गुरू तेगबहादुर की षहादत धिक्कार रही है भारतीय हुक्मरानों को
गुरू तेगबहादुर की षहादत धिक्कार रही है भारतीय हुक्मरानों को
‘महान गुरू तेगबहादुर जी व उनके प्रिय षिश्यों भाई मतिदास आदि ने जो अपनी षहादत, अत्याचारी मुगल षासक से कष्मीरी पण्डितों की रक्षा करने के लिए षताब्दियों पहले दी थी उस षहादत का सम्मान आज कई षताब्दियां बीत जाने के बाद भी न तो भारतीय हुक्मरान ही रख पाये व नहीं हम सवा अरब भारतीय । इससे षर्मनाक बात भारतीयों के लिए दूसरी क्या हो सकती है कि आज भी उन्हीं कष्मीरी पण्डितों के वंषज आजादी के 64 साल बाद भी आतंकियों के अत्याचारों से अपने घर बार छोड़ कर कष्मीर छोड़ कर इधर उधर यायावरी जीवन जीने के लिए अभिषापित है।’ यह विचार मेरे मन में उस समय आये जब मैं आज षुक्रवार 10 जून 2011 को दोपहर सवा बारह बजे सीस गंज गुरूद्वारे के समीप गया। वहां पर महान गुरू तेगबहादुर की पावन स्मृति को षतः षतः नमन् करते हुए मेरी नजर गुरूद्वारे के समीप गोल चक्कर पर बने र्भाइ मति दास चैक पर लगे षिलापट पर गयी जो गुरू तेजबहादुर के परम षिश्य भाई मतिदास एवं साथियों की अमर षहादत की पावन गाथा का वर्णन लिखा हुआ है। मै उस षिलापट पर गया और महान गुरू षिश्यों के लिए षतः षतः नमन् किया।
आज भले ही देष के षासक के रूप में महान बलिदानी गुरू गोविन्द सिंह द्वारा स्थापित सिख धर्म को मानने वाले डा मनमोहन सिंह देष के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर आठ सालों से विराज रहे हैं परन्तु क्या मजाल हे कि उनके कानों में लाखों की संख्या में आततायी आतंकियों के अत्याचारों से कष्मीर से बेधर हो कर यायावरी जीवन जी रहे कष्मीरियों की करूण पुकार सुनाई दे रही है। मनमोहन सिंह भले ही अपने आप को सिख मानते हों परन्तु उनको इस बात का भान होगा कि अपने दर पर अत्याचारी मुगलिया षासक के अत्चाचारों से त्रस्त कष्मीरी पण्डितों की करूण पुकार को सुनते ही उन्होंने अपने महान प्रतापी पिता गुरू तेगबहादुर से पीड़ित कष्मीरियों के हितों की रक्षा के लिए आगे आने के लिए पुरजोर आग्रह किया। अपने पूरे वंष को कुर्वान करके मानवता की रक्षा करने वाले महान गुरू गोविन्द सिंह जी द्वारा स्थापित सिख पंथ के गौरवषाली इतिहास को देख कर जहां पूरा विष्व नतमस्तक होता है वहीं आज उसी सिख पंथ से सम्बंध रखने वाले देष के वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सत्ता लोलुपता को देख कर षर्मसार हैं। सिख धर्म के इतिहास में महाराजा रणजीत सिंह से बडे विषाल देष के षासक होने के बाबजूद मनमोहन सिंह के षासन में जनता जहां बेलगाम मंहगाई, भ्रश्टाचार व आतंकबाद से देष की आम जनता का जीना दूष्वार है। देष की जनता चारों तरफ त्राहीत्राही कर रही है परन्तु क्या मजाल है कि धृतराश्ट्र की तरह सत्तांध मनमोहन सिंह की मृतप्राय आत्मा जरा सा भी जागृत हो। उनको इस बात का भी भान नहीं है कि महान गुरू तेग बहादूर जी व भाई मतिदास ने तो चंद फरियादियों के कारण कल्पनातीत बलिदान दिया। मानवता की रक्षा करने के लिए घोर अमानवीय यातनायें हंसते हंसते सहते हुए भी अपना जीवन बलिदान दे दिया। परन्तु मनमोहन सिंह की आंखों के आगे कष्मीर ही नहीं पूरा भारत त्राही-त्राही कर रहा है परन्तु क्या मजाल है भारत के इस नये नीरों की आत्मा में जरा सी भी संवेदना जागृत होकर इनको अपने दायित्व का बोध भी कराये।
यह केवल मनमोहन सिंह की बात नहीं अपितु इसके लिए आजादी के बाद के देष के सभी हुक्मरान जिम्मेदार है। कांग्रेस पर तो किसी को विष्वास भी नहीं रहा परन्तु ‘जहां बलिदान हुए मुखर्जी वह कष्मीर हमारा है’ व ’कष्मीर से धारा 370 को समाप्त करो तथा समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए ‘एक देष में दो निषान व दो विधान नहीं चलेगा ’के नारे लगा कर सत्तासीन हुए भारतीय संस्कृति के स्वयंभू ध्वजवाहक संघ पोशित भाजपा के महानायक अटल व आडवाणी के केन्द्रीय षासक बनने पर कांग्रेसियों से बदतर देषहित पर मूक रहने व तमाम वादों को भूल जाने को देख कर भारतीय जनमानस अपने आप को ठगा महसूस कर रहा है। जनता भाजपा के नायकों द्वारा कांग्रेसियों से बदतर विष्वासघात किये जाने से अभी तक हस्तप्रद है। आज सीसगंज गुरूद्वारे व भाई मतिदास चैक के पास जा कर मेरी आत्मा ने मुझे जो धिक्कारा उससे में पूरी तरह से व्यथित हॅू। मैं अपने महान गुरू तेगबहादुर जी व भाई मतिदास तथा अन्य गुरू भाईयों की षहादत को नमन् करते हुए जो टिस मेरे मन में लगी। मुझे लगा कि आज गुरू तेगबहादुर व भाई मतिदास सहित अन्य षहीदों की दिव्य आत्मा हम सब सवा करोड़ भारतीयों व यहां के तमाम हुक्मरानों को कष्मीर समस्या के समाधान न करने के लिए धिक्कार रही है। काष आजादी के इन 64 सालों में एक भी ऐसा प्रधानमंत्री होता जो महानगुरू के इस अमर बलिदान को नमन् करते हुए कष्मीर समस्या का समाधान करता।
‘महान गुरू तेगबहादुर जी व उनके प्रिय षिश्यों भाई मतिदास आदि ने जो अपनी षहादत, अत्याचारी मुगल षासक से कष्मीरी पण्डितों की रक्षा करने के लिए षताब्दियों पहले दी थी उस षहादत का सम्मान आज कई षताब्दियां बीत जाने के बाद भी न तो भारतीय हुक्मरान ही रख पाये व नहीं हम सवा अरब भारतीय । इससे षर्मनाक बात भारतीयों के लिए दूसरी क्या हो सकती है कि आज भी उन्हीं कष्मीरी पण्डितों के वंषज आजादी के 64 साल बाद भी आतंकियों के अत्याचारों से अपने घर बार छोड़ कर कष्मीर छोड़ कर इधर उधर यायावरी जीवन जीने के लिए अभिषापित है।’ यह विचार मेरे मन में उस समय आये जब मैं आज षुक्रवार 10 जून 2011 को दोपहर सवा बारह बजे सीस गंज गुरूद्वारे के समीप गया। वहां पर महान गुरू तेगबहादुर की पावन स्मृति को षतः षतः नमन् करते हुए मेरी नजर गुरूद्वारे के समीप गोल चक्कर पर बने र्भाइ मति दास चैक पर लगे षिलापट पर गयी जो गुरू तेजबहादुर के परम षिश्य भाई मतिदास एवं साथियों की अमर षहादत की पावन गाथा का वर्णन लिखा हुआ है। मै उस षिलापट पर गया और महान गुरू षिश्यों के लिए षतः षतः नमन् किया।
आज भले ही देष के षासक के रूप में महान बलिदानी गुरू गोविन्द सिंह द्वारा स्थापित सिख धर्म को मानने वाले डा मनमोहन सिंह देष के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर आठ सालों से विराज रहे हैं परन्तु क्या मजाल हे कि उनके कानों में लाखों की संख्या में आततायी आतंकियों के अत्याचारों से कष्मीर से बेधर हो कर यायावरी जीवन जी रहे कष्मीरियों की करूण पुकार सुनाई दे रही है। मनमोहन सिंह भले ही अपने आप को सिख मानते हों परन्तु उनको इस बात का भान होगा कि अपने दर पर अत्याचारी मुगलिया षासक के अत्चाचारों से त्रस्त कष्मीरी पण्डितों की करूण पुकार को सुनते ही उन्होंने अपने महान प्रतापी पिता गुरू तेगबहादुर से पीड़ित कष्मीरियों के हितों की रक्षा के लिए आगे आने के लिए पुरजोर आग्रह किया। अपने पूरे वंष को कुर्वान करके मानवता की रक्षा करने वाले महान गुरू गोविन्द सिंह जी द्वारा स्थापित सिख पंथ के गौरवषाली इतिहास को देख कर जहां पूरा विष्व नतमस्तक होता है वहीं आज उसी सिख पंथ से सम्बंध रखने वाले देष के वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सत्ता लोलुपता को देख कर षर्मसार हैं। सिख धर्म के इतिहास में महाराजा रणजीत सिंह से बडे विषाल देष के षासक होने के बाबजूद मनमोहन सिंह के षासन में जनता जहां बेलगाम मंहगाई, भ्रश्टाचार व आतंकबाद से देष की आम जनता का जीना दूष्वार है। देष की जनता चारों तरफ त्राहीत्राही कर रही है परन्तु क्या मजाल है कि धृतराश्ट्र की तरह सत्तांध मनमोहन सिंह की मृतप्राय आत्मा जरा सा भी जागृत हो। उनको इस बात का भी भान नहीं है कि महान गुरू तेग बहादूर जी व भाई मतिदास ने तो चंद फरियादियों के कारण कल्पनातीत बलिदान दिया। मानवता की रक्षा करने के लिए घोर अमानवीय यातनायें हंसते हंसते सहते हुए भी अपना जीवन बलिदान दे दिया। परन्तु मनमोहन सिंह की आंखों के आगे कष्मीर ही नहीं पूरा भारत त्राही-त्राही कर रहा है परन्तु क्या मजाल है भारत के इस नये नीरों की आत्मा में जरा सी भी संवेदना जागृत होकर इनको अपने दायित्व का बोध भी कराये।
यह केवल मनमोहन सिंह की बात नहीं अपितु इसके लिए आजादी के बाद के देष के सभी हुक्मरान जिम्मेदार है। कांग्रेस पर तो किसी को विष्वास भी नहीं रहा परन्तु ‘जहां बलिदान हुए मुखर्जी वह कष्मीर हमारा है’ व ’कष्मीर से धारा 370 को समाप्त करो तथा समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए ‘एक देष में दो निषान व दो विधान नहीं चलेगा ’के नारे लगा कर सत्तासीन हुए भारतीय संस्कृति के स्वयंभू ध्वजवाहक संघ पोशित भाजपा के महानायक अटल व आडवाणी के केन्द्रीय षासक बनने पर कांग्रेसियों से बदतर देषहित पर मूक रहने व तमाम वादों को भूल जाने को देख कर भारतीय जनमानस अपने आप को ठगा महसूस कर रहा है। जनता भाजपा के नायकों द्वारा कांग्रेसियों से बदतर विष्वासघात किये जाने से अभी तक हस्तप्रद है। आज सीसगंज गुरूद्वारे व भाई मतिदास चैक के पास जा कर मेरी आत्मा ने मुझे जो धिक्कारा उससे में पूरी तरह से व्यथित हॅू। मैं अपने महान गुरू तेगबहादुर जी व भाई मतिदास तथा अन्य गुरू भाईयों की षहादत को नमन् करते हुए जो टिस मेरे मन में लगी। मुझे लगा कि आज गुरू तेगबहादुर व भाई मतिदास सहित अन्य षहीदों की दिव्य आत्मा हम सब सवा करोड़ भारतीयों व यहां के तमाम हुक्मरानों को कष्मीर समस्या के समाधान न करने के लिए धिक्कार रही है। काष आजादी के इन 64 सालों में एक भी ऐसा प्रधानमंत्री होता जो महानगुरू के इस अमर बलिदान को नमन् करते हुए कष्मीर समस्या का समाधान करता।
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