परमाणु हथियारों सहित पाक को तबाह करेगा अमेरिका
परमाणु हथियारों सहित पाक को तबाह करेगा अमेरिका
प्यारा उत्तराखण्ड की विशेष रिपोर्ट-
अमेरिका के नेतृत्व में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन नाटो, के सैनिकों द्वारा पाकिस्तान के कबायली इलाके में स्थित दो सीमा चैकियों पर 26 नवंबर को तड़के किए गए हवाई हमले में हुई 24 पाकिस्तानी सैनिकों की मौत को भले ही अमेरिकी सरकार व नाटो इसे भूल से हुई कार्यवाही बता कर पाकिस्तान को चुप करा रहे हों परन्तु अमेरिकी रणनीति के जानकार इसे भूल नहीं अपितु इसे अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को उसके घर में घेर कर दबोचने की रणनीति का हिस्सा मान रहे है। जिस प्रकार से अमेरिका ने अफगानिस्तान, इराक व लीबिया को एक एक कर अपने शिकंजे में जकड़ा, उसके बाद अमेरिका की इस प्रकार की कार्यवाही को भूल मानना एक प्रकार से अमेरिकी रणनीति को न समझना ही माना जायेगा। इसी घटना से आक्रोशित हो कर पाक ने अमेरिका से बलूचिस्तान प्रांत में स्थित शम्सी हवाई ठिकाने को 15 दिनों के भीतर खाली देने व संयुक्त राष्ट्र संघ में अमेरिका का विरोध करने का ऐलान किया। अमेरिका की इस रणनीति को पाक को उकसाने व उसको भी इराक व लीबिया की तरह अपने शिकंजे में लेने की रणनीति का एक अहम हिस्सा माना जा रहा है। अमेरिका ने अब इस बात का मन बना लिया है कि वह हर हाल में उसकी सुरक्षा के लिए खतरा बन चूके पाकिस्तानी परमाणु शक्ति को अंकुश में लेगा। इसी दिशा में वह पाकिस्तान को इस कदर उलझा देना चाहता है कि वह अमेरिका के खिलाफ आग उगले और उसके सैनिकों पर हमला करने का दुशाहस करे। इसी को बहाना बना कर पाकिस्तान के अधिकांश सामरिक स्थलों को अप्रत्यक्ष रूप से शिकंजे में जकड़े हुए अमेरिका पाक के नेतृत्व पर निर्णायक हमला कर पाक की हालत भी इराक व लीबिया की तरह कर देगा। यह बात पाक हुक्मरान व पाक सेना भी बखुबी से समझती है परन्तु जनता को दिखाने के लिए उसको विरोध करना पड़ रहा है। परन्तु स्थितियां पाक हुक्मरानों के काबू से बाहर हो जायेगी, और अमेरिका उनको लादेन सहित आतंकियों को संरक्षण देने व अमेरिका के खिलाफ हमला करने में सहायता देने के जुर्म में लटका सकती है।
एक तरफ अमेरिका ने पाक पर उसको उकसाने के नाम पर ये हमला किया, वहीं दूसरी तरफ उसने अपने अरब देशों में अपने समर्थकों को पाक को मनाने के लिए लगा दिये हे। इसी क्रम में संयुक्त अरब अमीरात यूएई का प्रयास भी देखा जा रहा है। अमीरात ने पाकिस्तान से अमेरिका के खिलाफ आगे न बढ़ने की गुहार की थी। इसे पाकिस्तान ने संयुक्त अरब अमीरात यूएई के उस अनुरोध को ठुकरा दिया जिसमें उसने एक प्रमुख हवाई ठिकाने के अमेरिकी इस्तेमाल पर लगाया गया प्रतिबंध वापस लेने की बात कही थी। गौरतलब है कि यूएई के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्ला बिन जेयेद अल-नाहयान अघोषित दौरे पर इस्लामाबाद पहुंचे। उन्होंने राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से सोमवार को मुलाकात की थी। उन्होंने जरदारी से अनुरोध किया कि हवाई ठिकाने को अमेरिका से खाली न कराया जाए। राष्ट्रपति जरदारी ने हालांकि यूएई के विदेश मंत्री से कहा कि इस निर्णय को वापस नहीं लिया जा सकता है। क्योंकि हमले को लेकर देश में बहुत गुस्सा है। अल-नाहयान ने जरदारी को सुझाव दिया कि नाटो द्वारा घटना की जांच किए जाने तक इस फैसले को टाल दिया जाए। उन्होंने पाकिस्तान को धैर्य बनाए रखने की सलाह भी दी। अमेरिका वर्षो से शम्सी हवाई ठिकाने का इस्तेमाल पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अपने अभियानों के लिए कर रहा है।
इसके बाद प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की रक्षा समिति की आपात बैठक हुई। बैठक में पाकिस्तान के रास्ते अफगानिस्तान जाने वाले नाटो जाने वाले नाटो की रसद आपूर्ति तत्काल बंद करने का निर्णय लिया गया था।
वहीं पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र से नाटो के हवाई हमले पर अपना विरोध दर्ज कराने और निंदा करने के लिए औपचारिक रूप से संपर्क किया है। इस हमले में 24 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे और इसकी वजह से वाशिंगटन तथा इस्लामाबाद के बीच रिश्ते तनाव पूर्ण हो गए हैं।
संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के राजदूत अब्दुल्ला हुसैन हारुन ने संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून को एक पत्र लिखकर सूचित किया कि 26 नवंबर को नाटो श्पाकिस्तान की सीमा चैकियों पर किए गए हमले की वजह से 24 पाक सैनिक और अधिकारी शहीद हो गए। इस हमले में 13 सैन्यकर्मी भी घायल हो गए थे। इसं हमले के खिलाफ पाकिस्तान की ओर से कड़ी निंदा की गई है। इसने संप्रभुता का उल्लंघन किया है और आतंकवाद के खिलाफ नाटो तथा अंतरराष्ट्रीय सेना के साथ पाकिस्तान के सहयोग के आधार को नुकसान पहुंचाया है। इसे दस्तावेज के रूप में सुरक्षा परिषद के 15 सदस्यों और महासभा के 193 सदस्यों के पास वितरित किए जाने का भी अनुरोध महासचिव से किया है। पाकिस्तानी हुक्मरानों की यह कार्यवाही अब केवल अपनी खाल बचाने की एक असफल कोशिश है क्योंकि पाकिस्तान सहित पूरा विश्व जानता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ कुछ नहीं केवल अमेरिका के हाथों की एक कठपुतली है यह इराक पर हुई अमेरिकी हमले के बाद पूरी तरह से स्पष्ट हो गया है। इस पूरे प्रकरण से साफ हो गया कि पाकिस्तान अमेरिका के चक्रव्यूह में घिर चूका है अब फेसला अमेरिका नेतृत्व ने लेना है कि वह कब पाक की हालत इराक व लीबिया की तरह करता है। क्योंकि अरब देशों में इरान को छोड़ कर कोई अमेरिकी हमले में पाक का साथ ईमानदारी से नहीं दे पायेगा। इरान भी केवल बयान बाजी करेगा। अमेरिका चाहता है कि इरान पर हमले से पहले हर हालत में पूरे विश्व में ईरान का जमीनी साथ देने वाला कोई देश मजबूत न रहे। इसी लिए वह पाकिस्तान को पहले शिकंजे में जकड़ना चाहता है।
प्यारा उत्तराखण्ड की विशेष रिपोर्ट-
अमेरिका के नेतृत्व में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन नाटो, के सैनिकों द्वारा पाकिस्तान के कबायली इलाके में स्थित दो सीमा चैकियों पर 26 नवंबर को तड़के किए गए हवाई हमले में हुई 24 पाकिस्तानी सैनिकों की मौत को भले ही अमेरिकी सरकार व नाटो इसे भूल से हुई कार्यवाही बता कर पाकिस्तान को चुप करा रहे हों परन्तु अमेरिकी रणनीति के जानकार इसे भूल नहीं अपितु इसे अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को उसके घर में घेर कर दबोचने की रणनीति का हिस्सा मान रहे है। जिस प्रकार से अमेरिका ने अफगानिस्तान, इराक व लीबिया को एक एक कर अपने शिकंजे में जकड़ा, उसके बाद अमेरिका की इस प्रकार की कार्यवाही को भूल मानना एक प्रकार से अमेरिकी रणनीति को न समझना ही माना जायेगा। इसी घटना से आक्रोशित हो कर पाक ने अमेरिका से बलूचिस्तान प्रांत में स्थित शम्सी हवाई ठिकाने को 15 दिनों के भीतर खाली देने व संयुक्त राष्ट्र संघ में अमेरिका का विरोध करने का ऐलान किया। अमेरिका की इस रणनीति को पाक को उकसाने व उसको भी इराक व लीबिया की तरह अपने शिकंजे में लेने की रणनीति का एक अहम हिस्सा माना जा रहा है। अमेरिका ने अब इस बात का मन बना लिया है कि वह हर हाल में उसकी सुरक्षा के लिए खतरा बन चूके पाकिस्तानी परमाणु शक्ति को अंकुश में लेगा। इसी दिशा में वह पाकिस्तान को इस कदर उलझा देना चाहता है कि वह अमेरिका के खिलाफ आग उगले और उसके सैनिकों पर हमला करने का दुशाहस करे। इसी को बहाना बना कर पाकिस्तान के अधिकांश सामरिक स्थलों को अप्रत्यक्ष रूप से शिकंजे में जकड़े हुए अमेरिका पाक के नेतृत्व पर निर्णायक हमला कर पाक की हालत भी इराक व लीबिया की तरह कर देगा। यह बात पाक हुक्मरान व पाक सेना भी बखुबी से समझती है परन्तु जनता को दिखाने के लिए उसको विरोध करना पड़ रहा है। परन्तु स्थितियां पाक हुक्मरानों के काबू से बाहर हो जायेगी, और अमेरिका उनको लादेन सहित आतंकियों को संरक्षण देने व अमेरिका के खिलाफ हमला करने में सहायता देने के जुर्म में लटका सकती है।
एक तरफ अमेरिका ने पाक पर उसको उकसाने के नाम पर ये हमला किया, वहीं दूसरी तरफ उसने अपने अरब देशों में अपने समर्थकों को पाक को मनाने के लिए लगा दिये हे। इसी क्रम में संयुक्त अरब अमीरात यूएई का प्रयास भी देखा जा रहा है। अमीरात ने पाकिस्तान से अमेरिका के खिलाफ आगे न बढ़ने की गुहार की थी। इसे पाकिस्तान ने संयुक्त अरब अमीरात यूएई के उस अनुरोध को ठुकरा दिया जिसमें उसने एक प्रमुख हवाई ठिकाने के अमेरिकी इस्तेमाल पर लगाया गया प्रतिबंध वापस लेने की बात कही थी। गौरतलब है कि यूएई के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्ला बिन जेयेद अल-नाहयान अघोषित दौरे पर इस्लामाबाद पहुंचे। उन्होंने राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से सोमवार को मुलाकात की थी। उन्होंने जरदारी से अनुरोध किया कि हवाई ठिकाने को अमेरिका से खाली न कराया जाए। राष्ट्रपति जरदारी ने हालांकि यूएई के विदेश मंत्री से कहा कि इस निर्णय को वापस नहीं लिया जा सकता है। क्योंकि हमले को लेकर देश में बहुत गुस्सा है। अल-नाहयान ने जरदारी को सुझाव दिया कि नाटो द्वारा घटना की जांच किए जाने तक इस फैसले को टाल दिया जाए। उन्होंने पाकिस्तान को धैर्य बनाए रखने की सलाह भी दी। अमेरिका वर्षो से शम्सी हवाई ठिकाने का इस्तेमाल पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अपने अभियानों के लिए कर रहा है।
इसके बाद प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की रक्षा समिति की आपात बैठक हुई। बैठक में पाकिस्तान के रास्ते अफगानिस्तान जाने वाले नाटो जाने वाले नाटो की रसद आपूर्ति तत्काल बंद करने का निर्णय लिया गया था।
वहीं पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र से नाटो के हवाई हमले पर अपना विरोध दर्ज कराने और निंदा करने के लिए औपचारिक रूप से संपर्क किया है। इस हमले में 24 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे और इसकी वजह से वाशिंगटन तथा इस्लामाबाद के बीच रिश्ते तनाव पूर्ण हो गए हैं।
संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के राजदूत अब्दुल्ला हुसैन हारुन ने संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून को एक पत्र लिखकर सूचित किया कि 26 नवंबर को नाटो श्पाकिस्तान की सीमा चैकियों पर किए गए हमले की वजह से 24 पाक सैनिक और अधिकारी शहीद हो गए। इस हमले में 13 सैन्यकर्मी भी घायल हो गए थे। इसं हमले के खिलाफ पाकिस्तान की ओर से कड़ी निंदा की गई है। इसने संप्रभुता का उल्लंघन किया है और आतंकवाद के खिलाफ नाटो तथा अंतरराष्ट्रीय सेना के साथ पाकिस्तान के सहयोग के आधार को नुकसान पहुंचाया है। इसे दस्तावेज के रूप में सुरक्षा परिषद के 15 सदस्यों और महासभा के 193 सदस्यों के पास वितरित किए जाने का भी अनुरोध महासचिव से किया है। पाकिस्तानी हुक्मरानों की यह कार्यवाही अब केवल अपनी खाल बचाने की एक असफल कोशिश है क्योंकि पाकिस्तान सहित पूरा विश्व जानता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ कुछ नहीं केवल अमेरिका के हाथों की एक कठपुतली है यह इराक पर हुई अमेरिकी हमले के बाद पूरी तरह से स्पष्ट हो गया है। इस पूरे प्रकरण से साफ हो गया कि पाकिस्तान अमेरिका के चक्रव्यूह में घिर चूका है अब फेसला अमेरिका नेतृत्व ने लेना है कि वह कब पाक की हालत इराक व लीबिया की तरह करता है। क्योंकि अरब देशों में इरान को छोड़ कर कोई अमेरिकी हमले में पाक का साथ ईमानदारी से नहीं दे पायेगा। इरान भी केवल बयान बाजी करेगा। अमेरिका चाहता है कि इरान पर हमले से पहले हर हालत में पूरे विश्व में ईरान का जमीनी साथ देने वाला कोई देश मजबूत न रहे। इसी लिए वह पाकिस्तान को पहले शिकंजे में जकड़ना चाहता है।
अब आयेगा असली रोमांच।
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