अमेरिकीपरस्त हुक्मरानों ने बनाया भारत को आतंकियों की ऐशगाह


अमेरिकीपरस्त हुक्मरानों ने बनाया भारत को आतंकियों की ऐशगाह/
-मुम्बई बम धमाकों के लिए मनमोहनसिंह इस्तीफा दें/


-इसी पखवाडे मुम्बई में हुए आतंकी हमले ने एक बार देश की जनता को सोचने के लिए विवश कर दिया कि क्यों आतंकी बार बार भारत में आतंकी हमला करने में सफल हो रहे हैं और अमेरिका में एक बार हमला करने के बाद क्यों तमाम नापाक कोशिश करने के बाबजूद व तमाम गीदड सी धमकियों देने के बाबजूद आतंकी अमेरिका पर हमला करने में सफल नहीं हो पा रहे है। क्यों इसी प्रकार की तमाम कोशिशों के बाबजूद
इस्राइल ही नहीं चीन में भी आतंक फेलाने में तथाकथित जैहादी आतंकी सफल नहीं हुए। क्यों रूस में ये आतंकी मुंह की खा रहे है। परन्तु भारत में आतंक दिन प्रतिदिन ऐसा विकराल रूप ग्रहण कर रहा है। दिन प्रतिदिन आतंक का शिकंजा अपने आगोश में और मजबूती से जकड़ रहा है।
सबसे हैरानी की बात तो यह है कि भारतीय हुक्मरान व राजनेता ही नहीं प्रबुद्व लोग भी इस मुद्दे पर जिस संकीर्ण नजरियें से सोच रहे हैं और इस सबसे खतरनाक समस्या को निहित स्वार्थों में उलझ कर उपेक्षा कर रहे हैं यह देश की एकता व अखण्डता के लिए हर पल और अधिक खतरनाक साबित हो रहा है। देश के हुक्मरान यहां चाहे किसी भी दल के हों उनको यह नहीं दिख रहा है कि जब अमेरिका की चार भवनों पर आतंकी हमला हुआ था तो पूरा अमेरिका एकजूट हो कर आतंक को मुहतोड़ जवाब देने के लिए सरकार के साथ खड़ा था। अमेरिकी सरकार ने सात समुद्र पार कर हजारों किमी दूर अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार को न केवल उखाड़ फेंका अपितु आतंक का पर्याय बने ओसमा बिन लादेन को मार गिरा कर अमेरिका की तरफ आंख उठाने के दुसाहस करने के लिए दण्डित किया। अमेरिका की मजबूत व मुंहतोड़ कार्यवाही की दहशत से व कड़े सुरक्षा कदमों से आत्मघाति आतंकी दस्तों वाले आतंकी संगठन अलकायदा, तालिबान सहित कुकरमुत्तों की तरह पूरे विश्व में आंतक के झण्डाबरदारों को अपने बिलों में ही छुपे रहने के लिए विवश कर दिया। परन्तु दूसरी तरफ नपुंसक भारतीय हुकमरान चाहे राष्ट्रवादी होने का दंभ भरने वाली भाजपा के अटल बिहारी-आडवाणी के नेतृत्व वाली राजग सरकार रही हो या सोनिया -मनमोहनसिंह के नेतृत्व वाली वर्तमान सप्रंग सरकार हो। जिस प्रकार से इस दौरान भारत की सर्वोच्च संस्थान संसद पर आतंकी हमले हुए, जिस प्रकार से कारगिल पर हमला किया गया, जिस प्रकार से देश की राजधानी दिल्ली व आर्थिक राजधानी मुम्बई में आतंकी हमला किया गया, देश के सैकड़ों बुगुनाह आम लोगों को कत्ल किया गया। उसके बाबजूद क्या मजाल है भारत इन दोनो सरकारानें ने अमेरिका की भांति इन आतंकियों के कमांडर पाकिस्तान को अमेरिका की तरह देश की एकता व अखण्डता की रक्षा के लिए मुंहतोड़ जवाब देने का साहस तक नहीं जुटा पाये। जब भारतीय हुक्मरान अगर भारत को तबाह करने वाले आतंकियों के कमाण्डर पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने की हिम्मत नहीं जुटा पाया तो वह कहां इस आतंक का प्रेरणा सुत्र, संरक्षव व माई बाप अमेरिका से इस विषय पर सीधी बातचीत तक करने की हिम्मत रखते। उल्टे राजग व यूपीए दोनों सरकारें भारत को आतंकी हमलों से तबाह करने वाले आतंकियों के कमाण्डर पाक व संरक्षक अमेरिका से नपुंसकों की तरह दोस्ती का आत्मघाति शर्मनाक याचना करके आतंकियों को भारत पर और आतंकी हमले करने के लिए प्रत्यक्ष रूप से प्रोत्साहित करते रहे। यह ी नहीं भारत के हुक्मरानों की इतनी शर्मनाक व आत्मघाति संकीर्ण मनोदशा हो गयी है कि वे देश की सुरक्षा के लिए तथा इस भयंकर खतरे से निपटने के लिए संयुक्त रूप से ठोस मुहतोड़ राष्ट्रीय नीति बनाने के बजाय ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर भी संकीर्ण दलीय स्वार्थो की पूर्ति के लिए धर्म के नाम पर खिलवाड़ कर रहे है। जिस आतंकियों ने देश के सम्मान को रौंदा, संसद से लेकर आम आदमियों को इन्होंने अपने नापाक मंसूबों का शिकार बनाया, देश के इन अपराधियों को दण्डित करने में अब इन हुक्मरानों के हाथ कांप रहे हैं।
मैं इसका एक ही कारण मानता हॅू कि इंदिरा व राजीव गांधी के बाद देश के तमाम हुक्मरानों की आत्मघाति नपुंसक व अमेरिकी परस्त नीतियां जिम्मेदार रही। जब तक दे
13 जुलाई 2011 को सांय सात बजे के करीब मुम्बई में हुए तीन स्थानों में हुए बम धमाकों के लिए भारत की नपुसंक मनमोहन सिंह की सरकार जिम्मेदार हैं। जो सरकारें संसद पर हमले के दोषी सहित देश को तबाह करने वाले आतंकियों को सजा देने के बजाय शर्मनाक संरक्षण दे रही है तथा देश हित शांतिपूर्ण आंदोलन करने वालों को लाठी व बंदुक के बल पर दमन कर रोंद रही है। मनमोहन सरकार अपनी पूर्ववती अटल की सरकार की तरह भारत को तबाह करने वाले अमेरिका व पाक द्वारा संयुक्त रूप से भारत को तबाह करने के लिए दशकों से आतंकी कार्यवाही जारी रखे हुए है व भारत की सरकारें आतंक को जड़ से तबाह करने के बजाय, ( आतंक के माई बाप अमेरिका व पाक से दो टूक बात करने के बजाय) नपुंसकों की तरह दोस्ती की शर्मनाक याचना कर रही है। अगर भारत सरकार आतंकियों को अमेरिका की तरह मुंहतोड़ जबाब देती तो आतंकी दूबारा भारत की तरफ आंख उठा कर देखने का साहस तक नहीं जुटा पाते। परन्तु भारतीय हुक्मरानों को अपनी तुच्छ सत्तालोलुपता के कारण देश हितों से खिलवाड़ करने वाले आतंकियों को भी वोट का मोहरा मसझ कर उनका संरक्षण कर रहे है। भारतीय हुक्मरान जब तक अमेरिका व पाक के सांझा भारत विरोधी आतंक का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए ठोस कदम नहीं उठायेंगे तो तब तक देश में ऐसे ही आतंकी हमले का शिकार होना पडेगा। अमेरिकी मोह में अंधे भारतीय हुक्मरानों को हेडली प्रकरण से आंखें न खुलना देश का दुर्भाग्य के साथ साथ इनके अमेरिकी हाथों की कठपुतली होने को ही साबित करता है।
मुम्बई बम धमाकों के इस प्रकरण के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अमेरिकी परस्त नीतियां ही सीधे रूप से जिम्मेदार है। उनको अविलम्ब प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। अगर मनमोहन अमेरिका की तरह अपने देश के स्वाभिमान का जरा सा भी ध्यान रहता तो वह भी पाक स्थित आतंकी अड्डों को तबाह करने का काम करते। परन्तु देश के दुर्भाग्य यह है कि देश में मनमोहन सिंह व अटल जैसे नपुंसक अमेरिकी परस्त हुक्मरानों को भी ढोना पड़ रहा है।
शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमों।

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