मुशर्रफ हुए गिरफतार, न्यायपालिका अहं भरे कदम से पाक में मंडराया फिर आतंकवाद व सेना की तानाशाही का बादल 


मुशर्रफ अपने तानाशाही के दौरान 3नवम्बर 2007 को मुचय न्यायाधीश सहित 60 न्यायाधीशों को गिरफतार करने के जुर्म में पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल मुशर्रफ को इस्लामाबाद स्थित उनके फार्म हाउस से 19 अप्रैल को गिरफतार किया गया। मजिस्टेट के सामने लाल मस्जिद प्रकरण पर भी उनकी पेशी हुई।  क्या इस गिरफतारी को आंख मूद कर समर्थन देगी पाक की सबसे शक्तिशाली सेना। क्योंकि सेना अपने पूर्व प्रमुख को गिरफतार करने को क्या मूक बन कर सहेगी? पाक में भले ही मुशर्रफ तानाशाह रहे परन्तु वर्तमान समय में मुशर्रफ से अधिक तेज तरार व पाक को मजबूत करने वाला कोई नेता दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा है। न्यायपालिका को लोकशाही की शरण में गये तानाशाह को सुधरने का मौका देने के बजाय अपने अहं के लिए पाक को नेतृत्वहीन की गर्त में धकेलना न तो पाक के लिए हितकारी रहेगा व नहीं शेष दुनिया के लिए। न्याय पालिका को चाहिए था कि वह मुशर्रफ के भविष्य का फेसला पाक के अवाम को करने देते। लोकतंत्र की हवा में सांस लेने की अभ्यास कर रही पाक की सबसे मजबूत फोज को पाकिस्तानी न्याय पालिका का यह कदम उसके कदमों को फिर तानाशाही की तरफ बढ़ाने का कारण भी बन सकता है। क्योंकि पाकिस्तान में एक भी बड़ा नेता ऐसा नहीं है जिन पर अगर सही ढ़ग से न्यायपालिका काम करे तो वह देश के वर्तमान कानूनों के अनुसार चुनाव लडने के काबिल हो या जिसको मुर्शरफ की तरह गिरफतार न किये जायं। इसलिए पाक की यह नियति को और बिगाडने के बजाय न्यायपालिका को पाक में अराजकता और न बढाने के लिए काम करना चाहिए। पाकिस्तान में मुशर्रफ ही है जो आतंकी गुटों को भी चाहे तो अंकुश लगा सकते हैं। अमेरिका व चीन के शिकंजे में जकडे पाकिस्तान में बिना मजबूत नेतृत्व के यहां पर आतंकवादी विनाशकारी भारत विरोधी व अमन चैन के दुश्मन बने पाकिस्तानी तालिवानी राज का शिकंजा कसने या फौजी दखल बढ़ने के आसार बढ़े गये है। हालांकि पाकिस्तान में असरदार तबका मामले की नजाकत समझते हुए मुशर्रफ को उसके फार्म हाउस में ही अस्थाई जेल के रूप में तब्दिल करने की कोशिश में लगा है ताकि मुशर्रफ प्रकरण से अपमानित हुई सेना के गुस्से को शांत करने का प्रसास किया जाय।

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