तीन पीड़ियों का एक अधूरा सपना


तीन पीड़ियों का  एक अधूरा सपना
सपना बाप का भी वही
सपना हो दादा का भी वही
एक छोटा सा घर हो अपना
सपना पोता का भी है वही ।
एक पक्का घर बनाने की
आश में मिट जाती है
गरीबों की कई पीडियां
पर न ही वह घर ही बनता
नहीं रहते है वे आदमी ।
पर लुटेरों के महलों को
रोशन करने के लिए
तबाह की जाती है
गरीबों की बस्तियां
पर इन गरीबों का
एक पक्का घर बनाने का
पीडियों का सपना अधूरा।।
सरकार कोई भी बने यहां
बनती सदा गरीबों के मतो से
पर वह गरीबों को मिटा कर
रोशन करती है अमीरों की दुनिया।।
देवसिंह रावत (7दिसम्बर बुद्ववार 2011 रात के 12.27)

Comments

  1. Hello Sir,

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