विश्व में बच्चों के एकमात्र त्यौहार हैं ‘कटम कूड़ी बाघे दाड़ व अंग्यार पूजे’


विश्व में बच्चों के एकमात्र त्यौहार हैं ‘कटम कूड़ी बाघे दाड़ व अंग्यार पूजे’ 
बाघ व नयी कोंपलों के जहर से रक्षा के लिए करते हैं अंग्यार पूजे 
‘कटम कूड़ी बाघे दाड़ व अंग्यार पूजे’ ये दो त्योहार केवल उत्तराखण्ड  में ही नहीं अपितु संभवतः देश विदेश में बच्चों का एकमात्र ऐसे जुडवा त्योहार होगें जिसको केवल बच्चे मनाते ही नहीं  अपितु खानपान सहित तमाम पकवान तक खुद ही बनाते है। हालांकि फूलदे माई भी बच्चों का गांव भर के घरों में फूल डाल कर वहां से खाजा मांगने का त्योहारों में है। कई स्थानों में फूलदे माई का त्योहार भी इन दोनों त्योहारों से जुड़ा रहता है। इस फूलदे माई के दिन बच्चों को मिले खाजा रूपी अन्न का ही अंग्यार पूजे के दिन बच्चे पकवान बनाने में प्रयोग में लाते हैं।परन्तु फिर भी फूलदे माई त्योहार में  वह व्यापकता नहीं है जो  ‘कटम कूड़ी बाघे दाड़ व अंग्यार पूजे’ जैसे त्योहारों में देखने को मिलती है। यह दोनों त्योहारों में बच्चे न केवल त्योहार मनाते हैं अपितु अंग्यार पूजे’ के दिन तो बच्चे अपने घर इत्यादि स्थान छोड़ कर जंगल में नाना प्रकार के पकवान बनाते है।
भले ही देश विदेश में सरकारें बाघ को बचाने के लिए हर संभव कड़े कानून बना रहे है। वहीं हिमालयी राज्यों के निवासियों में अनादिकाल से बाघ, रीछ व जंगली सुअर सहित तमाम हिंसक जानवरों से सदैव खतरा बना रहता है। उत्तराखण्ड सहित हिमालयी राज्यों में सबसे ज्यादा खतरे की आशंका अगर किसी से रहती है तो वह बाघ से। बाघ न केवल लोगों के जीवन चक्र के आधार समझे जाने वाले गाय, बैल व कुत्तों को अपना निवाला बनाता है अपितु कई बार तो यह आदमियों को भी अपना शिकार बनाने से गुरेज नहीं करता। शायद इसी भय से आशंकित हिमालयी क्षेत्र के लोग सबसे अधिक बाघ से भयभीत रहते है। बच्चों को डराने के लिए भी प्रायः  गांवों में उनकी माॅं सहित बड़े बुजुर्ग बाघ आ गया कहते हैं। वहीं सीमान्त जनपद चमोली में बाघ के भय से उबरने व वसंत के आगमन पर जंगली अंग्यार पर आयी नयी कोंपलों के जहर से बचने के लिए अंग्यार पूजे व बाघ पूजे किया जाता हैं। इस पूजा की विशेषता यह है कि यह बसंत के आगमन पर ही होता है तथा इस त्योहार को बच्चे ही मनाते हैं।  बच्चे जंगल में बसंत के आगमन पर जंगली पैड़ों पर  आयी नई कोंपलों के जहर से तथा बाघ के आतंक से अपने पालतु पशुओं की रक्षा हेतु   चैत माह की 15 गते को अग्यार झाडने के लिए सांयकाल बच्चे गांव के एक चैक में  एकत्रित होते है। वहां पर सभी छोटे बच्चे अपने अपने घरों से कटोरे में चांवल से बने भूट खाजा  को लेकर जाते है। वहां पर गांव के सभी बच्चे थोडे से चांवल को पठाली में रख कर उसे एक पत्थर  से ‘कटम कूड़ी बाघे दाड़’ -2  जोर  जोर से चिल्लाते हुए कूटते हैं। उसी समय एक वयस्क आदमी जो बाघ बना होता है वह बाघ बन कर बाघ की सी हुकार भरते हुए वहां पर आता है तो बच्चे उसको वहां ंसे सुखे गोवर के टुकड़े(ग्वसा) को जला कर बाघ बने हुए व्यक्ति पर प्रहार कर भगाते है। यह कटम कूड़ी बाघे दाड नाम का पूरा पर्व इस आशा व विश्वास के साथ मनाया जाता है कि ग्रामीणों के पशुओं की बाघ व बसंत में जंगली पैड़ पोधों पर आयी नयी कोंपलों से रक्षा की जायेगी। इस अवसर पर बाघ बने हुए व्यक्ति को ग्वसों को मारते हुए अन्य एक व्यक्ति यह जोर जोर से कहता है कि हमारे पशुओं पर न तो बसंत में आयी नयी कोंपलों का जहर लगे व नहीं बाघ आदि हिंसक जंगली जानवरों का भय रहे। यह पर्व एक प्रकार से अंग्यार झाडने के नाम से मनाया जाता हे।  इस पर्व का अंतिम भाग इसके पांच दिन बाद यानी चैत माह की 20 गते को अंग्यार पूजे के नाम से मनाया जाता है। इस पर्व को भी केवल बच्चे ही मनाते हैं। वह भी प्रायः 14 साल से छोटी उम्र के बच्चे अपनी अपनी दस बारह बच्चों की टोलियों में अपने अपने घरों से दुध, घी, चांवल, आटा, तेल, दाल, गुड़ इत्यादि ले जा कर गांव के समीप जंगल में जाते है।  छोटे बच्चे ही जंगल में जा कर खीर, कलेऊ, पूरी इत्यादि पकवान बना कर  अंग्यार की पूजा करते हैं। इस अंग्यार पूजे में भी एक बच्चा बाघ बनता है व उसे अन्य बच्चे जलते हुए ग्वसा से इस आश से भगाते हैं कि इससे उनके पशुओं की नयी कोंपलों व जंगली हिंसक जानवर बाघ से रक्षा होगी। आज टीबी व दूरसंचार के युग में जहां आम बच्चे ही नहीं बड़े बुजुर्ग भी अपनी परंपराओं को भुल कर भूमण्डलीयकरण की आंधी में अपने त्यौहार व परंपरायें भूलते जा कर संतोषी माता का वर्त, कडवा चैथ का वर्त, फादर डे व मदर डे, क्रिकेट तथा बेलेन्टाइन डे जैसे पर्वो को मनाने में लगे है, ऐसे में ‘कटम कूड़ी बाघे दाड़ व अंग्यार पूजे’ जैसे बच्चों के प्राचीन उत्तराखण्डी पर्व को लोग प्रायः भूल से गये हे। जब पूरा देश विश्व कप क्रिकेट जीतने की खुमारी ले रहा था ऐसे समय में उत्तराखण्ड के चमोली जैसे दूरस्थ सीमान्त जनपद के गांवों के बच्चे 3 अप्रैल 2011 को अंग्यार पूजे को मनाने में मस्त थे।

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