बाबा रामदेव, सात जन्म में गदाफी सा शासन नहीं दे सकते विश्व के तमाम शासक
-बाबा रामदेव सात जन्म में गदाफी सा शासन नहीं दे सकते विश्व के तमाम शासक
-भागे नहीं राष्ट्र रक्षा में शहीद हुए गदाफी
बाबा रामदेव द्वारा भारतीय नेताओं को गद्दाफी कहना यह उनकी अज्ञानता का परिचय है भारतीय नेता कभी गद्दाफी की तरह राष्ट्रभक्त व जनता के हित के लिए अपना जीवन बलिदान करने वाले नहीं हुए। गदाफी ने जनता को जो मजबूत व विलक्षण शासन दिया उसकी कल्पना भी भारतीय लोकशाही में नहीं की जा सकती है। केवल उनका कसूर यह था कि वह अमेरिका व उनके पिट्टूओं को लीबिया के संसाधनों पर डाका डालने की इजाजत अपने 41 साल के शासन में नहीं दी और नहीं उन्होंने कट्टरपंथी मुस्लिमों को लीबिया में अपने जीते जी काबिज होने दिया। उनका जैसा शासन व बलिदान देने की कल्पना भारतीय राजनेता 7 जन्म में नहीं कर सकते। बाबा रामदेव को एक बात समझ लेनी चाहिए कि अमेरिका के 14 नाटो देशों व अलकायदा के लोकशाही वाहिनी के हमलों के आगे आत्मसम्पर्ण करने के बजाय अपने देश की प्रभुसत्ता की रक्षा के लिए वे भागे या आत्म समर्पण नहीं किया अपितु बीर की तरह शहीद हुए। गदाफी का कसूर केवल यही था कि उसने लोकशाही को मजबूत नहीं किया। परन्तु देश में उसका शासन संसार भर के तमाम शासकों से कई गुना अधिक जनहित में 21 था, 19 नहीं। लीबिया पर एक पाई का विदेशी कर्जा नहीं था, जबकि अमेरिका व भारत सहित विश्व के अधिकांश देश विदेशी कर्ज में डूबे हुए है। लीबिया में सभी नागरिकों को शिक्षा व चिकित्सा ही नहीं बिजली तक निशुल्क थी। प्रत्येक नागरिक के जन्म लेने व शादी पर सरकार द्वारा लाखों रूपये का तौफा दिया जाता था। देश के तेल भण्डार के विक्रय पर सभी नागरिकों के खाते में एकांश जमा होता था। ऐसा विलक्षण शासन विश्व में अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता। ऐसे शासक पर हल्की टिप्पणी करके बाबा रामदेव ने ऐसे राष्ट्रभक्त जनहित में समर्पित शासक को अपमान करके अपनी अज्ञानता का परिचय दे कर अपनी जडों को कमजोर किया। हो सकता है कि अमेरिकी ऐजेन्टों व अलकादया के आतंकियों के मंसूबों को जमीदोज करने की आड में गदाफी शासन में आम लोगों का भी दमन हो गया हो परन्तु गदाफी का शासन विश्व में विलक्षण था।
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