पलायन नहीं, भ्रष्टाचार के खिलाफ नये सिरे से जनांदोलन का नेतृत्व करे अण्णा 

सरकार नहीं जनता करेगी पथभ्रष्ट हो चूकी देश की राजनीति की सफाई

नया राजनैतिक दल बना कर नहीं अपितु राजनीति की दिशा बदलने से होगा देश में भ्रष्टाचार का खात्मा  

देश की तमाम राजनैतिक दलों की तमाम सरकारों के कुशासन से व्याप्त भ्रष्टाचार, मंहगाई, आतंकवाद से गत डेढ़ दशक से व्यथित देश की जनता को गांधी व जय प्रकाश नारायण के बाद तारनहार बन कर उभरे महान समाजसेवी अण्णा हजारे ने जैसे ही  6 अगस्त को  देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जनलोकपाल कानून बनाने के लिए गत डेढ़ वर्ष से हुए देश व्यापी जनांदोलन का नेतृत्व करने वाली टीम अण्णा को भंग करने का ऐलान करके देश की जनता को गहरा सदमा पंहुचाया। देश को भ्रष्टाचार की गर्त में धकेल रहे तमाम राजनैतिक दलों में अण्णा की इस घोषणा से चारों तरफ खुशी का जश्न झलक रहा है।
देश में भले ही भ्रष्टाचार के प्रतीक विदेशों में जमा काला धन वापस लाने के नाम पर बाबा रामदेव भी आंदोलन कर रहे हैं परन्तु जो विश्वास देश की जनता को अण्णा हजारे के नेतृत्व वाले आंदोलन में रहा वह न तो बाबा रामदेव के आंदोलन में है व नहीं किसी अन्य राजनैतिक दल पर ही आज के दिन है। देश की आम जनता अण्णा हजारे के नेतृत्व में देश को भ्रष्टाचार मुक्त करके आम जनता की आशाओं को साकार करने वाले लोकतंत्र की स्थापना करने के लिए खुद को समर्पित करने के लिए तैयार है। जब से अण्णा हजारे जैसा ईमानदार नेतृत्व देश की आम जनता को मिला सबने जाति, धर्म, क्षेत्र आदि संकीर्णता को छोड़ कर अण्णा हजारे के देशभक्ति
से समर्पित व्यक्तित्व को दिल से स्वीकार कर देश हित में इस जनांदोलन में समर्पित हो गये थे। अब जब इस आंदोलन के निर्णायक समय देश की जनता को अण्णा हजारे के नेतृत्व की जरूरत है उस समय अण्णा हजारे द्वारा इस आंदोलन से मुंह मोड़ना एक प्रकार से जनता की आशाओं पर बज्रपात ही है। अण्णा हजारे को लगता है कि अगर टीम अण्णा के कुछ सदस्य उनके नाम व व्यक्तित्व की आड में अपनी महत्वकांक्षाओं की पूर्ति करने के लिए दुरप्रयोग कर रहे हैं तो अण्णा हजारे को इन सदस्यों को हटा कर नयी टीम का गठन कर जनता की आशाओं को नई दिशा देनी चाहिए। अण्णा हजारे को इस बात को इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि देश की आंदोलनकारी अवाम किसी टीम अण्णा के साथ नहीं अपितु साफ छवि व देशभक्त सदचरित्र अण्णा हजारे के साथ है। अण्णा हजारे को चाहिए कि वह या तो रामदेव के आंदोलन का नेतृत्व करे या सीधा युवाओं व समाजसेवियों की टीम बना कर आंदोलन का नेतृत्व करे। परन्तु भगवान श्रीकृष्ण के परमसंदेश गीता के उपासक रहे अण्णा हजारे से इस देश के सवा सौ करोड़ भारतवासी एक ही आशा करते हैं कि वे देश को भ्रष्टाचार, मंहगाई व आतंकवाद रूपि कुशासन से मुक्ति दिलानेे के लिए इस राष्ट्रव्यापी जनांदोलन से किसी भी सूरत में पलायन न करते हुए जनांदोलन का अंतिम सांस तक नेतृत्व करे।
भले ही 6 अगस्त को टीम अण्णा के प्रमुख अण्णा हजारे ने टीम अण्णा के भंग करते हुए ऐलान किया कि वह न तो कोई राजनैतिक दल बनायेंगे व नहीं चुनाव लडेंगे। हालांकि अण्णा हजारे की इस घोषणा के बाद टीम अण्णा के असली नीति निर्धारक अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि वे राजनैतिक दल बनाने के लिए नयी कमेटी का गठन अपने साथियों के साथ मिलकर कर रहे हैं। अण्णा हजारे की घोषणा के बाद न केवल जनलोकपाल आंदोलन पर अपितु जंतर मंतर पर देश को राजनैतिक विकल्प देने की घोषणा पर भी एक प्रकार से ग्रहण लग गया है। इस आंदोलन को जो आईना अग्रणी सामाजिक चिंतक योगेन्द्र यादव ने 31 जुलाई को दिखाया था अगर उसी पर टीम अण्णा चलती तो आज उसको ऐसा दिन नहीं देखना पड़ता। हालांकि स्वयं योगेन्द्र यादव भी अपनी 31 जुलाई के ऐतिहासिक घोषणा पर ज्यादा समय तक टीक नहीं पाये और उन्होंने भी 3 अगस्त को अण्णा हजारे की सहमति से अनशन समाप्ति पर देश में वर्तमान राजनीति की विकल्प देने के नाम पर जिस नयी राजनैतिक दल के गठन की घोषणा की गयी, उसके समर्थन में कसीदे पढ़ कर जनता में प्रचलित यह कहावत को चरितार्थ किया कि कुशल उपदेश बहु तेरे। हमारे बुद्धिजीवी अपने उपदेशों पर खुद ही अमल नहीं करते। परन्तु इतना निश्चित है कि देश की वर्तमान हालत का सही समाधान की तरफ खुद योगेन्द्र यादव ने 31 जुलाई को इशारा किया था वह आज भी अपनी जगह शतः प्रतिशतः सही है।
अण्णा के आंदोलन को गांधी के आंदोलन की तरह नैतिक शक्ति का पूंज बताते हुए देश के अग्रणी सामाजिक व राजनैतिक चिंतक योगेन्द्र यादव ने 31 जुलाई को दो टूक शब्दों में टीम अण्णा को देश की पूरी तरह से पथभ्रष्ट हो चूकी राजनीति का अंग बनने (नया राजनैतिक दल बनाने )से आगाह करते हुए कहा कि देश के मुख्यधारा की 25 राजनैतिक दलों के साथ 26 वां बनने से न तो देश का कोई कल्याण होगा व नहीं देश से भ्रष्टाचार पर ही अंकुश लगेगा। भारतीय राजनीति के प्रख्यात विश्लेषक योगेन्द्र यादव ने कहा कि जिस प्रकार गंदगी से नाला बन चूकी नदी की गंदगी को एक दो बाल्टी पानी डालने या निकालने से साफ नहीं होती है, उसकी सफाई के लिए जिस प्रकार बाढ़ की जरूरत होती है, उसी प्रकार अब भ्रष्टाचार से पथभ्रष्ट हो चूकी भारतीय राजनीति का अब यहां पर 25 स्थापित मुख्य धारा की राजनैतिक दलों में एक बढोतरी करके नहीं अपितु इस राजनीति का चरित्र ही बदलना होगा। इसके साथ सरकार के समझ जनलोकपाल बना कर देश में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए आमरण अनशन करने वाले अण्णा व टीम अण्णा के प्रमुख सदस्यों सहित उपस्थित आंदोलित जनसमुदाय को दो टूक शब्दों में कहा कि यह सरकार ही नहीं अपितु देश की मुख्यधारा की तमाम सभी दो दर्जन से अधिक पार्टियां इस मांग को कभी पूरा नहीं करेगी। इसलिए टीम अण्णा के रणनीतिकारों को निर्णायक संघर्ष करने के लिए अपने अनशन को त्याग देना चाहिए।
देश के अग्रणी चिंतक योगेन्द्र यादव ने देश की सरकार सहित तमाम दलों को भी जनहितों पर मूक बने रहने की आत्मघाती प्रवृति को धिक्कारते हुए कहा कि भारत में यह सनातन परंपरा रही है कि जब यहां के हुक्मरान जनहितों पर मूक रहते हैं तो यहां की जनता ही इसका समाधान करती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत के समक्ष भारत सरकार बहुत छोटी है। भारत का अवाम देश की तमाम राजनैतिक दलों का भ्रष्टाचारी रूप देख चूका है। ये सभी दल देश के किसी न किसी भू भाग में शासन में है। शासन में रहते हुए इन सबका भ्रष्टाचारी मुखोटा अब जनता के समझ पूरी तरह से बेनकाब हो चूका है। उन्होंने कहा कि ये सभी दल खो खो खेल रहे है। इस देश में विकास के लिए शासन के बजाय भ्रष्टाचार के लिए खो खो जैसा निकृष्ठ खेल खेला जा रहा है।
श्री यादव ने अण्णा सहित टीम अण्णा के सदस्यों को भी लोकशाही के प्रति अपने विराट दायित्व के निर्वहन करने के लिए तैयार रहने के लिए आगाह किया। उन्होंने कहा कि एक साल से देश की जनता को अण्णा पर विश्वास जगा है। इसलिए इस विश्वास की रक्षा के लिए अगर टीम अण्णा वर्तमान राजनेताओं की तरह खो खो के खेल में सम्मलित होगी तो देश की जनता उनको कभी माफ नहीं करेगी। उन्होंने साफ कहा कि इन स्थापित 25 मुख्य धारा की पार्टियों मेे 26 वां बन कर देश में भ्रष्टाचार न तो कभी दूर होगा व नहीं देश का राजनैतिक चरित्र ही बदला जा सकता। इसलिए अगर अण्णा हजारे ने इस समय देश का राजनैतिक चरित्र बदलने के लिए मजबूत पहल नहीं की तो देश की जनता कभी माफ नहीं करेगी। श्री यादव ने कहा कि नैतिक शक्ति से सम्पन्न इस आंदोलन के कर्णधारों को अपनी आलोचना को सहज ही स्वीकार करने की क्षमता होनी चाहिए। उन्होने इस आंदोलन में पत्रकारों व अन्य आलोचकों पर किये दुरव्यवहार की कड़ी भत्र्सना करते हुए इसे अलोकशाही प्रवृति बताया।
जिस समय देश के प्रखर चिंतक योगेन्द्र यादव अपने युगान्तर संबोधन करते हुए टीम अण्णा व उनके समर्थकों के समक्ष जोर दे कर कह रहे थे कि आज भी देश का शोभाग्य है कि देश में कलम के सिपाईयों की कलम जनहितों के प्रति समर्पित है, उनकी कलम नहीं बिकी और उनका समाज का सही राह दिखाने में महत्वपूर्ण योगदान है। अपने टीम अण्णा के वर्तमान आंदोलन में तीसरे बार इस मंच से  अपने औजस्वी संबोधन को हजारों लोगों ने ही नहीं देश के राजनेताओं ने भी अपने अपने सुत्रों से इस भाषण को दंतचित हो कर सुना। राजनीति के समीक्षक योगेन्द्र यादव के इस भाषण को इस आंदोलन के कर्णधारों, देश के राजनेताओं व जनता को दिशा व दशा दिखाने वाला आईना बन गया है। देखना है अण्णा हजारे व उनकी टीम जनता की आशाओं के योगेन्द्र यादव द्वारा बताये गयी आशाओं पर कहां तक खरा उतरते है। जिस दो टूक शब्दों में योगेन्द्र यादव ने अनशन से इन राजनेतिक दलों का दिल न पसीजने वाला बताते हुए निर्णायक संघर्ष के लिए अनशन समाप्त करके आंदोलन तेज करने की बात कही , दिन भर बूंदा बांदी के बाबजूद हजारों की संख्या में उपस्थित जनसमुदाय ने ताली बजा कर उसका करतल ध्वनि से स्वागत किया।
अण्णा हजारे को देश की सवा सौ करोड़ जनता की दुर्दशा व अपने संकल्प की रक्षा करते हुए पुन्नः देशव्यापी जनांदोलन का नेतृत्व करना चाहिए। शेष श्री कृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत। श्री कृष्णाय् नमो।

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