भारतीय भाषाओं के पुरोधा स्व. राजकरण सिंह के नाम पर विद्यालय, रोड़ व पुस्तकालय:


भारतीय भाषाओं के पुरोधा स्व. राजकरण सिंह के नाम पर  विद्यालय, रोड़ व पुस्तकालय
दिवंगत राजकरण सिंह की तेरहवी पर उनके गांव में पंहुचेे भाषा आंदोलनकारी/
भारतीय भाषाओ के पुरोधा व भारतीय संस्कृति के ध्वज वाहक स्व. राजकरण सिंह की अद्वितीय राष्ट्र सेवा का सम्मान करते हुए उत्तर प्रदेश की बसपा सरकार उनके नाम पर उनके गृह जनपद बाराबंकी में एक विद्यालय व मोटर मार्ग का नामांकरण करेगी तथा जनजागरूकता के प्रति उनकी भावना को नमन् करने के लिए एक पुस्तकालय की स्थापना करेगी। यह घोषणा 12 नवम्बर 2011 को राजकरण सिंह की तेरहवीं में उनके गांव कोटवांकला(विष्णुपुरा-बाराबंकी) उ.प्र में बसपा सरकार में दर्जाधारी राज्यमंत्री   व भाषा आंदोलन के प्रखर आंदोलनकारी रहे यशवंत निकोसे ने शोकाकुल परिजन व मित्रों की उपस्थिति में अपनी श्रद्वांजलि अर्पित करते हुए कही। 10 फरवरी 1954 को ठाकुर रघुराज सिंह व श्रीमती राम अधारी सिंह के जेष्ठ पुत्र के रूप में जन्म दिवंगत राजकरण सिंह की तेरहवीं में उनकी पावन जन्म भूमि की माटी को सादर नमन् करने के लिए भारतीय भाषा आंदोलन के उनके साथी पुरोधा पुष्पेन्द्र चैहान, विनोद गोतम, ओम प्रकाश हाथपसारिया व देवसिंह रावत दिल्ली के विशेष रूप से पंहुचे थे। भारतीय भाषाओं के सम्मान के लिए समर्पित पुरोधा दिवंगत राजकरण सिंह के शोकाकुल चारों भाई जयकरण सिंह, रामसिंह, जयसिंह व नरसिंह से मिल कर उनको ढाढ़स बंधाई। इनके अलावा दिवंगत राजकरण सिंह की विवाहित बहिने  बड़ी बहन श्रीमती कृष्ण कांति सिंह तथा छोटी बहिने श्रीमती मुन्नी सिह व श्रीमती पुष्पा सिंह भी अपने बडे भाई के आकास्मिक निधन से गमगीन थी। वहां पर पंहुच कर भाषा आंदोलनकारियों ने राजकरण सिंह के सबसे छोटे भाई नरसिंह व उनके परिजनों को ढांढस बधाया,। गौरतलब हे कि राजकरण सिंह अपनी माता जी के स्वर्गवास के बाद भी अपने छोटे भाई नरसिंह के साथ ही जब भी गांव में आते थे रहते थे। गांव में पंहुच कर अपने साथी स्व. राजकरण सिंह को श्रद्वाजलि अर्पित करने के लिए भाषा आंदोलनकारी, उनके आम के बाग में लगाई गयी चिता पर उनके पूर्व प्रधान भाई रामसिंह के साथ गये। वहां पर उनके छोटे अनुज रामसिंह ने बताया कि स्व. राजकरण सिंह की चिता उनकी माता पिता की चिताओं पर बनी समाधी के साथ ही लगाई गयी।
गौरतलब है कि दिवंगत राजकरण सिंह का निधन 30 अक्टूबर 2011 को अपने गांव में ही हुआ। लोहिया के बाद भारतीय भाषाओं के लिए संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं में भारतीय भाषाओं को सम्मलित करने व अंग्रेजी भाषा के बंधन से मुक्ति के लिए ऐतिहासिक आंदोलन चलाने वाले ‘भारतीय भाषा संरक्षण संगठन के प्रमुख आंदोलनकारी नेता रहे। इस आंदोलन में पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व विश्व नाथ प्रतापसिंह, व पूर्व उप प्रधानमंत्री चैधरी देवीलाल व लालकृष्ण आडवाणी चतुरानन्दमिश्र, मुलायमसिंह यादव, शरद यादवं, रामविलास पासवान, सोमपाल शास्त्री, राजनाथसिंह सहित चार दर्जन से अधिक सांसदों ने कई समय यहां के आंदोलन में ंसडक में भाग लिया था।  इस आंदोलन में राजेन्द्र प्रसाद माथुर,  प्रभात जोशी, विद्यानिवास मिश्र, विष्ण ुनागर , मधुसुदन आनन्द, ंराजकिशोर, ंअच्युतानन्द मिश्र, राम बहादूर राय, संजय अभिज्ञान, डा गोविन्द सिंह, विनोद  अग्निहोत्री, ओमप्रकाश तपस व हबीब अख्तर सहित देश  के  अग्रणी  ंराष्ट्रीय समाचार पत्रों के वरिष्ठ  सम्पादकों, पत्रकारों, साहित्यकारो , समाजसेवियों, गांधीवादियों ने ंयूपीएससी के आगे सडक पर  लगे  धरने में भाग लेकर देश की सरकार व ंजनमानस को झकझोर कर रख दिया था। भाषा आंदोलन के प्रमुख सहयोगियों में  पुष्पेन्द्र चैहान, डा. श्यामरूद्र पाठक, डा.मुनिश्वर,  यशवंत निकोसे,ंविनोद गौतम, ओम प्रकाश हाथपसारिया, ंहरीश मेहरा,  अजय मलिक, राजेेन्द्र कुमार राजस्थानी, सतवीर ं,चै के पी सिंह, आनन्द स्वरूप गोयल, मास्टर जी,  रविन्द्र सिंह धामी, ंविजय गुप्त, देवसिंह रावत सहित सेकड़ों ंप्रमुख थे। उनके व उनके साथियों के ंइस प्रखर आंदोलन से संघ लोकसेवा आयोग की व अन्य कई सरकारी सेवाओं की  परीक्षा भारतीय भाषा के माध्यम से प्रारम्भ हुई।  उनके निधन की ंसूचना मिलते ही दिल्ली में उनके सहयोगियों व मित्रों में शोक की लहर छा गयी। उनके निधन पर संसदीय ंराजभाषा समिति के सदस्य सांसद प्रदीप टम्टा,  भारतीय विदेश सेवा के सेवानिवृत उच्चाधिकारी महेश चन्द्रा, यूएनआई  केे पूर्व समाचार सम्पादक बनारसी सिंह,  भाषा आंदोलन के साथी ंपुष्पेन्द्रंसिंह चैहान, सम्पादक देवसिंह रावत, पत्रकार रविन्द्रं सिंह धामी, ंओमप्रकाश हाथपसारिया,  विनोद गोतम, चैधरी केपीसिंह, पत्रकार हबीब अख्त्तर, आर्य समाज सीताराम बाजार के समस्त पदाधिकारी,  जगदीश भट्ट, अनिल पंत, सुनीता चोधरी, कर्मचारी नेता हरिराम तिवारी व कांग्रेसी नेता ंसोवन सिंह रावत व ताराचंद गौतम,  ंचाटर्ड एकाउन्टेड श्री चैहान, समाजसेवी राठोर, सहित अनैक गणमान्य लोगों ने गहरा शोक प्रकट  करते हुए अपनी भावभीनी श्रद्वांजलि दी।  भारतीय भाषाओं को उनका सम्मान दिलाने के लिए वह अंतिम सांसों तक निरंतर संघर्षरत रहे, वे  भारतीय  भाषाओं व भारतीयता के इस समर्पित पुरोधा ने भारतमाता की सेवा के लिए विवाह तक ंनही किया था। ंउनकी राष्ट्रवादी विचारोें व भारतीय भाषाओं के प्रति अनन्य सेवा साधना को देखते हुए ंआर्य सम्माज उनका हृदय से सम्मान करता रहा और ंआर्य समाज के आग्रह पर  ही वे कई  वर्षो से दिल्ली के चावडी बाजार स्थित सीताराम बाजार के आर्य समाज मंदिर में निवास कर रहे थे। वे दीपावली के त्यौहार में सम्मलित होने के लिए चंद दिन पहले ही  अपने पैतृक बाराबंकी गये। वे भ्रष्टाचार के विरूद्व आंदोलन में ंएक मूक समर्पित सिपाई रहे। यही नहीं प्यारा  उत्तराखण्ड के सम्पादक देव सिंह रावत के अनन्य मित्र होने के कारण वे उत्तराखण्ड राज्य ंगठन जनांदोलन से लेकर 2 अक्टूबर 2 011 तक मनाये जाने गये काला दिवस पर सहित तमाम सामाजिक आंदोलनों में भी सक्रिय भागेदारी निभाते रहे।

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