-लोकशाही पर कलंक है दमनकारी हुक्मरान -अण्णा व रामदेव एकजुट हो कर देश को दिशा दें

-लोकशाही पर कलंक है दमनकारी हुक्मरान
-अण्णा व रामदेव एकजुट हो कर देश को दिशा दें

हरिद्वार में गंगा की पावनता को अक्षुण्ण खने व इसमें अवैध खनन को रोकने की मांग को लेकर अनिष्चित कालीन अनषनकारी संत स्वामी निगमानन्द की 13 जून को सोमवार को दर्दनाक मौत हो जाने से भारतीय हुक्मरानों प देष की जनता के माथे पर एक षर्मनाक कलंक लग गया है। क्या इस देष की सरकारें आजादी हासिल करने के मात्र 64 साल में ही इतनी संवेदनहीन हो गयी हैं कि वे जनहित के मुद्दे पर सरकार का ध्यान आकृश्ठ करने वाले की इस कदर उपेक्षा करे की वह दम तोड़ने के लिए विवष हो जाये। जिस प्रकार से देष की विदेषों में जमा की गयी अकूत दौलत को देष में वापस लेने की मांग को लेकर आमरण अनषन कर रहे योग गुरू बाबा रामदेव व 25 हजार सोते हुए षांतिप्रिय आंदोलनकारियों मध्य रात्रि में केन्द्र सरकार की मनमोहनी सरकार ने लाठी व आंसू गैस के पुलिसिया दमन से रौंदने का काम किया तथा अब देष के भ्रश्टाचार पर अंकुष लगाये जाने के लिए ‘जन लोक पाल कानून’ बनाने की मांग करने वाले देष के अंग्रणी गांधीवादी नेता अण्णा हजारे को मनमोहन सरकार व कांग्रेस पार्टी धमका रही है उससे साफ हो गया है कि भारतीय हुक्मरान चाहे वह कांग्रेस के हों या भाजपा के या बसपा के हों या सपा के या वामदल आदि के किसी के दिल में लोकषाही के लिए जरा सा भी सम्मान नहीं है। यही नहीं ये अपनी सरकार के कुकृत्यों के प्रति आंदोलन करने वाले लोगों को रौंदने के लिए किसी भी अमानवीय हथकण्डे को अपना सकते है। सबसे हैरानी कांग्रेस के नेताओं के घोर पतन से हो रहा है वे गांधीवादी आंदोलनों को जनतंत्र के लिए खतरा बताते हुए उनको हर हाल में दमन करने के लिए बेषर्मो की तरह उतारू हैं। वहीं मायावती के राज में ंिजस प्रकार से किसानों पर नोयडा में दमन व वामदला के राज में सिंगूर में दमन किया गया, उससे साफ हो गया कि भले ही नाम के लिए भारतीय हुक्मरान अपने आप को अलग अलग दल के बताते हों परन्तु देष की लोकषाही को रौंदने के लिए ये सब मिल कर एक हैं।
उत्तराखण्ड में गो गंगा व गीता की दुहाई देने वाले संघ पोशित भाजपा का षासन है वहां पर गंगा की निर्मलता की रक्षा व इसमें अवैध खनन को रौंकने की मांग करने वाले हरिद्वार के महान संत स्वामी निगमानन्द की आमरण अनषन की सरकार ने इतनी षर्मनाक उपेक्षा की कि उनका देहान्त ही हो गया। उनकी षहादत के बाद भी न तो भाजपा के मुख्यमंत्री निषंक को षर्म आयी व नहीं संघ व भाजपा के अध्यक्ष गडकरी को ही षर्म आयी। अगर समय पर प्रदेष सरकार जागती तो स्वामी निगमानन्द का जीवन बचाया जा सकता था। वहीं बाबा रामदेव के आमरण अनषन पर जिस प्रकार से मनमोहन सरकार ने दमन किया उससे भारतीय लोकषाही की निर्ममता से एक प्रकार से हत्या ही की गयी। इस षर्मनाक प्रकरण के बाबजूद न तो प्रधानमंत्री ने न ही कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी ने अपने नैतिक राजधर्म को निर्वाह तक नहीं किया। उन्होंने बाबा रामदेव व देष से माफी मांगनी तो रही दूर, इस व्यथित राश्ट्र के धावों पर मरहम लगाने के लिए बाबा रामदेव से आमरण अनषन तोड़ने की औपचारिक अपील तक नहीं की। केवल तामषबीन हो कर वे सब बाबा रामदेव का भी हस्र गंगा की रक्षा के लिए आमरण अनषन के कारण बलिदान हुए बाबा की तरह ही करना चाहते थे। यह केवल कांग्रेस की ही नहीं अपितु भाजपा की भी मंषा थी कि बाबा अपने आमरण अनषन को न तोड़े। जिस षर्मनाक ढ़ग से प्रदेष के मुख्यमंत्री अंतिम समय तक बाबा के अनषन को जारी रहने की घोशणायें कर रहे थे उससे भाजपा की मंषा जग जाहिर हो गयी। भाजपा इस प्रकरण से इतनी खुष थी कि उसकी आला नेता सुशमा को काला दिवस मनाते समय देषभक्ति के गीत के आड में अपनी खुषी को प्रकट करने के लिए नाचने से अपने आप को नहीं रोक पायी। बाबा रामदेव व उनके हित चाहने वाले श्री रविषंकर व बापू मुरारी आदि संतों ने बाबा को राजनैतिक दलों के जाल में न फंसने के लिए अपना आमरण अनषन तोड़ने को राजी कर लिया। बाबा रामदेव में कई कमियां हो सकती है परन्तु ंिजस प्रकार से उन्होंने देष हित में अपने आप को दाव में लगा दिया वह सराहनीय ही नहीं अनुकरणीय है। बाबा ने आमरण अनषन तोड़ कर कांग्रेस ही नहीं भाजपा के मंसूबों पर भी पानी फेर दिया। बाबा के इस कार्य से देष की जनता ने राहत की सांस ली और लोगों को आषा है कि बाबा फिर पूरे जोष से देष की रक्षा के अपने आवाहन को पूरा करके देष को इन सत्ता के भैडियों से बचायेंगे।
इस प्रकरण से जनता पार्टी के षासन पर भी कांग्रेस की तरह संवेदनहीनता का कलंक लग गया। गौरतलब है कि इसी पखवाड़े इन महान संत के स्वास्थ्य की कुषल क्षेम पूछने के लिए उमा भारती भी स्वयं देहरादून के उसी हिमालय अस्पताल गयी जहां अनषनकारी स्वामी रामदेव को भी स्वास्थ्य लाभ के लिए भर्ती किया गया तथा यहीं पर बाबा रामदेव ने श्री श्री रविषंकर व बापू मुरारी सहित तमाम संतों के अनुरोध पर अपना आमरण अनषन तोड़ा था। इन दिनों देष को बाबा रामदेव के दिल्ली से उत्तराखण्ड में हुए आमरण अनषन ने उद्देल्लित कर दिया है भले ही बाबा रामदेव का अनषन चंद दिनों का रहा हो या देष में बढ़ते हुए भ्रश्टाचार पर अंकुष लगाने के लिए देष के अग्रणी गांधीवादी नेता अण्णा हजारे का ‘जनलोकपाल कानून’ बनाने के लिए संसद की चैखट राश्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर किया गया 96 घंटों का ऐतिहासिक आमरण अनषन ने दषकों से सोये हुए देष की आत्मा को पूरी तरह से झकझोर कर रख दिया। हालांकि दिल्ली के इतिहास में आमरण अनषनों का एक लम्बा इतिहास रहा परन्तु देष की भाशाओं की आजादी के लिए संघ लोकसेवा आयोग के समक्ष भारतीय भाशाओं में संघ लोक सेवा आयोग की तमाम परीक्षायें कराने की मांग को लेकर 27 अप्रैल से 26 मई 1989 तक 29 दिन का ऐतिहासिक आंदोलन करने वाले भारतीय भाशाओं के पुरोधा पुप्पेन्द्र चैहान, राजकरणसिंह, हीरालाल, विध्नेष्वर पाण्डे व निर्वाण ने किया, जिसका समापन तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के आष्वासन पर किया गया।
उत्तराखंड में लंबे अनशनों की लंबी पंरपरा है। सबसे लंबे अनशन का रिकॉर्ड 84 दिनों का है। 1940 के दशक में टिहरी में लोकतंत्र के लिए संघर्ष करने वाले गांधीवादी दिवंगत श्रीदेव सुमन ने अपनी कैद के दौरान 84 दिनों तक अनशन रखा था। अनशन के 84वें दिन उनका निधन हो गया था। जनता ने इससे आक्रोषित हो कर टिहरी की राजषाही को ही उखाड़ फेंका। वहीं दूसरी सबसे ऐतिहासिक अनषन उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद उत्तराखण्ड की जनांकांक्षाओं, लोकषाही व आत्मसम्मान के प्रतीक ‘गैरसैंण राजधानी’ बनाने की मांग को लेकर कांग्रेसी सरकार के उत्तराखण्ड के घोर विरोधी नारायणदत्त तिवारी के मुख्यमंत्रित्व काल में किया। 29 दिन के इस ऐतिहासिक आमरण अनषन में उत्तराखण्ड के महान सपूत बाबा मोहन उत्तराखण्डी ने जहां अपनी षहादत दी परन्तु क्या मजाल उत्तराखण्ड के वर्तमान व भविश्य को अपनी संकीर्ण कुकृत्यों से तबाह करने वाले घोर सत्तालांेल ुपु तिवारी ने उफ तक की हो। उत्तराखण्ड की जनता ने भले ही टिहरी की महान जनता के द्वारा श्रीदेव सुमन की षहादत के बाद आक्रोषित हो कर राजषाही के अंत करने का आक्रोष न दिखाया हो परन्तु उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में प्रदेष की सत्ता से तिवारी जैसे उत्तराखण्ड द्रोहियों को आसीन करने के लिए दण्डित करते हुए उखाड फैंका। वहीं दूसरी तरफ आमरण अनषन के क्रम में राज्य गठन के इतिहास में उक्रांद के आला नेता स्व. इन्द्रमणि बड़ोनी व वुजुर्ग भट्ट जी ने भी ऐतिहासिक आमरण अनषन किया था। इसके साथ ही प्रदेष के वर्तमान कबीना मंत्री दिवाकर भट्ट ने भी उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन के दौरान खेट पर्वत पर किया था जिसका समापन दिल्ली में संसद की चैखट जंतर मंतर पर उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन के केन्द्र बिन्दू बने ‘उत्तराखण्ड जनता संघर्श मोर्चा के धरना स्थल पर केन्द्रीय मंत्री के हाथों से हुआ।
हालांकि यहां पर आमरण अनषन का इतिहास चिपको आंदोलन के नेता सुंदर लाल बहुगुणा ने 74 दिनों का अनशन रखा था। उन्होंने यह अनशन 1990 के दशक में टिहरी पनबिजली परियोजना के विरोध में किया था। परन्तु उनके अनषन से उत्तराखण्ड के आम जनमानस व इतिहास को उतना उद्देल्लित नहीं किया जितना कि श्रीदेव सुमन व बाबा मोहन उत्तराखण्डी की षहादत वाले अनषन ने। हालांकि सीमान्त जनपद चमोली में में भी बलवंत सिंह नेगी जी ने दर्जनों बार आमरण अनषन करके इस सीमान्त क्षेत्र चमोली के षासन प्रषासन को जनहितों की उपेक्षा करने से बाज आने का सराहनीय कार्य किया। देष में चल रहे जनांदोलनों के प्रति हुक्मरानों का उदासीन व दमनकारी रवैये को देख कर चिंता होती है कि देष की जनता को अब इन दमनकारी ताकतों को हर हाल में देष की सत्ता से आगामी चुनावों में बाहर करना होगा। अण्णा हजारे व बाबा रामदेव को अपने आपसी मतभेदों को भुला कर देष की लोकषाही की रक्षा के लिए मिलजुल कर देष के आम अवाम को संगठित करके दमनकारी हुक्मरानों से देष की रक्षा करने के लिए सतत प्रयास करना चाहिए। यह आंदोलन हर हाल में षांतिपूर्ण रहे तभी इसकी विजय होगी। आज की सरकारें जो आतंकवादियों की आवभगत व गांधीवादी जनहित में आंदोलनरत लोगों का दमन करती है उसको एक पल के लिए देष की सत्ता में आसीन होने का कोई नैतिक हक नहीं है। षेश श्रीकृश्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्री कृश्णाय् नमो।

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