कांग्रेस व भाजपा में एक दूसरे के घोटालों पर पर्दा डालने का बेशर्म खेल


अगर ईमानदारी से कार्यवाही होती तो भ्रष्टाचार पर लगता अंकुश और अधिकांश भ्रष्टाचारी नेता होते जेल

भाजपा ने बचाया तिवारी सरकार के घोटालेबाज नेताओं और कांग्रेस बचा रही है भाजपा सरकार के घोटालेबाज नेताओं को 

-कबीना मंत्री हरक सिंह रावत की विस सदस्यता खत्म करने के लिए न्यायालय जायेगी भाजपा 


देहरादून (प्याउ)। अगर प्रदेश में सत्तासीन होने के बाद हर सरकाल अपने द्वारा उठाये गये पूर्व सत्तासीनों के मामलों की ईमानदारी से जांच करती  तो आज प्रदेश में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगता और अधिकांश भ्रष्टाचारी नेता सलाखों के पीछे रहते। प्रदेश की सत्ता में काबिज रहे कांग्रेस व भाजपा दोनों ही दल एक दूसरे के घोटालों को अप्रत्यक्ष रूप से संरक्षण ही दे रहे हैं।
हकीकत तो यह है कि कांग्रेसी मुख्यमंत्री  तिवारी के शासन काल में हुए भ्रष्ट्राचार के लिए जनता में आंसू बहाने वाली भाजपा ने सत्ता मिलते ही जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए जहां एक पांच दर्जन के करीब घोटालों की जांच के लिए एक आयोग बनाया । जिस पर एक भी बडे घोटालेबाज नेता या उसके संरक्षक को सजा नहीं दिला पायी। वहीं अपने पूरे कार्यकाल में भाजपा की सरकार ने जिस नारायणदत्त तिवारी के कुशासन में ये घोटाले हुए उनको ही अपने मंचों में आये दिन गले लगाते रहे। यही नहीं निशंक सरकार पर भी तथाकथित अनिमियताओं के आरोप भाजपा नेता खण्डूडी ही केन्द्रीय नेतृत्व समक्ष लगाते रहे, उसके बाद सत्ता मिलते ही वे उन घोटालों के जिम्मेदार को दण्डित कराने के बजाय उस पर चुप्पी साध गयें। इसके बाद भाजपा के जिन घोटालों पर विपक्ष में रहते हुए कांग्रेसी नेताओं ने सड़क, विधानसभा से लेकर राज्यपाल तक के दर पर घडियाली आंसू बहाये, सत्ता में आने के बाद उन घोटालों पर कार्यवाही करना तो रहा दूर उस तरफ नजर भी उठा कर नहीं देख रहे है। जिस भाटी आयोग की रिपोर्ट में जिन नेताओं का नाम आया उनके नाम से पुलिस से नामजद रिपोर्ट कराने का साहस तक कांग्रेस की बहुगुणा सरकार नहीं जुटा पा रही है। हकीकत यह है कि राज्य गठन के बाद सरकार भाजपा की हो या कांग्रेस की दोनों के अंदर ऐसी साझेदारी बनी है कि सत्ता में आते ही वे अपने पूर्व सत्तारूढ़ रही सरकार के घोटालों पर पर्दा ही करेगी। इस प्रकार से दोनों दल सत्ता में रह कर इसी अघोषित समझोते के दम पर ही जम कर घोटाले पर घोटाले कर रहे है। क्योंकि सत्तासीनों को इस बात का पूरा भरोसा है कि सत्ता से हटने के बाद उनके विरोधी सत्तारूढ़ होने पर उनके घोटालों को नजरांदाज ही करेगे। इस प्रकार 12 साल में जितने प्रमुख घोटाले हुए सब जमीदोज किये गये। किसी एक भी गुनाहगार को बेपर्दा व सजा देने का काम प्रदेश की राजनीति में चल रहा है। हाॅं इन दोनों दलों के अलावा इस काण्ड पर उठाने वालों को ये राजनेतिक दल क्या सलूक करते है इसके लिए ज्यादा सर खपाने की जरूरत नहीं है। परन्तु इनके खेल को समझने में अण्णा, केजरीवाल व  रामदेव भी असफल रहे। इसे देख कर पीड़ित जनता इनको सत्ता से बाहर खदेड़ती रही परन्तु ठोस राजनैतिक विकल्प न होने के कारण सत्ता की बंदरबांट करने में ये दोनों दल अब तक सफल रहे। प्रदेश में भाजपा व कांग्रेस के नेताओं के बीच एक दूसरे के भ्रष्टाचार को बचाने के लिए केसे खेल खेला जाता इसका एक छोटा सा नमुना है प्रदेश की राजनीति में इन दिनों चल रहा तेरा मेरा  भ्रष्टाचार का खेल।
उत्तराखंड बीज एवं तराई विकास निगम लि में हुए घोटाले पर हुई भाटी जांच आयोग की चपेट में आये पूर्व मुख्यमंत्री निशंक को अपने बचाव के लिए लाभ के पद पर आसीन वाला एक महत्वपूर्ण मुद्दा हाथ लग गया है। इससे वह न केवल हरक सिंह रावत से अपितु कांग्रेस को भी कटघरे में खडा करने में सफल हो सकते है। राजनीति के विशेषज्ञों का मानना है इसी दवाब के कारण ही बहुगुणा सरकार भाटी आयोग की रिपोर्ट के अनुसार निशंक, द्विवेदी और अधिकारियों पर सीधे कार्यवाही करने का साहस भी नहीं जुटा पा रही है। इसी दवाब को बनाने के लिए भाजपा नेता रमेश पोखरियाल निशंक ने दो टूक शब्दों में कहा कि अगर  इस प्रकरण में  कबीना मंत्री हरकसिंह रावत को अविलम्ब इस्तीफा दे देना चाहिए अगर शीघ्र ही संविधान का खुला उलंघन करके तीन लाभ के पदों में आसीन प्रदेश सरकार के कबीना मंत्री हरक सिंह रावत खुद इन पदों से इस्तीफा नहीं देते तो मुख्यमंत्री को इनको बर्खास्त करना चाहिए। इस प्रकरण में भाजपा राज्यपाल से भी हरकसिंह रावत की सदस्यता समाप्त करने की गुहार लगा चूकी है। इसके साथ भाजपा दो टूक शब्दों में ऐलान कर दिया कि अगर हरक सिंह की तरह मुख्यमंत्री व राज्यपाल भी भाजपा की मांग को नजरांदाज करते हैं तो भाजपा न्यायालय में इस मामले को ले जायेगी।

भाजपा ने एक नहीं तीन लाभ के पद पर आसीन कबीना मंत्री हरक सिंह रावत के प्रकरण को न्यायालय में ले जाने का खुला ऐलान  करने से प्रदेश की सत्ता में आसीन कांग्रेस पर भारी दवाब बना दिया है। गौरतलब है कि इसी प्रकार के लाभ के पद प्रकरण में जया बचन व श्रीमती सोनिया गांधी को संसद सदस्यता से इस्तीफा देना पडा था। इसके बाबजूद प्रदेश कांग्रेस सरकार इस मामले को बहुत ही हल्के में ले रही है। जबकि राजनेता ही नहीं आम जनता को भी इस प्रकरण को सुन कर हैरान है कि क्यों एक मंत्री तीन तीन लाभ के पदों पर भी काबिज है और क्यो प्रदेश सरकार भाटी आयोग द्वारा तराई बीज निगम में हुए घोटाले के मामले में कडी कार्यवाही करने से मुंहमोड़ रही है। इन दोनों प्रकरण से साफ लग रहा है दोनों दलों की नियत दोषियों को सजा दिलाने में नहीं अपितु एक दूसरे के प्रकरणों पर मौन रखने की नूरा कुश्ती  का मात्र एक हिस्सा है।
सबसे हैरानी की बात यह है कि इन सबके बाबजूद कृषि मंत्री डा हरक सिंह रावत उत्तराखंड बीज एवं तराई विकास निगम लि ,उपनल, व बीज प्रमाणीकरण के भी अध्यक्ष पद भी आसीन है।  डा.हरक सिंह रावत तीन-तीन लाभ के पदों पर बैठकर संविधान की मर्यादाओं का उल्लंघन कर चुके हैं। इस कारण संविधान के अनुच्छेद 102 (1) एवं संविधान के अनुच्छेद 191 (1) के तहत वे पूरी तरह से अयोग्य हैं। इसलिए उनकी विधानसभा की सदस्यता समाप्त की जानी चाहिए। इसके पीछे तर्क है कि बिना विधानसभा में विधि पारित किए लाभ के पद पर बिठाना अयोग्यता है। आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा किसी भी कीमत पर कांग्रेस को कटघरे में खडे करने वाले प्रकरण को हाथ से नहीं गंवाना चाहती है। वेसे भी कांग्रेस के अंदर लालबत्तियों के लिए जो मारामारी चल रही है उसे देखते हुए एक नेता के मंत्री पद पर आसीन होने के साथ साथ तीन अन्य लाभ के पदों पर काबिज रहना, आम आदमी के भी गले नहीं उतर रही है।
जानकारों के अनुसार, भाजपा कांग्रेस के इन दो नेताओं के बीच वर्तमान में चल रही नूरा कुश्ती की जंग की जड़ तराई विकास बीज निगम में हुए भ्रष्ट्राचार पर भाटी जांच आयोग की रिपोर्ट है। निशंक गुट का मानना है कि इस प्रकरण के लिए कबीना मंत्री  हरक सिंह के दवाब में ही निशंक को भाटी आयोग में निशाना बनाया गया। इसी से तिलमिलाये भाजपा के नेता व पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल ने डा हरक सिंह रावत के खिलाफ खुल कर मोर्चा खोलते हुए डा हरक सिंह की विधानसभा सदस्यता रद्द करने की पुरजोर मांग की। अपनी इस मांग के समर्थन में भाजपा के एक प्रतिनिधिमण्डल ने  2 अप्रैल को प्रदेश के राज्यपाल से भैंट कर इस आशय का एक ज्ञापन दिया। इस प्रतिनिधि मण्डल में पूर्व मुख्यमंत्री निशंक के अलावा राष्ट्रीय सचिव त्रिवेन्द्र रावत, अध्यक्ष तीरथ रावत, नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट व देहरादून के मेयर विनोद चमोली सम्मलित थे।  राज्यपाल को दिये गये ज्ञापन में भाजपा ने आरोप है कि कृषि मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत की उत्तराखंड बीज एवं तराई विकास निगम लि. तथा उत्तराखंड पूर्व सैनिक कल्याण निगम लि. (उपनल) के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति असंवैधानिक है। दो दो लाभदायी पदों में आसीन होने से जनप्रतिनिधी अधिनियम को खुला उल्लंघन हो रहा है। भाजपा ने राज्यपाल से मांग की कि वे इस उलंघन के कारण संविधान के अनुच्छेद 191 की धारा 2 का संज्ञान लेकर संविधान के अनुच्छेद 192 का उपयोग करते हुए डॉ. हरक सिंह की सदस्यता रद्द करने की  कार्यवाही के लिए सरकार को निर्देशित करें।
प्रदेश में दूसरी पीढ़ी के कांग्रेस व भाजपा दबंग नेताओं कबीना मंत्री हरक सिंह रावत व पूर्व मुख्यमंत्री निशंक के बीच छिडी बर्चस्व की सियासी जंग से इन दिनों प्रदेश की राजनीति में धमाल मचा है। भले ही इन दोनों की जंग में सियासी हडकंप मचा हुआ है परन्तु प्रदेश की आम जनता की नजरों में ये नूरा कुश्ती से ज्यादा नहीं है। एक ही जनपद के निवासी व एक ही पार्टी से राजनीतिक जीवन प्रारम्भ करने वाले उत्तराखण्ड की वर्तमान राजनीति के इन दोनों चर्चित नेताओं की दोस्ती व सियासी जंग का असली राज उनके करीबी भी नहीं जानते है। हाॅं दोनों अपने हितों के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं इसका विश्वास जनता में बना हुआ है। भले ही दोनों पर भ्रष्टाचार का एक भी मामला साबित नहीं हुआ परन्तु आये दिन विवादों में घिरे रहना दोनो की राजनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा सा बन गया है।  दोनों के राजनैतिक चालों से विरोधी ही नहीं अपने दल के नेता भी आशंकित रहते है। प्रदेश की जनता को दोनों से कोई आशा न वर्तमान में है व नहीं भविय में कहीं दिखाई देती है। दोनों प्रदेश की वर्तमान ही नहीं भविष्य की शर्मसार करने वाली राजनीति के प्रतीक के रूप में जाने जाते हैं। हाॅं प्रदेश की आम जनता को इस विवाद में एक यही उत्सुकता है कि इस प्रकार की सियासी जंग से प्रदेश में दबे स्वरों में चर्चाओं में छायी रहने वाली भ्रष्टाचार के कारनामें सुर्खियों में सार्वजनिक हो जाती है और आम जनता के समक्ष अपने भविष्य निर्माताओं की राजनीति का असली चेहरा सामने आ जाता है।  परन्तु इन दोनों दलों के भ्रष्टाचार को संरक्षण देने वाला नेता भूल गये कि उत्तराखण्ड की जनता कभी किसी अनैतिक व भ्रष्टाचारी, जनविरोधी राजनेता को माफ नहीं करती। उनके मंसूबे किसी भी हालत में उत्तराखण्ड की पावन धरती में सफल नहीं होंगे। यहां हर अपराधी को दण्डित करने में भले ही व्यवस्था के हाथ कमजोर पडे परन्तु भगवान बदरीनाथ कभी माफ नहीं करते। यहां कितना भी बड़ा नेता हो अगर वह जनविरोधी कृत्य करता है तो उसको निर्ममता से बेनकाब होना पडता है। कम से कम तिवारी, खण्डूडी, निशंक के बाद अब बहुगुणा के प्रकरण से राजनेताओं की आंखे खुल जानी चाहिए। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय नमो।

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