राहुल व सोनिया की आशाओं पर उत्तराखण्ड में बज्रपात करने को उतारू हैं कांग्रेसी दिग्गज


राहुल व सोनिया की आशाओं पर उत्तराखण्ड में बज्रपात करने को उतारू हैं कांग्रेसी दिग्गज/
उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव से पहले के नजारे/
दिल्ली में कांग्रेसी मठाधीशों के कारण उत्तराखण्ड विधानसभा का जीत सकने वाला चुनाव कहीं कांग्रेस गत विधानसभा चुनाव की तरह हाथ से चुकाना न पडे। कांग्रेसी मठाधीशों की गतिविधियों को देख कर ऐसा ही लग रहा है कि वे सब भाजपा के भ्रष्टाचारी कुशासन से मुक्ति पाने के लिए लालायित जनता व कांग्रेस को सत्तासीन करने के लिए दिन रात पसीना बहाने वाले कांग्रेसी आला नेता सोनिया-राहुल गांधी की आशाओं में बज्रपात करने वाले है। अगर कांग्रेस नेतृत्व ने समय पर ध्यान नहीं दिया तो कांग्रेस का बंठाधार उनके नाम पर मठाधीश बने नेता करने वाले है।
टिकटार्थियों की जमघट दिल्ली में, भाजपा में ना के बराबर व कांग्रेस में धमाल ही मचा हुआ हे। भाजपा में कम का एक कारण यह भी है कि भाजपा में टिकटों के वितरण का जिम्मा मुख्यमंत्री खंडूडी व कोश्यारी दोनों के पास है। दोनों आये दिन उत्तराखण्ड में ही यत्र तत्र दिखाई दे रहे हैं। वहीं कांग्रेस में टिकटों का बंटवारा केन्द्रीय नेतृत्व के जिम्मे होने के कारण कांग्रेसियों का भारी जमवाड़ा यहां है। कांग्रेस की टिकटार्थियों को एक नहीं दसों नेताओं के दर पर सर झुकाना पड़ रहा है। इसमें ऐसे नेता मुकुल वासनिक को भी मठाधीश बनाया गया हैं  जिनको बिहार में  जमीनी कांग्रेसियों की उपेक्षा करने व अपने प्यादों को टिकट नवाजने के अपने कारनामों से बिहार में ही नहीं दिल्ली में हुए कांग्रेसी महा अधिवेशन में बिहार से आये कांग्रेसियों के कोप का भाजन बनना पडा। दूसरे ऐसे ही एक हवाई नेता आनन्द शर्मा, जिनको दिल्ली दरवार की कृपा से भले ही मलाईदार मंत्रालय मिला हुआ हो परन्तु जनता का दिल कैसे जीत कर चुनाव जीता जाता है इस मामले में वे फिसड्डी रहे, उनको भी उत्तराखण्ड का मठाधीश बनाया गया। प्रभारी भले ही चैधरी बीरेन्द्र बनाये गये परन्तु उनकी सुनता ही कौन, वेसे भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के गठन से साफ हो गया कि उनकी प्राथमिकता भी धरातली नेताओं से अधिक कुछ और है।
टिकटार्थी ऐसे भी हैं जो एक नहीं 7 जगह से जिनका नाम पैनल में आया हुआ है। तो किसी का 4 जगह हैं। कांग्रेसी दिग्गज ऐसे नेता है जो अपनी विधायकी सीट से लडने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहे है। पहाड़ मे ंइनकी अब तक की सीट से ये चुनाव में उतरने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। अब मैदानों की तरफ रूख कर रहे है। इन पलायन वादी नेताओं ने नेता प्रतिपक्ष डा हरक सिंह रावत भी सम्मलित है। वहीं यही नहीं प्रदेश में कांग्रेसी शासन में भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात लोग भी टिकट की लाइनों में बेसर्मी से खडे है। यही नहीं जिन लोगों का क्षेत्र व प्रदेश में उत्तराखण्ड विरोधी चेहरा रहा उनकी भी कांग्रेस की टिकटों के लिए दावेदारी मजबूती से कांग्रेसी मठाधीश ही कर रहे है। सबसे चोकाने वाला नाम तिवारी के मुख्यमंत्री काल में सुपर मुख्यमंत्री के नाम से कार्यरत रहे उनके सहायक आरेन्द्र शर्मा का नाम की पैरवी मजबूती देहरादून से मजबूती से करते हुए देख कर प्रदेश के बुद्विजीवियों व समर्पित कांग्रेस कार्यकत्र्ता कांग्रेसी दिग्गजों की मति पर शर्मसार हैं। तिवारी समर्थकों का मानना है कि विकास पुरूष तिवारी के शर्मनाक पतन के लिए काफी हद तक आरेन्द्र शर्मा का प्रत्यक्ष हाथ है। आरेन्द्र शर्मा के टिकट दिलाने वाले नेताओं के नाम जनता के सामने सार्वजनिक करने के लिए कई कांग्रेस कार्यकत्र्ता कमर कसे हुए है।
वहीं प्रदेश में कांग्रेस के बडे दिग्गज जिस प्रकार से साफ छवि के जनप्रिय ईमानदार लोगों को कांग्रेस का प्रत्याशी बनाने के बजाय अपने परिजनों को टिकट देने के लिए लालायित है। इनमें जहां कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य, हरीश रावत व महाराज सहित अनैक नेताओं के परिजनों के भी चुनावी दंगल में कूदने की आशंका से संभावित विधानसभा क्षेत्र के अन्य दावेदार आशंकित है।
लोग हैरान है कि जिस प्रकार से प्रदेश के नेता जनहितों में समर्पित निष्टावान कांग्रेसियों व सदचरित्र लोगों को प्रत्याशी बनाने के बजाय अपने परिजनों को स्थापित करने के लिए लालायित हैं उससे प्रदेश की स्थिति दयनीय हो गयी है। प्रदेश के हितों के लिए संघर्ष करने वाला कोई कद्दावर नेता नहीं रह गया जो प्रदेश में व्याप्त भाजपा के कुशासन से मुक्ति व जनहितों को साकार करने के लिए आगे आ कर काम करे। प्रदेश के बडे नेताओं पर परिवारवाद का आरोप हवा में नहीं लग रहा है। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष यशपाल आर्य अपने बेटे को स्थापित करने के लिए लोकसभा चुनाव से अब तक प्रयत्न रत है। कांग्रेस के दिग्गज  सतपाल महाराज पहले ही धर्मपत्नी अमृता रावत को पहले ही विधायक बना चूके है। चर्चा यह है कि अब वे अपने बेटे को भी राजनीति में स्थापित करने के लिए आगामी विधानसभा चुनाव में विधायक की टिकट के लिए मन बना रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ प्रदेश के दिग्गज नेता हरीश रावत जो कबीना मंत्री व भावी मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार सतपाल महाराज की तरह है, उन पर भी परिवारवाद का आरोप लगता। उन्होने अपनी धर्मपत्नी रेणु रावत को अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का प्रत्याशी के रूप में पहले ही उतार चूके हैं। वहीं उनका मंझोला बेटा आनन्द रावत भी वर्तमान में प्रदेश युवक कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। वर्तमान विधानसभा चुनाव में प्रदेश में यह चर्चा जौरों पर है कि हरीश रावत अपने प्रदेश युवक कांग्रेस के अध्यक्ष बेटे के साथ ही अपने बेटी को भी चुनाव मैदान में उतारने का मन बना चूके है। टिहरी के सांसद विजय बहुगुणा भले ही प्रदेश में अपने किसी परिजन के लिए विधानसभा का प्रत्याशी बनाने का मन न बना रहे हों परन्तु यह जग जाहिर है कि उनकी छोटी बहन रीता बहुगुणा जोशी को उत्तर प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्षा केवल देश के कद्दावर नेताओं में रहे स्व. हेमवती नन्दन बहुगुणा की सुपुत्री होने के कारण ही बनाया गया। वहीं स्व. हेमवती नन्दन बहुगुणा के छोटे बेटे शेखर बहुगुणा को भी रीता बहुगुणा की तरह ही उप्र की विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बनाया हुआ है। इस प्रकार बहुगुणा परिवार से दो सदस्यों को कांग्रेस ने इन 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में अपना प्रत्याशी बनाया तीसरे विजय बहुगुणा वर्तमान में टिहरी लोकसभा से सांसद हैं ही।
इसी तरह अनैक प्रत्याशी ऐसे भी है जो अपनी दिल्ली पंहुच के दम पर टिकट के दावेदार हैं जिनको जनता ने उत्तराखण्ड द्रोही, जिनको पुलिस ने उनके कुकृत्यों के लिए गधे में बिठा कर काला मुंह कर जलूस निकाला हुआ है। विधानसभा चुनाव में टिकट के इस मेले में एक प्रत्याशी भी देखा गया जो एक नेता से पहले टिकट के लिए मांग करता नजर आया। दूसरे ही क्षण वह खुद ही बोल पड़ा टिकट नहीं तो कम से कम नोकरी ही दिला दो। प्रत्याशी की ऐसी बात सुन कर नेताजी के दरवार में बेठे अन्य प्रत्याशियों के साथ नेताजी की भी हंसी के फुव्वारे भी छूटने लगे।

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