सत कमे करो तुम

ईश्वर हैं कण कण के वासी, 
फिर भी क्यों छायी है उदासी।
क्यों जीवन जप तप में गंवाते
धन दौलत पद के पीछे भागते । 
फिर भी मिले न सुख अविनाशी
सुख  है श्रीकृष्ण कृपा की गंगा ।
क्यों ढ़ूढ रहे उसे जग एैश्वर्य में
लूट खसोट से दौलत कमा कर ।
राग द्वेष से ये पद नाम कमा कर
सोच रहे यहां सुख शांति मिलेगी ।
प्रभु स्वरूप प्राणी को दुख दे कर 
सुख शांति कभी नहीं यहां मिलती ।
सुख शांति की चाहत है तो साथी
जड़ चेतन को मन से अपना लो।
किसी निदोर्ष का कभी शोषण करके 
सुख शांति  जग में नहीं मिल पाती ।
प्रभु को पाना है तो सुनो मनमोहन
जगहित में जीवन समर्पित कर दो।।
देवसिंह रावत
(24 अगस्त 2012 प्रात 8 .55)

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