गांधी के विरोधी ही नहीं समर्थक भी रह गये भौचंक्के
गांधी के विरोधी ही नहीं समर्थक भी रह गये भौचंक्के
गांधी जी को चाहे जीते जी ही नहीं उनकी हत्या की जाने के कई दशक बाद भी आज दुनिया में उनके चाहने वालों की जो जबरदस्त कसक है उसको देख कर उनके आलोचकों की जहां बोलती बंद हो जाती है अपितु उनके शर्म से बरबस सर भी झुक जाते है। महात्मा गांधी के विरोधी फिरंगी हुकुमत के अलावा भारत में वे तमाम लोग सामिल थे जो गांधी के संकीर्ण धर्मवाद से उपर उठ कर हर भारतीय को गले लगाने का विरोध करने वाली जमात भी थी। आज जहां गांधी के कार्यो को नमन करने वालों में संसार के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के राष्ट्रपति बराक औबामा सहित असंख्य लोग हैं। वहीं ऐसे समय में भी गांधी पर किचड़ उछाल कर अपने को विख्यात करने वाले लेखकों व राजनेताओं की कोई कमी नहीं है। अभी कुछ सप्ताह पहले एक फिरंगी लेखक ने महात्मा को अपनी कुठीत व संकीर्ण मानसिकता का शिकार बनाया। इससे पूरे देश में एक प्रकार का विवाद किताब ही छीड़ गया। गुजरात की भाजपा सरकार ने बिना समय गंवाये इस पुस्तक पर प्रतिबंध ही लगा दिया। इस मामले ने एक बार फिर भारतीयों को ही नहीं अपितु दुनिया के तमाम समझदार लोगांें को गांधी पर चचा्र करने के लिए मजबूर कर दिया। इस बहस ने भी महात्मा की महानता को अपने आरोपों के बादलों के आगोश में लेने में असफल रहे। अभी यह प्रकरण सचांलित ही हो रहा था कि एक फिरंगी ने गांधी के चरित्र को नष्ट करने के उद्देश्य से एक किताब ही प्रकाशित कर दी। यह विवाद भारत में संचालित था कि तभी एक खबर आयी कि गांधी की एक चिट्ठी को किसी फिरंगी ने महात्मा गांधी का एक पत्र निलामी में 8 लाख रूपये में ख रीद कर सबकी बोलती ही बंद कर दी। हिंदू-मुस्लिम एकता पर जोर देने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के इस एक पत्र को गत मंगलवार को लंदन में 11400 पौंड (करीब आठ लाख रुपये) में नीलाम हुआ। एक अज्ञात अंग्रेज ने इसे खरीदा है। नीलामीकर्ता बोनहम्स ने इस दस्तावेज को पिछले तीस साल में बाजार में आए गांधीजी के खास पत्रों में से एक करार दिया है।
15 दिसंबर, 1919 को लिखे इस पत्र में गांधीजी ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ भारत में निष्क्रिय प्रतिरोध और हिंदू-मुस्लिम एकता की जरूरत पर जोर दिया है। गांधीजी ने पत्र में लिखा है, ‘मैं भारत के मुसलमानों को अपनी भावनाओं को संतुलित तरीके से व्यक्त करने की सलाह देता हूं। साथ ही हिंदुओं को भी सलाह है कि इस साझा प्रयास में वे उनकी मदद करें।’ पत्र में गांधीजी ने घोषित किया कि उन्होंने सत्य की लगातार वकालत की है।
उन्होंने ब्रिटिश सरकार के अलावा खिलाफत आंदोलन के प्रति अपने दृष्टिकोण की व्याख्या की। यह पत्र लाहौर-2 मोजांग रोड के पते से भेजा गया था। इसमें अंग्रेज पत्रकार व उपन्यासकार एडमंड कैंडलर के सवालों का जवाब दिया गया है। इस पत्र के लाखों यपये में निलाम होने की खबर से उनके विरोधी ही नहीं उनके समर्थक भी भौचंक्के रह गये है। इस प्रकरण से यह साफ हो गया कि आज भले ही एक बड़ी जमात उनके कार्यो में मीन मेख निकालें परन्तु वे आज भी महात्मा गांधी न केवल भारत में अपितु पूरे विश्व सृष्ठि को अपना कायल ही कर दिया है।
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