-विश्व वैंक का प्रमुख बनकर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनायें मनमोहन/
-विश्व वैंक का प्रमुख बनकर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनायें मनमोहन/
-देश व कांग्रेस को बचाने के लिए पूरी तरह असफल हुए प्रधानमंत्री दें इस्तीफा/
जनता की नजरों में पूरी तरह से बेनकाब हो चुके प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी अब कांग्रेसी कार्यकारी आलाकमान राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए मन से तैयार हो चूके है! खासकर जिस प्रकार से राहुल गांधी के 41 वें जन्म दिन पर आम कांग्रेसियों ने राहुल गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए अपनी दिली भावना प्रकट की उस भावना का सम्मान करते हुए मनमोहन सिंह आखिर कब तक करते हैं ? कांग्रेसी नेतृत्व को भी यह बात समझ में आ गया है कि अगर अभी चंद महिनों के अंदर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया तो कांग्रेस को फिर किसी भी कीमत पर आगामी चुनाव के लिए नहीं उबारा जा सकता है।
सुत्रों के अनुसार कांग्रेस नेतृत्व कांग्रेस के लिए तुरप का पत्ता साबित हुए मनमोहन सिंह की सम्मानजनक विदाई भी चाहते है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से लेकर कई महत्वपूर्ण देशों के प्रमुखों को भी भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक योग्य अर्थशास्त्री व नेता मान कर उनको विश्व बैंक के अध्यक्ष पद पर आसीन कराने वाले प्रस्ताव का भारी समर्थन करेंगे। विश्व बैंक की आड में अमेरिकी नीतियों व हितों के प्रसारक के रूप में मनमोहन सिंह की योग्यता का अमेरिका वैसे भी कायल है। वैसे भी प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह वर्तमान अमेरिकी प्रधानमंत्री बराक ओबामा के ही नहीं उनके पूर्ववर्ती जार्ज बुश के भी सबसे पसींदा प्रधानमंत्री रहे। मनमोहन सिंह की खुली तारीफ करने में बराक ओबामा ने बुश को कहीं पीछे छोड़ा हुआ है। वे कई बार सार्वजनिक मंचों से मनमोहन सिंह की खुली तार ीफ भी कर चूके है। तारीफ करें भी क्यों नहीं भले ही मनमोहन सिंह के शासन में आम भारतीयों को बेलगांम मंहगाई, भ्रष्टाचार व अमेरिका-पाक पोषित आतंकवाद से खून के आंसू बहाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा हो परन्तु अमेरिका के लिए अटल बिहारी वाजपेयी के बाद मनमोहन सिंह ही अमे िरका के लिए सबसे अनकुल भारतीय प्रधानमंत्री साबित हुए। भले ही मनमोहन सिंह भारतीय मान सम्मान व हितों की रक्षा करने में पूरी तरह से असफल हुए हों परन्तु वे अमेरिका के बससे आज्ञाकारी व हितैषी भारतीय प्रधानमंत्री साबित हुए। ,खासकर जिस प्रकार से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अमेरिकी हितों व लडखडाती अर्थव्यवस्था को संजीवनी साबित होने वाले अमेरिका के साथ हुए परमाणु समझोता करा कर अमेरिकी नेतृत्व का दिल ही जीत लिया। उसकी अमेरिका में ही नहीं अपितु नाटो गठबंधन में उनकी भूरि भूरि प्रसंशा क ी जा रही है।
इसके लिए सबसे उपयुक्त कांग्रेसी नेतृत्व को भी इस समय ‘मनमोहन सिंह को विश्व बैंक के अध्यक्ष पद पर आसीन करवाना चाह रहे है।
राहुल गांधी की ताजपोशी के लिए भले ही दिग्विय सिंह के ‘राहुल गांधी में प्रधानमंत्री बनने के सभी गुण विधमान है‘’ वाले इस बयान को देश की जनता के साथ राजनैतिक क्षेत्रों में गंभीरता से नही लिया गया। परन्तु कांग्रेसी राजनीति के मर्मज्ञों को यह बयान कांग्रेसी रणनीति का एक अहम हिस्सा नजर आ रहा है। कांग्रेसी नेतृत्व इस बात से काफी परेशान है कि मनमोहन सिंह सरकार से देश की आम जनता का ही नहीं कांग्रेस कार्यकत्र्ताओं का भी पूरीे तरह से मोह भंग हो गया हे।
आम जरूरी चीजों की कीमतों में बढ़ोतरी की आग में जल रहे आम देश के नागरिकों के जख्मों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार का निठ्ठलापन्न व शर्मनाक चुप्पी नमक मिर्च उडेलने का कृत्य साबित हो रहा है। एक तरफ सरकार मंहगाई पर अंकुश लगाने का कोई ईमानदारी से काम नहीं कर रही है। नहीं सरकार देश में जमाखोरों व मिलावटबाजों के खिलाफ ठोस कार्यवाही ही कर रही है। केवल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व उनकी सरकार के बार-बार झूठे साबित हो रहे मंहगाई पर अंकुश लगाने वाले आश्वासनों से कैसे आम आदमी का पेट भरेगा। लोगों में मनमोहन सिंह की सरकार के नक्कारेपन से कांग्रेस के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश है, परन्तु कोई भरोसेबंद विपक्ष न होने से कांग्रेसियों को अभी अपनी जमीन पूरी तरह खिसकती नजर ना भी आ रही हो परन्तु अंदर से कांग्रेसी भी अपने नक्कारे साबित हो चूके प्रधानमंत्री की इस जनविरोधी सरकार से खुश नहीं है।अब कांग्रेसी नेतृत्व को भी समझ में आ गया है कि आम गरीब आदमी खाना पीना छोड़ कर केवल प्रधनमंत्राी के हवाई आश्वासनों के लालीपोप से तो अब और ज्यादा समय तक मूर्ख नहीं बनाया जा सकता। देश की जनता की भी सहनशीलता की एक सीमा होती है।
इसी स्थिति को भांपते हुए शायद मनमोहन सिंह ने भी ससम्मान विदाई करने का मन बना लिया है। इसका संकेत वे समय समय पर अपने करीबियों से देते रहते। वेसे भी ऐसी ही मंशा उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल के प्रथम वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित संवाददाता सम्मेलन में भी प्रकट की थी । तब मनमोहनसिह ने एक प्रश्न के उतर में दो टूक शब्दों महा था कि अगर कांग्रेस आला कमान इशारा भी करे तो वे राहुल जी के लिए प्रधानमंत्राी की कुर्सी छोड़ सकता हॅू। उन्होंने राहुल गांध्ी को सुयोग्य नेता बताया। यह कह कर प्रधनमंत्राी मनमोहन ने अपने आप को राहुल का भरत साबित करने का प्रयास कर सप्रंग प्रमुख सोनिया गांध्ी का विश्वास और मजबूत करने का काम भी किया। परन्तु प्रधनमंत्राी मनमोहन सिंह शायद यह भूल गये वह राजशाही नहीं या नेहरूशाही नहीं अपितु भारत में लोकशाही का राज चलता है। मनमोहनसिंह के इसी उदघोष से सापफ हो गयी है कि उनकी लोकशाही से अध्कि नेहरूशाही में विश्वास है। उनकी प्रतिब(ता देश की आम जनता से अध्कि कांग्रेसी युवराज राहुल गांध्ी से अध्कि है। उनका दर प्रधनमंत्राी बनने से पहले व अब भी न तो किसी आम आदमी के लिए खुला है व नहीं पार्टी के आम कार्यकत्र्ता के लिए। एक प्रकार से लोकशाही के सर्वोच्च पद प्रधानमंत्राी पद पर आसीन होने के बाबजूद भी मनमोहन का देश की आम जनता से कहीं सीधा सम्बंध नहीं है। इसी कारण उनको न तो आम जनता के दुख दर्द का भान है व नहीं देश के। वे जनता के अर्थशास्त्र से अध्कि कागची अर्थशास्त्र के आंकडों को ही जीवन की सच्चाई समझ बेठे है। ईमानदारी का तकमा पहने मनमोहन सिंह को अपने आप से यह सवाल करना होगा कि यह ईमानदारी किस काम की जो देश की आम जनता व देश का अमन चैन पर ग्रहण लगाये। वे अगर समझते हैं तो सोनिया गांध्ी व अमेरिका के राष्ट्रपतियों की भावना। प्रधनमंत्राी मनमोहन एक प्रकार से लोकशाही का एक जीता जागता उपहास ही है। अगर उनमें जरा सी भी नैतिकता रहती या लोकशाही के प्रति उनके दिलो दिमाग में जरा सा भी सम्मान रहता तो वे उनके कुशासन से त्राही-त्राही कर रही देश की आम जनता की दयनीय हालत को देख कर कबके चुपचाप इस्तीपफा दे देते। आज मंहगाई से त्रास्त देश की जनता की हाहाकार सुन कर भी उनकी आत्मा उनको उनके प्रथम दायित्व को बोध् नहीं करा पा रही है तो इससे साफ हो गया कि उनके शब्द कोष में शायद लोकशाही नामक शब्द को कहीं दूर-दूर तक स्थान भी नहीं है। सच तो यह है मनमोहन सिंह सही अर्थो में कांग्रेस व राहुल के लिए भरत नहीं राव ही साबित हो रहे है। जिस प्रकार से राव ने अपने कुशासन से उत्तर भारत में कांग्रेस की जड़ों में एक प्रकार का मट्ठा ही डाल दिया था उसी प्रकार मनमोहन सिंह ने अपने कुशासन से कांग्रेस व देश दोनों का भट्टा ही गोल कर दिया है।
मनमोहन सिंह देश को यह अवश्य समझायें कि कैसे वह पाकिस्तान से मित्रता का सुत्रपात करेंगे। पाकिस्तान का जन्म ही भारत द्वेष के कारण हुआ। उसे पूरा कश्मीर भी दे दो पिफर भी उसके हुक्मरानों की ‘हंस कर लिया पाकिस्तान, लड कर लेंगे हिन्दुस्तान’ व लालकिले में पाकिस्तानी झण्डा फहराने की दिली हसरत को कौन पूरा करेगा। हालांकि पाकिस्तान की हिम्मत बंगलादेश बनाने के बाद इतनी नहीं रह गयी थी कि वह भारत से सीधे इस प्रकार की दुश्मनी मौल ले, जिस प्रकार वे अटल व मनमोहन सिंह सरकारों के दौरान ले रहा है। वह अपने दम पर नहीं अपितु अमेरिका द्वारा उसे जबरन भारत के विरोध में आतंकवाद को हवा देने के लिए झौंका जा रहा है। उसको इसके लिए न केवल संरक्षण अमेरिका प्रत्यक्ष रूप से दे रहा है अपितु वह पाकिस्तान को सीध्े हथियार व दौलत भी प्रदान कर रहा है। अमेरिका भारत को सीध्े इराक व अपफगानिस्तान की तर्ज पर कमजोर नहीं करना चाहता। वह भारत को पाकिस्तान के कंधे पर आतंकी बंदूक रख कर कमजोर करना चाहता है। यही नहीं अमेरिका का यह नापाक षडयंत्र उस समय बेपर्दा हो गया जब कारगिल प्रकरण पर भारतीय सेना द्वारा कारगिल में चारों तरपफ से घिर चूके पाक सैनिकों को सुरक्षित रास्तादिलाने के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति ने भारत के प्रधनमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को मजबूर किया। यही नहीं अमेरिका ने संसद हमले में पाक की सीधी भूमिका से आक्रोशित भारत की जनभावनाओं का सम्मान करते हुए जैसे ही तत्कालीन प्रधनमंत्राी अटल बिहारी वाजपेयी आर पार की लड़ाई के लिए भारतीय सेना को पाक को सबक सिखाने हेतु सीमा पर कूच करने का आदेश दिया तो अमेरिका ने पाक का संरक्षक बन कर अटल बिहारी वाजपेयी को शर्मनाक मूकता रखने के लिए विवश कर दिया। ऐसा ही कृत्य अमेरिका वर्तमान प्रधनमंत्राी मनमोहन सिंह से करा रहा है। मनमोहन सिंह भारत के प्रधनमंत्राी होने के बाबजूद पाक की मुम्बई हमलों व अमेरिकी ऐजेन्ट हेडली के भारत में आतंकी मिशन को उजागर होने के बाबजूद उनकी सीध्ी मांग तक नहीं कर पाये। अब मनमोहन सिंह देश को बतायें कि उन्होंने आतंकवाद पर देश का सम्मान बचाने के लिए क्यों अमेरिका को हेडली को भारत को सौंपने के लिए पुरजोर मांग नहीं की। क्यों मनमोहन सिंह ने अमेरिका के तर्ज पर पाकिस्तानी आतंकी अड़डों को ड्रोन हमलों से नष्ट नहीं किया।
प्रधानमंत्राी मनमोहन सिंह के शासनकाल में न तो देश का सम्मान ही सुरक्षित है व नहीं देश की सीमायें। न तो देश में आम आदमी का चक्की चुल्हा ही सुरक्षित है व नहीं आम आदमी का जीवन। कहीं आतंकी हमले होते तो कहीं नक्सली हमले। देश की पूरी व्यवस्था भ्रष्टाचारियों के चंगुल में प्रायः मृतप्राय सी हो गयी है। ऐसे में देश की आम लोगों के दिल से एक ही आवाज आ रही है कि मनमोहन सिंह जी जरा देश की आम गरीब जनता पर रहम करो। देश को अपने हाल पर छोड़ दो, उसको अपने कुशासन से मृतप्रायः न बनाओ। आप तो कल महामहिम भी बन जायेंगे। पर आपके कुशासन से आम आदमी व उसका परिवार कल जींदा रह पाये इसमें खुद देश के आम आदमी को संशय है। देश के खातिर मनमोहन सिंह जी अविलम्ब अपने पद से इस्तीफा दे दो। यही आपकी देश के प्रति सबसे बड़ी सेवा होगी। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।
-देश व कांग्रेस को बचाने के लिए पूरी तरह असफल हुए प्रधानमंत्री दें इस्तीफा/
जनता की नजरों में पूरी तरह से बेनकाब हो चुके प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी अब कांग्रेसी कार्यकारी आलाकमान राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए मन से तैयार हो चूके है! खासकर जिस प्रकार से राहुल गांधी के 41 वें जन्म दिन पर आम कांग्रेसियों ने राहुल गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए अपनी दिली भावना प्रकट की उस भावना का सम्मान करते हुए मनमोहन सिंह आखिर कब तक करते हैं ? कांग्रेसी नेतृत्व को भी यह बात समझ में आ गया है कि अगर अभी चंद महिनों के अंदर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया तो कांग्रेस को फिर किसी भी कीमत पर आगामी चुनाव के लिए नहीं उबारा जा सकता है।
सुत्रों के अनुसार कांग्रेस नेतृत्व कांग्रेस के लिए तुरप का पत्ता साबित हुए मनमोहन सिंह की सम्मानजनक विदाई भी चाहते है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से लेकर कई महत्वपूर्ण देशों के प्रमुखों को भी भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक योग्य अर्थशास्त्री व नेता मान कर उनको विश्व बैंक के अध्यक्ष पद पर आसीन कराने वाले प्रस्ताव का भारी समर्थन करेंगे। विश्व बैंक की आड में अमेरिकी नीतियों व हितों के प्रसारक के रूप में मनमोहन सिंह की योग्यता का अमेरिका वैसे भी कायल है। वैसे भी प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह वर्तमान अमेरिकी प्रधानमंत्री बराक ओबामा के ही नहीं उनके पूर्ववर्ती जार्ज बुश के भी सबसे पसींदा प्रधानमंत्री रहे। मनमोहन सिंह की खुली तारीफ करने में बराक ओबामा ने बुश को कहीं पीछे छोड़ा हुआ है। वे कई बार सार्वजनिक मंचों से मनमोहन सिंह की खुली तार ीफ भी कर चूके है। तारीफ करें भी क्यों नहीं भले ही मनमोहन सिंह के शासन में आम भारतीयों को बेलगांम मंहगाई, भ्रष्टाचार व अमेरिका-पाक पोषित आतंकवाद से खून के आंसू बहाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा हो परन्तु अमेरिका के लिए अटल बिहारी वाजपेयी के बाद मनमोहन सिंह ही अमे िरका के लिए सबसे अनकुल भारतीय प्रधानमंत्री साबित हुए। भले ही मनमोहन सिंह भारतीय मान सम्मान व हितों की रक्षा करने में पूरी तरह से असफल हुए हों परन्तु वे अमेरिका के बससे आज्ञाकारी व हितैषी भारतीय प्रधानमंत्री साबित हुए। ,खासकर जिस प्रकार से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अमेरिकी हितों व लडखडाती अर्थव्यवस्था को संजीवनी साबित होने वाले अमेरिका के साथ हुए परमाणु समझोता करा कर अमेरिकी नेतृत्व का दिल ही जीत लिया। उसकी अमेरिका में ही नहीं अपितु नाटो गठबंधन में उनकी भूरि भूरि प्रसंशा क ी जा रही है।
इसके लिए सबसे उपयुक्त कांग्रेसी नेतृत्व को भी इस समय ‘मनमोहन सिंह को विश्व बैंक के अध्यक्ष पद पर आसीन करवाना चाह रहे है।
राहुल गांधी की ताजपोशी के लिए भले ही दिग्विय सिंह के ‘राहुल गांधी में प्रधानमंत्री बनने के सभी गुण विधमान है‘’ वाले इस बयान को देश की जनता के साथ राजनैतिक क्षेत्रों में गंभीरता से नही लिया गया। परन्तु कांग्रेसी राजनीति के मर्मज्ञों को यह बयान कांग्रेसी रणनीति का एक अहम हिस्सा नजर आ रहा है। कांग्रेसी नेतृत्व इस बात से काफी परेशान है कि मनमोहन सिंह सरकार से देश की आम जनता का ही नहीं कांग्रेस कार्यकत्र्ताओं का भी पूरीे तरह से मोह भंग हो गया हे।
आम जरूरी चीजों की कीमतों में बढ़ोतरी की आग में जल रहे आम देश के नागरिकों के जख्मों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार का निठ्ठलापन्न व शर्मनाक चुप्पी नमक मिर्च उडेलने का कृत्य साबित हो रहा है। एक तरफ सरकार मंहगाई पर अंकुश लगाने का कोई ईमानदारी से काम नहीं कर रही है। नहीं सरकार देश में जमाखोरों व मिलावटबाजों के खिलाफ ठोस कार्यवाही ही कर रही है। केवल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व उनकी सरकार के बार-बार झूठे साबित हो रहे मंहगाई पर अंकुश लगाने वाले आश्वासनों से कैसे आम आदमी का पेट भरेगा। लोगों में मनमोहन सिंह की सरकार के नक्कारेपन से कांग्रेस के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश है, परन्तु कोई भरोसेबंद विपक्ष न होने से कांग्रेसियों को अभी अपनी जमीन पूरी तरह खिसकती नजर ना भी आ रही हो परन्तु अंदर से कांग्रेसी भी अपने नक्कारे साबित हो चूके प्रधानमंत्री की इस जनविरोधी सरकार से खुश नहीं है।अब कांग्रेसी नेतृत्व को भी समझ में आ गया है कि आम गरीब आदमी खाना पीना छोड़ कर केवल प्रधनमंत्राी के हवाई आश्वासनों के लालीपोप से तो अब और ज्यादा समय तक मूर्ख नहीं बनाया जा सकता। देश की जनता की भी सहनशीलता की एक सीमा होती है।
इसी स्थिति को भांपते हुए शायद मनमोहन सिंह ने भी ससम्मान विदाई करने का मन बना लिया है। इसका संकेत वे समय समय पर अपने करीबियों से देते रहते। वेसे भी ऐसी ही मंशा उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल के प्रथम वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित संवाददाता सम्मेलन में भी प्रकट की थी । तब मनमोहनसिह ने एक प्रश्न के उतर में दो टूक शब्दों महा था कि अगर कांग्रेस आला कमान इशारा भी करे तो वे राहुल जी के लिए प्रधानमंत्राी की कुर्सी छोड़ सकता हॅू। उन्होंने राहुल गांध्ी को सुयोग्य नेता बताया। यह कह कर प्रधनमंत्राी मनमोहन ने अपने आप को राहुल का भरत साबित करने का प्रयास कर सप्रंग प्रमुख सोनिया गांध्ी का विश्वास और मजबूत करने का काम भी किया। परन्तु प्रधनमंत्राी मनमोहन सिंह शायद यह भूल गये वह राजशाही नहीं या नेहरूशाही नहीं अपितु भारत में लोकशाही का राज चलता है। मनमोहनसिंह के इसी उदघोष से सापफ हो गयी है कि उनकी लोकशाही से अध्कि नेहरूशाही में विश्वास है। उनकी प्रतिब(ता देश की आम जनता से अध्कि कांग्रेसी युवराज राहुल गांध्ी से अध्कि है। उनका दर प्रधनमंत्राी बनने से पहले व अब भी न तो किसी आम आदमी के लिए खुला है व नहीं पार्टी के आम कार्यकत्र्ता के लिए। एक प्रकार से लोकशाही के सर्वोच्च पद प्रधानमंत्राी पद पर आसीन होने के बाबजूद भी मनमोहन का देश की आम जनता से कहीं सीधा सम्बंध नहीं है। इसी कारण उनको न तो आम जनता के दुख दर्द का भान है व नहीं देश के। वे जनता के अर्थशास्त्र से अध्कि कागची अर्थशास्त्र के आंकडों को ही जीवन की सच्चाई समझ बेठे है। ईमानदारी का तकमा पहने मनमोहन सिंह को अपने आप से यह सवाल करना होगा कि यह ईमानदारी किस काम की जो देश की आम जनता व देश का अमन चैन पर ग्रहण लगाये। वे अगर समझते हैं तो सोनिया गांध्ी व अमेरिका के राष्ट्रपतियों की भावना। प्रधनमंत्राी मनमोहन एक प्रकार से लोकशाही का एक जीता जागता उपहास ही है। अगर उनमें जरा सी भी नैतिकता रहती या लोकशाही के प्रति उनके दिलो दिमाग में जरा सा भी सम्मान रहता तो वे उनके कुशासन से त्राही-त्राही कर रही देश की आम जनता की दयनीय हालत को देख कर कबके चुपचाप इस्तीपफा दे देते। आज मंहगाई से त्रास्त देश की जनता की हाहाकार सुन कर भी उनकी आत्मा उनको उनके प्रथम दायित्व को बोध् नहीं करा पा रही है तो इससे साफ हो गया कि उनके शब्द कोष में शायद लोकशाही नामक शब्द को कहीं दूर-दूर तक स्थान भी नहीं है। सच तो यह है मनमोहन सिंह सही अर्थो में कांग्रेस व राहुल के लिए भरत नहीं राव ही साबित हो रहे है। जिस प्रकार से राव ने अपने कुशासन से उत्तर भारत में कांग्रेस की जड़ों में एक प्रकार का मट्ठा ही डाल दिया था उसी प्रकार मनमोहन सिंह ने अपने कुशासन से कांग्रेस व देश दोनों का भट्टा ही गोल कर दिया है।
मनमोहन सिंह देश को यह अवश्य समझायें कि कैसे वह पाकिस्तान से मित्रता का सुत्रपात करेंगे। पाकिस्तान का जन्म ही भारत द्वेष के कारण हुआ। उसे पूरा कश्मीर भी दे दो पिफर भी उसके हुक्मरानों की ‘हंस कर लिया पाकिस्तान, लड कर लेंगे हिन्दुस्तान’ व लालकिले में पाकिस्तानी झण्डा फहराने की दिली हसरत को कौन पूरा करेगा। हालांकि पाकिस्तान की हिम्मत बंगलादेश बनाने के बाद इतनी नहीं रह गयी थी कि वह भारत से सीधे इस प्रकार की दुश्मनी मौल ले, जिस प्रकार वे अटल व मनमोहन सिंह सरकारों के दौरान ले रहा है। वह अपने दम पर नहीं अपितु अमेरिका द्वारा उसे जबरन भारत के विरोध में आतंकवाद को हवा देने के लिए झौंका जा रहा है। उसको इसके लिए न केवल संरक्षण अमेरिका प्रत्यक्ष रूप से दे रहा है अपितु वह पाकिस्तान को सीध्े हथियार व दौलत भी प्रदान कर रहा है। अमेरिका भारत को सीध्े इराक व अपफगानिस्तान की तर्ज पर कमजोर नहीं करना चाहता। वह भारत को पाकिस्तान के कंधे पर आतंकी बंदूक रख कर कमजोर करना चाहता है। यही नहीं अमेरिका का यह नापाक षडयंत्र उस समय बेपर्दा हो गया जब कारगिल प्रकरण पर भारतीय सेना द्वारा कारगिल में चारों तरपफ से घिर चूके पाक सैनिकों को सुरक्षित रास्तादिलाने के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति ने भारत के प्रधनमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को मजबूर किया। यही नहीं अमेरिका ने संसद हमले में पाक की सीधी भूमिका से आक्रोशित भारत की जनभावनाओं का सम्मान करते हुए जैसे ही तत्कालीन प्रधनमंत्राी अटल बिहारी वाजपेयी आर पार की लड़ाई के लिए भारतीय सेना को पाक को सबक सिखाने हेतु सीमा पर कूच करने का आदेश दिया तो अमेरिका ने पाक का संरक्षक बन कर अटल बिहारी वाजपेयी को शर्मनाक मूकता रखने के लिए विवश कर दिया। ऐसा ही कृत्य अमेरिका वर्तमान प्रधनमंत्राी मनमोहन सिंह से करा रहा है। मनमोहन सिंह भारत के प्रधनमंत्राी होने के बाबजूद पाक की मुम्बई हमलों व अमेरिकी ऐजेन्ट हेडली के भारत में आतंकी मिशन को उजागर होने के बाबजूद उनकी सीध्ी मांग तक नहीं कर पाये। अब मनमोहन सिंह देश को बतायें कि उन्होंने आतंकवाद पर देश का सम्मान बचाने के लिए क्यों अमेरिका को हेडली को भारत को सौंपने के लिए पुरजोर मांग नहीं की। क्यों मनमोहन सिंह ने अमेरिका के तर्ज पर पाकिस्तानी आतंकी अड़डों को ड्रोन हमलों से नष्ट नहीं किया।
प्रधानमंत्राी मनमोहन सिंह के शासनकाल में न तो देश का सम्मान ही सुरक्षित है व नहीं देश की सीमायें। न तो देश में आम आदमी का चक्की चुल्हा ही सुरक्षित है व नहीं आम आदमी का जीवन। कहीं आतंकी हमले होते तो कहीं नक्सली हमले। देश की पूरी व्यवस्था भ्रष्टाचारियों के चंगुल में प्रायः मृतप्राय सी हो गयी है। ऐसे में देश की आम लोगों के दिल से एक ही आवाज आ रही है कि मनमोहन सिंह जी जरा देश की आम गरीब जनता पर रहम करो। देश को अपने हाल पर छोड़ दो, उसको अपने कुशासन से मृतप्रायः न बनाओ। आप तो कल महामहिम भी बन जायेंगे। पर आपके कुशासन से आम आदमी व उसका परिवार कल जींदा रह पाये इसमें खुद देश के आम आदमी को संशय है। देश के खातिर मनमोहन सिंह जी अविलम्ब अपने पद से इस्तीफा दे दो। यही आपकी देश के प्रति सबसे बड़ी सेवा होगी। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।
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