आडवाणी व नीतीश के चक्रव्यूह में फंसा भारत
देश की जनता जहां एक तरफ मनमोहन सिंह सरकार के कुशासन से मुक्ति के लिए जहां मोदी जेसे मजबूत दिशावान नेतृत्व की तरफ आशा भरी निगाह से देख रही है। वहीं दूसरी तरफ भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी व नीतीश कुमार अपनी सत्तालोलुपता के लिए देश को मनमोहनी कुशासन से मुक्ति दिलाने के लिए जनता की आशाओं के पूंज बन चूके नरेन्द्र मोदी की राह में अवसरवादी अवरोध खडा करने का काम कर रहे है। इसी सप्ताह दिल्ली में सम्पन्न हुए जनता दल यू के राष्ट्रीय अधिवेशन में जो धर्म निरपेक्षता का मुखोटा पहन कर नीतीश व उनकी मण्डली ने नरेन्द्र मोदी पर प्रहार किये उससे जनता की नजरों में न केवल नीतीश बेनकाब हुए अपितु उनका आडवाणी स्वीकार्य का दाव से आडवाणी व उनकी मण्डली की नीतीश को आगे करके मोदी की राह रोकने का षडयंत्र बेनकाब हो गया। यही नहीं शिव सेना ने जिस प्रकार का बयान मोदी के सन्दर्भ में दिया उससे इस षडयंत्र की व्यापकता का अहसास खुद व खुद हो रहा है।
देश की जनता हैरान है कि क्यों 2002 में राजग सरकार में वाजपेयी के मंत्रीमण्डल में रेलमंत्री के पद पर आसीन नीतीश कुमार ने क्यों उस समय मोदी को हटाने की मांग नहीं की। क्यों उनके मंत्रालय ने गोधरा प्रकरण पर स्वतंत्र जांच करायी। क्यों उनको 2007 के बाद ही मोदी दागदार नजर आये। क्या इससे नीतीश की अवसरवादी राजनीति बेनकाब नहीं होती। वहीं लाल कृष्ण आडवाणी व उनके साथी जो स्वयं भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक कहलाते है। क्या उनको इस बात का भान नहीं कि भारतीय संस्कृति वयोवृद्ध होने पर वानप्रस्त व नये नेतृत्व को बागडोर सोंपने की सभ्यता से आंखे क्यों मोड रहे है। आडवाणी का भाजपा के मजबूत करने में बहुत योगदान है परन्तु पद के लिए जिन्ना प्रकरण ने उनको अटल की तरह पूरी तरह बेनकाब कर दिया। प्रधानमंत्री का उम्मीदवार न बनाये जाने के बाद उनको लगा कि देश की जनता का भाजपा से मोह भंग हो गया। क्यों अब उनको लगने लगा कि वह पार्टी अब उनके सपनो ंकी पार्टी नहीं। यह हकीकत भी है परन्तु आडवाणी यह बात केवल अंगूर खट्टे होने के कारण बोल रहे है। हालांकि पार्टी की इस स्थिति में पंहुचाने के लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो वह संघ व आडवाणी ही है। जिन्होंने सुषमा, वेंकटया व अनंत तथा जेटली जैसे बंद कमरोे में आसीन रहने वाले नेताओं को बढावा दे कर उमा भारती, कल्याण सिंह, मदन लाल खुराना व गोविन्दा चार्य जैसे नेताओं को हाशिये में डाल कर भाजपा को कांग्रेस से बदतर बना डाला। आज भाजपा में जातिवाद, भ्रष्टाचार व अवसरवाद भाजपा व संघ के सिद्धांतों पर भारी पड चूका है। यहां पर जनसमर्पित नेताओं के बजाय तिकडमी व संकीर्ण नेताओं को सत्ता व संगठन में महत्व दिया जा रहा है। इन सबके बाबजूद आज देश के पास मोदी जैसे नेता अंधेरे में रोशनी की किरण के समान है, जिस पर देश की जनता को विश्वास है परन्तु भाजपा व जदयू की महत्वकांक्षी नेताओं की टोली इसको बर्बाद करके देश को पतन के गर्त में धकेलने के चक्रव्यूह रच रही है। क्योंकि इन सभी नेताओं को लग रहा है कि इस बार जनता का कांग्रेस से मोह भंग है और वे प्रधानमंत्री बन सकते है। इसी अंधी लालशा से आडवाणी, नीतीश ही नहीं, सुषमा, जेटली, गडकरी, जोशी व शरद यादव भी प्रधानमंत्री बनने का दिवास्वप्न को साकार करने के लिए मोदी का खेल बिगाडने में लगे हुए है। इसमे ं यशवंत सिंन्हा, जसवंत सिंह, शिवराज चोहान ही नहीं संघ व भाजपा के एक मजबूत तबका लगा हुआ है। परन्तु देश की जनता भले ही माफ कर दे परन्तु इनके षडयंत्र को महाकाल कभी माफ नहीं कर सकता। देश की एकता व अखण्डता की रक्षा के लिए आज मोदी जैसे नेतृत्व की नितांत आवश्यकता है। इसलिए मोदी की राह रोकने के लिए जो भी षडयंत्र किये जायेंगे वे निस्तेज व बेनकाब होते रहेंगे।
हम भारतीय परायों (विदेशियों/दूसरों) की खानपान, पहनावा, भाषा, रीतिरिवाज, धर्म व नेतृत्व को,( चाहे ये बेहद खराब क्यों न हो)तो आंख बंद कर स्वीकार कर लेते हैं तो बेहतरी से कर लेते हैं परन्तु अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपने खानपान, रीति रिवाज, संस्कार व सही नेतृत्व को अपनी अज्ञानता, छुद्र अहं व संकीर्ण स्वार्थ के कारण दिल से स्वीकार नहीं कर पाते हैं। हम हंस बुद्धि से अच्छाई कहीं की भी हो उसको ग्रहण करने के बजाय दूसरों के गलत को भी स्वीकार और अपने अच्छे व हितकारी चीजों का तिरस्कार कर रहे हैं। हमारी इसी प्रवृति से आज संसार का सर्वश्रेष्ठ संस्कृति व ज्ञान विज्ञान की प्रखर मेधा का समृद्ध भारत आज संसार का सबसे बड़ा आत्मघाती देश बन गया है। यही हमारी पतन की शताब्दियों की कहानी रही है। जो दुर्भाग्य से आज भी जारी है। हम आज निहित स्वार्थो में अंधे हुए व्यक्तिवादी सोच से ग्रसित हो कर राष्ट्र को मिल कर पतन के गर्त में धकेल रहे हैं। जिस दिन हम भारतीय संस्कृति के मूल तत्व सर्वभूतहितेरता व सत्यमेव जयते को आत्मसात कर लेंगे उस दिन भारत पूरे विश्व में कल्याणकारी व्यवस्था का परचम फेहराने में सफल होगा। अपने निहित स्वार्थो में डूबे हुक्मरानों ने सदा इस देश के मजबूत नेतृत्व को उभरने से पहले ही उसको चक्रव्यूह में घेर कर जमीदोज करने का शर्मनाक कृत्य किया। राजस्थान की धरती ही नहीं भारत की धरती आज भी जयचंदों व मीरजाफरों के दंश से अपने महान युगान्तकारी महाराणा प्रताप व पृथ्वीराज चैहान महान नेतृत्व से वंचित होने से वंचित होना पडा। महाराणा प्रताप व पृथ्वीराज चैहान की तरह ही भारत को नेताजी सुभाष से भी वंचित होना पडा। आज भारत संकीर्ण, भ्रष्ट व पदलोलुपु नेताओं से व्यथित भारत को बचाने के अगर थोडा बहुत कंही कोई आशा की किरण दिखाई दे रही है तो वह है मोदी। आज मोदी जैसे नेतृत्व की भारत में नितांत जरूरत है जो देश को तबाही के गर्त में धकेल चूके बेलगाम भ्रष्ट नौकरशाही, अपनी कुर्सी व तिजारी भरने के लिए देश के हितों को रौंद रहे पदलोलुपु राजनेताओं व धर्मान्ध हैवानों तथा अमेरिका-चीन व पाक के प्यादों को रौंद कर भारत की रक्षा कर सके। परन्तु अफसोस है कि देश की जनता की इस जरूरत को पूरा करने के लिए मार्ग में कांटे विरोधी दलों की तरफ से नहीं अपितु भाजपा के बौनी मानसिकता के मठाधीशों की तरफ से बिछाये जा रहे हैं। इनको देश से अधिक अपनी पदलोलुपता की चिंता सता रही है। परन्तु ये आज नहीं संभले तो आने वाले समय में देश अपना रास्ता खुद ही तय कर लेगा। वर्तमान राजनेताओं में प्रधानमंत्री के सर्वश्रेष्ठ दावेदार हैं नरेन्द्र मोदी
मोदी के कई अच्छे गुण है तो कई कमजोरियां भी हो सकती है। ऐसा भी नहीं कि मोदी सर्वगुण सम्पन्न बता रहे है। मोदी के हर काम सही हो ऐसा भी हम दावा नहीं कर रहे है। आखिरकार मोदी भी हमारे पतनोमुख समाज का ही एक अंग है। हो सकता है उनमें भी कई कमियां होगी। परन्तु वर्तमान में देश में आडवाणी, नीतीश, राहुल व मनमोहन आदि जितने भी नेताओं के नाम भावी प्रधानमंत्री के नाम से चर्चाओं में हैं उनमें से मोदी सब पर इक्कीस साबित होते है। सवाल इस घनघोर पतन के गर्त में डूबे इस देश को इस पतन से निकालने का है। इसलिए हमें जो भी वर्तमान में सहारा मिलेगा अब उसी का सदप्रयोग करके इस पतन से देश को उबारने के लिए इस प्रकार के तिनके को ही पतवार बना कर इस भ्रष्टाचारी गटर से देश से बाहर निकालना होगा। हमारे पास केवल दो ही विकल्प हैं या तो हम इन अमेरिका, चीन व पाक के हाथों देश को लुटवा कर देश को आतंकवाद, भ्रष्टाचार , आरजकता रूपि कुशासन के गर्त में धकेलने वालों को चुने या देश के आत्मसम्मान की रक्षा करने वाले, आतंकियों को रौंदने वाले, भ्रष्टाचारी तंत्र को भयभीत करने वाले दृढ़ इच्छा शक्ति सम्पन्न मोदी का सहारा ले कर देश की रक्षा करें। आज हमारे समाज का इतना पतन हो गया है कि लोग अपने संकीर्ण स्वार्थ, जाति, धर्म, क्षेत्र, लिंग व नस्लवाद में अंधे हो कर किसी के अच्छे कामों को भी स्वीकार करने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाते है। जब तक देश में अच्छे कार्यो का स्वीकार करके समर्थन करने व गलत कार्यो का विरोध करने की हंस प्रवृति नहीं होगी तब तक देश, समाज व व्यक्ति किसी का नैतिक उत्थान हो ही नहीं सकता। हमे आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। लकीर के फकीर बनके व छदम् धर्मनिरपेक्षता के नाम पर देश, समाज, मानवता के साथ साथ भारतीय संस्कृति का गला घोंटने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती। भारतीय संस्कृति कभी मानव तो रहा दूर जीव मात्र ही नहीं सकल सृष्टि को प्रभुमय मान कर उसका सम्मान करने की सीख देती है। वह कभी किसी से पक्षपात, शोषण व अन्याय करने की इजाजत नहीं देती। अज्ञानता के कारण लोग कुंए के मैढ़क बन कर भारतीयता को साम्प्रदायिकता का पर्याय मानने की भूल कर राष्ट्र का अहित कर रहे है। क्या जड़ चेतन के कल्याण के लिए समर्पित संस्कृति की ध्वज वाहक भारतीय संस्कृति की बात करना साम्प्रदायिकता और भारतीय मूल्यों को रौंदने वाले धर्म निरपेक्ष है तो ऐसी धर्मनिरपेक्षता का लानत है। इसकी आड़ में भारत को कमजोर करने का जो षडयंत्र चल रहा है वह कभी अपने लक्ष्य पर नहीं पंहुच पायेगा। यह षडयंत्र मानवता ही नहीं सृष्टि के नियमों के प्रतिकूल है। एक मोका इस देश में नरेन्द्र मोदी जेसे दृढ़ इच्छा शक्ति सम्पन्न नेता को प्रधानमंत्री के रूप में मिलना ही चाहिए। अगर मोदी भी जनांकांक्षाओं को साकार करने में असफल रहेंगे तो देश की जनता अटल व वीपीसिंह सहित तमाम पूर्ववर्ती नेताओं की तरह सत्ता से उखाड़ फेंकने में देर नहीं लगायेगी।
मोदी के नेतृत्व से वंचित रखने का आत्मघाती षडयंत्र
देश की जनता जहां एक तरफ मनमोहन सिंह सरकार के कुशासन से मुक्ति के लिए जहां मोदी जेसे मजबूत दिशावान नेतृत्व की तरफ आशा भरी निगाह से देख रही है। वहीं दूसरी तरफ भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी व नीतीश कुमार अपनी सत्तालोलुपता के लिए देश को मनमोहनी कुशासन से मुक्ति दिलाने के लिए जनता की आशाओं के पूंज बन चूके नरेन्द्र मोदी की राह में अवसरवादी अवरोध खडा करने का काम कर रहे है। इसी सप्ताह दिल्ली में सम्पन्न हुए जनता दल यू के राष्ट्रीय अधिवेशन में जो धर्म निरपेक्षता का मुखोटा पहन कर नीतीश व उनकी मण्डली ने नरेन्द्र मोदी पर प्रहार किये उससे जनता की नजरों में न केवल नीतीश बेनकाब हुए अपितु उनका आडवाणी स्वीकार्य का दाव से आडवाणी व उनकी मण्डली की नीतीश को आगे करके मोदी की राह रोकने का षडयंत्र बेनकाब हो गया। यही नहीं शिव सेना ने जिस प्रकार का बयान मोदी के सन्दर्भ में दिया उससे इस षडयंत्र की व्यापकता का अहसास खुद व खुद हो रहा है।
देश की जनता हैरान है कि क्यों 2002 में राजग सरकार में वाजपेयी के मंत्रीमण्डल में रेलमंत्री के पद पर आसीन नीतीश कुमार ने क्यों उस समय मोदी को हटाने की मांग नहीं की। क्यों उनके मंत्रालय ने गोधरा प्रकरण पर स्वतंत्र जांच करायी। क्यों उनको 2007 के बाद ही मोदी दागदार नजर आये। क्या इससे नीतीश की अवसरवादी राजनीति बेनकाब नहीं होती। वहीं लाल कृष्ण आडवाणी व उनके साथी जो स्वयं भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक कहलाते है। क्या उनको इस बात का भान नहीं कि भारतीय संस्कृति वयोवृद्ध होने पर वानप्रस्त व नये नेतृत्व को बागडोर सोंपने की सभ्यता से आंखे क्यों मोड रहे है। आडवाणी का भाजपा के मजबूत करने में बहुत योगदान है परन्तु पद के लिए जिन्ना प्रकरण ने उनको अटल की तरह पूरी तरह बेनकाब कर दिया। प्रधानमंत्री का उम्मीदवार न बनाये जाने के बाद उनको लगा कि देश की जनता का भाजपा से मोह भंग हो गया। क्यों अब उनको लगने लगा कि वह पार्टी अब उनके सपनो ंकी पार्टी नहीं। यह हकीकत भी है परन्तु आडवाणी यह बात केवल अंगूर खट्टे होने के कारण बोल रहे है। हालांकि पार्टी की इस स्थिति में पंहुचाने के लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो वह संघ व आडवाणी ही है। जिन्होंने सुषमा, वेंकटया व अनंत तथा जेटली जैसे बंद कमरोे में आसीन रहने वाले नेताओं को बढावा दे कर उमा भारती, कल्याण सिंह, मदन लाल खुराना व गोविन्दा चार्य जैसे नेताओं को हाशिये में डाल कर भाजपा को कांग्रेस से बदतर बना डाला। आज भाजपा में जातिवाद, भ्रष्टाचार व अवसरवाद भाजपा व संघ के सिद्धांतों पर भारी पड चूका है। यहां पर जनसमर्पित नेताओं के बजाय तिकडमी व संकीर्ण नेताओं को सत्ता व संगठन में महत्व दिया जा रहा है। इन सबके बाबजूद आज देश के पास मोदी जैसे नेता अंधेरे में रोशनी की किरण के समान है, जिस पर देश की जनता को विश्वास है परन्तु भाजपा व जदयू की महत्वकांक्षी नेताओं की टोली इसको बर्बाद करके देश को पतन के गर्त में धकेलने के चक्रव्यूह रच रही है। क्योंकि इन सभी नेताओं को लग रहा है कि इस बार जनता का कांग्रेस से मोह भंग है और वे प्रधानमंत्री बन सकते है। इसी अंधी लालशा से आडवाणी, नीतीश ही नहीं, सुषमा, जेटली, गडकरी, जोशी व शरद यादव भी प्रधानमंत्री बनने का दिवास्वप्न को साकार करने के लिए मोदी का खेल बिगाडने में लगे हुए है। इसमे ं यशवंत सिंन्हा, जसवंत सिंह, शिवराज चोहान ही नहीं संघ व भाजपा के एक मजबूत तबका लगा हुआ है। परन्तु देश की जनता भले ही माफ कर दे परन्तु इनके षडयंत्र को महाकाल कभी माफ नहीं कर सकता। देश की एकता व अखण्डता की रक्षा के लिए आज मोदी जैसे नेतृत्व की नितांत आवश्यकता है। इसलिए मोदी की राह रोकने के लिए जो भी षडयंत्र किये जायेंगे वे निस्तेज व बेनकाब होते रहेंगे।
हम भारतीय परायों (विदेशियों/दूसरों) की खानपान, पहनावा, भाषा, रीतिरिवाज, धर्म व नेतृत्व को,( चाहे ये बेहद खराब क्यों न हो)तो आंख बंद कर स्वीकार कर लेते हैं तो बेहतरी से कर लेते हैं परन्तु अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपने खानपान, रीति रिवाज, संस्कार व सही नेतृत्व को अपनी अज्ञानता, छुद्र अहं व संकीर्ण स्वार्थ के कारण दिल से स्वीकार नहीं कर पाते हैं। हम हंस बुद्धि से अच्छाई कहीं की भी हो उसको ग्रहण करने के बजाय दूसरों के गलत को भी स्वीकार और अपने अच्छे व हितकारी चीजों का तिरस्कार कर रहे हैं। हमारी इसी प्रवृति से आज संसार का सर्वश्रेष्ठ संस्कृति व ज्ञान विज्ञान की प्रखर मेधा का समृद्ध भारत आज संसार का सबसे बड़ा आत्मघाती देश बन गया है। यही हमारी पतन की शताब्दियों की कहानी रही है। जो दुर्भाग्य से आज भी जारी है। हम आज निहित स्वार्थो में अंधे हुए व्यक्तिवादी सोच से ग्रसित हो कर राष्ट्र को मिल कर पतन के गर्त में धकेल रहे हैं। जिस दिन हम भारतीय संस्कृति के मूल तत्व सर्वभूतहितेरता व सत्यमेव जयते को आत्मसात कर लेंगे उस दिन भारत पूरे विश्व में कल्याणकारी व्यवस्था का परचम फेहराने में सफल होगा। अपने निहित स्वार्थो में डूबे हुक्मरानों ने सदा इस देश के मजबूत नेतृत्व को उभरने से पहले ही उसको चक्रव्यूह में घेर कर जमीदोज करने का शर्मनाक कृत्य किया। राजस्थान की धरती ही नहीं भारत की धरती आज भी जयचंदों व मीरजाफरों के दंश से अपने महान युगान्तकारी महाराणा प्रताप व पृथ्वीराज चैहान महान नेतृत्व से वंचित होने से वंचित होना पडा। महाराणा प्रताप व पृथ्वीराज चैहान की तरह ही भारत को नेताजी सुभाष से भी वंचित होना पडा। आज भारत संकीर्ण, भ्रष्ट व पदलोलुपु नेताओं से व्यथित भारत को बचाने के अगर थोडा बहुत कंही कोई आशा की किरण दिखाई दे रही है तो वह है मोदी। आज मोदी जैसे नेतृत्व की भारत में नितांत जरूरत है जो देश को तबाही के गर्त में धकेल चूके बेलगाम भ्रष्ट नौकरशाही, अपनी कुर्सी व तिजारी भरने के लिए देश के हितों को रौंद रहे पदलोलुपु राजनेताओं व धर्मान्ध हैवानों तथा अमेरिका-चीन व पाक के प्यादों को रौंद कर भारत की रक्षा कर सके। परन्तु अफसोस है कि देश की जनता की इस जरूरत को पूरा करने के लिए मार्ग में कांटे विरोधी दलों की तरफ से नहीं अपितु भाजपा के बौनी मानसिकता के मठाधीशों की तरफ से बिछाये जा रहे हैं। इनको देश से अधिक अपनी पदलोलुपता की चिंता सता रही है। परन्तु ये आज नहीं संभले तो आने वाले समय में देश अपना रास्ता खुद ही तय कर लेगा। वर्तमान राजनेताओं में प्रधानमंत्री के सर्वश्रेष्ठ दावेदार हैं नरेन्द्र मोदी
मोदी के कई अच्छे गुण है तो कई कमजोरियां भी हो सकती है। ऐसा भी नहीं कि मोदी सर्वगुण सम्पन्न बता रहे है। मोदी के हर काम सही हो ऐसा भी हम दावा नहीं कर रहे है। आखिरकार मोदी भी हमारे पतनोमुख समाज का ही एक अंग है। हो सकता है उनमें भी कई कमियां होगी। परन्तु वर्तमान में देश में आडवाणी, नीतीश, राहुल व मनमोहन आदि जितने भी नेताओं के नाम भावी प्रधानमंत्री के नाम से चर्चाओं में हैं उनमें से मोदी सब पर इक्कीस साबित होते है। सवाल इस घनघोर पतन के गर्त में डूबे इस देश को इस पतन से निकालने का है। इसलिए हमें जो भी वर्तमान में सहारा मिलेगा अब उसी का सदप्रयोग करके इस पतन से देश को उबारने के लिए इस प्रकार के तिनके को ही पतवार बना कर इस भ्रष्टाचारी गटर से देश से बाहर निकालना होगा। हमारे पास केवल दो ही विकल्प हैं या तो हम इन अमेरिका, चीन व पाक के हाथों देश को लुटवा कर देश को आतंकवाद, भ्रष्टाचार , आरजकता रूपि कुशासन के गर्त में धकेलने वालों को चुने या देश के आत्मसम्मान की रक्षा करने वाले, आतंकियों को रौंदने वाले, भ्रष्टाचारी तंत्र को भयभीत करने वाले दृढ़ इच्छा शक्ति सम्पन्न मोदी का सहारा ले कर देश की रक्षा करें। आज हमारे समाज का इतना पतन हो गया है कि लोग अपने संकीर्ण स्वार्थ, जाति, धर्म, क्षेत्र, लिंग व नस्लवाद में अंधे हो कर किसी के अच्छे कामों को भी स्वीकार करने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाते है। जब तक देश में अच्छे कार्यो का स्वीकार करके समर्थन करने व गलत कार्यो का विरोध करने की हंस प्रवृति नहीं होगी तब तक देश, समाज व व्यक्ति किसी का नैतिक उत्थान हो ही नहीं सकता। हमे आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। लकीर के फकीर बनके व छदम् धर्मनिरपेक्षता के नाम पर देश, समाज, मानवता के साथ साथ भारतीय संस्कृति का गला घोंटने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती। भारतीय संस्कृति कभी मानव तो रहा दूर जीव मात्र ही नहीं सकल सृष्टि को प्रभुमय मान कर उसका सम्मान करने की सीख देती है। वह कभी किसी से पक्षपात, शोषण व अन्याय करने की इजाजत नहीं देती। अज्ञानता के कारण लोग कुंए के मैढ़क बन कर भारतीयता को साम्प्रदायिकता का पर्याय मानने की भूल कर राष्ट्र का अहित कर रहे है। क्या जड़ चेतन के कल्याण के लिए समर्पित संस्कृति की ध्वज वाहक भारतीय संस्कृति की बात करना साम्प्रदायिकता और भारतीय मूल्यों को रौंदने वाले धर्म निरपेक्ष है तो ऐसी धर्मनिरपेक्षता का लानत है। इसकी आड़ में भारत को कमजोर करने का जो षडयंत्र चल रहा है वह कभी अपने लक्ष्य पर नहीं पंहुच पायेगा। यह षडयंत्र मानवता ही नहीं सृष्टि के नियमों के प्रतिकूल है। एक मोका इस देश में नरेन्द्र मोदी जेसे दृढ़ इच्छा शक्ति सम्पन्न नेता को प्रधानमंत्री के रूप में मिलना ही चाहिए। अगर मोदी भी जनांकांक्षाओं को साकार करने में असफल रहेंगे तो देश की जनता अटल व वीपीसिंह सहित तमाम पूर्ववर्ती नेताओं की तरह सत्ता से उखाड़ फेंकने में देर नहीं लगायेगी।
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