चुनाव से पहले फिर एक होगा उक्राद
चुनाव से पहले फिर एक होगा उक्राद
देहरादून(प्याउ)। विधानसभा चुनाव से पहले उक्रांद के दोनों गुटों में फिर एका होने की उम्मीद केवल पार्टी के कार्यकत्र्ता ही नहीं अपितु ंप्रदेश के राजनीति की नब्ज को जानने वाले लोग भी कर रहे है। लोगों की यह उम्मीद मात्र हवाई नहीं है। इससे पहले भी उक्रांद के ये दोनों गुट कई बार बिखर कर फिर एक हुए थे। हालांकि मुन्नासिंह चैहान द्वारा ऐरी गुट की बातचीत व दिवाकर गुट के साथ खंडूडी की बातचीत से भले ही ऐसा लगे कि दोनों गुट दूर हो गये है। परन्तु दोनों दलों के भले ही कभी दिल ना भी जुडे रहे परन्तु दोनों के सांझे सपने के कारण दोनों को कुछ दिनों दूर रहने के बाद एक होने को मजबूर होना पड़ा।
गौरतलब है कि इन दिनों उत्तराखंड के एक मात्र मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय राजनीतिक दल उत्तराखंड क्रांति दल के दोनों धड़ों की नजर चुनाव चिन्ह पर टिकी हुई है। चुनाव चिन्ह की यह लड़ाई इस समय भारत निर्वाचन आयोग में लड़ी जा रही है। गौरतलब है कि पहली जनवरी 2011 से उत्तराखंड क्रांति दल के बीच विभाजन की रेखा खिंचनी शुरू हुई थी। राज्य सरकार से समर्थन वापस लेने के साथ ही पार्टी के अध्यक्ष त्रिवेंद्र सिंह पंवार ने दिवाकर भट्ट को उक्रांद से निलंबित कर दिया था और 4 जनवरी को उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया। 16 जनवरी को दिवाकर भट्ट ने आम सभा बुलाकर खुद को उक्रंाद का अध्यक्ष घोषित किया था और त्रिवेंद्र पंवार को पार्टी से बाहर करने की घोषणा कर दी थी। टिहरी में नगर पालिका अध्यक्ष के उपचुनाव के मद्देनजर राज्य निर्वाचन आयोग में दोनों गुटों ने अपने को असली घोषित करते हुए अपना पक्ष रखा था। राज्य निर्वाचन आयोग ने अंतरिम निर्णय देते हुए उक्रांद का सिंबल कुर्सी को जब्त कर दिया था। उसके बाद यह मामला भारत निर्वाचन आयोग में ले जाया गया। दोनों गुटों ने भारत निर्वाचन आयोग में अपने अपने दस्तावेज जमा कर दिए थे। चुनाव आयोग का चाहे कोई भी निर्णय आये परन्तु उक्रांद के अब तक के इतिहास को जानने वालों को आशा है कि देर न सबेर दोनों गुट फिर एकजुट होंगे।
देहरादून(प्याउ)। विधानसभा चुनाव से पहले उक्रांद के दोनों गुटों में फिर एका होने की उम्मीद केवल पार्टी के कार्यकत्र्ता ही नहीं अपितु ंप्रदेश के राजनीति की नब्ज को जानने वाले लोग भी कर रहे है। लोगों की यह उम्मीद मात्र हवाई नहीं है। इससे पहले भी उक्रांद के ये दोनों गुट कई बार बिखर कर फिर एक हुए थे। हालांकि मुन्नासिंह चैहान द्वारा ऐरी गुट की बातचीत व दिवाकर गुट के साथ खंडूडी की बातचीत से भले ही ऐसा लगे कि दोनों गुट दूर हो गये है। परन्तु दोनों दलों के भले ही कभी दिल ना भी जुडे रहे परन्तु दोनों के सांझे सपने के कारण दोनों को कुछ दिनों दूर रहने के बाद एक होने को मजबूर होना पड़ा।
गौरतलब है कि इन दिनों उत्तराखंड के एक मात्र मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय राजनीतिक दल उत्तराखंड क्रांति दल के दोनों धड़ों की नजर चुनाव चिन्ह पर टिकी हुई है। चुनाव चिन्ह की यह लड़ाई इस समय भारत निर्वाचन आयोग में लड़ी जा रही है। गौरतलब है कि पहली जनवरी 2011 से उत्तराखंड क्रांति दल के बीच विभाजन की रेखा खिंचनी शुरू हुई थी। राज्य सरकार से समर्थन वापस लेने के साथ ही पार्टी के अध्यक्ष त्रिवेंद्र सिंह पंवार ने दिवाकर भट्ट को उक्रांद से निलंबित कर दिया था और 4 जनवरी को उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया। 16 जनवरी को दिवाकर भट्ट ने आम सभा बुलाकर खुद को उक्रंाद का अध्यक्ष घोषित किया था और त्रिवेंद्र पंवार को पार्टी से बाहर करने की घोषणा कर दी थी। टिहरी में नगर पालिका अध्यक्ष के उपचुनाव के मद्देनजर राज्य निर्वाचन आयोग में दोनों गुटों ने अपने को असली घोषित करते हुए अपना पक्ष रखा था। राज्य निर्वाचन आयोग ने अंतरिम निर्णय देते हुए उक्रांद का सिंबल कुर्सी को जब्त कर दिया था। उसके बाद यह मामला भारत निर्वाचन आयोग में ले जाया गया। दोनों गुटों ने भारत निर्वाचन आयोग में अपने अपने दस्तावेज जमा कर दिए थे। चुनाव आयोग का चाहे कोई भी निर्णय आये परन्तु उक्रांद के अब तक के इतिहास को जानने वालों को आशा है कि देर न सबेर दोनों गुट फिर एकजुट होंगे।
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