अपनी बर्बादी पर क्यों आंशु बहाते हैं लोग,
शीशा देख कर भी अपनी शक्ल से नजरें चुराते हैं लोग,
फिर भी अपनी बर्बादी पर क्यों आंशु बहाते हैं लोग,
गुनाहगारों को जो देवता बता कर पूजते रहे उम्र भर,
वो क्यों फिर अपने जख्मों को देख कर आहें भरते हैं,
खुले दिमाग से जरा चेहरा पहचानना सीखो साथी,
यहां हर कदम पर भैडिये भी मशीहा बन कर आये हैं।
Sunder Panktiyan
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