तेलांगना न बना कर लोकशाही का गला घोंट रहे हैं हुक्मरान
तेलांगना न बना कर लोकशाही का गला घोंट रहे हैं हुक्मरान
हैदराबाद(प्याउ)। दशकों से चल रही तेलांगना राज्य की सर्वसम्मत मांग को स्वीकार न कर सरक ार ने देश की लोकशाही का एक प्रकार से गला ही घोंट दिया । यह केवल वर्तमान सरकार का गुनाह नहीं अपितु अब तक की तमाम सरकारों ने इस जनसमर्थित मांग को नकार कर देश की लोकशाही का एक प्रकार से अहित ही किया । इस कारण प्रदेश में कई हजार करोड़ व जानमाल का नुकसान आंदोलनों से हो चूका है। सरकार की इसी हटघर्मिता से आहत हो कर तेलांगना क्षेत्र के तमाम कांग्रेसी सांसदों व विधायकों ने अपना इस्तीफा दे दिया है। इससे यह मामला फिर देश के आम जनता के मानसपटल पर छा गया है।
पृथक तेलंगाना राज्य के मुद्दे पर आंध्र प्रदेश में राजनीतिक संकट गहराता जा रहा है। अब तक राज्य के कुल 73 विधायकों व 10 सांसदों ने अपने-अपने पदों से इस्तीफे दे दिए हैं। सरकार ने कहा है कि पृथक राज्य के मसले पर अंतिम फैसला लिया जाना
बाकी है।
इस बीच, तेलंगाना संयुक्त कार्य समिति ने मंगलवार और बुधवार को क्षेत्र में 48 घंटे के बंद किया । अलग तेलंगाना राज्य के लिए विधेयक मानसून सत्र में ही लाने की मांग को लेकर समिति ने लगातार विरोध-प्रदर्शन का आह्वान किया है। समिति ने आठ और नौ जुलाई को रेल बंद करने का भी आह्वान किया है।
इस्तीफा देने वालों में कांग्रेस के सांसद और विधायक आगे हैं। कांग्रेस के नौ लोकसभा सदस्यों व एक राज्यसभा सदस्य ने इस्तीफा दिया है जबकि इस्तीफा देने वाले उसके 36 विधायकों में 11 मंत्री शामिल हैं। तेदेपा खेमे से चार विधायकों ने रविवार को ही इस्तीफा दे दिया था। इसके साथ ही इस्तीफा देने वाले तेलंगाना क्षेत्र के विधायकों की कुल संख्या 73 हो गई।
294 सदस्यीय राज्य विधानसभा में तेलंगाना क्षेत्र से 119 विधायक हैं। इसमें प्रजा राज्यम पार्टी (पीआरपी) सहित कांग्रेस के 52 विधायक शामिल हैं। पीआरपी का हाल ही में कांग्रेस में विलय हुआ था। तेदेपा के इस क्षेत्र से 37 विधायक हैं, जबकि तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के 11 विधायक हैं।
सोमवार को तेदेपा के सभी 33 विधायकों और कांग्रेस के 36 विधायकों ने विधानसभा उपसभापति मल्लू भट्टी विक्रमार्का को अपना इस्तीफा सौंप दिया, क्योंकि विधानसभा अध्यक्ष एन. मनोहर अमेरिका में हैं।
294 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के कुल 174 सदस्य हैं। इसमें प्रजा राज्यम पार्टी के 18 विधायक शामिल हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि यदि विधानसभा अध्यक्ष ने कांग्रेस के 36 विधायकों का इस्तीफा स्वीकार कर लिया तो सरकार अल्पमत में आ सकती है। कांग्रेस विधायकों एवं मंत्रियों का नेतृत्व कर रहे वरिष्ठ मंत्री के. जना रेड्डी ने संवाददाताओं से कहा कि उनके इस्तीफे कोई संवैधानिक या राजनीतिक संकट पैदा करने के लिए नहीं हैं, बल्कि जनभावनाओं के अनुकूल पृथक राज्य हासिल करने के लिए हैं। रेड्डी ने विधानसभा भवन के बाहर कहा, उनकी लड़ाई तेलंगाना क्षेत्र के स्वशासन और आत्मसम्मान की लड़ाई है। विधानपरिषद के 12 कांग्रेसी सदस्यों ने भी विधानपरिषद सभापति के. चक्रपाणि को अपना इस्तीफा सौंप दिया।
लेकिन एक मंत्री के. वेंकट रेड्डी ने कहा कि चूंकि मंत्रियों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है,
इस आंदोलन में तेजी का कारण यह भी है कि लोगों को अहसास हो गया है कि पृथक तेलंगाना राज्य के गठन के लिए नौ दिसम्बर, 2009 को दिए गए वादे से पीछे हट रही है तथा यह आंदोलन एक प्रकार से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी चेतावनी दी है।
हैदराबाद(प्याउ)। दशकों से चल रही तेलांगना राज्य की सर्वसम्मत मांग को स्वीकार न कर सरक ार ने देश की लोकशाही का एक प्रकार से गला ही घोंट दिया । यह केवल वर्तमान सरकार का गुनाह नहीं अपितु अब तक की तमाम सरकारों ने इस जनसमर्थित मांग को नकार कर देश की लोकशाही का एक प्रकार से अहित ही किया । इस कारण प्रदेश में कई हजार करोड़ व जानमाल का नुकसान आंदोलनों से हो चूका है। सरकार की इसी हटघर्मिता से आहत हो कर तेलांगना क्षेत्र के तमाम कांग्रेसी सांसदों व विधायकों ने अपना इस्तीफा दे दिया है। इससे यह मामला फिर देश के आम जनता के मानसपटल पर छा गया है।
पृथक तेलंगाना राज्य के मुद्दे पर आंध्र प्रदेश में राजनीतिक संकट गहराता जा रहा है। अब तक राज्य के कुल 73 विधायकों व 10 सांसदों ने अपने-अपने पदों से इस्तीफे दे दिए हैं। सरकार ने कहा है कि पृथक राज्य के मसले पर अंतिम फैसला लिया जाना
बाकी है।
इस बीच, तेलंगाना संयुक्त कार्य समिति ने मंगलवार और बुधवार को क्षेत्र में 48 घंटे के बंद किया । अलग तेलंगाना राज्य के लिए विधेयक मानसून सत्र में ही लाने की मांग को लेकर समिति ने लगातार विरोध-प्रदर्शन का आह्वान किया है। समिति ने आठ और नौ जुलाई को रेल बंद करने का भी आह्वान किया है।
इस्तीफा देने वालों में कांग्रेस के सांसद और विधायक आगे हैं। कांग्रेस के नौ लोकसभा सदस्यों व एक राज्यसभा सदस्य ने इस्तीफा दिया है जबकि इस्तीफा देने वाले उसके 36 विधायकों में 11 मंत्री शामिल हैं। तेदेपा खेमे से चार विधायकों ने रविवार को ही इस्तीफा दे दिया था। इसके साथ ही इस्तीफा देने वाले तेलंगाना क्षेत्र के विधायकों की कुल संख्या 73 हो गई।
294 सदस्यीय राज्य विधानसभा में तेलंगाना क्षेत्र से 119 विधायक हैं। इसमें प्रजा राज्यम पार्टी (पीआरपी) सहित कांग्रेस के 52 विधायक शामिल हैं। पीआरपी का हाल ही में कांग्रेस में विलय हुआ था। तेदेपा के इस क्षेत्र से 37 विधायक हैं, जबकि तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के 11 विधायक हैं।
सोमवार को तेदेपा के सभी 33 विधायकों और कांग्रेस के 36 विधायकों ने विधानसभा उपसभापति मल्लू भट्टी विक्रमार्का को अपना इस्तीफा सौंप दिया, क्योंकि विधानसभा अध्यक्ष एन. मनोहर अमेरिका में हैं।
294 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के कुल 174 सदस्य हैं। इसमें प्रजा राज्यम पार्टी के 18 विधायक शामिल हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि यदि विधानसभा अध्यक्ष ने कांग्रेस के 36 विधायकों का इस्तीफा स्वीकार कर लिया तो सरकार अल्पमत में आ सकती है। कांग्रेस विधायकों एवं मंत्रियों का नेतृत्व कर रहे वरिष्ठ मंत्री के. जना रेड्डी ने संवाददाताओं से कहा कि उनके इस्तीफे कोई संवैधानिक या राजनीतिक संकट पैदा करने के लिए नहीं हैं, बल्कि जनभावनाओं के अनुकूल पृथक राज्य हासिल करने के लिए हैं। रेड्डी ने विधानसभा भवन के बाहर कहा, उनकी लड़ाई तेलंगाना क्षेत्र के स्वशासन और आत्मसम्मान की लड़ाई है। विधानपरिषद के 12 कांग्रेसी सदस्यों ने भी विधानपरिषद सभापति के. चक्रपाणि को अपना इस्तीफा सौंप दिया।
लेकिन एक मंत्री के. वेंकट रेड्डी ने कहा कि चूंकि मंत्रियों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है,
इस आंदोलन में तेजी का कारण यह भी है कि लोगों को अहसास हो गया है कि पृथक तेलंगाना राज्य के गठन के लिए नौ दिसम्बर, 2009 को दिए गए वादे से पीछे हट रही है तथा यह आंदोलन एक प्रकार से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी चेतावनी दी है।
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