महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चैहान व नेताजी सुभाष की तरह मोदी के नेतृत्व से वंचित रखने का आत्मघाती षडयंत्र

हम भारतीय परायों (विदेशियों/दूसरों) की  खानपान, पहनावा, भाषा, रीतिरिवाज, धर्म व नेतृत्व को,( चाहे ये बेहद खराब क्यों न हो)तो आंख बंद कर स्वीकार कर लेते हैं  तो बेहतरी से कर लेते हैं परन्तु अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपने खानपान, रीति रिवाज, संस्कार व सही नेतृत्व को अपनी अज्ञानता, छुद्र अहं व संकीर्ण स्वार्थ के कारण दिल से स्वीकार नहीं कर पाते हैं। हम हंस बुद्धि से अच्छाई कहीं की भी हो उसको ग्रहण करने के बजाय दूसरों के गलत को भी स्वीकार और अपने अच्छे व हितकारी चीजों का तिरस्कार कर रहे हैं। हमारी इसी प्रवृति से आज संसार का सर्वश्रेष्ठ संस्कृति  व ज्ञान विज्ञान की प्रखर मेधा का समृद्ध भारत आज संसार का सबसे बड़ा आत्मघाती देश बन गया है। यही हमारी पतन की शताब्दियों की कहानी रही है। जो दुर्भाग्य से आज भी जारी है। हम आज निहित स्वार्थो में अंधे हुए व्यक्तिवादी सोच से ग्रसित हो कर राष्ट्र को मिल कर पतन के गर्त में धकेल रहे हैं। जिस दिन हम भारतीय संस्कृति के मूल तत्व सर्वभूतहितेरता व सत्यमेव जयते को आत्मसात कर लेंगे उस दिन भारत पूरे विश्व में कल्याणकारी व्यवस्था का परचम फेहराने में सफल होगा। अपने निहित स्वार्थो में डूबे हुक्मरानों ने सदा इस देश के मजबूत नेतृत्व को उभरने से पहले ही उसको चक्रव्यूह में घेर कर जमीदोज करने का शर्मनाक कृत्य किया। राजस्थान की धरती ही नहीं भारत की धरती आज भी जयचंदों व मीरजाफरों के दंश से अपने महान युगान्तकारी महाराणा प्रताप व पृथ्वीराज चैहान महान नेतृत्व से वंचित होने से वंचित होना पडा। महाराणा प्रताप व पृथ्वीराज चैहान की तरह ही भारत को नेताजी सुभाष से भी वंचित होना पडा। आज भारत संकीर्ण, भ्रष्ट व पदलोलुपु नेताओं से व्यथित भारत को बचाने के अगर थोडा बहुत कंही कोई आशा की किरण दिखाई दे रही है तो वह है मोदी। आज मोदी जैसे नेतृत्व की भारत में नितांत जरूरत है जो देश को तबाही के गर्त में धकेल चूके बेलगाम भ्रष्ट नौकरशाही, अपनी कुर्सी व तिजारी भरने के लिए देश के हितों को रौंद रहे पदलोलुपु राजनेताओं व धर्मान्ध हैवानों तथा अमेरिका-चीन व पाक के प्यादों को रौंद कर भारत की रक्षा कर सके। परन्तु अफसोस है कि देश की जनता की इस जरूरत को पूरा करने के लिए मार्ग में कांटे विरोधी  दलों की तरफ से नहीं अपितु भाजपा के बौनी मानसिकता के मठाधीशों की तरफ से बिछाये जा रहे हैं। इनको देश से अधिक अपनी पदलोलुपता की चिंता सता रही है। परन्तु ये आज नहीं संभले तो आने वाले समय में देश अपना रास्ता खुद ही तय कर लेगा।

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