भाजपा के शर्मनाक पतन के लिए जिम्मेदार है आत्मघाति जातिवादी नेतृत्व
-भाजपा के शर्मनाक पतन के लिए जिम्मेदार है आत्मघाति जातिवादी नेतृत्व/
महाराष्ट्र में ही नहीं उत्तराखण्ड में विरष्ठ जननेताओं की भारी उपेक्षा/
भाजपा के शर्मनाक पतन के लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो भाजपा -संघ का पदलोलुप व जातिवादी नेतृत्व। आज महाराष्ट्र में भाजपा के सबसे बडे नेता गोपीनाथ मुण्डे अपनी उपेक्षा से आहत है। वे भाजपा के संसद में उप नेता प्रतिपक्ष है। उत्तराखण्ड में भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भगतसिंह कोश्यारी व पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचंद खंडूडी भी भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा अपनी उपेक्षा से आहत हैं। मुण्डे इतने आहत हैं कि वे भाजपा को अलविदा कहने को अपने आप को मजबूर पा रहे हैं। यही हालत करीब करीब उत्तराखण्ड में भी है। ऐसा नहीं है कि यह केवल वर्तमान में ही हो रहा है। भाजपा का आला नेतृत्व कभी साफ छवि के व जमीनी नेताओं को फूटी आंख देखना नहीं चाहता। वे केवल अपनी कठपुतलियों के सहारे पूरी पार्टी को जहां नचाना चाहते हैं वहीं अपनी पदलोलुपता-सत्तालोलुपता की पूर्ति करना चाहते हैं। संघ परिवार की इस राजनैतिक संगठन में जनसंघ से लेकर भाजपा तक के सफर में अब तक जितने देश के लिए सर्मिर्पत बलराज माधोक, सुब्रबण्यम स्वामी, गोविन्दा चार्य, बधेला, सुरेश जोशी, केशु भाई -राणा आदि नेताओं को जमीदोज करने में कांग्रेसी नेताओं का नहीं अपितु भाजपा के आला कमान बने अटल आडवाणी की जुगलबंदी ने संघ नेतृत्व के मूक समर्थन से ही किया। कांग्रेस के इतने घोर कुशासन के बाबजूद भाजपा गत माह सम्पन्न हुए चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में दस सीटों पर भी विजय हासिल नहीं कर सकी। आज भाजपा के जनता के दिलों में कभी राज करने वाले मदनलाल खुराना व उमा भारती की स्थिति क्या है? इसको बताने की जरूरत किसी को है क्या? आज भाजपा के जो आला नेता बने गड़करी, सुषमा, जेटली, वेंकटया, अनन्त कुमार आदि का कौन से संघर्ष का इतिहास रहा? कैसे सुषमा चंद सालों में जमीनी नेताओं को धकियाते हुए भाजपा की आला नेताओं में सुमार हो गयी है? कैसे भाजपा का वर्तमान आला नेतृत्व रेड्डी बंधु से लेकर रमेश पोखरियाल निशंक को शर्मनाक संरक्षण दे कर भाजपा को पूरी तरह जनता की नजरों में बेनकाब कर रहे है। सबकुछ जानते हुए भी जिस नपुंसकता से संघ यह सब होने दे रहा है उससे साफ हो गया है कि भाजपा में अब रामराज्य, सुशासन व ईमानदार जननेताओं को कोई जगह नहीं रह गयी है। यहां पर भी कांग्रेस की तरह ही जनता से जुड़े नेताओं व अनुभवी ईमानदार नेताओं के बजाय आला नेताओं के संकीर्ण स्वार्थो को पूरे करने वाले दागदार छवि के लोगों व जातिवादी चाटुकारों को ही वरियता दी जाती है।
फेस बुक में मुझे एक संदेश, 18 जून को आशीष शुक्ला नामक भाजपा समर्थक मित्र का मिला। उसमें उनहोंने उत्तराखण्ड में वर्तमान त्रासदी के लिए भाजपा को नहीं अपितु उत्तराखण्ड की जनता को दोषी ठहराया। मुझे लिखे संदेश में उन्होंने आरोप लगाया कि मैं कुमाऊं क्षेत्र से हॅू। पहले तो आपको शायद ही यह ज्ञात होगा कि मैं उसी क्षेत्र से हूूॅ जिस क्षेत्र से आपके प्रिय खंडूडी जी और भाजपा व संघ के आला नेतृत्व की आंखों के तारे निशंक जी हैं। जनता का कसूर क्या? जब जनता के चुने हुए अधिकांश भाजपा विधायक भगतसिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे तो भाजपा नेतृत्व ने लोकशाही का गला घोंट कर जिस प्रकार से खंडूडी जी को थोपा। यही नहीं खंडूडी जी के मंत्री मण्डल में जिस प्रकार से प्रदेश के सबसे छाप छवि के अनुभवी विधायक केदारसिंह फोनिया की शर्मनाक उपेक्षा की गयी उससे साफ हो गया कि भाजपा में राष्ट्रवाद के नाम पर केवल जातिवाद का ही घिनौना कृत्य किया जाता है। लोकशाही में जनमत का सम्मान न करते हुए भाजपा के आला नेतृत्व ने जिस शर्मनाक ढ़ग से यहां पर जातिवाद का घिनौना जहर घोला उसी के कारण यह है कि आज देश में मण्डल कमीशन के लागू होने के बाद उत्तराखण्ड एकमात्र ऐसा अभागा राज्य है जहां पर बहुसंख्यक समाज का शासन व प्रशासन के एक प्रकार से षडयंत्र के तहत बलात वंचित किया गया है। प्रदेश में भाजपा के वरिष्ट एवं साफ छवि के भगतसिंह कोश्यारी, केदारसिंह फोनिया व मोहनसिंह ग्रामवासी जैसे दिग्गज नेताओं को हाशिये में डाला गया। इसी प्रवृति को देख कर भाजपा के तेज तरार जननेता मुन्ना सिंह चैहान ने भाजपा से अलविदा कहने के लिए मजबूर हुआ। यह देश व लोकशाही के साथ किसी भी सभ्य समाज के लिए कहीं दूर-दूर तक हितकर नहीं है। खंडूडी के कुशासन में जब लोकशाही व जनांकांक्षाओं का निर्ममता से गला घोंटा गया तो विधायकों व मंत्रियों ने मजबूरी में प्रदेश में लोकशाही को बचाने के लिए केन्द्रीय आला नेतृत्व से गुहार लगायी। तो उसके बाद जिस शर्मनाक ढ़ग से भाजपा नेतृत्व जो पूरे देश में रामराज्य व सुशासन देने का दंभ भरता है, ने प्रदेश के साफ छवि व वरिष्ठ नेताओं को दरकिनारे कर निश्ंाक का राजतिलक कर दिया तो इसमें जनता का कहां कसूर है। जनता तो ईमानदार व अनुभवी नेता को मुख्यमंत्री देखना चाहती। परन्तु कोश्यारी को बलात दिल्ली वनवास भेजने तथा खंडूडी व निशंक को मुख्यमंत्री के रूप में आसीन करके भाजपा ने जाहिर कर दिया कि उसका राष्ट्रवाद से कहीं दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं अपितु उसका असली चेहरा जातिवाद है। इससे प्रदेश की तमाम आशाओं व अपेक्षाओं पर एक प्रकार का बज्रपात सा हो गया। यही नहीं अधिकांश महत्वपूर्ण मंत्रालयों पर जिस प्रकार से मुख्यमंत्री ने स्वयं कुण्डली मारी हुई हैं मात्र नाम मात्र के मंत्रालयों को अन्य जाति के लोगों को आसीन किये गये। यह यहीं तक सीमित नहीं है। दर्जाधारी से लेकर पीसीएस से लेकर जुडिशियरी तक, शासन व्यवस्था के महत्वपूर्ण पदों पर जिस प्रकार से जातिवादी घेराबंदी की गयी है उससे यहां के अन्य समाजों में आक्रोश उपजना स्वाभाविक है। आज लोग शिक्षित एवं जागरूक है। जो सामने दिख रहा है उसको केेसे नजरांदाज करेंगे। जिस प्रकार से भाजपा व कांग्रेस में जातिवादी जहर प्रदेश में घोला हुआ है उससे यहां की स्थिति बहुत ही शर्मनाक हो गयी है।
दिल्ली में बेठे हुए लोगों की तरह ही आपको भी शायद ही यह मालुम होगा कि प्रदेश की जनता ने अपनी किन जनांकांक्षाओं के लिए पृथक राज्य के गठन का ऐतिहासिक आंदोलन छेड़ा था। आप जैसे राजनीतिक दलों से जुड़े हुए लोगों के लिए भले ही उत्तराखण्ड गढ़वाल व कुमांयू या पहाड़ व मैदान तथा ठाकुर व पण्डित का गणित हो परन्तु उत्तराखण्ड यहां की जनता के लिए आज आप द्वारा आरोपित दृष्टि से नहीं अपितु आत्मसम्मान व समग्र विकास का प्रतीक ही है। यह तो आप के कहने के अनुसार जनता दोषी है। यह मेरा भी मानना है कि जनता दोषी है परन्तु भाजपा द्वारा किये गये विश्वासघात पर आप क्या कहेंगे। जिस तिवारी के कुशासन व भ्रष्टाचार से मुक्ति देने का वादा करके भाजपा ने विधानसभा का जनादेश मांगा, उसी तिवारी को सत्तासीन होने के बाद भाजपा के नेता मंचों से महिमामण्डित करते रहे व दूसरी तरफ जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए तिवारी के शासन में हुए भ्रष्टाचार के तथाकथित चार दर्जन से अधिक घोटालों की जांच के लिए एक आयोग बनाया गया।
खासकर मेरे जैसे आदमी को जो जड़चेतन में भगवान श्री कृष्ण को मानते हुए प्राणियों की ही नहीं अपितु जड़ का भी सम्मान करता हूॅ। वह लोकशाही के नाम पर इस धृर्णित जातिवादी दुशासनों को कैसे स्वीकार कर सकता हूॅ। जिस उत्तराखण्ड राज्य गठन के लिए मैने छह साल तक संसद की चैखट जंतर मंतर पर निरंतर धरना-प्रदर्शन व आंदोलन किया, उसको जातिवादी दुशासनों के लिए अभ्याहरण कैसे बनने दूूॅ। प्रदेश की जिन जनांकांक्षाओं के लिए मुझ जैसे हजारों युवाओं ने अपना सर्वस्व बलिदान इस राज्य गठन के लिए किया उन आशाओं पर कांग्रेसी कुशासक तिवारी के बाद भाजपा के खंडूडी व निशंक के शासन में बुरी तरह से रौंदा गया है। एक बात यहां पर और उल्लेख करना चाहता हॅू। उत्तराखण्ड देव भूमि ही नहीं अपितु मोक्ष भूमि भी है। विश्व संस्कृति की पावन गंगोत्री उत्तराखण्ड में जो भी दुशासन जनहितों को रौंदने का कुकृत्य करता है उसको राव, मुलायम, वाजपेयी, तिवारी व खंडूडी की तरह महाकाल द्वारा सत्ता से वंचित हो कर अभिशाप का कोप भाजन होना पड़ता है। जाति, धर्म व क्षेत्र के नाम पर राजनीति करने वाले लोकशाही के ही नहीं महाकाल के भी अपराधी होते है। मैने स्वयं तिवारी, खंडूडी व निशंक से इस जनद्रोह को छोड़ने की पुरजोर अपील की। भाजपा नेतृत्व को जागृत करने के लिए उनको दर्पण दिखाने का काम किया। परन्तु लगता है महाकाल के पाश में बंधे भाजपा के मठाधीशों को मेरा सुझाव व संदेश ठीक उसी तरह से अनुचित लगा जिस प्रकार दुर्योधन की सभा में भगवान श्रीकृष्ण ने अपना विश्वरूप दिखाने के बाबजूद सत्तांध कौरव महाकाल के संदेश को समझ नहीं पाये। भाजपा के इस शर्मनाक पतन पर मुझे दुख नहीं परन्तु संघ को खड़ा करने में अपना जीवन समर्पित लाखों देशभक्तों की मेहनत से सत्तासीन हुई भाजपा के जातिवाद चैहरे से निराशा अवश्य हुई। पर मुझे मालुम है ‘नासते विध्यते भावो ना भावो विध्यते सत्। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।
महाराष्ट्र में ही नहीं उत्तराखण्ड में विरष्ठ जननेताओं की भारी उपेक्षा/
भाजपा के शर्मनाक पतन के लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो भाजपा -संघ का पदलोलुप व जातिवादी नेतृत्व। आज महाराष्ट्र में भाजपा के सबसे बडे नेता गोपीनाथ मुण्डे अपनी उपेक्षा से आहत है। वे भाजपा के संसद में उप नेता प्रतिपक्ष है। उत्तराखण्ड में भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भगतसिंह कोश्यारी व पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचंद खंडूडी भी भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा अपनी उपेक्षा से आहत हैं। मुण्डे इतने आहत हैं कि वे भाजपा को अलविदा कहने को अपने आप को मजबूर पा रहे हैं। यही हालत करीब करीब उत्तराखण्ड में भी है। ऐसा नहीं है कि यह केवल वर्तमान में ही हो रहा है। भाजपा का आला नेतृत्व कभी साफ छवि के व जमीनी नेताओं को फूटी आंख देखना नहीं चाहता। वे केवल अपनी कठपुतलियों के सहारे पूरी पार्टी को जहां नचाना चाहते हैं वहीं अपनी पदलोलुपता-सत्तालोलुपता की पूर्ति करना चाहते हैं। संघ परिवार की इस राजनैतिक संगठन में जनसंघ से लेकर भाजपा तक के सफर में अब तक जितने देश के लिए सर्मिर्पत बलराज माधोक, सुब्रबण्यम स्वामी, गोविन्दा चार्य, बधेला, सुरेश जोशी, केशु भाई -राणा आदि नेताओं को जमीदोज करने में कांग्रेसी नेताओं का नहीं अपितु भाजपा के आला कमान बने अटल आडवाणी की जुगलबंदी ने संघ नेतृत्व के मूक समर्थन से ही किया। कांग्रेस के इतने घोर कुशासन के बाबजूद भाजपा गत माह सम्पन्न हुए चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में दस सीटों पर भी विजय हासिल नहीं कर सकी। आज भाजपा के जनता के दिलों में कभी राज करने वाले मदनलाल खुराना व उमा भारती की स्थिति क्या है? इसको बताने की जरूरत किसी को है क्या? आज भाजपा के जो आला नेता बने गड़करी, सुषमा, जेटली, वेंकटया, अनन्त कुमार आदि का कौन से संघर्ष का इतिहास रहा? कैसे सुषमा चंद सालों में जमीनी नेताओं को धकियाते हुए भाजपा की आला नेताओं में सुमार हो गयी है? कैसे भाजपा का वर्तमान आला नेतृत्व रेड्डी बंधु से लेकर रमेश पोखरियाल निशंक को शर्मनाक संरक्षण दे कर भाजपा को पूरी तरह जनता की नजरों में बेनकाब कर रहे है। सबकुछ जानते हुए भी जिस नपुंसकता से संघ यह सब होने दे रहा है उससे साफ हो गया है कि भाजपा में अब रामराज्य, सुशासन व ईमानदार जननेताओं को कोई जगह नहीं रह गयी है। यहां पर भी कांग्रेस की तरह ही जनता से जुड़े नेताओं व अनुभवी ईमानदार नेताओं के बजाय आला नेताओं के संकीर्ण स्वार्थो को पूरे करने वाले दागदार छवि के लोगों व जातिवादी चाटुकारों को ही वरियता दी जाती है।
फेस बुक में मुझे एक संदेश, 18 जून को आशीष शुक्ला नामक भाजपा समर्थक मित्र का मिला। उसमें उनहोंने उत्तराखण्ड में वर्तमान त्रासदी के लिए भाजपा को नहीं अपितु उत्तराखण्ड की जनता को दोषी ठहराया। मुझे लिखे संदेश में उन्होंने आरोप लगाया कि मैं कुमाऊं क्षेत्र से हॅू। पहले तो आपको शायद ही यह ज्ञात होगा कि मैं उसी क्षेत्र से हूूॅ जिस क्षेत्र से आपके प्रिय खंडूडी जी और भाजपा व संघ के आला नेतृत्व की आंखों के तारे निशंक जी हैं। जनता का कसूर क्या? जब जनता के चुने हुए अधिकांश भाजपा विधायक भगतसिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे तो भाजपा नेतृत्व ने लोकशाही का गला घोंट कर जिस प्रकार से खंडूडी जी को थोपा। यही नहीं खंडूडी जी के मंत्री मण्डल में जिस प्रकार से प्रदेश के सबसे छाप छवि के अनुभवी विधायक केदारसिंह फोनिया की शर्मनाक उपेक्षा की गयी उससे साफ हो गया कि भाजपा में राष्ट्रवाद के नाम पर केवल जातिवाद का ही घिनौना कृत्य किया जाता है। लोकशाही में जनमत का सम्मान न करते हुए भाजपा के आला नेतृत्व ने जिस शर्मनाक ढ़ग से यहां पर जातिवाद का घिनौना जहर घोला उसी के कारण यह है कि आज देश में मण्डल कमीशन के लागू होने के बाद उत्तराखण्ड एकमात्र ऐसा अभागा राज्य है जहां पर बहुसंख्यक समाज का शासन व प्रशासन के एक प्रकार से षडयंत्र के तहत बलात वंचित किया गया है। प्रदेश में भाजपा के वरिष्ट एवं साफ छवि के भगतसिंह कोश्यारी, केदारसिंह फोनिया व मोहनसिंह ग्रामवासी जैसे दिग्गज नेताओं को हाशिये में डाला गया। इसी प्रवृति को देख कर भाजपा के तेज तरार जननेता मुन्ना सिंह चैहान ने भाजपा से अलविदा कहने के लिए मजबूर हुआ। यह देश व लोकशाही के साथ किसी भी सभ्य समाज के लिए कहीं दूर-दूर तक हितकर नहीं है। खंडूडी के कुशासन में जब लोकशाही व जनांकांक्षाओं का निर्ममता से गला घोंटा गया तो विधायकों व मंत्रियों ने मजबूरी में प्रदेश में लोकशाही को बचाने के लिए केन्द्रीय आला नेतृत्व से गुहार लगायी। तो उसके बाद जिस शर्मनाक ढ़ग से भाजपा नेतृत्व जो पूरे देश में रामराज्य व सुशासन देने का दंभ भरता है, ने प्रदेश के साफ छवि व वरिष्ठ नेताओं को दरकिनारे कर निश्ंाक का राजतिलक कर दिया तो इसमें जनता का कहां कसूर है। जनता तो ईमानदार व अनुभवी नेता को मुख्यमंत्री देखना चाहती। परन्तु कोश्यारी को बलात दिल्ली वनवास भेजने तथा खंडूडी व निशंक को मुख्यमंत्री के रूप में आसीन करके भाजपा ने जाहिर कर दिया कि उसका राष्ट्रवाद से कहीं दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं अपितु उसका असली चेहरा जातिवाद है। इससे प्रदेश की तमाम आशाओं व अपेक्षाओं पर एक प्रकार का बज्रपात सा हो गया। यही नहीं अधिकांश महत्वपूर्ण मंत्रालयों पर जिस प्रकार से मुख्यमंत्री ने स्वयं कुण्डली मारी हुई हैं मात्र नाम मात्र के मंत्रालयों को अन्य जाति के लोगों को आसीन किये गये। यह यहीं तक सीमित नहीं है। दर्जाधारी से लेकर पीसीएस से लेकर जुडिशियरी तक, शासन व्यवस्था के महत्वपूर्ण पदों पर जिस प्रकार से जातिवादी घेराबंदी की गयी है उससे यहां के अन्य समाजों में आक्रोश उपजना स्वाभाविक है। आज लोग शिक्षित एवं जागरूक है। जो सामने दिख रहा है उसको केेसे नजरांदाज करेंगे। जिस प्रकार से भाजपा व कांग्रेस में जातिवादी जहर प्रदेश में घोला हुआ है उससे यहां की स्थिति बहुत ही शर्मनाक हो गयी है।
दिल्ली में बेठे हुए लोगों की तरह ही आपको भी शायद ही यह मालुम होगा कि प्रदेश की जनता ने अपनी किन जनांकांक्षाओं के लिए पृथक राज्य के गठन का ऐतिहासिक आंदोलन छेड़ा था। आप जैसे राजनीतिक दलों से जुड़े हुए लोगों के लिए भले ही उत्तराखण्ड गढ़वाल व कुमांयू या पहाड़ व मैदान तथा ठाकुर व पण्डित का गणित हो परन्तु उत्तराखण्ड यहां की जनता के लिए आज आप द्वारा आरोपित दृष्टि से नहीं अपितु आत्मसम्मान व समग्र विकास का प्रतीक ही है। यह तो आप के कहने के अनुसार जनता दोषी है। यह मेरा भी मानना है कि जनता दोषी है परन्तु भाजपा द्वारा किये गये विश्वासघात पर आप क्या कहेंगे। जिस तिवारी के कुशासन व भ्रष्टाचार से मुक्ति देने का वादा करके भाजपा ने विधानसभा का जनादेश मांगा, उसी तिवारी को सत्तासीन होने के बाद भाजपा के नेता मंचों से महिमामण्डित करते रहे व दूसरी तरफ जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए तिवारी के शासन में हुए भ्रष्टाचार के तथाकथित चार दर्जन से अधिक घोटालों की जांच के लिए एक आयोग बनाया गया।
खासकर मेरे जैसे आदमी को जो जड़चेतन में भगवान श्री कृष्ण को मानते हुए प्राणियों की ही नहीं अपितु जड़ का भी सम्मान करता हूॅ। वह लोकशाही के नाम पर इस धृर्णित जातिवादी दुशासनों को कैसे स्वीकार कर सकता हूॅ। जिस उत्तराखण्ड राज्य गठन के लिए मैने छह साल तक संसद की चैखट जंतर मंतर पर निरंतर धरना-प्रदर्शन व आंदोलन किया, उसको जातिवादी दुशासनों के लिए अभ्याहरण कैसे बनने दूूॅ। प्रदेश की जिन जनांकांक्षाओं के लिए मुझ जैसे हजारों युवाओं ने अपना सर्वस्व बलिदान इस राज्य गठन के लिए किया उन आशाओं पर कांग्रेसी कुशासक तिवारी के बाद भाजपा के खंडूडी व निशंक के शासन में बुरी तरह से रौंदा गया है। एक बात यहां पर और उल्लेख करना चाहता हॅू। उत्तराखण्ड देव भूमि ही नहीं अपितु मोक्ष भूमि भी है। विश्व संस्कृति की पावन गंगोत्री उत्तराखण्ड में जो भी दुशासन जनहितों को रौंदने का कुकृत्य करता है उसको राव, मुलायम, वाजपेयी, तिवारी व खंडूडी की तरह महाकाल द्वारा सत्ता से वंचित हो कर अभिशाप का कोप भाजन होना पड़ता है। जाति, धर्म व क्षेत्र के नाम पर राजनीति करने वाले लोकशाही के ही नहीं महाकाल के भी अपराधी होते है। मैने स्वयं तिवारी, खंडूडी व निशंक से इस जनद्रोह को छोड़ने की पुरजोर अपील की। भाजपा नेतृत्व को जागृत करने के लिए उनको दर्पण दिखाने का काम किया। परन्तु लगता है महाकाल के पाश में बंधे भाजपा के मठाधीशों को मेरा सुझाव व संदेश ठीक उसी तरह से अनुचित लगा जिस प्रकार दुर्योधन की सभा में भगवान श्रीकृष्ण ने अपना विश्वरूप दिखाने के बाबजूद सत्तांध कौरव महाकाल के संदेश को समझ नहीं पाये। भाजपा के इस शर्मनाक पतन पर मुझे दुख नहीं परन्तु संघ को खड़ा करने में अपना जीवन समर्पित लाखों देशभक्तों की मेहनत से सत्तासीन हुई भाजपा के जातिवाद चैहरे से निराशा अवश्य हुई। पर मुझे मालुम है ‘नासते विध्यते भावो ना भावो विध्यते सत्। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।
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