-मनमोहन से बेहतर प्रधानमंत्री होते टाटा

-मनमोहन से बेहतर प्रधानमंत्री होते टाटा/
-टाटा का चमत्कार 32 हजार रू. में घर/
- टाटा को ही सौंपे सरकार इंदिरा आवास बनाने की योजना/



मेरे मन मैं एक विचार आया कि अगर मनमोहन सिंह की बजाय सोनिया गांधी टाटा को देश का प्रधानमंत्री बनाते तो देश का इतना शर्मनाक हालत नहीं होती। देश में इतना भ्रष्टाचार व अंधेरगर्दी नहीं होती। इतना आतंकवाद नहीं होता । कर्मचारियों में इतनी कामचोरी नहीं होती। देश में हड़ताल व असंतोष की ज्वाला नहीं देखने को मिलती। देश म ें कहीं पर मिलावट का दैत्य लोगों के जीवन से खिलवाड ़ करने का काम तो कम से कम नहीं करता।
भई मेरे मन मैं ये विचार यकायक क्रांेधा जब मैने कि टाटा ने गरीबों के लिए 32 हजार रूपये में मकान ब नाने की योजना बनायी है। हालांकि इससे पहले टाटा ने एक लाख में कार बनाने का चमत्कार कर कई गरीब लोगों की कार रखने की हसरत पूरी की। परनतु उसने मुझे इतना उत्साहित नहीं हुआ । जिस देश में आम लोगों के सर पर छत न हो, खाने के लिए दो वक्त का अन्न ना हो वहां पर कार रखने की बात सोचना भी मेरे जैसे आदमी के सोच यानी कल्पना से बाहर की बात है । पर अब मेने सुना की टाटा गरीब लोगों के लिए 32 हजार रूपये में घर बनाने का ऐलान कर चूके ह ैं तो मुझे उपरोक्त विचार यकायक मेरे मन में उमडा। पहले मेने सोचा कि क्यों न इस देशमें गरीब लोगों के लिए बनने वाले मकानों का पूरा ठेका ह ी टाटा को सौंप दिया जाय।
आपने सुना इस मंहगाई के जमाने में टाटा समूह अब 32,000 रुपये की कीमत वाला घर पेश करने की तैयारी में है। इसी को कहते हैं टाटा, विश्वसनियता व मानक का नाम टाटा। भले ही लोग एक बार भारत सरकार व अन्य कम्पनियों के माल पर तोल मोल व उसकी गुणवता पर शंका करें पर टाटा के माल को लोग आंखें बद कर खरीदते हैं व उसकी गुणवता पर भी आंख मूद कर विश्वास करते है। कुछ समय पहले लखटकिया कार ‘नैनो ’ पेश करने के बाद टाटा समूह अब 32,000 रुपये की कीमत वाला घर पेश करने की तैयारी में है। जैसे ही मेने यह सुना तो मुझे लगा कि देश में यह टाटा की गरीबों को एक बरदानी सौंगात है। जिसे आजादी के 64 साल बाद भी भारत सहित देश विदेश की सरकारें कल्पना में भी पूरा करने की सौच भी नहीं पाती है उस सपने को साकार करने का ऐतिहासिक कार्य टाटा ने कर दिखाने का ऐलान किया। टाटा समुह ने कभी अन्य उधमियों की तरह जैसे तैसे लोगों की जेब काटने का काम नहीं किया। अपितु अपनी गुणवता से पूरे विश्व में अपना स्थान बनाया।
देश में यह समूह ग्रामीण बाजार को ध्यान में रखकर सस्ते आवास की योजना बनाई है। अगले साल के अंत तक पेश किया जा सकता है। टाटा स्टील के ग्लोबल रिसर्च प्रोग्राम की आवासीय परियोजना देश के भर के 30 स्थानों पर टेस्टिंग लेवल पर है। फिलहाल कॉयर बोर्ड, जूट बोर्ड जैसी विभिन्न एजेंसियों तथा राज्य सरकारों से बातचीत कर रहे हैं।
सुत्रों के अनुसार टाटा द्वारा प्रस्तावित आवास का निर्माण पहले से तैयार सामान के आधार (प्री-फैब्रिकेटेड फॉरमेट) पर किया जाएगा जिसके तहत कंपनी छत, दरवाजा, खिड़की जैसे सामान से युक्त किट उपलब्ध कराएगी। इसके आधार पर मकान को खड़ा किया जा सकता है। इस योजना के सुत्रधार टाटा कम्पनी को विश्वास है कि अगर आपके पास जमीन है तो इस आवास को सात दिन में बना सकते हैं। 20 वर्ग मीटर के मॉडल पर आधारित सीधा छत (फ्लैट रूफ) की लागत करीब 500 यूरो (करीब 32,000 रुपए) होगी। टाटा कम्पनी इन उन्नत 30 वर्ग मीटर मॉडल पर खर्च 700 यूरो करेगी। इंदिरा आवास योजना का यही मॉडल है। कम्पनी के अनुसार इसी प्रकार, घर की छत पर सौर पैनल युक्त कई और मॉडल हो सकते हैं।जैसे की सन् 2001 की जनसंख्या के आधार पर देश में 1.48 करोड़ ग्रामीण आवास की कमी है। इस लिहाज से टाटा की योजना काफी सफल हो सकती है।
अगर वास्तव में टाटा की यह योजना धरती में साकार हो गयी तो भारत सरकार को देश में चलने वाली सरकारी गरीबों को आवास की योजना को पूरा दायित्व ही टाटा को सौंप देना चाहिए। आज इंदिरा आवास इत्यादि योजनाओं के तहत निर्माण हो रहे मकानों के लिए सरकारें चाहे 25 से 40 हजार रूपये या इसके आसपास सहयोग देती है परन्तु गरीब आदमी इस मंहगाई में इतनी लागत में इस मकान को बनाने में असफल रहता है औ र इसी का लाभ विकासखण्ड के भ्रष्ट अधिकारी से लेकर ग्राम प्रधान इसमें अपना हिस्सा डकारने के लिए तत्पर रहता है ।
अब मुझे इस विचार ने पूरी तरह से बैचेन ही कर दिया। आप कहेंगे रावत जी आप लोकशाही का अपमान कर रहे है कि पूंजीपति को ला ेकशाह ी की बागडोर सोंपने की बात करके। हां सच में सोच अवश्य ऐसी ही लगती। पर आप ही बताये अपने वर्तमान प्रधानमंत्र ी मनमोहन सिंह जी कौन से जनता ने प्रधानमंत्री के रूप में चुना। उनको तो कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने चुना। कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी ने किया। मनमोह न सिंह का कभी पूरे देश क्या अपनी गली के लोगों के साथ शायद ही सामाजिक सम्पर्क रहा हा े। कांग्रेस का कोई अदना कार्यकत्र्ता क्या बड़े नेता भी उनके पास न तो किसी समस्या के समाधान के लिए जाना चाहता। केवल ओपचारिकतावश ही लोग मनमोहन सिंह से मिलते होंगे। शायद ही उनके मित्र रिश्तेदारों से भी मनमोहन सिंह का सामाजिक जीवंत सम्बंध रहे होंगे। मनमोहन सिंह का आम लोगों से अधिक किताबों से रहा है। इसी कारण वे आम आदमी के दर्द को संमझने में प ूरी तरह असफल रह े। उनके शासनकाल में पूरे देश में मंह गाई, आतंकवाद व भ्रष्टाचार से कोहराम मचा हुआ है। परन्तु क्या मजाल की मनमोहन सिंह उफ तक करें। केवल लोगों की समस्या के समाधान के बजाय मनमोहन सिंह आंकड़ों की राहत रूपि मरह म लगाने का प्रयास करते तो लोगा ें को यह अपने जख्मों पर नमक छिडकने की हरकत सी लगती है। अगर मनमोहन की जगह टाटा को देश की बागडोर सा ैंप दी जाती ता े टाटा कम से कम देश में भ्रष् टाचार तो मिटाता। हाला ंकि उनको इस तंत्र को सुधारने के लिए पुराना सारा सरकारी तंत्र में लगे कर्मचारियों को या तो वीआरएस दे कर, अपने मानकों के अनरूप कर्मचारियों की भर्ती करके देश की व्यवस्था को सुधारने का ईमानदारी से पहल तो करता। ला ेगा ें को सरकारी तंत्र के बजाय टाटा के तंत्र में समय पर कार्य व गुणवता के साथ देश तेजी से विकास के पथ पर अ ग्रसर होता मिलता।
यह कल्पना है। लोकशाही के इस विकृत रूप को सुधारने की तरफ यह सही विकल्प भले ह ी न हो परन्तु इस सड़ी व्यवस्था में दम तोड ़ रहे आम आदमी की आश को नई किरण के रूप में तो ह ोती। आज देश के इस तंत्र मे ं जब आम आदमी को शिक्षा, चिकित्सा, न्या य व रोजगार से वं िचत सा हो गया है। ऐसे में जब अ मेरिका के हाथों में यह तंत्र की कमान सी आ गयी हो तो उस हालत में अगर टाटा के हा थों में कमान होती तो यह बेहतर होत ा।

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