काश उत्तराखण्ड में भी एक नेता होता



काश उत्तराखण्ड में भी एक नेता होता
मध्य प्रदेष के मुख्यमंत्री चैहान से सबक लें उत्तराखण्डी राजनेता 

काश उत्तराखण्ड में भी एक नेता होता। आप कहेंगे रावत जी क्या कह रहे हो? यहां तो देश के दूसरे भागों से अध्कि बड़े नेता हैं। यहां तो नेताओं के अलावा दूसरा कोई हैं ही नहीं। नेतागिरी तो यहां की माटी में कण कण में भरी हुई है।कहने को उत्तराखण्ड में नेताओं की कमी नहीं हैं। यहां एक दो नहीं आध दर्जन से अध्कि  अखिल भारतीय नेताओं की जमात है। देश के सबसे वरिष्ठ राजनेता नारायणदत्त तिवारी हैं, केन्द्रीय मंत्राी हरीश रावत हैं, विश्वविख्यात संत व राजनेता सांसद सतपाल महाराज हैं, भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भगतसिंह कोष्यारी व  भुवनचंद खंडूडी हैं जैसे दिग्गज राष्ट्रीय नेता हैं। कहने को तो भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी भी उत्तराखण्डी मूल के नेता हैं परन्तु उनका केवल मुख्यमंत्राी के पद पर कोन आसीन हो इसमें हस्तक्षेप करने के अलावा किसी मामले में अपने आप को उत्तराखण्डी मामने को तैयार नहीं है। नेता तो दूसरे भी हैं जो प्रदेश में अपने आप के मुख्यमंत्राी के सबसे बड़े दावेदार मानते हैं, इनमें वर्तमान मुख्यमंत्राी रमेश पोखरियाल निशंक, नेता प्रतिपक्ष डा. हरकसिंह रावत। इसके अलावा सांसदों, विधयकों व मंत्रियों तथा भूतपूर्वों की एक लम्बी जमात हें जो अपने आप को प्रदेश का सबसे वरिष्ठ व जमीनी नेता मानते हैं। भाजपा व कांग्रेस के नेताओं के अलावा कहने को यहां पर बसपा व उक्रांद के नेता हैं जो दल प्रदेश विधनसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हें। बसपा में तो पूरे भारत में एक ही नेता होती हैं वह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्राी सुश्री मायावती। बसपा के संस्थापक स्व. काशीराम के बाद अब बसपा में केवल एक ही व एकछत्रा नेता है। रही बात उक्रांद की उसमें काशीसिंह ऐरी व दिवाकर भट्ट हैं। जिनके कारण विरोध्ी दलों को कमजोर करने के बजाय अपने ही दल को विखराव करने का एक लम्बा इतिहास रहा।  परन्तु मैं तो यहां पर प्रदेश के विकास की बंदरबांट के लिए नेतागिरी करने वाले नेताओं की बात नहीं कह रहा हूॅ। मैं तो उत्तराखण्ड के हितों के लिए संघर्ष करने वाले नेता की बात कर रहा हॅू। अपने मध्य प्रदेश के हितों के लिए अनशन करते हुए मध्य प्रदेश के तेजतरार मुख्यमंत्राी शिवराज चैहान को देख कर मेरे मन में एक टीस सी उठी कि काश! उत्तराखण्ड में भी एक भी शिवराज चैहान जैसा नेता होता तो आज उत्तराखण्ड देश का भ्रष्टत्तम राज्य बनने की दिशा में बढ़ने के बजाय विश्व को लोकशाही का आदर्श पाठ पढ़ाने वाला राज्य के रूप में स्थापित हो जाता। अगर उत्तराखण्ड में एक भी नेता शिव राज की तरह होता तो वह उत्तराखण्ड राज्य के आत्मसम्मान व भारत के माथे पर कलंक लगाने वाले ‘मुजफ्रपफरनगर काण्ड-94 के दोषियों को’ सीबीआई, मानवाध्किार आयोग व इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दोषी ठहराने के बाबजूद 17 साल बाद भी सजा न होने पर इस तरह नकटों की तरह मूक नहीं रहते। इनमें जरा सा भी जमीर होता तो ये सामुहिक रूप से भारत के प्रधनमंत्राी से उसी प्रकार की पुरजोर गुहार करते जिस प्रकार 1984 के सिख विरोध्ी दंगों व गुजरात दंगों में कई बार जांच की जा रही है। ये मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्राी की तरह अगर सरकारें व न्यायालय नहीं सुनते तो अनशन करते। परन्तु करता कौन वह कांग्रेसी सरकार जिसके मुख्यमंत्राी नारायणदत्त तिवारी की सरकार में इस काण्ड के आरोपी को न्याय प्रक्रिया को ध्त्ता बता कर बरी करने का जघन्य कुकृत्य किया जाये या वह भाजपाई सरकार जिसके मुख्यमंत्राी खंडूडी के कार्यकाल में इस काण्ड के आरोपी को उत्तराखण्ड में लालकालीन बिछाने की ध्ृष्ठता की गयी हो। आरोपियों को दण्डित देना तो रहा दूर इस काण्ड के अभियुक्तों को शर्मनाक संरक्षण देने वालों को प्रदेश में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन किया गया। कहां गयी इनकी गैरत? सबसे ज्यादा हैरानी व आश्चर्य यह है कि जिस काण्ड को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने नाजी अत्याचारों के समकक्ष माना, जिस काण्ड के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तत्कालीन केन्द्र की राव तथा उप्र की मुलायम सरकार को दोषी मानते हुए वहां के प्रशासन पर भारतीय संविधन व मानवता को गला घोंटने का अपराध्ी माना था, जिस काण्ड पर सीबीआइ्र ने जिनको दोषी ठहराया था । उस काण्ड पर भाजपा सहित देश के तमाम संगठन घडियाली आंसू बहा रहे थे, आज उस मानवता व महिलाओं पर हुए इस निर्मम राज्य की संगठित बर्दी धरी गुण्डों के शर्मसार करने वाले अपराध् पर क्यों मूक हैं? आज इस काण्ड ने न केवल उत्तराखण्ड के नेताओं की अपितु देश की न्याय पालिका सहित पूरी व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। यह काण्ड आज भी ध्क्किार रहा है देश के हुक्मरानों को, यहां के तथाकथित मानवाध्किार के पुरोधओं को यहां के तथाकथित न्याय के पेरोकारों को। आज जिन लोगों को आरूषि हत्याकाण्ड दिखाई दे रहा है उन काठ के उल्लूओं को मुजफ्रपफरनगर काण्ड क्यों नहीं दिखाई दे रहा है इस बात का सबसे बड़ा अपफसोस है। निशंक सरकार से आशा ही करनी क्या? उनको तो प्रदेश का शर्मनाक दोहन करने के लिए उनके आकाओं ने जनभावनाओं को रौंद कर  मुख्यमंत्राी बना रखा है। उनको तो शायद ही इस आत्म सम्मान का जरा भी भान हो? अगर होता तो वे अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों तिवारी, कोश्यारी, स्वामी व खंडूडी की तरह इस मामले में नपुंसकों की तरह मौन नहीं रहते। इनमें जरा सी भी आत्मसम्मान होता तो वे अविलम्ब शिवराज चैहान की तरह अनशन करने का कदम उठाते? परन्तु यहां तो दुर्भाग्य यह है कि यहां पर किसे लगी है प्रदेश के हितों की इन सबको प्रदेश की सत्ता की बंदरबांट में खुद को चैध्री बनने की अंध्ी दौड का नायक बनना है। 
केवल मुजफ्रपफरनगर काण्ड ही नहीं अपितु यहां पर प्रदेश की स्थाई राजधनी ंिजसको प्रदेश की उस जागरूक जनता ने राज्य गठन आंदोलन के प्रारम्भ में ही गैरसैंण के रूप में स्वीकार कर दिया था। जिसे राज्य गठन से पहले मुलायम सरकार की समिति ने गैरसेण को राजधनी के रूप में मान्यता दे दी थी  परन्तु क्या मजाल राज्य गठन के बाद यहां के विकास के बजट पर बंदरबांट करने के लिए राजनीति करने वाले तथाकथित राजनेताओं को लोकशाही के प्रति जरा सी भी ईमानदारी व नैतिकता को अंगीकार किया। अगर इनमें जरा सी भी नैतिकता होती तो ये अब तक अविलम्ब गैरसैंण में राजधनी गठित कर लोकशाही का सम्मान करते। 
दुर्भाग्य यह रहा कि उत्तराखण्ड में आज भी एक भी नेता ऐसा नहीं है जो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्राी शिवराज चैहान की तर्ज पर प्रदेश के हितों के लिए अनशन जेसे कदम तक उठाने के लिए तैयार हो। तैयार होना तो रहा दूर वे इस दिशा में आवाज उठाने का साहस तक नहीं जुटा पाते हैं। एक तरपफ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्राी  शिवराज चैहान प्रदेश के किसानों के हितों की केन्द्र सरकार द्वारा की जा रही उपेक्षा से आहत हो कर प्रदेश में स्वयं अनशन पर बैठ गये। वहीं दूसरी तरपफ भाजपा शासित प्रदेश उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्राी रमेश पौखरियाल निशंक  11 पफरवरी को दीन दयाल उपाध्याय की जयंती पर देहरादून में गरीबी की रेखा के नीचे रह रहे परिवारों को सस्ता राशन देने का ऐलान कर रहे थे। सरसरी तोर पर देखने में दोनों बहुत ही कल्याणकारी योजनायें लग रही थी। दोनों ही जनता को लुभावनें के कार्य कर रहे थे परन्तु जिस प्रकार से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्राी अपने प्रदेश के किसानों के हितों की रक्षा के लिए केन्द्र सरकार से सीध्े मोर्चा ले रहे थे वहीं उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्राी प्रदेश के महत्वपूर्ण हितों को नजरांदाज करते हुए केवल आगामी 2012 के चुनावों को नजर में रखते हुए जनता को एक प्रकार से चुनावी प्रलोभन में जनता को मोहने का काम कर रहे थे।  लोकशाही में जनहित के लिए शिवराज की तरह  ऐसी नोटंकी करना भी हितकारी होता है।  परन्तु उत्तराखण्ड में जहां प्रदेश के भविष्य पर इन निहित स्वार्थी नेताओं के कारण जनसंख्या पर आधरित परिसीमन थोपा गया, इससे प्रदेश का राजनेतिक भविष्य सदा के लिए दपफना ही गया है। परन्तु इन्होंने अभी तक उपफ तक नहीं की। प्रदेश में विकास के बजाय भ्रष्टाचार, जातिवाद व क्षेत्रावाद की आड़ में प्रदेश के विकास की बंदरबांट का अंध्ी आंध्ी चली हुई है। ऐसे में केवल एक ही टीस मन में उठती है है प्रभु मेरे उत्तराखण्ड को इन पाखण्डी व जनहितों को अपने निहित स्वार्थ के लिए रौंदाने वाले नेताओं से बचाओ। काश मेरे प्रदेश में कोई यशवंत सिंह परमार होता तो प्रदेश में विकास होता, कोई शिवराज चैहान जैसा मुख्यमंत्राी होता तो प्रदेश के हितों की रक्षा  होती, यहां पर विशेष राज्य का दर्जा हासिल होने पर भी उस पर ग्रहण लग गया, न तो ट्टषिकेश में एम्स बन पाया व नहीं यहां घोषित हुई रेल लाइनें, इन मुद्दों के लिए राजनीति करते तो प्रदेश का कुछ भला होता। परन्तु करेगा कौन इनको तो केवल बंदरबांट के लिए यहां पर केवल बजट और बजट चाहिए। प्रदेश में शिक्षा, स्वास्थ्य व नैतिकता का मापदण्ड निरंतर गिर रहा है। परन्तु इसकी चिंता कौन करे। इन्हें केवल बजट चाहिए। प्रदेश व जनता जाय भाड़ मे। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम  तत्सत्। श्री कृष्णाय् नमो।

Comments

Popular posts from this blog

-देवभूमि की पावनता की रक्षा की फिर भगवान बदरीनाथ ने- निशंक के बाद मनंमोहन को भी जाना होगा