भारतीय भाषाओं के पुरोधा व भारतीय संस्कृति के अमर ध्वजवाहक राजकरण सिंह का निधन


भारतीय भाषाओं के पुरोधा व भारतीय संस्कृति के अमर ध्वजवाहक राजकरण सिंह का निधन

 भारतीय भाषा आंदोलन के पुरोधा व भारतीय संस्कृति के अमर ध्वजवाहक राजकरणसिंह  नहीं रहे । गांधी, लोहिया के बाद भारतीय भाषाओं के लिए पूरे देश की मृतप्रायः आत्मा को  अपने  दो दशक लम्बे आंदोलन से झकझोरने वाले भारतीय भाषा आंदोलन के ंमहारथी  राजकरण सिंह का 30 अक्टूबर 2011की सुबह को हृदयगति रूकने से अपने गांव बिष्णुपुरा, बाराबंकी जनपद उत्तर
प्रदेश में निधन हो गया। उनके छोटे  भाई नरसिंह के  अनुसार  उनका अंतिम संस्कार  उनके पैतृक श्मसान घाट में 31 अक्टूबर को सम्पन्न हुआ। उनकी चिता को मुखाग्नि उनके भतीजे ने दी। भारतीय भाषाओं व भारतीय संस्कृति के अमर ध्वजवाहक 57 वर्षीय राजकरण सिंह, भारतीय भाषाओं को संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं में अग्रेजी अनिवार्यता के बंधन से मुक्त करने के लिए देश की राजधानी दिल्ली में अपने साथी पुष्पेन्द्रसिंह चैहान के साथ ‘अखिल  भाारतीय  भाषा संरक्षण संगठन’ के बेनरतले, संघ लोक सेवा आयोग ‘यूपीएससी’ के समक्ष 16 ंसाल लम्बे  चले आंदोलन का सह नायक रहे। उनके सह नेतृत्व में चले इस विश्व विख्यात निरंतर धरना प्रदर्शन  ं आंदोलन ने पूरे देश कंे ंप्रबुद्व जनमानस को लोहिया के  आंदोलन के बाद  फिर उद्देलित कर दिया था। ंइसी ंमुद्दे पर 29 दिन लम्बी आमरण अनशन की गूंज संसद से लेकर भारतीय भाषा समर्थकों को  झकझोर कर रख दिया था। उनके इसी  आंदोलन की विराटता का पता इसी बात से साफ  झलकता है कि देश के पूर्व राष्ट्रपति  ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल, चतुरानन्दमिश्र, मुलायमसिंह यादव, शरद यादवं, रामविलास पासवान, सोमपाल शास्त्री, राजनाथसिंह सहित चार दर्जन से अधिक सांसदों ने कई समय यहां के आंदोलन में ंसडक में भाग लिया था।  इस आंदोलन में राजेन्द्र प्रसाद माथुर,  प्रभात जोशी, विद्यानिवास मिश्र, विष्ण ुनागर , मधुसुदन आनन्द, ंराजकिशोर, ंअच्युतानन्द मिश्र, संजय अभिज्ञान, डा गोविन्द सिंह, विनोद  अग्निहोत्री, ओमप्रकाश तपस व हबीब अख्तर सहित देश  के  अग्रणी  ंराष्ट्रीय समाचार पत्रों के वरिष्ठ  सम्पादकों, पत्रकारों, साहित्यकारो , समाजसेवियों, गांधीवादियों ने ंयूपीएससी के आगे सडक पर  लगे  धरने में भाग लेकर देश की सरकार व ंजनमानस को झकझोर कर रख दिया था। भाषा आंदोलन के प्रमुख सहयोगियों में  पुष्पेन्द्र चैहान, डा.श्यामरूद्र पाठक, डा.मुनिश्वर, ंविनोद गौतम, ओम प्रकाश हाथपसारिया, ंहरीश मेहरा,  अजय मलिक, राजेेन्द्र कुमार राजस्थानी, सतवीर ं,चै के पी सिंह, आनन्द स्वरूप गोयल, मास्टर जी,  रविन्द्र सिंह धामी, ंविजय गुप्त देवसिंह रावत सहित सेकड़ों ंप्रमुख थे। उनके व उनके साथियों के ंइस प्रखर आंदोलन से संघ लोकसेवा आयोग की व अन्य कई सरकारी सेवाओं की  परीक्षा भारतीय भाषा के माध्यम से प्रारम्भ हुई।  उनके निधन की ंसूचना मिलते ही दिल्ली में उनके सहयोगियों व मित्रों में शोक की लहर छा गयी। उनके निधन पर संसदीय ंराजभाषा समिति के सदस्य सांसद प्रदीप टम्टा,  भारतीय विदेश सेवा के सेवानिवृत उच्चाधिकारी महेश चन्द्रा, यूएनआई  केे पूर्व समाचार सम्पादक बनारसी सिंह,  भाषा आंदोलन के साथी ंपुष्पेन्द्रंसिंह चैहान, सम्पादक देवसिंह रावत, पत्रकार रविन्द्रं सिंह धामी, ंओमप्रकाश हाथपसारिया,  विनोद गोतम, चैधरी केपीसिंह, पत्रकार हबीब अख्त्तर, आर्य समाज सीताराम बाजार के समस्त पदाधिकारी,  जगदीश भट्ट, अनिल पंत, सुनीता चोधरी, कर्मचारी नेता हरिराम तिवारी व कांग्रेसी नेता ंसोवन सिंह रावत व गौतम,  ंचाटर्ड एकाउन्टेड श्री चैहान, समाजसेवी राठोर, सहित अनैक गणमान्य लोगों ने गहरा शोक प्रकट  करते हुए अपनी भावभीनी श्रद्वांजलि दी।  भारतीय भाषाओं को उनका सम्मान दिलाने के लिए वह अंतिम सांसों तक निरंतर संघर्षरत रहे, वे  भारतीय  भाषाओं व भारतीयता के इस समर्पित पुरोधा ने भारतमाता की सेवा के लिए विवाह तक ंनही किया था। ंउनकी राष्ट्रवादी विचारोें व भारतीय भाषाओं के प्रति अनन्य सेवा साधना को देखते हुए ंआर्य सम्माज उनका हृदय से सम्मान करता रहा और ंआर्य समाज के आग्रह पर  ही वे कई  वर्षो से दिल्ली के चावडी बाजार स्थित सीताराम बाजार के आर्य समाज मंदिर में निवास कर रहे थे। वे दीपावली के त्यौहार में सम्मलित होने के लिए चंद दिन पहले ही  अपने पैतृक बाराबंकी गये। वे भ्रष्टाचार के विरूद्व आंदोलन में ंएक मूक समर्पित सिपाई रहे। यही नहीं प्यारा  उत्तराखण्ड के सम्पादक देव सिंह रावत के अनन्य मित्र होने के कारण वे उत्तराखण्ड राज्य ंगठन जनांदोलन से लेकर 2 अक्टूबर 2 011 तक मनाये जाने गये काला दिवस पर  भी सक्रिय भागेदारी निभाते रहे।ं उनके निधन को भारतीयता के लिए गहरा  आधात बताते हुए उनके करीबी मित्र देवसिंह रावत ने कहा कि 29 अक्टूबर को सायं 4 बजे के करीब भी उनसे दूरभाष पर बात हुई वे उस समय पूरे स्वस्थ व किसी काम से लखनऊं जाने की  बात कह रहे थे,, श्री  रावत के अनुसार उनका 5-6 नवम्बर को दिल्ली सीता राम बाजार आर्य समाज के किसी पदाधिकारी के बेटे की शादी में सम्मलित होने के लिए आने की बात कह रहे थे। उनके अनन्य मित्रों में  देश के अग्रणी साहित्यकार डा श्याम सिंह शशि, देश के पूर्व चुनाव मुख्य चुनाव आयुक्त  ,पंडारा रोड स्थित गुलाटी रेस्टोरेंट के स्वामी प्रवीण गुलाटी  व यूपीएससी के सम्मुख प्रभु चाट वाला प्रमुख है।  शोकाकुल मित्र उनकेे परिजनों को राजकरण  सिंह जी के मोबाइल नम्बर 9968362011 पर उनके  ंछोटे भाई नरसिंह व अन्य परिजनों से ंसम्पर्क  कर सकते है। दिवंगत श्रद्वेय राजकरण जी की  तेरहवीं 12 नवम्बर को उनके गांव विष्णुपुरा में ंहोगी।

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