वक्त के मोहरे है यहां सभी अण्णा हो या रामदेव

वक्त के मोहरे है यहां सभी ं अण्णा हो या रामदेव
सबको जमीन सुंघाता है सिकंदर हो या जार्ज बुश
इतना न गिरो साथी जग में दो कदम चलने पर
तुम्हारी तस्वीर ही तुमको उजाले में भी डराने लगे
तुम्हारे शब्द ही तुम्हारी राह के कांटे बन कर डसे
आरती जिनकी उतारने चले वे कहां थे कहां खडे
स्वार्थ के पुतलों को न मशीहा बताओ तुम तो जरा
यहां काल पल में इन पुतलों को बेनकाब करता है 
देवसिंह रावत
(23 अगस्त 2012 प्रातः 9.47)

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