यदि रूस में श्रीमद् भागवत गीता पर प्रतिबंध लगता है तो रूस से तत्काल सम्बंध तोडे भारत
यदि रूस में श्रीमद् भागवत गीता पर प्रतिबंध लगता है तो रूस से तत्काल सम्बंध तोडे भारत/
गीता पर प्रतिबंध लगाना सामुहिक आत्महत्या के समान है/
नई दिल्ली(ंप्याउ)। यदि रूस, श्रीमद् भागवत गीता (प्रभुपाद द्वारा अनुवादित भाष्य ) पर प्रतिबंध लगाने की धृष्ठता करता है तो भारत सरकार अविलम्ब रूस से अपने सारे सम्बंध तोड़ देना चाहिए।’ यह विचार श्रीकृष्ण विश्व कल्याण भारती के प्रमुख देवसिंह रावत ने इस बारे में रूस में हो रहे विवाद पर दो टूक विचार प्रकट करते हुए भारत सरकार से मांग की। श्री कृष्ण विश्व कल्याण भारती के प्रमुख ने कहा कि श्रीमद् भागवत गीता न केवल हिन्दुओं का पावन धर्म ग्रंथ है अपितु विश्व संस्कृति की मूलाधार भारतीय दर्शन का प्राण भी है। श्रीकृष्ण विश्व कल्याण भारती के प्रमुख ने भारत के प्रधानमंत्री द्वारा अपनी हाल में सम्पन्न हुई यात्रा में इस विषय पर शर्मनाक मूक रखने पर कड़ी भत्र्सना करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री को देश के सम्मान, संस्कृति व हितों की रक्षा करने के अपने प्रथम दायित्व का निर्वाहन करना चाहिए। इस विषय पर भारत सरकार व देश की जनता को आगाह करते हुए श्री रावत ने कहा कि जो समाज व राष्ट्र अपने सम्मान, संस्कृति व हितों को रौंदते हुए शर्मनाक मूक रखते हैं उनका न तो देश व नहीं विश्व समुदाय में कहीं सम्मान होता है। उन्होंने अफसोस प्रकट किया कि रूसी हुकमरानों व समाज को भारतीयों की दशकों से चली प्रगाड़ मित्रता का ईनाम भारतीय संस्कृति के मूलाधार श्रीमद् भागवत गीता को रौंदने की धृष्ठता करके चुकाना चाहता है तो विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति के ध्वज वाहक सवा अरब भारतीय, भारतीय संस्कृति के प्राण व स्वाभिमान को रौंदने की इजाजत रूस सहित किसी देश व समाज को किसी भी कीमत पर नहीं दी देगी। अब फेसला रूसी हुक्मरानों व व्यवस्था को करना है कि वे भारतीयों के साथ दोस्ती को बनाया रखना चाहते हैं कि भारतीयों से दुश्मनी।
गौरतलब है कि महान श्रीकृष्ण भक्त प्रभुपाद ने जड़ चेतन में भगवान श्रीकृष्ण को मानते हुए पूरे विश्व के कल्याणार्थ गीता की दिव्य ज्ञान की गंगा से उद्वार कराने का भागीरथ प्रयत्न किया। उनके इस श्रेयकर प्रयास से पूरे विश्व के लाखों लोगों ने अपना जीवन को धन्य किया। परन्तु गीता रूपि दिव्य ज्ञान के प्रकाश से अज्ञानी लोगों को अपनी धर्म के नाम से चलने वाली भ्रमित करने वाली दुकाने बंद होने का भय सताने लगा। इसी भय से भयभीत हो कर रूस में गीता को अलगाववाद का प्रतीक मानते हुए उस को बंद करने के लिए कुतर्क दे कर ऐन केन प्रकार से गीता व इस्कान पर प्रतिबंध लगाने का षडयंत्र रच रहे है। इसी का एक छोटा सा नमुना है रूस की कोर्ट में इस मामले में एक वाद। हालांकि इस विवाद पर रूसी अदालत ने अपना फेसला एक सप्ताह के लिए रोक दिया है। गीता पर प्रतिबंध की मांग करके रूस के धर्म के ठेकेदारों ने अपने समाज की एक प्रकार से सामुहिक आत्महत्या करने के लिए धकेलने का निकृष्ठ काम कर रहे है। ये सब केवल रूस में हो रहा षडयंत्र नहीं अपितु पूरे विश्व में ईसायत व आतंकवादियों का इस दिशा में सामुहिक शर्मनाक प्रयास है। गीता जडतावादी नहीं चेतनवादी प्रवृति की प्रवाहिका है। इससे रूस का ही सबसे अधिक अहित होगा क्योंकि रूसी दिव्य ज्ञान से वंचित होंगे।
गीता पर प्रतिबंध लगाना सामुहिक आत्महत्या के समान है/
नई दिल्ली(ंप्याउ)। यदि रूस, श्रीमद् भागवत गीता (प्रभुपाद द्वारा अनुवादित भाष्य ) पर प्रतिबंध लगाने की धृष्ठता करता है तो भारत सरकार अविलम्ब रूस से अपने सारे सम्बंध तोड़ देना चाहिए।’ यह विचार श्रीकृष्ण विश्व कल्याण भारती के प्रमुख देवसिंह रावत ने इस बारे में रूस में हो रहे विवाद पर दो टूक विचार प्रकट करते हुए भारत सरकार से मांग की। श्री कृष्ण विश्व कल्याण भारती के प्रमुख ने कहा कि श्रीमद् भागवत गीता न केवल हिन्दुओं का पावन धर्म ग्रंथ है अपितु विश्व संस्कृति की मूलाधार भारतीय दर्शन का प्राण भी है। श्रीकृष्ण विश्व कल्याण भारती के प्रमुख ने भारत के प्रधानमंत्री द्वारा अपनी हाल में सम्पन्न हुई यात्रा में इस विषय पर शर्मनाक मूक रखने पर कड़ी भत्र्सना करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री को देश के सम्मान, संस्कृति व हितों की रक्षा करने के अपने प्रथम दायित्व का निर्वाहन करना चाहिए। इस विषय पर भारत सरकार व देश की जनता को आगाह करते हुए श्री रावत ने कहा कि जो समाज व राष्ट्र अपने सम्मान, संस्कृति व हितों को रौंदते हुए शर्मनाक मूक रखते हैं उनका न तो देश व नहीं विश्व समुदाय में कहीं सम्मान होता है। उन्होंने अफसोस प्रकट किया कि रूसी हुकमरानों व समाज को भारतीयों की दशकों से चली प्रगाड़ मित्रता का ईनाम भारतीय संस्कृति के मूलाधार श्रीमद् भागवत गीता को रौंदने की धृष्ठता करके चुकाना चाहता है तो विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति के ध्वज वाहक सवा अरब भारतीय, भारतीय संस्कृति के प्राण व स्वाभिमान को रौंदने की इजाजत रूस सहित किसी देश व समाज को किसी भी कीमत पर नहीं दी देगी। अब फेसला रूसी हुक्मरानों व व्यवस्था को करना है कि वे भारतीयों के साथ दोस्ती को बनाया रखना चाहते हैं कि भारतीयों से दुश्मनी।
गौरतलब है कि महान श्रीकृष्ण भक्त प्रभुपाद ने जड़ चेतन में भगवान श्रीकृष्ण को मानते हुए पूरे विश्व के कल्याणार्थ गीता की दिव्य ज्ञान की गंगा से उद्वार कराने का भागीरथ प्रयत्न किया। उनके इस श्रेयकर प्रयास से पूरे विश्व के लाखों लोगों ने अपना जीवन को धन्य किया। परन्तु गीता रूपि दिव्य ज्ञान के प्रकाश से अज्ञानी लोगों को अपनी धर्म के नाम से चलने वाली भ्रमित करने वाली दुकाने बंद होने का भय सताने लगा। इसी भय से भयभीत हो कर रूस में गीता को अलगाववाद का प्रतीक मानते हुए उस को बंद करने के लिए कुतर्क दे कर ऐन केन प्रकार से गीता व इस्कान पर प्रतिबंध लगाने का षडयंत्र रच रहे है। इसी का एक छोटा सा नमुना है रूस की कोर्ट में इस मामले में एक वाद। हालांकि इस विवाद पर रूसी अदालत ने अपना फेसला एक सप्ताह के लिए रोक दिया है। गीता पर प्रतिबंध की मांग करके रूस के धर्म के ठेकेदारों ने अपने समाज की एक प्रकार से सामुहिक आत्महत्या करने के लिए धकेलने का निकृष्ठ काम कर रहे है। ये सब केवल रूस में हो रहा षडयंत्र नहीं अपितु पूरे विश्व में ईसायत व आतंकवादियों का इस दिशा में सामुहिक शर्मनाक प्रयास है। गीता जडतावादी नहीं चेतनवादी प्रवृति की प्रवाहिका है। इससे रूस का ही सबसे अधिक अहित होगा क्योंकि रूसी दिव्य ज्ञान से वंचित होंगे।
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