माया ने उप्र विभाजन के दाव से विपक्ष को किया चारों खाने चित

माया ने उप्र विभाजन के दाव से विपक्ष को किया चारों खाने चित/
तेलांगना के साथ उप्र का शीघ्र हो विभाजन, -कांग्रेस व भाजपा बेनकाब/

मायावती ने उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में फिर से प्रदेश की सत्ता में काबिज होने के ‘ उप्र विभाजन के चुनावी दाव के आगे भाजपा, कांग्रेस व सपा सहित पूरा विपक्ष भौचंक्का सा रह गया हे। कांग्रेस व भाजपा की स्थिति सांप छुछंदर की तरह हो गयी है। न तो इसका दिल से समर्थन ही कर पा रही है व नहीं उनके तर्क ही जनता के गले में उतर रहे है। वहीं सपा के लिए भी भले ही स्थिति अन्य दलों से अच्छी है पर उसके लिए भी चुनावी माहौल में पूरे प्रदेश में वह निरापद नहीं रही जिसके लिए वह सपने बुन रही थी। पूरा चुनाव अब मायावती के इसी चुनावी दाव के आगे पीछे सम्पन्न होगा। इसका भले ही सियासी लाभ माया पूरा उठा पाये न उठा पाये परन्तु उसने प्रदेश के आम जनमानस को अंदर से उद्देल्लित कर दिया। कांग्रेस की स्थिति बहुत ही असहज हो गयी है। भाजपा के लिए भी स्थिति उतनी ही असहज हो रखी है। माया ने इस चुनावी दाव से गैद भले ही कांग्रेस के पाले में डाल दी हे। परन्तु कांग्रेस नेतृत्व स्थितियों को समझने व उनका राजनैतिक लाभ उठाने के लिए तत्काल निर्णय लेने की स्थिति में न होने के कारण सकारात्मक परिस्थितियों का ेभी अपने विरोध में करने के लिए कुख्यात रहा। ऐसा नहीं कि मायावती ने यकायक इस दाव को चला। अपने इस दाव को मायावती ने कई बार सरेआम प्रकट भी कर दिया था । परन्तु क्या मजाल है कांग्रेस आला नेतृत्व इस दिशा में उचित कदम उठाने के लिए कोई जमीनी तैयारी तक की हो। भले ही मायावती का शासन भ्रष्टाचार व कुशासन के नाम पर जनता के लिए मुलायम सिंह के राज की तरह ही दुस्वप्न की तरह दुखदाई रहा हो परन्तु इन परिस्थितियों व मुद्दों से जनता का ध्यान बंटाने के लिए ही माया ने यह चुनावी दाव ऐसे समय पर चला कि इसका विरोध करने वालों के दलों में भी इस मुद्दे पर उनके इन क्षेत्रों के नेता जनता के बीच छाती ठोक कर विरोध करने का साहस तक नहीं जुटा पा रहे हो। कांग्रेस जो प्रारम्भ में ही इस विभाजन के पक्षधर रही। परन्तु अब तक उसने इस दिशा में कोई ठोस कदम तक नहीं उठाये। कांग्रेस आला नेतृत्व के अनिर्णय की शर्मनाक स्थिति के कारण आज न तो वह मनमोहन सिंह की नक्कारा सरकार पर ही अंकुश रख पा रही है व नहीं जनहित में व संगठन के हित में कोई राजनैतिक ठोस कदम ही उठा पा रही है। कांग्रेस को चाहिए था कि वह अविलम्ब तेलांगना राज्य का गठन करने के साथ उप्र के विभाजन को मूर्त रूप दे कर हारी हुई बाजी मार कर जनभावनाओं का सम्मान करना सीखना चाहिए। राजनेताओं को एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि देश का शासन तंत्र उनके हितों की पूर्ति या उनकी अयाशी के लिए नहीं अपितु जनहितों का साकार करने के लिए है। जिस प्रकार ने मायावती ने अपने कुशासन व भ्रष्टाचार की तरफ प्रदेश की जनता का ध्यान हटाने के लिए उप्र के विभाजन का चुनावी दाव खेला, उसका जवाब राजनैतिक कुशलता से देना चाहिए न की नकारात्मक राजनीति करके। तेलांगना व उप्र के इन चार राज्यों का गठन अविलम्ब होना चाहिए।
जिस प्रकार से मायावती ने 21 नवम्बर को उप्र की विधानसभा में उत्तर प्रदेश विधान मण्डल के दोनों सदनों में विपक्ष के भारी शोरशराबे और हंगामे के बीच सरकार ने न केवल वर्ष 2012-2013 के लिए एक लाख 91 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा के अंतरिम बजट व 70733 करोड़ रूपये से ज्यादा के लेखानुदान विधेयक को पारित करा लिया बल्कि प्रदेश के चार भागों में बांटे जाने के महत्पूर्ण प्रस्ताव को भी सदन की मंजूरी दिलाने में कामयाबी पा ली। यह उनके राजनैतिक कौशल का ही एक जलवा था। बिखराव के चलते एक बार फिर विधानसभा में विपक्ष की रणनीति जमींदोज हो गयी और मात्र 16 मिनट चली कार्यवाही में विधायी कायरे को अंजाम दे सदन की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गयी। इतना ही नहीं मात्र एक दिन का सत्र इतिहास में भी दर्ज हो गया । दो दिवसीय सत्र का सोमवार को पहला दिन था जिसकी शुरुआत भारी शोर-शराबे, हंगामे और सरकार विरोधी नारों की गूंज से हुई। वन्देमातरम गान के तुरंत बाद विपक्षी सदस्यों ने पहले अपने स्थानों, फिर सपा और भाजपा के सदस्यों ने सदन के फर्श पर आकर अल्पमत की सरकार को बर्खास्त करने की पुरजोर तरीके से मांग उठायी। अपनी घोषित रणनीति के तहत मुख्य विरोधी दल समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी सदन में सरकार के खिलाफ अविास प्रस्ताव लाना चाहती थी पर विधानसभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर ने इसकी मंजूरी नहीं दी। सपा और भाजपा के सदस्य पीठ से अनुमति न मिलने पर आक्रोशित हो उठे और पीठ की ओर बढ़ने लगे पर गार्ड के सख्त सुरक्षा घेरे को वे लांघ नहीं पाये। कुछ सदस्यों ने मेजों पर चढ़ कर पोस्टर भी लहराये जिन पर सरकार विरोधी नारे और अल्पमत की सरकार को बर्खास्त करने की मांग लिखी थी। हंगामे के बीच विधानसभा अध्यक्ष ने सदन की कार्यवाही पूरे प्रश्नकाल के लिए स्थगित कर दी। तकरीबन एक घंटा 16 मिनट के स्थगन के बाद सदन की कार्यवाही दोबारा शुरू हुई तो विपक्ष के सदस्य फिर अपने स्थानों पर खड़े हो हंगामा करने लगे। विधानसभा अध्यक्ष ने कार्यसूची के अनुरूप कार्यवाही चलने देने की अपील करते हुए सदस्यों से शांत होने की अपील की पर जब शोर शराबा और हंगामा कम नहीं हुआ तो उन्होंने संसदीय कार्य मंत्री लालजी वर्मा से तय समय पर अनुपूरक बजट प्रस्तुत करने के निर्देश दिये। हंगामे के बीच वित्तीय वर्ष 2012-2013 का एक लाख 91 हजार 825 करोड़ 70,733 करोड़ रूपये अनुपूरक बजट व लेखानुदान पारित करा लिये गये। इस बीच स्थगन के बाद दोबारा कार्यवाही शुरू हुई तो सदन में मुख्यमंत्री सुश्री मायावती भी मौजूद थीं जिन्होंने अनुपूरक बजट और लेखानुदान के पारित होने के तुरंत बाद राज्य को चार भागों बांटने संबंधी प्रस्ताव अचानक सदन के पटल पर रख दिया जिसे ध्वनिमत से पारित कर दिया गया।
छोटे राज्यों का गठन देश के हित में राजनैतिक दलों को अपने पूर्वाग्रहों व छुद्र स्वार्थो से उपर उठ कर देश के उन विकास से वंचित क्षेत्रों की तरफ भी अपनी राजनैतिक जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए। उत्तराखण्ड राज्य गठन का एक सिपाई होने के कारण मुझे इन मामले में दो टूक कहने का मन करता है कि राजनेताओं ने अभी तक देश के समग्र विकास के लिए कभी भी ईमानदारी से कार्य नहीं किया। इसके लिए अब समय है कि देश में नये राज्यों का ईमानदारी से गठन किया जाये। देश के वंचित व उपेक्षित क्षेत्रों को भी विकास का उतना ही हक है जिनता अमेटी, इटावा, दिल्ली सहित देश के प्रतिष्ठित क्षेत्रों को है। विकास का यह असंतुलन जहां देश में असंतोष को हवा देता है वहीं लोकशाही पर प्रश्न चिन्ह भी लगाता है। देश की तमाम राजनैतिक दलों को दलगत राजनीति से उपर उठ कर देश के समग्र विकास के लिए अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करना चाहिए। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत् । श्री कृष्णाय् नमों

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