रूडकी के जिंदा शहीद प्रकाश कांति को आंदोलनकारी न मानने वाली उत्तराखण्ड सरकार शर्म करो


रूडकी के जिंदा शहीद प्रकाश कांति को आंदोलनकारी न मानने वाली उत्तराखण्ड सरकार शर्म करो
इस सप्ताह मुझे हरिद्वार जनपद के रूड़की क्षेत्र में निवास करने वाले उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन के एकमात्र जिंदे शहीद प्रकाश कांति की धर्मपत्नी का मार्मिक पत्र आया। उस पत्र में ना चाहते हुए भी  उन्होंने  राज्य गठन जनांदोलन में पुलिसिया गोली से जिंदा शहीद हुए अपने पति को राज्य गठन आंदोलनकारी न मानने पर उत्तराखण्ड आंदोलनकारियों के सम्मान का डंका पीट रही प्रदेश सरकार को बेनकाब ही कर दिया।  जो सरकारें व समाज अपने शहीदों, आंदोलनकारी सैनानियों व प्रतिभाओं का सम्मान करने के बजाय अपमान करती है ऐसी जनविरोध्ी व आत्मघाति सरकारों को सत्ता में बने रहने का एक पल का भी कोई नैतिक आधर  नहीं हो सकता। राज्य गठन जनांदोलन में उत्तराखण्ड के आत्मसम्मान व राज्य गठन जनांकांक्षाओं को निर्ममता व निरंकुशता से रौंकने के तत्कालीन राव-मुलायम सरकारों की सरपरस्ती में भारतीय संस्कृति को  कलंकित करने वाले ‘मुजफ्रपफरनगर काण्ड-94’ के विरोध् में उपजे जनांक्रोश के दमनकारी सरकारी अत्याचार का शिकार हुए रूड़की निवासी प्रकाश कांति  भी हुए। शोभाग्य से वे पुलिसिया गोली लगने के शिकार होने के बाबजूद जिंदा बच गये परन्तु कमर से नीचे का उनका पूरा शरीर विकलांग हो गया। ऐसे महान जिंदा शहीद को राज्य गठन आंदोलनकारी न मानने वाली अब तक की उत्तराखण्ड की तमाम सरकारों को मैं किन शब्दों में लानत भेजूं, जिनके कारण आज न केवल राज्य गठन जनांदोलन के एक मात्रा जिंदा शहीद प्रकाश कांति, उनके परिजन ही नहीं अपितु पूरे देश विदेश के तमाम आंदोलनकारियों को ही नहीं अपितुं जनतंत्रा में विश्वास रखने वाले तमाम प्रबुद्व जनों के विश्वास को भी गहरा आघात पंहुचाया।

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