भारत - चीन को युद्व मेें झोंकने व ईरान पर हमला कराने का अमेरिका का खतरनाक शडयंत्र !
भारत - चीन को युद्व मेें झोंकने व ईरान पर हमला कराने का अमेरिका का खतरनाक शडयंत्र !
ंप्यारा उत्तराखण्ड की विषेश रिपोर्ट
मंदी की थप्पेडों से जरजर हो रही अमेरिका व यूरोप की अर्थव्यवस्था को विष्व में तेजी से महाषक्ति बन रहे चीन व भारत कंे षिकंजे में जाने से बचाने के लिए अमेरिका व उसके नाटो संमर्थक देष एक खतरनाक शडयंत्र रच रहे है। इसके तहत एक तरफ तो ईरान पर हमला कर उसे इराक व लीबिया की तरह तबाह ंउन दोनों देषों में अमेरिका विरोधी हुक्मरान को जमीदोज किया जाय। वहीं दूसरी तरफ मंदी की मार से जर जर हो चूकी अमेरिकी व यूरोपिय अर्थव्यवस्था के कारण विष्व पटल पर तेजी से उभर रहे चीन व भारत जैसे महाषक्ति बनने जा रहे देषों से मिली चुनौती को कुंद करने के लिए इन दोनों देषों को आपस में युद्व की भट्टी में झोंक कर इनकी रफतार को तबाह करने का खतरनाक शडयंत्र का तानाबाना बुना जा चूका है। एक तरफ ईरान को चारों तरफ से घेरा जा रहा है तो वही ं दूसरी तरफ चीन व भारत दोनों देषों को एक दूसरे के खिलाफ रणनीति की तहत खड़ा कर उनको युद्व की भट्टी में झोंका जा रहा है। अगर भारत व चीन के हुक्मरानों ने अगर सावधानी से काम नहीं लिया तो दोनों देष ंअमेरिका के चुंगल में फंस कर खुद के साथ विष्व की अमेरिका की चुंगल से मुक्त होने की आषाओं को भी दफन करा देंगे।
सावधान लीबिया को तबाह करने के बाद अब अमेरिका व उसका प्यादा बना नाटो ईरान पर हमला करने का मन बना रहे है। वहंीं वह विष्व में तेजी से उभर रहे देष भारत व चीन को आपसी युद्व की भट्टी में झोंक कर अपना विष्व सम्राट व सम्राज्य को बरकरार रखना चाहता है। इराक के बाद लीबिया में हुए हमले के बाद भी विष्व समुदाय जागृत नहीं हुआ, इसी से उत्साहित हो कर अब अमेरिका परमाणु षक्ति सम्पन्न ईरान पर हमला करके उसे भी तबाह करना चाहता है। अमेरिका के करीबी प्यादे इस्राइल ने भी यह संकेत दिये है । इसे भांपते हुए ईरान ने भी संयुक्त राश्ट्र सहित तमाम विष्व मंचों पर अमेरिका की इस नापाक इरादों से आगाह करा दिया हे। परन्तु संयुक्त राश्ट्र संघ अपने आप में कुछ नहीं अमेरिका का ही प्यादा है। वह वहीं करेगा जो अमेरिका चाहेगा। ंयह खतरनाक संकेत है। चीन, रूस व भारत की नपुंसकता के कारण एक दिन अमेरिका व उसके पूछल देश इग्लेण्ड, कनाड़ा, इटली आदि नाटो गुट के देश मिलकर इसी प्रकार का हमला कर संसार के तमाम देशों को इसी तरह से अपना गुलाम बनायेंगे। अगर अभी अमेरिका के नापाक इरादों पर अंकुष नहीं लगाया तो या तो अमेरिका चीन व भारत को आपस में लडवायेगा या एक एक कर इराक, लीबिया की तरह अगली बारीं भारत , चीन व रूस की भी होगी। अमेरिका की यह जंग न तो आतंकबाद के खिलाफ है व नहीं तानाशाही के खिलाफ, अमेरिका की यह जंग केवल अपने विरोधियों को तबाह कर पूरे विश्व को अपना गुलाम बनाने की है। अमेरिका के विस्तार में उसका सहयोग अमेरिका द्वारा पोषित व संरक्षित अलकायदा ही कर रहा हैं। अगर अमेरिका की जंग अलकायदा या आतंकियों के खिलाफ होती तो वह अपना सबसे पहला हमला अफगानिस्तान, इराक व लीबिया में न करके पाकिस्तान में करता। क्योंकि पाकिस्तान ही आज पूरे विश्व में आतंकी हमलों की फेक्टरी बन गयी है। पाकिस्तान ही पूरे विश्व में आतंकवाद को पोषित व संरक्षित कर रहा है। तानाशाही के खिलाफ भी अमेरिका की जंग नहीं हे। अमेरिका ने हमेशा पाकिस्तान में ही नहीं अपितु अरब देशों में लोकशाही को रौंदने वालों को संरक्षण दिया। यह अमेरिका की जंग अमेरिका द्वारा विश्व को अपना गुलाम बनाने के विश्वव्यापी मुहिम का एक अहम हिस्सा है। अगर विश्व जनमत इसी तरह नपुंसक रह कर अमेरिका के जुल्मों का सर झुका कर मूक समर्थन किया तो वह दिन दूर नहीं जब इरान, उत्तरी कोरिया तो अमेरिका आज नहीं तो कल तो रौंदेगा अपितु वह किसी न किसी बहाने से भारत, चीन व रूस को भी इसी निर्ममता से रौंदेगा। इसका बहाना चाहे भारत में कश्मीर हो सकता है तथा चीन में कुछ ओर तथा रूस में भी चेचन्या सहित कुछ भी हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ की निर्लज्जता व अमेरिकी प्यादापन को तो विश्व जनमत तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के भारी विरोध के बाबजूद इराक पर हमला करके हजारों इराकियों का कत्लेआम करने तथा वहां बलात कब्जा जमाने से ही उजागर हो गया हे। जिस तैवर से संयुक्त राष्ट्र संघ ने कुवैत पर एक दिन के हमले के कारण इराक पर प्रतिबंध लगाया था वह संयुक्त राष्ट्र संघ को इराक पर अमेरिका के निर्मम कब्जा इतने साल बाद भी क्यों नहीं दिखाई दे रहा है। उसकी हैकड़ी अमेरिका के आगे क्यों दम तोड़ गयी। अगर अमेरिका पर अविलम्ब अंकुश नहीं लगाया गया तो अमेरिका एक एक कर सभी अपने संभावित विरोधियों को इराक व लीबिया की तरह तबाह कर देगा। लीबिया व उसके तानाशाह का हस्र भी अमेरिका इराक व उसके प्रमुख सद्दाम की तरह ही करेगा। लीबिया के तानाशाह कर्नल गद्दाफी का खात्मा कराके व लीबिया को तबाह करके अमेरिका ने यह साबित कर दिया कि अमेरिका अपने विरोधियों को किसी तरह इस धरती पर रहने की इजाजत ंअब किसी भी कीमत पर नहीं देना चाहता है । इस हमले से एक बात स्पष्ट हो गयी कि अमेरिकी राष्ट्रपति जार्जबुश के बदलने के बाद राष्ट्रपति बने ओबामा ने भी अमेरिका की उसी विश्व को अपना गुलाम बनाने की अमेरिका की घृर्णित विस्तारवादी नीतियों का अंधानुशरण किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति बने ओबामा की इस कार्यवाही से पूरे विश्व के उन अरबों लोगों के विश्ववास का भी गला घोट दिया हे जो उनको बुश की तरह तानाशाह व विश्व शांति के लिए खतरा नहीं मानते थे। कुल मिला कर अमेरिका में बुश की जगह भले ही शासक का मुखोटा अब ओबामा के रूप में पहन लिया हो परन्तु उसकी अमानवीय गतिविधियों पर कोई परिवर्तन नहीं हुआ। अपितु वह दिन प्रति दिन खतरनाक बनती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र की नपुंसकता व अमेरिका के हाथों की कटपुतली बनने का नतीजा है। लीबिया को इराक बनाने की धृष्ठता अलकायदा व अमेरिकी अनैतिक गठजोड़ को भी बेनकाब करती है
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