इस बात का भान होगा ही कि जिस तिवारी का वह सार्वजनिक मंच से आरती उतार रहे हैं उसी तिवारी के राज को कुशासन का प्रतीक बता कर उनकी प्रदेश भाजपा सरकार ने उनके चार दर्जन से अध्कि घोटालों की जांच करने के लिए एक आयोग का गठन कर रखा है।  जिस तिवारी को प्रदेश भाजपा ने जनविरोध्ी बता कर प्रदेश में उनको लाल बत्तियों का डोला वाला व प्रदेश के विकास के संसाध्नों को विवेकाध्ीन कोष के द्वारा लुटाने का आरोप लगा कर जनता से जनादेश मांगा था। आज उस तिवारी को महान विकास पुरूष बताने की भाजपा के नेताओं की कोन सी विवशता थी। खासकर तिवारी को जिनके शासन प्रशासन में प्रदेश की जनांकांक्षाओं, आत्मसम्मान को बहुत ही निर्ममता से रौंदा गया था उस तिवारी को मंचासीन करके भाजपा ने जनता को कौन सा संदेश दिया। संदेश तो जनता में चले ही गया। आखिर प्रदेश की जनता जानती है कि किस प्रकार से विवेकाध्ीन कोष का बंदरबांट तिवारी के शासन में हुआ।  किस प्रकार से प्रदेश के आत्मसम्मान को रौंदने वालों को प्रदेश से शर्मनाक संरक्षण दिया गया। मुजफ्रपफरनगर काण्ड-94 के अभियुक्तों को संरक्षण हो या प्रदेश की राजधनी जनभावनाओं को रौंदकर षडयंत्रा के तहत देहरादून में बलात थोपनी हो या जनसंख्या पर आयारति
परिसीमन को प्रदेश में थोप कर जनता की राजनैतिक शक्ति को सदा के लिए कुंद करने वाला कृत्य भाजपा द्वारा सार्वजनिक मंच से महिमामण्डित किये जाने वाले तिवारी के राज में ही हुआ। यही नहीं तिवारी के शासन में प्रदेश में जिस प्रकार से भ्रष्टाचार, व्यभिचारव जातिवाद-क्षेत्रावाद की गर्त में प्रदेश का निर्ममता से ध्केला गया। उसका दंश आज भी प्रदेश झेल रहा है।
इतना होने के बाबजूद भाजपा को शायद ही भारतीय संस्कृति के प्रतीक भगवान राम की जरा सी भी याद आयी हो जिन्होंने लोक लाज को सर्वोच्च मानते हुए अपने जीवन में कई बलिदान दिये थे। परन्तु भाजपा में लगता है अब मर्यादाओं पर चलना सुहाता ही नहीं अगर सुहाता तो वह कभी भाजपा में अपने उन नेताओं को किनारा नहीं करते या वनवास नहीं देते जिन्होंने भगवान राम की जन्म भूमि आंदोलन में भाजपा का ही नहीं देश की आम जनमानस का नेतृत्व किया था। ऐसे प्रखर नेत्राी उमा भारती व देश के जनमानस के मर्म को जानने वाले गोविन्दाचार्य को वनवास नहीं देते। भाजपा अगर मर्यादा पुरूषोत्तम राम या संघ के घोषित उद्देश्यों के प्रति जरा सा भी लगाव होता तो वह उत्तराखण्ड प्रदेश की राजसत्ता से कभी संघ प्रिय कोश्यारी, अनुभवी नेता पफोनिया व ग्रामवासी को दूध् में से मक्खी तरह बाहर निकाल कर नहीं पफेंक कर प्रदेश की राजसत्ता निशंक जैसे ख्याति प्राप्त नेताओं के हाथ में नहीं सोंपते।
भाजपा में लगता है अब भगवान श्री राम की मर्यादाओं वाला जीवन आत्मसात करने की सामथ्र्य नहीं रही। लगता है भाजपाईयों का मन भी  राजनीति की बैतरणी को पार करने के लिए तिवारी के विकासपुरूष वाले मार्ग को ही आत्मसम्मान करने के लिए हिल्लोरें मार रहा है। नहीं तो सार्वजनिक जीवन में भगवान राम की तरह लोकहित व लोक मर्यादाओं का तो अंगीकार करते। जिस तिवारी को हैदराबाद राजनिवास प्रकरण के बाद उनकी अपनी पार्टी ने लोकलाज को ध्यान में रखते हुए तिवारी से दूरियां बना ली। इससे क्रोध्ति हो कर तिवारी कांग्रेस को सबक सिखाने के लिए कभी भाजपा प्रदेश कार्यालय में ध्मक रहे हैं, तो कभी निरंतर विकास संगठन बनाने की बात कर रहे है। अब सारी स्थितियां प्रतिकुल देखते हुए तिवारी ने भाजपा के कार्यक्रमों में जाना शुरू कर दिया है। परन्तु भाजपा को लोकशाही व मर्यादाओं का भान तो होना चाहिए।
खासकर भगवान राम ने तो विभिषण को शरण दी परन्तु वह मर्यादाओं में रहने वाला था। जो व्यक्ति जनहितों को रोंदने का दोषी ही रहा हो उस व्यक्ति के बिना प्रायश्चित के उसको सार्वजनिक सम्मान देना एक प्रकार से देश की संस्कृति व मर्यादाओं पर कुठाराघात करना ही है। खासकर एक तरपफ भाजपा संसद पर भ्रष्टाचार के कारण संयुक्त जांच संसदीय समिति से कराने की बात कर र ही है। वही भाजपा जब इस प्रकार का आचरण करेगी तो किसको विश्वास होगा इनके चरित्रा व इन पर। भगवान राम ने बाली को लोक लाज का मर्म समझाते हुए कहा कि अनुज बध्ु भगनी सुत नारी , सुन सठ ये कन्या सम चारी.......। इसके बाबजूद अगर भाजपा देश की संस्कृति की दुहाई दे कर उनको आत्मसात करती है तो ऐसी भाजपा संघ को व गडकरी को ही मुबारक हो। वैसे भी भगवान राम को वनवास देने के बाद भाजपा से लोगो को मोह एक प्रकार से भंग हो ही गया। वहीं कांग्रेस से तो पहले से मोह भंग है। रही काबी कसर वह गांध्ी के सपनों को राजघाट में ही दपफना देने से जनता इनसे भी दूर हो गयी है।

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