आखिर क्यों दम तोड़ चूकी है उत्तराखण्डी नेताओं की आत्मा
-आखिर क्यों दम तोड़ चूकी है उत्तराखण्डी नेताओं की आत्मा/
-चार साल से कब्जा जमाये हुए थे विधायक किशोर, मुख्यमंत्री के पद से हटने के कई महिनों तक मुख्यमंत्री आवास पर जमे रहे खंडूडी, भाजपा के बीना महाराना व अजट टम्टा ने भी जमें हुए हैं मत्री की कोठी में/
इस सप्ताह जो प्रकरण देहरादून में कांग्रेसी विधायक किशोर उपाध्याय के सरकारी आवास को खाली कराने पर घटित हुआ उसको देख कर मेरा सर शर्म से झुक गया। हमारे भाग्य विधाताओं के कारनामों को देख कर एक ही प्रश्न मेरे मन में उठा कि आखिर ये उत्तराखण्ड को कहां ले जायेंगे? इन नेताओं की आत्मा जनप्रतिनिधी होते हुए क्यों दम तोड़ गयी।
इस सप्ताह राज्य सम्पति विभाग और पुलिस ने विधायक किशोर उपाध्याय का यमुना कालोनी स्थित आवास उनकी अनुपस्थिति में बलपूर्वक खाली करा कराया। इसका प्रचण्ड विरोध कर रहे नेता प्रतिपक्ष डा. हरक सिंह रावत, विधायक दिनेश अग्रवाल और अन्य कांग्रेसियों क ेकरीब पांच घंटे हंगामे के बाद पुलिस ने कांग्रेसियों को गिरफ्तार करने पर इस प्रकरण का पटाक्षेप किया। इसकी झलक देश के समाचार चैनलों ने भी दिखाया। इस आवास में मौजूद सामान को जब्त कर ट्रांजिट हास्टल पहुंचा दिया गया है। इस कार्रवाई से पूर्व न्यायालय से विधायक किशोर उपाध्याय को दो बार नोटिस दिया जा चुका है। दो दिन पहले अपर सचिव अरविन्द सिंह ह्यांकी ने आदेश जारी किया कि चार साल से यमुना कालोनी न्यू मंत्री आवास संख्या-पांच में अनाधिकृत तरीके से रह रहे विधायक किशोर उपाध्याय का आवास खाली कराया जाए। इसके बाद सिटी मजिस्ट्रेट मेहरबान सिंह, एसपी सिटी अजय जोशी और राज्य सम्पत्ति विभाग के मुख्य व्यवस्थाधिकारी सीनियर ग्रेड सीपी बृजवासी पुलिसबल के साथ घटना वाले दिन सुबह नौ बजे विधायक आवास पहुंचे। विधायक किशोर..विधायक किशोर उपाध्याय इन दिनों परिवार के साथ कोलकाता में था। उसे देश कर देश के प्रबुद्व लोग हैरान थे कि उत्तराखण्ड के नेताओं को क्या हो गया। क्या विधायक के मकान में रहना इन लोगों के शान के खिलाफ है। अगर जनप्रतिनिधि ही कानून का सम्मान नहीं करेंगे तो आम जनता से क्या आशा की जा सकती है।
इसकी सूचना नेता प्रतिपक्ष हरक सिंह रावत, विधायक लक्ष्मण चैक क्षेत्र दिनेश अग्रवाल व अन्य कांग्रेसियों को मिली। सूचना मिलते ही भारी संख्या में कांग्रेसी मौके पर पहुंच गए। तब तक आवास से दो ट्रक सामान ले जाया जा चुका था। हालांकि नेता प्रतिपक्ष डा. हरक सिंह रावत ने पुलिस- प्रशासन और सरकार पर विधायक के उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए अन्य कांग्रेसियों के साथ मुख्य द्वार पर धरना आरंभ कर दिया। कांग्रेसियों ने सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। एसपी सिटी अजय जोशी व सिटी मजिस्ट्रेट मेहरबान सिंह ने नेता प्रतिपक्ष को समझाने का प्रयास किया परंतु वह धरने से उठने को राजी नहीं हुए।कांग्रेसियों के हंगामे के बाद पुलिस ने धरना-प्रदर्शन और नारेबाजी कर रहे कांग्रेसियों को गिरफ्तार कर लिया और पुलिस लाइन ले जाकर छोड़ दिया। इसके बाद राज्य सम्पत्ति विभाग द्वारा विधायक आवास खाली करवाकर सामान एमएलए ट्रांजिट हास्टल (अस्थाई विधायक आवास) स्थित आवास संख्या छह में रखवा दिया गया। प्यारा उत्तराखण्ड को दूरभाष द्वारा सम्पर्क किये जाने पर मुख्य व्यवस्थाधिकारी राज्य सम्पत्ति विभाग सीपी बृजवासी ने बताया कि 13 मार्च 2007 को विधायक किशोर उपाध्याय का आवंटन निरस्त कर दिया गया था। आवंटन निरस्त होने के बाद भी श्री उपाध्याय आवास खाली नहीं कर रहे थे। न्यायालय द्वारा उनको दो बार उन्हें नोटिस भेजा जा चुका था। ऐसी स्थिति में प्रशासन के पास यह कार्यवाही करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था।
यह घटना मात्र इतनी नहीं है कि प्रदेश की सत्तासीन भाजपा सरकार के इशारे पर प्रशासन ने कांग्रेसी विधायक किशोर उपाध्याय का मंत्रियों के लिए बने यमुना कालोनी वाला सरकारी आवास पुलिस बल की सहायता से खाली करा दिया। हालांकि कांग्रेसी यह सवाल कर रहे हैं कि भाजपा सरकार ने इसी प्रकार से मंत्री आवासों पर कब्जा जमाये हुए विधायकों को क्यों खाली नहीं कराया। यह केवल राजनीति द्वेष है। गौरतलब है कि भाजपा की विधायक बीना महाराना व अजय टम्टा भी किशोर उपाध्याय की तरह ही इन मंत्री वाले आवासों में ही रह रहे हैं। उनसे प्रशासन ने कई बार खाली कराने का अनुरोध किया परन्तु क्या मजाल है इन लोगों को अपने नैतिक दायित्व का बोध तक हो। मामला कोर्ट में चल रहा है। ये तीनों विधायकों को ये आवास उस समय आवंटित किये गये थे जब वे मंत्री पद पर आसीन थे। किशरो उपाध्याय तिवारी के शासन काल में राज्य मंत्री थे, बाद में किन्ही कारणों से उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। ऐसा ही भाजपा नेत्री बीना महाराना व अजय टम्टा के साथ हुआ। दोनों भाजपा मुख्यमंत्री भुवनचंद खंडूडी के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री पद पर आसीन थे तब उन्हें ये आवास मिले। प्रदेश में भाजपा द्वारा मुख्यमंत्री को बदले जाने पर निशंक सरकार में बीना महाराना को मंत्री पद पर आसीन नहीं किया गया वहीं अजय टम्टा को भी सांसद चुनाव में करारी हार का खमियाजा भोगते हुए उन पर भाजपा नेतृत्व की गाज गिरी और उनको प्रदेश सरकार में मंत्री पद से भी हाथ धोना पड़ा।
इन तीनों के प्रकरण से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि इन तीनों का नैतिक दायित्व यही कहता है कि जैसे ही मंत्री पद से हट गये तो मंत्री पद हेतु मिली सभी सुविधायें व अधिकार शासन को समर्पित कर दिये जायं। मंत्री पद पर रहते हुए जो गाड़ी, सहायक व कार्यालय सहित अन्य सुविधायें स्वतः सरकार वापस ले लेती है। इसी तरह सरकार आशा करती है कि मंत्री आवास भी जल्द से जल्द सरकार को सोंप दिया जाय ताकि जो इस पद पर नियुक्त हो चूके मंत्री को यह आवास उपलब्ध किया जा सके। इस नैतिक तकाजे के बाबजूद न जाने क्यों इन जनप्रतिनिधियों ने क्या सोच कर इन आवासों को खाली करना नहीं चाहा। हो सकता है कि कोई ऐसे वाजीफ कारण रहे हों परन्तु जब उनको विधायक आवास आवंटित किये जा चूके हैं तो उनका मंत्री आवास अपनी शान-प्रतिष्ठा का प्रतीक तथा अपनी बपौती न समझते हुए इसको सरकारी धरोहर समझ कर शासन प्रशासन को सौंप देना चाहिए।
यह प्रवृति केवल विधायकों या मंत्रियों तक सीमित नहीं रह गयी जिस प्रकार से प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचंद खंडूडी ने मुख्यमंत्री के पद से हटने के कई महिने बाद भी मुख्यमंत्री आवास खाली नहीं किया, इससे जनता में उनकी भारी किरकिरी हुई। इस कारण से प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री को अपने मंत्री वाले आवास को ही मुख्यमंत्री आवास में ंतब्दील करना पड़ा। जिस कारण भले ही मुख्यमंत्री को असुविधा भले ही न हो परन्तु प्रशासन व सुरक्षा तंत्र को काफी परेशानी का सामाना करना पड़ा। खंडूडी के मुख्यमंत्री पद से हटने के कई महिने तक मुख्यमंत्री आवास पर डटे रहने की प्रवृति की जब जनता में कड़ी भ्रत्र्सना हुई तो खंडूडी को अपनी भूल का एहसास हुआ परन्तु तब तक कई माह बीत गये। लोग हैरान थे कि एक सेना का उच्च अधिकारी होने के बाबजूद खडूडी को इतना भी नैतिकता नहीं रही कि पद को छोड़ते ही उसकी महत्वपूर्ण सुविधायें छोड़नी पड़ती है खासकर मुख्यमंत्री आवास व्यक्ति का नहीं पद पर आसीन का होता है। यह प्रवृति व झूटे दिखावे की प्रवृति उत्तराखण्ड को कहां ले जायेगी। यही चिंता का विशष है। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत् । श्री कृष्णाय् नमो।
-चार साल से कब्जा जमाये हुए थे विधायक किशोर, मुख्यमंत्री के पद से हटने के कई महिनों तक मुख्यमंत्री आवास पर जमे रहे खंडूडी, भाजपा के बीना महाराना व अजट टम्टा ने भी जमें हुए हैं मत्री की कोठी में/
इस सप्ताह जो प्रकरण देहरादून में कांग्रेसी विधायक किशोर उपाध्याय के सरकारी आवास को खाली कराने पर घटित हुआ उसको देख कर मेरा सर शर्म से झुक गया। हमारे भाग्य विधाताओं के कारनामों को देख कर एक ही प्रश्न मेरे मन में उठा कि आखिर ये उत्तराखण्ड को कहां ले जायेंगे? इन नेताओं की आत्मा जनप्रतिनिधी होते हुए क्यों दम तोड़ गयी।
इस सप्ताह राज्य सम्पति विभाग और पुलिस ने विधायक किशोर उपाध्याय का यमुना कालोनी स्थित आवास उनकी अनुपस्थिति में बलपूर्वक खाली करा कराया। इसका प्रचण्ड विरोध कर रहे नेता प्रतिपक्ष डा. हरक सिंह रावत, विधायक दिनेश अग्रवाल और अन्य कांग्रेसियों क ेकरीब पांच घंटे हंगामे के बाद पुलिस ने कांग्रेसियों को गिरफ्तार करने पर इस प्रकरण का पटाक्षेप किया। इसकी झलक देश के समाचार चैनलों ने भी दिखाया। इस आवास में मौजूद सामान को जब्त कर ट्रांजिट हास्टल पहुंचा दिया गया है। इस कार्रवाई से पूर्व न्यायालय से विधायक किशोर उपाध्याय को दो बार नोटिस दिया जा चुका है। दो दिन पहले अपर सचिव अरविन्द सिंह ह्यांकी ने आदेश जारी किया कि चार साल से यमुना कालोनी न्यू मंत्री आवास संख्या-पांच में अनाधिकृत तरीके से रह रहे विधायक किशोर उपाध्याय का आवास खाली कराया जाए। इसके बाद सिटी मजिस्ट्रेट मेहरबान सिंह, एसपी सिटी अजय जोशी और राज्य सम्पत्ति विभाग के मुख्य व्यवस्थाधिकारी सीनियर ग्रेड सीपी बृजवासी पुलिसबल के साथ घटना वाले दिन सुबह नौ बजे विधायक आवास पहुंचे। विधायक किशोर..विधायक किशोर उपाध्याय इन दिनों परिवार के साथ कोलकाता में था। उसे देश कर देश के प्रबुद्व लोग हैरान थे कि उत्तराखण्ड के नेताओं को क्या हो गया। क्या विधायक के मकान में रहना इन लोगों के शान के खिलाफ है। अगर जनप्रतिनिधि ही कानून का सम्मान नहीं करेंगे तो आम जनता से क्या आशा की जा सकती है।
इसकी सूचना नेता प्रतिपक्ष हरक सिंह रावत, विधायक लक्ष्मण चैक क्षेत्र दिनेश अग्रवाल व अन्य कांग्रेसियों को मिली। सूचना मिलते ही भारी संख्या में कांग्रेसी मौके पर पहुंच गए। तब तक आवास से दो ट्रक सामान ले जाया जा चुका था। हालांकि नेता प्रतिपक्ष डा. हरक सिंह रावत ने पुलिस- प्रशासन और सरकार पर विधायक के उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए अन्य कांग्रेसियों के साथ मुख्य द्वार पर धरना आरंभ कर दिया। कांग्रेसियों ने सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। एसपी सिटी अजय जोशी व सिटी मजिस्ट्रेट मेहरबान सिंह ने नेता प्रतिपक्ष को समझाने का प्रयास किया परंतु वह धरने से उठने को राजी नहीं हुए।कांग्रेसियों के हंगामे के बाद पुलिस ने धरना-प्रदर्शन और नारेबाजी कर रहे कांग्रेसियों को गिरफ्तार कर लिया और पुलिस लाइन ले जाकर छोड़ दिया। इसके बाद राज्य सम्पत्ति विभाग द्वारा विधायक आवास खाली करवाकर सामान एमएलए ट्रांजिट हास्टल (अस्थाई विधायक आवास) स्थित आवास संख्या छह में रखवा दिया गया। प्यारा उत्तराखण्ड को दूरभाष द्वारा सम्पर्क किये जाने पर मुख्य व्यवस्थाधिकारी राज्य सम्पत्ति विभाग सीपी बृजवासी ने बताया कि 13 मार्च 2007 को विधायक किशोर उपाध्याय का आवंटन निरस्त कर दिया गया था। आवंटन निरस्त होने के बाद भी श्री उपाध्याय आवास खाली नहीं कर रहे थे। न्यायालय द्वारा उनको दो बार उन्हें नोटिस भेजा जा चुका था। ऐसी स्थिति में प्रशासन के पास यह कार्यवाही करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था।
यह घटना मात्र इतनी नहीं है कि प्रदेश की सत्तासीन भाजपा सरकार के इशारे पर प्रशासन ने कांग्रेसी विधायक किशोर उपाध्याय का मंत्रियों के लिए बने यमुना कालोनी वाला सरकारी आवास पुलिस बल की सहायता से खाली करा दिया। हालांकि कांग्रेसी यह सवाल कर रहे हैं कि भाजपा सरकार ने इसी प्रकार से मंत्री आवासों पर कब्जा जमाये हुए विधायकों को क्यों खाली नहीं कराया। यह केवल राजनीति द्वेष है। गौरतलब है कि भाजपा की विधायक बीना महाराना व अजय टम्टा भी किशोर उपाध्याय की तरह ही इन मंत्री वाले आवासों में ही रह रहे हैं। उनसे प्रशासन ने कई बार खाली कराने का अनुरोध किया परन्तु क्या मजाल है इन लोगों को अपने नैतिक दायित्व का बोध तक हो। मामला कोर्ट में चल रहा है। ये तीनों विधायकों को ये आवास उस समय आवंटित किये गये थे जब वे मंत्री पद पर आसीन थे। किशरो उपाध्याय तिवारी के शासन काल में राज्य मंत्री थे, बाद में किन्ही कारणों से उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। ऐसा ही भाजपा नेत्री बीना महाराना व अजय टम्टा के साथ हुआ। दोनों भाजपा मुख्यमंत्री भुवनचंद खंडूडी के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री पद पर आसीन थे तब उन्हें ये आवास मिले। प्रदेश में भाजपा द्वारा मुख्यमंत्री को बदले जाने पर निशंक सरकार में बीना महाराना को मंत्री पद पर आसीन नहीं किया गया वहीं अजय टम्टा को भी सांसद चुनाव में करारी हार का खमियाजा भोगते हुए उन पर भाजपा नेतृत्व की गाज गिरी और उनको प्रदेश सरकार में मंत्री पद से भी हाथ धोना पड़ा।
इन तीनों के प्रकरण से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि इन तीनों का नैतिक दायित्व यही कहता है कि जैसे ही मंत्री पद से हट गये तो मंत्री पद हेतु मिली सभी सुविधायें व अधिकार शासन को समर्पित कर दिये जायं। मंत्री पद पर रहते हुए जो गाड़ी, सहायक व कार्यालय सहित अन्य सुविधायें स्वतः सरकार वापस ले लेती है। इसी तरह सरकार आशा करती है कि मंत्री आवास भी जल्द से जल्द सरकार को सोंप दिया जाय ताकि जो इस पद पर नियुक्त हो चूके मंत्री को यह आवास उपलब्ध किया जा सके। इस नैतिक तकाजे के बाबजूद न जाने क्यों इन जनप्रतिनिधियों ने क्या सोच कर इन आवासों को खाली करना नहीं चाहा। हो सकता है कि कोई ऐसे वाजीफ कारण रहे हों परन्तु जब उनको विधायक आवास आवंटित किये जा चूके हैं तो उनका मंत्री आवास अपनी शान-प्रतिष्ठा का प्रतीक तथा अपनी बपौती न समझते हुए इसको सरकारी धरोहर समझ कर शासन प्रशासन को सौंप देना चाहिए।
यह प्रवृति केवल विधायकों या मंत्रियों तक सीमित नहीं रह गयी जिस प्रकार से प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचंद खंडूडी ने मुख्यमंत्री के पद से हटने के कई महिने बाद भी मुख्यमंत्री आवास खाली नहीं किया, इससे जनता में उनकी भारी किरकिरी हुई। इस कारण से प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री को अपने मंत्री वाले आवास को ही मुख्यमंत्री आवास में ंतब्दील करना पड़ा। जिस कारण भले ही मुख्यमंत्री को असुविधा भले ही न हो परन्तु प्रशासन व सुरक्षा तंत्र को काफी परेशानी का सामाना करना पड़ा। खंडूडी के मुख्यमंत्री पद से हटने के कई महिने तक मुख्यमंत्री आवास पर डटे रहने की प्रवृति की जब जनता में कड़ी भ्रत्र्सना हुई तो खंडूडी को अपनी भूल का एहसास हुआ परन्तु तब तक कई माह बीत गये। लोग हैरान थे कि एक सेना का उच्च अधिकारी होने के बाबजूद खडूडी को इतना भी नैतिकता नहीं रही कि पद को छोड़ते ही उसकी महत्वपूर्ण सुविधायें छोड़नी पड़ती है खासकर मुख्यमंत्री आवास व्यक्ति का नहीं पद पर आसीन का होता है। यह प्रवृति व झूटे दिखावे की प्रवृति उत्तराखण्ड को कहां ले जायेगी। यही चिंता का विशष है। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत् । श्री कृष्णाय् नमो।
BAhut achhi report. Neta aur aphsar to is pradesh ko doodh dene vali gai samajh baithe hain. janta jaye bhad me inhe koi phark nahi padta. Lekin Khanduriji se hame aisi ummeed na thi.
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