-राजनैतिक दिशा देने में खुद असफल है टीम अण्णा 

-राजनैतिक पार्टी बनाने का निर्णय सही पर जनांकांक्षाओं को पूरा करने वाला नहीं

-रामदेव की तरह नहीं, वीरों की तरह करते अनशन का समापन

सभी देशभक्त लोग इस बात से खुशी है राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर 25 जुलाई से देश मेें भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए जनलोकपाल कानून बनाने की मांग को लेकर आंदोलनरत अण्णा हजारे, केजरीवाल, मनीष व गोपाल राय सहित सैकडों आंदोलनकारियों ने अपना अनशन भारतीय सेना में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐतिहासिक जंग लड़ने वाले पूर्व सेना प्रमुख जनरल वी के सिंह के हाथों नारियल पानी पी कर  3 जुलाई को सांय 5 बजे तोड़कर नई राजनैतिक पार्टी बनाने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया। परन्तु देश की जनता चाहती कि यह बेहतर होता कि अण्णा हजारे व उनकी टीम जो बलिदान देने के नाम पर तथा इस देश में व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर यह आंदोलन संचालित कर रही थी, वह उसका समापन रामदेव की तरह न करके वीरों की तरह करते। जहां तक नई पार्टी बनाने का सवाल है तो टीम अण्णा ने साफ कर दिया कि वह व्यवस्था परिवर्तन करने की देश की व्यथित आंदोलनरत जनता की भावनाओं की आशाओं को पूरा करने में असमर्थ पा रही है। देश की राजनीति में अच्छे लोगों व अच्छी पार्टी का होना देश की सकारात्मक राजनीति के लिए सुखद ही नहीं अपितु नितांत जरूरी है। परन्तु टीम अण्णा का अब तक के निर्णय ही यह साबित कर रहे हैं कि उनमें देश को ठोस दिशा देने वाले निर्णय लेने की उतनी ही कमी है जितनी वर्तमान दलों में।
वैसे देश में राजनैतिक दलों की कोई कमी नहीं है। दो दर्जन से अधिक दल इस समय अपनी राजनीतिक दलों से देश की राजनीति को संचालित कर रहे है। कांग्रेस, भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों के अलावा अन्य दल एकाद प्रदेशोे में अपने दल से प्रदेशों की राजनीति में अपना दबदबा बनाये हुए है। परन्तु आज देश का दुर्भाग्य है कि दो दर्जन से मजबूत दलों के होने के बाबजूद एक भी दल आज देश में ऐसा नहीं है जिसका नेतृत्व या दल जो देश को सही दिशा देने व जनभावनाओं के अनरूप भ्रष्टाचार, मंहगाई, आतंकवाद की दल दल में आकण्ठ फंसे इस देश को उबारने की समर्पित राजनीति कर रहा हो या करने की क्षमता हो। देश की जनता इस बात से निराश है इन तमाम पार्टियां देश वासियों के समक्ष पूरी तरह से असफल हो गयी है।
अब अण्णा हजारे के नेतृत्व में देश को इस बर्बादी से बाहर निकालने के लिए एक राजनैतिक दल बनाने का ऐलान संसद की चैखट जंतर मंतर से किया जा रहा है। यह सुखद है। परन्तु अण्णा हजारे व उनके नेतृत्व में बनी टीम अण्णा में कोई ऐसा नेतृत्व नजर ही नहीं आ रहा है जिसमें इस देश की जनता को सही दिशा देने में राजनैतिक दृष्टि से ठोस व सही निर्णय लेने की क्षमता नजर आये। टीम अण्णा का अब तक निर्णय लेने की दृष्टि से जो इतिहास रहा वह राजनैतिक पार्टियों की दृष्टि से उतना ही निराशाजनक रहा जितना अन्य राजनैतिक नेतृत्व का।
-टीम अण्णा ने जिस सिविल सोसायटी का गठन किया उसके गठन पर ही अधिकांश लोगों को वंशवाद का प्रश्न उठा कर कटघरे में रखा।

-टीम अण्णा का हिसार लोकसभा उपचुनाव में मात्र कांग्रेस का विरोध करना जनता के गले में नहीं उतरा जबकि वहां पर चोटाला व भजन लाल के बेटे चुनाव लड़ रहे थे, उन दोनों के बारे में जनता के मन में कैसी छवि थी वह कहीं दूर दूर तक अण्णा के भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे आंदोलन से मेल नहीं खाते।

यही नहीं खुद अण्णा के निर्णय भी विवादस्थ रहे। एक तरफ टीम अण्णा नरेन्द्र मोदी से तो परहेज रखती है परन्तु अण्णा हजारे मुम्बई महाराष्ट में निर्दोष उत्तर भारतीयों पर जो कहर ढाते रहते है उन राज ठाकरे को अण्णा हजारे खुद गले लगाते है और उनके दर पर मिलने तक जाते है। उस समय अण्णा हजारे का राष्ट्रवाद व मानवता कहां दम तोड़ जाती जब महाराष्ट्र में निर्दोष उत्तर भारतीयों पर राज ठाकरे के समर्थकों के हमले हुए। उस समय अगर उनमें जरा सा भी गांधीवाद रहता तो वे क्यों गांधी की तरह उपवास में नहीं बेठे ?

-एक तरफ टीम अण्णा अपने मंचों व आंदोलन से  भ्रष्टाचारी नेताओं को मंचासीन होने से परहेज करती रही। जंतर मंतर में जहां  इस आंदोलन को समर्थन देने आये उमा भारती व चोटाला जेसे नेताओ ंसे बदसलुकी कर उनको आंदोलन से दूर रखा गया वहीं रामलीला मैदान में हुए ऐतिहासिक आंदोलन में भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे हुए  महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देशमुख को मंचासीन होने देना उनके दोहरेपन को उजागर करता है।

-गांधी जी अपनी व अपने समर्थकों की छोटी छोटी भूलों के लिए उन्हें भी सार्वजनिक रूप में उपवास पर प्रायश्चित कराते परन्तु अण्णा हजारे ने कभी किरण वेदी का हवाई जहाज प्रकरण, प्रशान्त भूषण का कश्मीर पर विवादस्थ बयान व केजरीवाल के प्रकरण पर मूक समर्थक बने रहना उनकी छवि को ही कमजोर करने वाली कड़ी रही।

-जो टीम अण्णा की प्रधानमंत्री को पाक साफ बताती रही उनका देश की जनता में साफ दृष्टिकोण नहीं रहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ही असली दोषी है जो अपने दायित्व का निर्वहन करने के बजाय देश को मंहगाई, भ्रष्टाचार व आतंकवाद के गर्त में धकेल रहा है। कभी कभार खुद अण्णा प्रधानमंत्री को  पाक साफ बताते रहे व कभी टीम अण्णा केवल कोयला घोटाले पर उनको कटघरे में रखती रही। जबकि देश को पतन के गर्त में धकेलने व भ्रष्ट मंत्रियों को बनाये रख कर देश को लुटवाने के असली गुनाहगार हैं प्रधानमंत्री ।

 -भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए बनाये जाने वाले तथाकथित जनलोकपाल में भी देश को भ्रष्टाचार के गर्त में धकेलने वाले एनजीओ को सम्मलित कराने का नैतिक मांग करने तक का साहस टीम अण्णा नहीं दिखा सकी।

- राज्यों में बनने वाले लोकायुक्त पर भी उत्तराखण्ड में तत्कालीन भाजपाई मुख्यमंत्री खण्डूडी सरकार द्वारा बनाये गये ‘विधायकों, मंत्रियों व मुख्यमंत्री’ के भ्रष्टाचार पर सर्वानुमति का पर्डा डाल कर संरक्षण देने वाले ‘लोकायुक्त का खुला समर्थन दे कर अण्णा हजारे व टीम अन्ना खुद बेनकाब हो गयी। प्रदेश की जनता ने इस लोकपाल के जनक भाजपा मुख्यमंत्री खण्डूडी को ही चुनावी समर में दोहरे मापदण्ड के लिए दोषी मानते हुए विधानसभा चुनाव में रामदेव व टीम अण्णा के पुरजोर समर्थन के बाबजूद हरा दिया।

-अब 25 जुलाई से चलाये गये तथाकथित निर्णायक बलिदानी आंदोलन का हस्र जो अण्णा हजारे व उनकी टीम ने किया, उससे अण्णा हजारे के देश विदेश में लाखों समर्थकों के गले नहीं उतर रहा है। नयी पार्टी बनाने का जहां तक स्वागत है परन्तु यह पार्टी भी उन जनांकांक्षाओं को साकार करने में सफल नहीं होगी जिसके समर्थन में लाखों भारतीय पूरे देश में सडकों में उतर आये थे। अब इस मोड़ पर टीम अण्णा का यह निर्णय जनलोकपाल के बनने तक यह आंदोलन चलेगा की हुंकार पर खुद ही प्रश्न चिन्ह लगाने वाला कदम माना जायेगा।

-पाक साफ लोगों को राजनीति में सम्मलित करने की हुंकार भरने वाली टीम अण्णा के जमीनी व साफ छवि के समर्पित सदस्य अरविन्द गौड को ही रख नहीं पाये तो वे देश के दूर दराज के गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले राजनेताओं को कहां पहचान पायेंगे?

-देश की जनता ने बाबा रामदेव पर दिल्ली पुलिस के अमानवीय दमन की तो जहां घोर निंदा की वहीं आंदोलन के कमजोर पलायनवादी तैवर जो बाबा रामदेव ने दिखाये उससे जनता का काफी हद तक मोह भग बाबा रामदेव से हो गया। उसके बाद बाबा रामदेव ने सिज प्रकार से प्रदेश की भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार पर मूक रहने व अपने आंदोलन की धार खुद कमजोर कर दी। अण्णा हजारे व उनकी टीम भी बाबा रामदेव की तरह का अपने आंदोलन को सम्मानजनक ढ़ग से दिशा देने में असफल रहे । खासकर बलिदानी हुंकार भरने के बाद यकायक अनशन खुद ही समाप्त करने का निर्णय लोगों के गले बिलकुल नहीं उतर रहा है। बाबा राम देव की तरह वे भी अब पार्टी बनाने की बात कह रहे है। बाबा रामदेव ने तो तोबा कर दिया नयी पार्टी बनाने में परन्तु अब अण्णा हजारे का यह पार्टी बनाने का निर्णय कब तक बने रहता है यह तो आने वाला समय बतायेगा। परन्तु इतना साफ है कि राजनीति के खेल में अण्णा हजारे व उनकी टीम इस मैंदान की दशकों से महारथी बने दलों के प्रपंचों के सामने कहां तक टिक पायेगी यह देखना बाकी है। परन्तु अण्णा हजारे की टीम के अब तक के तमाम अधिकांश फैसले उनके निष्पक्ष समर्थकों के गले नहीं उतरे तो देश की आम जनता के गले क्या उतरेंगे।  कुल मिला कर अण्णा हजारे व उनकी टीम में अभी वह कुब्बत नहीं की वह देश को जिस प्रखर राजनैतिक नेतृत्व की जरूरत हे उस कमी को पूरा कर सके। हाॅं भ्रष्टाचार, महंगाई, आतंकवाद से त्रस्त भारत की जनता के आक्रोश को भ्रष्टाचार के खिलाफ जनलोकपाल के आंदोलन के रूप में अण्णा हजारे व उनकी टीम ने एक मजबूत स्वर दिया उसके लिए पूरा देश उनको शतः शतः नमन् करता है। परन्तु जिस ढ़ंग से अण्णा हजारे व उनकी टीम ने अपने आंदोलन  का समापन बलिदान दे कर भी निर्णायक संघर्ष करने की हुंकार भरते हुए खुद ही अनशन का समापन एक राजनैतिक दल बनाने के नाम पर करने का ऐलान किया वह कदम उनके समर्थकों के गले भी नहीं उतर रहा है।

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