कब मिलेगी भारतीय सेना को अंग्रेजी दमनकारी अफसरी राज से मुक्ति
भ्रष्ट व अमानवीय फिरंगी मानसिकता के अधिकारियों से सेना को मुक्त कर भारतीय व मानवीयकरण करे सरकार
देश भले ही आजाद हो गयी परन्तु फोज में आज भी वहीं फिरंगी कालीन अफसरी शासन चलता है। जरा भी इसमें परिवर्तन नहीं आया। वहीं फिरंगी भाषा अंग्रेजी आज भी देश के अफसरों की जुबान में चढ़ कर देश के लिए कुर्वानी देने वाले जाबांज जवानों को अपमानित व दमन करने का हथियार बना हुआ है। देश के हुक्मरानों को देश के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने वाले जांबाज जवानों की सुध लेने की कहां फुर्सत हें। वहां अधिकारी आज भी उनके साथ वही दमनकारी व्यवहार करते थे जैसे ब्रिटिश काल में होता था।
इसी पखवाडे संसद में जब पाकिस्तान सीमा पर तैनात भारतीय सेना की एक टुकड़ी में सेना के जवानों व अधिकारियों के बीच हुए चंद मिनटों के संघर्ष पर गहरी चिंता प्रकट करके सरकार से भविष्य में इस प्रकार की किसी घटना के न होने को कह रहे थे। सरकार की तरफ से रक्षा मंत्री ने इसे गंभीर मामला बताते हुए सभी सदस्यों से इस संवेदनशील मामले को ओर तुल न देने की अपील की। उन्होंने जोर दे कर कहा कि विश्व में भारतीय सेना अपने अनुशासन के लिए विख्यात है। रक्षा मंत्री के संसद में दिये इस बयान को एक सप्ताह भी नहीं हुए थे कि देश की राजधानी दिल्ली के नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के समीप रेलवे के एक टेलीफोन टावर पर भारतीय सेना का एक जवान चढ़ कर ‘भारतीय सेना में अधिकारियों द्वारा सैनिकों के बिट्रिश कालीन तर्ज पर ही हो रहे शोषण के खिलाफ आवाज उठायी। 1998 में भारतीय सेना में खेल कोटे से भर्ती हुआ ने तमिलनाडु निवासी के. मुथू ने सौ फुट ऊंचे टावर पर चढ़कर भारतीय सेना के अधिकारियों पर मनमानी करने व छुंट्टी न देने का आरोप लगाते हुए एक फौजी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के समीप स्थित रेलवे के टेलीफोन टावर पर चढ़कर उसने अपना मांग पत्र लोगों को दिया। मांग पत्र में उसने सेना के अधिकारियों द्वारा प्रताड़ना की कहानी लिखी है।
फोन से बात करने पर जवान ने बताया कि भले ही देश आजाद हो गया परन्तु सेना में आज भी ब्रिटिश राज ही चलता हैं। अधिकारियों की वहां हिटलरशाही चलती है। उनकी बात न मानने पर जवानों पर तरह-तरह के सितम ढाए जाते हैं। इससे परेशान होकर उसने यह कदम उठाया है। उसने जोर दे कर कहा कि जब तक रक्षा मंत्री इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करते, वह टावर से नहीं उतरेगा। बहुत ही दुखी मन से उस जवान ने आरोप लगाया कि उसे उसकी पत्नी की डिलीवरी के वक्त काफी जद्दोजहद के बाद छुंट्टी दी गई। पिता की मौत होने पर उसने तीन दिन की छुंट्टी मांगी थी, लेकिन मात्र एक दिन की छुंट्टी प्रदान की गई थी। वापस लौटने पर उसका स्थानांतरण करने के साथ ही तरह-तरह से परेशान किया जाने लगा।
वह पांच वर्ष तक ग्रुप स्पोर्ट्स कंपनी रूड़की में तैनात रहा। वहां उसने भारोत्तोलन में आर्मी चैंपियनशिप भी जीती। वर्तमान में वह राजस्थान के कोटा में तैनात है। वह बेंगलूर से स्पाइस जेट के विमान से दिल्ली भारतीय सेनिकों के हो रहे शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए आया। इसी रणनींित के तहत वह मिंटो रोड स्थित रेलवे के टावर पर चढ़ गया।
उसने पांच पन्ने के मांग पत्र में के. मुथू ने सेना के अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उसका कहना है कि बेंगलूर पोस्टिंग के दौरान अधिकारियों ने उसके साथ काफी गलत व्यवहार किया। पिछले चार वर्ष में उसकी पांच पोस्टिंग की गईं। उसने अपने पत्र में अधिकारियों द्वारा मारपीट की बात भी लिखी है। उसका कहना है कि वह जब इसकी शिकायत लेकर उच्च अधिकारी के पास गया तो उन्होंने भी कोई कार्रवाई नहीं की।
यह सवाल केवल एक ही जवान का नहीं। इस प्रकार की अनैक घटनायें सेना के हर यूनिट में होती रहती है। सैनिक अपने भाग्य को कोस कर सेना के इन फिरंगी मानसिकता अधिकारियों के जुल्मों को देश भक्ति व अपने भाग्य की नियति मान कर सह लेते है।
इस प्रकार के दमन से अवसादग्रस्त हो कर कई घटनाओं में सैनिकों की आत्म हत्या या शोषक अधिकारी की हत्या करने जैसी घटनायें भी प्रकाश में आती है। सेना में अनुशासन व गोपनीयता के पर्दे में से जब से न्यायालयों ने झांक कर देखने का कार्य किया तो सेना में एक के बाद एक ऐसे घोटाले प्रकाश में आ रहे हैं कि जिससे देशवासियों का सर शर्म से झुक जाता है। ऐसे में देशवासियों के दिलों में एक ही प्रश्न उठता है कि क्या होगा हमारे देश का, जहां की सुरक्षा में ऐसे अधिकारी तैनात है। सेना में बड़े स्तर पर हो रहे घोटालों में अधिकांश बडे सैन्य अधिकारी ही पकडे गये। मेजर जनरल ही नहीं ले. जनरल जैसे उच्च अधिकारियों का मुखोटा बेनकाब होने पर पूरा देश दंग हे। हालांकि सेना में अधिकांश जांबाज ईमानदार व देशभक्त जनरल वी के सिंह जेसे भी अधिकारी है। परन्तु चंद बेईमानों व निरंकुश अधिकारियों ने आज देश के लोगों के मन में जो शंका के बादल उमडे हैं उनको दूर करना सरकार का पहला कर्तव्य है। सैनिक अपने परिजन के अंतिम समय या सुख दुख में भी सम्मलित होने के लिए सामान्य समय में भी ये फिरंगी मानसिकता के अधिकारी अपनी हिटलरी दिखाने के लिए छूट्टी तक देने में जवानों को कितना जलील करते हैं यह सैनिकों को ही मालुम होता है या उनकी राह ताक रहे उनके परिजनों को।
देश के हुक्मरानों को चाहिए कि सेना में अनुशासन व भ्रष्टाचार दूर करे। परन्तु हुक्मरान करे भी कैसे, सेना में भी बडे पदों पर सरकार इ्रमानदार अधिकारियों के बजाय अपने मुंह लगे अधिकारियों के नियुक्त करने की आत्मघाती परंपरा चल रही है। जिस प्रकार से देश के हुक्मरानों का दामन आये दिन घोटालों से दागदार होता जा रहा है, उसका व्यापक असर सेना पर भी पड़ रहा है। देश में जरूरत है आज सामूल भ्रष्टाचार के खिलाफ सफाई की। नहीं तो न तो सीमायें सुूरक्षित रहेगी व नहीं देश की व्यवस्था। क्योंकि देश के हुक्मरान जिस प्रकार से सैन्य सामाग्री में ही नहीं अपितु शहीद सैनिकों के ताबूत में भी घोटाले कर रहे हैं उससे देश की हकीकत ही वयान हो रही है। आज जरूरत है भारतीय सेना में फिरंगी दमनकारी प्रवृति के बजाय भारतीयकरण करने की। जो अपने जांबाजों को अनुशासन के साथ देश भक्ति का ज़जबा ही सिखाये, मनोबल बढ़ाये। जो भी सेना में अमानवीय अधिकारी व फिरंगी मानसिकता के दमनकारी भ्रष्ट अधिकारी है उनको तत्काल सेवानिवृत करके देश की रक्षा की जाय। फिर किसी जाबंाज को किसी अधिकारी से विवाद करने या किसी टावर में चढ़ने की जरूरत महसूस न हो। सेना में मानवीय व भारतीय करण करना नितांत आवश्यक है। शेष श्रीकृष्ण। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।
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