राष्ट्र नायक डा. कलाम का नहीं भारत का अपमान किया अमेरिका ने
राष्ट्र नायक डा. कलाम का नहीं भारत का अपमान किया अमेरिका ने
अमेरिका से अधिक गुनाहगार है नपुंसक भारतीय हुक्मरान !
भले ही भारत के पूर्व राष्ट्रपति डा अब्दुल कलाम अमेरिका में सुरक्षा के नाम पर उनके किये गये अपमान को भूल जाने की बात कहें या अमेरिकी प्रशाासन अपनी धृष्ठता पर पर्दा डालने के लिए माफी मांगने का नाटक करे। पर इस घटना से पूरा राष्ट्र इस घटना से बेहद मर्माहित है। इस घटना के लिए भारत को तबाह करके बर्बाद करने के मंसूबों में लगे अमेरिका से अधिक कोई गुनाहगार हैं तो वह नपुंसक हुक्मरान। हुक्मरान चाहे राजग के अटल बिहारी वाजपेयी रहे हों या वर्तमान सप्रंग सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह, दोनों के राज में भारतीय सम्मान को अमेरिका ने जब चाहा तब रौंदा परन्तु क्या मजाल इन अमेरिकी मोह में अंधे बने हुक्मरानों को कभी राष्ट्रीय आत्मसम्मान की रक्षा करने के अपने प्रथम दायित्व का निर्वहन करने तक का भान रहा।
हर घटना के बाद अमेरिकी सरकार महज गहरा खेद जता कर मामले को दफन कर देती है और भारतीय हुक्मरान चाहे सरकारें कांग्रेस की रही हो या भाजपा आदि दलों की किसी को इस मामले में अमेरिका से सीधे दो टूक ढ़ग से बात करने की हिम्मत तक नहीं हुईं। न तो देश में राष्ट्रवाद के स्वाभिमान की राजनीति का दंभ भरने वाले प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने सहयोगी मंत्री के साथ हुए अपमान को राष्ट्र का अपमान माना व नहीं वर्तमान कांग्रेसी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने कार्यकाल में पूर्व राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम से दो बार हुई इस बदसलुकी के बाबजूद अमेरिका के शीर्ष नेतृत्व से सीधे दो टूक बात करने की नैतिक दायित्व का निर्वहन करने का साहस तक किया। इससे एक बात साफ हो गयी कि भारतीय हुकमरानों चाहे सरकार कांग्रेस नेतृत्व वाली सप्रंग की रही हो या भाजपा के नेतृत्व वाली राजग गठबंधन की रही हो यह सरकारें अधिकांश भारतीय राजनैतिक दलों का प्रतिनिधित्व करती है। पर क्या मजाल इन दलों में जरा सा भी देश के स्वाभिमान का भान तक रहा है। अगर इनमें राष्ट्रीय सम्मान का जरा सा भी ख्याल रहता तो ये अमेरिका के राष्ट्रपति से सीधे दो टूक बात करते। भारत में स्थिति अमेरिकी राजदूत को सीधे बुला कर उनको दो टूक विरोध प्रकट करते। परन्तु भारतीय अस्मिता को अपनी महाशक्ति की गुमान में रौंदने वाले अमेरिका की इस अक्षम्य अपराध को मूक बन कर सहने वाले भारतीय हुक्मरान चाहे संघ के स्वयं सेवक रहे अटल बिहारी वाजपेयी रहे हो या गांधी के नाम के सहारे देश में अपना कुशासन से आम लोगों का जीना दूश्वार करने वाले वर्तमान कांग्रेसी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह रहे, किसी को भी इस सवा अरब जनसंख्या वाले विश्व के सबसे बड़े व प्राचीन संस्कृति के ध्वजवाहक भारत के स्वाभिमान का तनिक सा भी भान नहीं रहा। हकीकत तो यह हे कि सत्तालोलुपु ये हुक्मरान को अपनी कुर्सी के अलावा देश का भान रहा ही नहीं। देश की संसद को अमेरिका के संरक्षण में पाकिस्तानी गुर्गों ने कारगिल, संसद ही नहीं मुम्बई में आतंकी हमले करके देश के स्वाभिमान को खुले आम रौंदने का दुसाहस करते रहे, परन्तु क्या मजाल की भारतीय इन नपुंसक हुक्मरानो को अमेरिका व पाक से सीधे दो टूक जवाब देने की हिम्मत तक नहीं रही। इन नपुंसक पदलोलुपु नेताओं को भारत को आतंक के गर्त में धकेल रहे अमेरिका व पाक के नापाक गठजोड को अमेरिका की तर्ज में सीधा आतंकी ठिकानों को तबाह करने की हिम्मत तो रही दूर सीधे इन दोनों को पूरे संसार के सम्मुख कटघरे में खड़ा करने की जुबानी नैतिक हिम्मत तक नहीं रही। खासकर सीआईए व आईएसआई के डब्बल ऐजेण्ड हेडली व राणा के पकडेत्र जाने के बाद जिस प्रकार से अमेरिका व पाकिस्तान का भारत को तबाह करने का खतरनाक आतंकी गठजोड़ बेनकाब होने के बाबजूद भारतीय हुक्मरानों में शर्मनाक नपुंसकता बनी हुई है, उससे अपनी गौरवशाली संस्कृति व वीरता के लिए विश्व में परचम फेहराने वाले सवा अरब भारतीय जनमानस शर्मसार हुई।
गौरतलब है कि 80 वर्षीय भारतीय पूर्व राष्ट्रपति कलाम की 19 सितम्बर को जेएफके हवाई अड्डे पर सुरक्षा अधिकारियों ने दो बार तलाशी ली थी। अधिकारियों ने कलाम के एयर इंडिया के विमान पर चढ़ने से पहले विस्फोटकों की तलाश में उनके जैकेट और जूते तक उतरवा लिये थे। बाद में जब भारत ने विरोध दर्ज कराया तो इस घटना के लिए अमेरिकी अधिकारियों ने कलाम से माफी मांग ली। अप्रैल 2009 में भी अमेरिकी विमानन कंपनी कॉन्टीनेंटल एयरलाइंस के अधिकारियों ने न्यूयाॅर्क के हवाई अड्डे पर भी कलाम की तलाशी ली थी। वहीं दिसम्बर 2010 माह में अमेरिका के जेक्सन इवर्स हवाई अड्डे पर अमेरिका में भारत की तत्कालीन राजदूत मीरा शंकर की केवल इसी लिए तलाशी ली गयी कि उन्होंने भारतीय परिधान साड़ी पहन रखी थी। दिसम्बर 2010 में ही संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के राजदूत हरदीप पुरी को सुरक्षा जांच के नाम पर अपनी पगड़ी उतारने के लिए विवश किया गया। यही नहीं राजग के शासन में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रीत्व में तत्कालीन रक्षामंत्री जार्ज फर्नाडिस के तो सुरक्षा जांच के नाम पर कपड़े तक उतरवा दिये गये।
क्योंकि अमेरिका बार बार ऐसा दुसाहस करके माफी मांगता है और फिर ऐसी पुनर्रावृति करके भारतीय सम्मान को रोंद देता है। अमेरिका व भारतीय हुक्मरानों को एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि डा कलाम न केवल भारत के पूर्व राष्ट्रपति हैं अपितु वे भारत के सबसे सम्मानित राष्ट्र नायक भी है। उनको भारत की जनता अपने प्राणों से अधिक सम्मान करती है। कोई यह कहे कि अमेरिकियों को इसका भान न होगा। यह सरासर झूट है । अमेरिकी प्रशासन को जब भारत के एक सूबे के मुख्यमंत्री मायावती की सेंडल के लिए मुम्बई जहाज भेजने तक की गुप्त घटनाओं की जानकारी तक होती तो उन्हें यह जानकारीनहीं है कि भारतीय डा अब्दुल कलाम को देश के किसी भी वर्तमान या भूत हुक्मरानों से अधिक सम्मान करती है। अमेरिका द्वारा यह महज भूल बता कर अपनी गुस्ताखी पर पर्दा डालने का हथकण्डा ही समझा जायेगा । अमेरिका का यह एक प्रकार का सबसे बड़ा झूट है। हकीकत तो यह हे यह भारतीय राष्ट्रीय नायक का अपमान जानबुझ कर करके भारतीय के सम्मान को रोंदने की अमेरिकी धृर्णित मनोवृति है। इसलिए यह घटना केवल डा कलाम की व्यक्तिगत घटना न हो कर राष्ट्र के अपमान की है। डा कलाम महामानव है वे अपना बडपन दिखाते हुए इस घटना को भूल जाने की बात कहें परन्तु यह सवाल राष्ट्र के सम्मान को रौदने का है। इसको बार बार भारतीय हुक्मरानों द्वारा हलके में लिये जाने के कारण अमेरिका ही नहीं पाक व बंगलादेश जेसे देशों की हिम्मत बड़ गयी हैं । राजग के कार्यकाल में जब बंग्लादेश ने भारतीय सीमा सुरक्षा बल के कई जवानों को जानवरों से अधिक घृर्णित व्यवहार करके मार कर सोंपा तो उस समय के भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तो उफ तक नहीं की। मनमोहन हो या अटल बिहारी वाजपेयी दोनों अमेरिकी मोह में व पदलोलुपता के कारण इतने अंध हो गये की उनको न तो देश दिखाई दिया व नहीं अपने पद का दायित्व। उनको तो एक मात्र अपनी कुर्सी व अमेरिका का नोबल पुरस्कार या पुचकार ही अपने कार्यकाल में दिखाई देती रही। इतिहास ऐसे पदलोलुपुओं को कभी माफ नहीं करेगा। आज इस शर्मनाक स्थिति में देश को जरूरत हे इंदिरा गांधी जेसी हुक्मरानों की। जो अमेरिका सहित विश्व की किसी भी ताकत को भारत की शान पर अंगुली उठाने का मुंहतोड़ जवाब देने की हिम्मत ही नहीं अपितु सही समय पर करारा जवाब भी देती थी। काश भारतीय हुक्मरानों को देश के स्वाभिमान का भान तक रहता। शेष श्रीकृष्ण कृपा।
हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।
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