अविलम्ब संसद का विशेष सत्र बुला कर पारित करे जनलोकपाल


अविलम्ब संसद का विशेष सत्र बुला कर पारित करे जनलोकपाल 
 भ्रष्टाचार से देश तबाही व आरजकता की गर्त में फंसा


भले ही केन्द्र सरकार अण्णा हजारे के आमरण अनशन के समापन पर राहत की सांस ले रही हो परन्तु उसकी नियत कहीं दूर दूर तक भ्रष्टाचार के गर्त में मरणाशन पड़े भारत को उबारने की नहीं है। अगर सरकार जरा सी भी ईमानदार होती तो इस जन लोकपाल बिल पर आमरण अनशन कर रहे समाजसेवी अण्णा हजारे के साथ हुए समझोते पर  सरकारी पक्ष का नेतृत्व कर रहे कबीना मंत्री कपित सिब्बल जन लोक पाल बिल का इस प्रकार से उपहास नहीं उडाते।  सबसे हेरानी की बात तो यह है कि न तो सरकार व  नहीं इस जन लोक पाल विल के रूप में भ्रष्टाचार के खात्मा करने के लिए आंदोलन कर रहे लोगों ने इस बात का ध्यान नहीं दिया कि इस बिल के लिए तत्काल संसद का विशेष अधिवेशन एक माह के अंदर बुला कर देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक जंग अभी इसी पल से शुरू की जाय।  विधेयक का प्रारूप समिति एक सप्ताह की बैठक में ही इसको अंतिम रूप दे सकती है। क्योंकि सरकार व इस जन लोकपाल को बनाने वाली दोनो समुहों ने इस विल के अधिकांश तैयारी करी ही हुई है। इसके बाद विशेष अधिवेशन बुलाने की जरूरत क्यों नहीं समझी गयी। क्यों देश मानसून सत्र या 15 अगस्त तक का इंतजार करे। क्या तब तक देश की छाती में भ्रष्टाचार की मूंग दलने दी जाय। इस जनलोकपाल बिल को सरकार पारित करेगी इस में मुझे ही नहीं अण्णा हजारे व केजरीवाल को भी संदेह हें। क्योंकि जिस प्रकार से अण्णा हजारे के अनशन के  समापन के 48 घण्टे के अंदर ही जंतर मंतर में सैकड़ों की संख्या में एक नई राजनीति पार्टी के लोगों ने इस बिल को संविधान व लोकशाही का विरोधी बताते हुए प्रदर्शन किया। वहीं मुम्बई में भी इस बिल का विरोध में रेली निकालने का ऐलान किया जा रहा हैं इस बिल के पारित होने की आशंका से ही देश के सभी भ्रष्टाचारी आशंकित है। उन्हें डर है कि इस कानून की फांस उनके गले में एक न एक दिन जरूर आयेगा इसी आशंका को दूर करने के लिए वे भले ही सामने इसका विरोध नहीं कर पा रहे हों परन्तु अंदर से वे किसी भी कीमत पर इस विधेयक को पारित नहीं होने देने के लिए कमर कस चूके हे।
मैं इस अनशन के समर्थन में 5 अप्रैल से 9 अप्रैल तक अपने साथ जगदीश भट्ट के साथ यहां डटा रहा। हमारे साथ इस आंदोलन में सम्मलित राष्ट्रीय जनांदोलनों के राष्ट्रीय संयोजक भूपेन्द्र रावत, जगमोहन रावत, डा राजेन्द्र रवि, हुकमंसिंह कण्डारी, उषा नेगी, सतेन्द्र प्रयासी, प्रेम सुन्दरियाल, प्रताप शाही, सुरेश नौटियाल,  सहित अनैक साथी रहे। इस धरने में कई अन्य साथी भी मिले। आमरण अनशन में बैठने वालों में गोपाल राय व नरेन्द्र सिंह नेगी आदि प्रमुख थें मेरे अनैकों जानकार भी इस आंदोलन में  अनैक लोग बड़ी संख्या व बड़े उत्साह से सम्मलित हुए। मैने महसूस किया कि  सरकार के निकम्मेपन से देश की पूरी व्यवस्था जहां भ्रष्टाचार के शिकंजे में जकड़ कर मृतप्रायः हो गयी है। वहीं बेलमाग मंहगाई व आतंकबाद से भी देश की जनता पूरी तरह त्रस्त हैं। देश की जनता को लोकशाही में भी अपने जनप्रतिनिधी या सरकार किसी  के भी दल हों परन्तु देश की आम जनता को ये सरकारें किसी भी तरह से अपनी नहीं लगती हैं। ऐसी शर्मनाक स्थिति से देश को उबारने के लिए भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए जनलोकपाल कानून बनाने की मांग को लेकर 5 अप्रैल 2011 से संसद की चैखट, राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर आमरण अनशन प्रारम्भ कर केन्द्रीय सरकार की चूलें ही हिला दी। ऐसे में देश के हुक्मरानों से त्रस्त जनता को भ्रष्टाचार के खिलाफ अण्णा हजारे आज का गांधी बन कर अपना सच्चा तारन हार नजर आने लगा। इसी कारण पूरे देश की जनता अण्णा हजारे के साथ  आंधी की तरह उमड़ कर खडे हो रही है। जो भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता का आक्रोश, अण्णा हजारे के नेतृत्व की आंधी से सुमानी बन कर देश के भ्रष्टाचारी कुशासनों की लंका को मिश्र की तरह उखाड़ कर फेंकने का काम भी कर सकती है। शायद इसी आशंका से ही सरकार ने अण्णा हजारे की मांग को मानते हुए किन्तु परन्तु करते हुए इसे स्वीकार कर दिया। 42 साल में 8 बार संसद की पटल पर आ कर यह लोकपाल बिल नहीं बन पाया
अण्णा हजारे तीसरे दिन के अनशन से ही मनमोहनी कुशासन की चूलें हिल गयी। जनाक्रोश को बढ़ने की आशंका से भयभीत सरकार ने अण्णा हजारे से एक संयुक्त ड्राफटिग कमेटी बनाकर आगामी मानसून सत्र  में रखने का केवल आश्वान देना चाहती है। परन्तु अण्णा हजारे एवं उनके आंदोलनकारी साथी स्वामी अग्निवेश व अरविन्द केजरीवाल के अनुसार 7 अप्रैल को कबीना मंत्री कपिल सिब्बल से हुई वार्ता में सरकार अन्ना हजारे की इस मांग को भी मानने के लिए सहमत नहीं है कि सरकार इसके लिए सरकारी नोटिफिकेशन इस जनलोकपाल विधेयक के प्रारूप को बनाने के लिए संयुक्त ड्राफिटंग कमेटी के गठन के लिए जारी किया जाय। सरकार अंत में 8 अप्रैल को आंदोलनकारियों की सारी मांग मानने में सहमत हो गयी। मैने पहले ही भांप लिया था कि  सरकार इस लोकपाल विधेयक को मानसून सत्र के लाने का मात्र कोरे आश्वास का झांसा दे कर अण्णा हजारे का अनशन खत्म करने का षडयंत्र रच रही है। सरकार इस मामले में भी ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निर्वाह करने के बजाय बला टालने के नाम पर केवल हवाई आश्वासन देने की नोटंकी कर देश को धोखा दे रही है। क्योंकि सरकार इस बात से आशंकित थी कि कहीं यह जनाक्रोश उनकी लंका को ढहा न दे। ंिजस प्रकार से यह अनशन लोकपाल विधेयक लाओ  से शुरू हुआ था वह धीरे धीरे मनमोहन व सोनिया हटाओं जनाक्रोश में तब्दील हो रहा था। सरकारी ऐजेन्सियों ने सरकार को आगाह कर दिया था कि अण्णा के इस ऐतिहासिक आमरण अनशन से जहां आज देश की भ्रष्टाचार से मृतप्राय जनता की आत्मा एक प्रकार से जागृत हो कर वह अण्णा को गांधी मान कर देश से भ्रष्टाचार का समूल नाश करने के लिए आज सड़कों पर उतरने का मन बना चूकी हे। ऐसे में अण्णा हजारे व उनके दोनों सहयोगियों स्वामी अग्निवेश व अरविन्द केजरीवाल को  भी एक बात साफ समझ लेनी चाहिए कि वह इस निर्णायक में सरकार के झांसे में आ कर मानसून सत्र के नाम पर इस मामले को टालने के बजाय अविलम्ब इसी माह संसद का विशेष सत्र बुला कर इस को कानून बनाने पर ही सरकार पर दवाब डालना चाहिए। इस विशेष सत्र की जरूरत इस बात से है कि आज देश में पूरी व्यवस्था भ्रष्टाचार से मृतप्राण सी हो गयी है। इस लिए देश की रक्षा के लिए तथा देश को बचाने के उद्देश्य से इस आपात समाधान की आज नितांत जरूरत है। इसलिए संसद का विशेष सत्र देश को बचाने के नाम पर इसी माह बुला कर लोकपाल कानून बना कर भ्रष्टाचार के शिकंजे में जकड़े दश की रक्षा की जाय। 
इससे पहले समिति गठित करने संबंधी अधिसूचना जारी करने की हजारे की मांग माने जाने के बाद लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं और मंत्रियों की दस सदस्यीय समिति गठित करने की अधिसूचना जारी करने की मांग सरकार द्वारा मान लेने पर विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने 98 घंटे तक चला अपना आमरण अनशन शनिवार 9 अप्रैल को तोड़ दिया लेकिन उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ और चुनाव प्रणाली में सुधार के लिए बड़ी लड़ाई लड़नी है। यहां जंतर मंतर पर 73 वर्षीय हजारे ने अपने हजारों उत्साही समर्थकों के बीच सरकार की ओर से अधिसूचना जारी करने को जनता की जीत करार देते हुए चेतावनी दी कि अगर 15 अगस्त तक लोकपाल विधेयक पास नहीं किया जाता है तो वह तिरंगा लेकर एक बार फिर आंदोलन शुरू करेंगे। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जारी आमरण अनशन के पांचवें दिन एक छोटी बच्ची के हाथों नींबू पानी पीकर अनशन तोड़ने के बाद हजारे ने अपने संबोधन में कहा कि यह मेरे लिए सबसे बड़ा दिन है। यह लोगों की जीत है लेकिन अभी सही आजादी प्राप्त करने के मार्ग में लम्बा रास्ता तय करना है। हालांकि उनके द्वारा दिये गये पांच नामों पर सबसे ज्यादा विरोध इस समिति में रखे गये अण्णा हजारे, केजरीवाल, व न्यायमूति हैगड़े के नाम पर नहीं अपितु पिता पुत्र की जोड़ी पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण व उनके सुपुत्र सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता प्रशांत भूषण के नाम पर था। लोगों का मानना था कि इससे जहां वंशवाद का गलत संदेश जा रहा है तथा अन्य प्रमुख कानूनविदों राम जेठमलानी, सुब्रमण्यस्वामी, मेधा पाटेकर, किरण वेदी, आदि में से एक को भी सम्मलित किया जाना चाहिए था। कुल  मिला कर इस देश में जिस प्रकार भ्रष्टाचार से देश त्रस्त है तथा उसके विरोध में देश की जनता एक बार सड़कों में उतरने का मन बना चूकी थी तो ऐसे में उसको ठण्डे बस्ते में डालने के लिए मानसून या 15 अगस्त तक का इंतजार करना एक प्रकार से इसके मार्ग में अवरोध ही खड़ा करना है। इसके लिए संसद का विशेष सत्र बुलाना चाहिए था। भ्रष्टाचार को इस देश में एक पल के लिए भी बनाये रखने की इजाजत देना किसी भी हालत में उचित नहीं है। शेष श्री कृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो। 
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