2 अक्टूबर को उत्तराखण्डियों ने संसद के दर पर मनाया काला दिवस
मुजफ्फरनगर काण्ड-1994 के अभियुक्तों को दण्डित न किये जाने के विरोध में
2 अक्टूबर को उत्तराखण्डियों ने संसद के दर पर मनाया काला दिवस
नई दिल्ली (प्याउ)। 2 अक्टूबर 2011 को गांधी जयंती के दिन 17 साल बाद भी देश की व्यवस्था द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय व देश की सर्वोच्च जांच ऐजेन्सी सीबीआई द्वारा दोषी ठहराये गये अपराधियों को 17 साल बाद भी देश की व्यवस्था द्वारा दण्डित करने के बजाय पद्दोन्नित करके पुरस्कृत करने के विरोध में आक्रोशित व आहत उत्तराखण्डियों ने संसद की चैखट में काला दिवस मना कर देश के हुक्मरानों का धिक्कारा। इस आशय का एक रौषयुक्त ज्ञापन राष्ट्रपति महोदया को भी भैंट किया गया। ज्ञापन में राष्ट्रपति से देश की व्यवस्था के रक्षकों द्वारा देश के संविधान व मानवता को रौंदने वाले इस जघन्य काण्ड के दोषियों को तत्काल सजा दे कर भारतीय संस्कृति व न्याय की रक्षा करने का गुहार की लगाई गयी। उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन के प्रमुख संगठनों ने ‘उत्तराखण्ड आंदोलनकारी संगठनों की समन्वय समिति’ के बैनर तले आयोजित इस काला दिवस में उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा, उत्तराखण्ड राज्य लोकमंच, उत्तराखण्ड जनमोर्चा, उत्तराखण्ड महासभा, म्यर उत्तराखण्ड, उत्तराखण्ड आर्य समाज व उत्तराखण्ड क्रांतिदल सहित उत्त्ंाराखण्ड राज्य आंदोलन के सभी प्रमुख आंदोलनकारी संगठनों व उत्त्राखण्ड के प्रमुख सामाजिक संगठनों ने भाग लेते हुए मुजफ्फरनगर काण्ड-1994 सहित राज्य गठन जनांदोलन के सभी शहीदों को अपनी भाव भीनी श्रद्वांजलि अर्पित करते हुए ‘उत्तराखण्ड राज्य आंदोेलन के शहीद अमर रहे, मुजफ्फरनगर काण्ड के शहीद अमर रहे, मुजफ्फरनगर काण्ड के दोषियों को सजा दो, मनमोहनसिंह-खण्डूडी शर्म करो’ आदि गगनभेदी नारे लगाये। इस अवसर पर आंदोलनकारियों ने उत्तराखण्ड प्रदेश की अब तक की सरकारों को प्रदेश के आत्मसम्मान व जनांकांक्षाओं को रौंदने पर कड़ी भत्र्सना करते हुए उनको राव-मुलायम से बदतर बताया।
इस अवसर पर प्रदेश की राजधानी गैरसैंण, राज्य आंदोलनकारी सहित तमाम उत्तराखण्डी हितों की रक्षा के लिए सभी संगठनों की एक समिति का प्रमुख आंदोलनकारी देवसिंह रावत के नेतृत्व गठन करने का संयुक्त संघर्ष समिति के अध्यक्ष धीरेन्द्र प्रताप द्वारा रखे गये प्रस्ताव का उपस्थित आंदोलनकारियों के साथ श्रद्वांजलि सभा में उपस्थित भाजपा नेता व प्रवासी समन्वय समिति के दर्जाधारी मंत्री पूरण चंद नैनवाल व महासभा के अध्यक्ष हरिपाल रावत ने सर्वसम्मति ने एक स्वर में समर्थन करके पारित किया। यह समिति भाजपा व कांग्रेस से प्रदेश के हितों की रक्षा से संबधित प्रस्तावों को यथाशीघ्र सम्मलित कराने के लिए संयुक्त प्रयास करेगी। राष्ट्रपति को ज्ञापन देने को वरिष्ठ आंदोलनकारी खुशहाल सिंह बिष्ट व डा एस एन वसलियाल गये। समारोह का संचालन आंदोलनकारी संगठनों के संयोजक देवसिंह रावत ने किया।
गौरतलब है कि देश की एकता, अखण्डता व विकास के लिए समर्पित रहे ‘उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन’ में गांधी जयंती की पूर्व संध्या 1 अक्टूबर 1994 को, 2 अक्टूबर 1994 को आहुत लाल किला रेली में भाग लेने आ रहे शांतिप्रिय हजारों उत्तराखण्डियों को, मुजफ्फरनगर स्थित रामपुर तिराहे पर अलोकतांत्रिक ढ़ग से बलात रोक कर जो अमानवीय जुल्म, व्यभिचार व कत्लेआम उत्त्र प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार व केन्द्र में सत्तसीन नरसिंह राव की कांग्रेसी सरकार ने किये, उससे न केवल भारतीय संस्कृति अपितु मानवता भी शर्मसार हुई। परन्तु सबसे खेद कि बात है कि जिस भारतीय गौरवशाली संस्कृति में नारी को जगत जननी का स्वरूप मानते हुए सदैव वंदनीय रही है वहां पर उससे व्यभिचार करने वाले सरकारी तंत्र में आसीन इस काण्ड के अपराधियों को दण्डित करने के बजाय शर्मनाक ढ़ग से संरक्षण देते हुए पद्दोन्नति दे कर पुरस्कृत किया गया। सबसे हैरानी की बात है कि जिस मुजफ्फरनगर काण्ड-94 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मानवता पर कलंक बताते हुए इसे शासन द्वारा नागरिकों पर किये गये बर्बर नाजी अत्याचारों के समकक्ष रखते हुए इस काण्ड के लिए तत्कालीन मुजफ्फनगर जनपद(उप्र) के जिलाधिकारी अनन्त कुमार सिंह व पुलिस अधिकारियों डीआईजी बुआ सिंह व नसीम इत्यादि को सीधे दोषी ठहराते हुए इनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने का ऐतिहासिक फैसला दिया था। यही नहीं माननीय उच्च न्यायालय ने केन्द्र व राज्य सरकार को उत्तराखण्ड के विकास के प्रति उदासीन भैदभावपूर्ण दुरव्यवहार करने का दोषी मानते हुए दोनों सरकारों को यहां के विकास के लिए त्वरित कार्य करने का फैसला भी दिया था। जिस काण्ड पर देश की सर्वोच्च जांच ऐजेन्सी सीबीआई ने जिन अधिकारियों को दोषी ठहराया था, जिनको महिला आयोग से लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग दोषी मानता हो परन्तु दुर्भाग्य है कि इस देश में जहां सदैव ‘सत्यमेव जयते’ का उदघोष गुंजायमान रहता हो, वहां पर उच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के बाद अपराधियों व उनके आकाओं के हाथ इतने मजबूत रहे कि देश की न्याय व्यवस्था उनको दण्डित करने में आज 17 साल बाद भी अक्षम रही है। भारतीय व्यवस्था के इसी बौनेपन से आक्रोशित देश विदेश में रहने वाले सवा करोड़ उत्तराखंडी 1994 से निरंतर आज तक देश की व्यवस्था के शीर्षपदों पर आरूढ़ सत्तसीनों की सोई हुई आत्मा को जागृत करने के लिए एवं उनको उनके दायित्व बोध कराने के लिए निरंतर 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन काला दिवस मना कर न्याय की गुहार लगाते है
इस काण्ड से पीड़ित उत्तराखण्ड की सवा करोड़ जनता को आशा थी कि राज्य गठन के बाद उत्तराखण्ड की राज्य सरकार इस काण्ड के दोषियों को सजा दिलाने को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का काम करेगी। परन्तु हमारा दुर्भाग्य रहा कि वहां पर स्वामी, कोश्यारी, तिवारी, खंडूडी व निशंक जैसे पदलोलुप नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन रहे। इनके शासन में इस काण्ड के अपराधियों को दण्डित करने के बजाय उनको संरक्षण देने की शर्मनाक कृत्य किया गया।
संसद की चोखट पर काला दिवस मनाने वालों में उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष देवसिंह रावत, संयोजक अवतार सिंह रावत, जनमोर्चा के अध्यक्ष जगदीश नेगी व महासचिव डा एस एन बसलियाल, उत्तराखण्ड राज्य लोकमंच के बृजमोहन उप्रेती, व दिनेश ध्यानी, महासभा के हरिपाल रावत एवं अनिल पंत , प्यर उत्तराखण्ड के अध्यक्ष मोहन बिष्ट व महासचिव सुदर्शन रावत, पत्रकार हरीश लखेड़ा व उनकी छोटी बेटी, उजसमो के खुशहाल सिंह बिष्ट, महासचिव जगदीश भट्ट, उपा. विनोद नेगी, देशबंधु बिष्ट व जगमोहन रावत, जनमोर्चा की श्रीमती ऊषा नेगी, उत्तराखण्ड क्रांतिदल के उपाध्यक्ष प्रताप शाही, उत्तराखण्ड मानवाधिकार संगठन के अध्यक्ष एस के शर्मा, उत्तराखण्ड आर्य समाज विकास समिति के महासचिव रमेश हितैषी व गोविन्द कोहली, समाजसेवी हरीश प्रकाश आर्य, पत्रकार सतेन्द्र रावत, जनमोेर्चा के राम भरोसे ढोडियाल, हुकमसिंह कण्डारी, अखिल भारतीय विकास समिति के महासचिव ए एस मेहरा, म्यर उत्तराखण्ड के धीरेन्द्र अधिकारी, भूपाल सिंह बिष्ट, हरीश रावत, नन्दन मेहता, सुमित बनेशी, मनोज पालीवाल, कुलदीपसिंह, गिरीश बिष्ट , सुरेन्द्र सिंह, भारतीय भाषा आंदोलन के राष्ट्रीय पुरोधा राजकरण सिंह,ं भगवत ंसिंह, विवेक पटवाल, भाष्कर काण्डपाल, प्रताप सिंह, गुंजन नैथानी, जेयेन्द्र नेगी, एस एस रावत, राजेन्द्रसिंह, त्रिलोक सिंह रावत, नीरज पंवार, अंकित राणा, जसपाल, अंकित खंडूडी, कवि पृथ्वी सिंह केदारखण्डी, ंजलीरामं, जगदीश,ं चंदन दर्पण, ंअमित आर्य, खेम चन्द्रा, वेद प्रकाश, भवान चंद, दलवीर गोदियाल, हरीश आर्य, ललित मोहन पाण्डे, कवि ओम प्रकाश आर्य, भुवन चंद, ंतरूण चैहान, देवेन्द्र चैहान, आर बी ढौडियाल, प्रताप रावत, पत्रकार दयाल सिंह बिष्ट, विकास चमोली, सुश्री शिवानी सिंह, रोहित, धीरज जोशी, कलम सिंह रावत, धनसिंह नेगी, नन्दन मेहता, विद्यादत्त, साहित्यकार डा. भगवती प्रसाद मिश्र, एन सी बिनवाल, आर पी चमोली, के सी पाण्डे, वी एस नेगी, अर्जुन सिंह गुसांई, योगेन्द्रं सिंह, उत्तराखण्ड क्लब के बीपी पुरी, जी एस रौतेला, विक्रम सिंह रावत, सुनील दत्त बन्दूणी, होशियार सिंह रावत, गुड्डी देवी रावत, बी एस रावत, अधिवक्ता आशुतोष, नरेन्द्र बड्थ्वाल, शिवचरण मुण्डेपी, बलराम सरस्वती आदि सम्मलित थे। इस अवसर पर आंदोलनकारियों को श्रद्वांजलि अर्पित करने के लिए एस एस रावत एलआईसी द्वारा बड़ी संख्या में लाये गये पोस्टर नुमा बेनरों से श्रद्वांजलि स्थल सजाया हुआ था। वहीं आंदोलनकारियों ने काले रिब्बन लगा कर अपने विरोध का इजहार किया। सभा के प्रारम्भ में हीं राज्य जनांदोलन के शहीदों की स्मृति को शतः शतः नमन् करने के लिए एक मिनट का मौन रखा गया।
2 अक्टूबर को उत्तराखण्डियों ने संसद के दर पर मनाया काला दिवस
नई दिल्ली (प्याउ)। 2 अक्टूबर 2011 को गांधी जयंती के दिन 17 साल बाद भी देश की व्यवस्था द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय व देश की सर्वोच्च जांच ऐजेन्सी सीबीआई द्वारा दोषी ठहराये गये अपराधियों को 17 साल बाद भी देश की व्यवस्था द्वारा दण्डित करने के बजाय पद्दोन्नित करके पुरस्कृत करने के विरोध में आक्रोशित व आहत उत्तराखण्डियों ने संसद की चैखट में काला दिवस मना कर देश के हुक्मरानों का धिक्कारा। इस आशय का एक रौषयुक्त ज्ञापन राष्ट्रपति महोदया को भी भैंट किया गया। ज्ञापन में राष्ट्रपति से देश की व्यवस्था के रक्षकों द्वारा देश के संविधान व मानवता को रौंदने वाले इस जघन्य काण्ड के दोषियों को तत्काल सजा दे कर भारतीय संस्कृति व न्याय की रक्षा करने का गुहार की लगाई गयी। उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन के प्रमुख संगठनों ने ‘उत्तराखण्ड आंदोलनकारी संगठनों की समन्वय समिति’ के बैनर तले आयोजित इस काला दिवस में उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा, उत्तराखण्ड राज्य लोकमंच, उत्तराखण्ड जनमोर्चा, उत्तराखण्ड महासभा, म्यर उत्तराखण्ड, उत्तराखण्ड आर्य समाज व उत्तराखण्ड क्रांतिदल सहित उत्त्ंाराखण्ड राज्य आंदोलन के सभी प्रमुख आंदोलनकारी संगठनों व उत्त्राखण्ड के प्रमुख सामाजिक संगठनों ने भाग लेते हुए मुजफ्फरनगर काण्ड-1994 सहित राज्य गठन जनांदोलन के सभी शहीदों को अपनी भाव भीनी श्रद्वांजलि अर्पित करते हुए ‘उत्तराखण्ड राज्य आंदोेलन के शहीद अमर रहे, मुजफ्फरनगर काण्ड के शहीद अमर रहे, मुजफ्फरनगर काण्ड के दोषियों को सजा दो, मनमोहनसिंह-खण्डूडी शर्म करो’ आदि गगनभेदी नारे लगाये। इस अवसर पर आंदोलनकारियों ने उत्तराखण्ड प्रदेश की अब तक की सरकारों को प्रदेश के आत्मसम्मान व जनांकांक्षाओं को रौंदने पर कड़ी भत्र्सना करते हुए उनको राव-मुलायम से बदतर बताया।
इस अवसर पर प्रदेश की राजधानी गैरसैंण, राज्य आंदोलनकारी सहित तमाम उत्तराखण्डी हितों की रक्षा के लिए सभी संगठनों की एक समिति का प्रमुख आंदोलनकारी देवसिंह रावत के नेतृत्व गठन करने का संयुक्त संघर्ष समिति के अध्यक्ष धीरेन्द्र प्रताप द्वारा रखे गये प्रस्ताव का उपस्थित आंदोलनकारियों के साथ श्रद्वांजलि सभा में उपस्थित भाजपा नेता व प्रवासी समन्वय समिति के दर्जाधारी मंत्री पूरण चंद नैनवाल व महासभा के अध्यक्ष हरिपाल रावत ने सर्वसम्मति ने एक स्वर में समर्थन करके पारित किया। यह समिति भाजपा व कांग्रेस से प्रदेश के हितों की रक्षा से संबधित प्रस्तावों को यथाशीघ्र सम्मलित कराने के लिए संयुक्त प्रयास करेगी। राष्ट्रपति को ज्ञापन देने को वरिष्ठ आंदोलनकारी खुशहाल सिंह बिष्ट व डा एस एन वसलियाल गये। समारोह का संचालन आंदोलनकारी संगठनों के संयोजक देवसिंह रावत ने किया।
गौरतलब है कि देश की एकता, अखण्डता व विकास के लिए समर्पित रहे ‘उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन’ में गांधी जयंती की पूर्व संध्या 1 अक्टूबर 1994 को, 2 अक्टूबर 1994 को आहुत लाल किला रेली में भाग लेने आ रहे शांतिप्रिय हजारों उत्तराखण्डियों को, मुजफ्फरनगर स्थित रामपुर तिराहे पर अलोकतांत्रिक ढ़ग से बलात रोक कर जो अमानवीय जुल्म, व्यभिचार व कत्लेआम उत्त्र प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार व केन्द्र में सत्तसीन नरसिंह राव की कांग्रेसी सरकार ने किये, उससे न केवल भारतीय संस्कृति अपितु मानवता भी शर्मसार हुई। परन्तु सबसे खेद कि बात है कि जिस भारतीय गौरवशाली संस्कृति में नारी को जगत जननी का स्वरूप मानते हुए सदैव वंदनीय रही है वहां पर उससे व्यभिचार करने वाले सरकारी तंत्र में आसीन इस काण्ड के अपराधियों को दण्डित करने के बजाय शर्मनाक ढ़ग से संरक्षण देते हुए पद्दोन्नति दे कर पुरस्कृत किया गया। सबसे हैरानी की बात है कि जिस मुजफ्फरनगर काण्ड-94 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मानवता पर कलंक बताते हुए इसे शासन द्वारा नागरिकों पर किये गये बर्बर नाजी अत्याचारों के समकक्ष रखते हुए इस काण्ड के लिए तत्कालीन मुजफ्फनगर जनपद(उप्र) के जिलाधिकारी अनन्त कुमार सिंह व पुलिस अधिकारियों डीआईजी बुआ सिंह व नसीम इत्यादि को सीधे दोषी ठहराते हुए इनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने का ऐतिहासिक फैसला दिया था। यही नहीं माननीय उच्च न्यायालय ने केन्द्र व राज्य सरकार को उत्तराखण्ड के विकास के प्रति उदासीन भैदभावपूर्ण दुरव्यवहार करने का दोषी मानते हुए दोनों सरकारों को यहां के विकास के लिए त्वरित कार्य करने का फैसला भी दिया था। जिस काण्ड पर देश की सर्वोच्च जांच ऐजेन्सी सीबीआई ने जिन अधिकारियों को दोषी ठहराया था, जिनको महिला आयोग से लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग दोषी मानता हो परन्तु दुर्भाग्य है कि इस देश में जहां सदैव ‘सत्यमेव जयते’ का उदघोष गुंजायमान रहता हो, वहां पर उच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के बाद अपराधियों व उनके आकाओं के हाथ इतने मजबूत रहे कि देश की न्याय व्यवस्था उनको दण्डित करने में आज 17 साल बाद भी अक्षम रही है। भारतीय व्यवस्था के इसी बौनेपन से आक्रोशित देश विदेश में रहने वाले सवा करोड़ उत्तराखंडी 1994 से निरंतर आज तक देश की व्यवस्था के शीर्षपदों पर आरूढ़ सत्तसीनों की सोई हुई आत्मा को जागृत करने के लिए एवं उनको उनके दायित्व बोध कराने के लिए निरंतर 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन काला दिवस मना कर न्याय की गुहार लगाते है
इस काण्ड से पीड़ित उत्तराखण्ड की सवा करोड़ जनता को आशा थी कि राज्य गठन के बाद उत्तराखण्ड की राज्य सरकार इस काण्ड के दोषियों को सजा दिलाने को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का काम करेगी। परन्तु हमारा दुर्भाग्य रहा कि वहां पर स्वामी, कोश्यारी, तिवारी, खंडूडी व निशंक जैसे पदलोलुप नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन रहे। इनके शासन में इस काण्ड के अपराधियों को दण्डित करने के बजाय उनको संरक्षण देने की शर्मनाक कृत्य किया गया।
संसद की चोखट पर काला दिवस मनाने वालों में उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष देवसिंह रावत, संयोजक अवतार सिंह रावत, जनमोर्चा के अध्यक्ष जगदीश नेगी व महासचिव डा एस एन बसलियाल, उत्तराखण्ड राज्य लोकमंच के बृजमोहन उप्रेती, व दिनेश ध्यानी, महासभा के हरिपाल रावत एवं अनिल पंत , प्यर उत्तराखण्ड के अध्यक्ष मोहन बिष्ट व महासचिव सुदर्शन रावत, पत्रकार हरीश लखेड़ा व उनकी छोटी बेटी, उजसमो के खुशहाल सिंह बिष्ट, महासचिव जगदीश भट्ट, उपा. विनोद नेगी, देशबंधु बिष्ट व जगमोहन रावत, जनमोर्चा की श्रीमती ऊषा नेगी, उत्तराखण्ड क्रांतिदल के उपाध्यक्ष प्रताप शाही, उत्तराखण्ड मानवाधिकार संगठन के अध्यक्ष एस के शर्मा, उत्तराखण्ड आर्य समाज विकास समिति के महासचिव रमेश हितैषी व गोविन्द कोहली, समाजसेवी हरीश प्रकाश आर्य, पत्रकार सतेन्द्र रावत, जनमोेर्चा के राम भरोसे ढोडियाल, हुकमसिंह कण्डारी, अखिल भारतीय विकास समिति के महासचिव ए एस मेहरा, म्यर उत्तराखण्ड के धीरेन्द्र अधिकारी, भूपाल सिंह बिष्ट, हरीश रावत, नन्दन मेहता, सुमित बनेशी, मनोज पालीवाल, कुलदीपसिंह, गिरीश बिष्ट , सुरेन्द्र सिंह, भारतीय भाषा आंदोलन के राष्ट्रीय पुरोधा राजकरण सिंह,ं भगवत ंसिंह, विवेक पटवाल, भाष्कर काण्डपाल, प्रताप सिंह, गुंजन नैथानी, जेयेन्द्र नेगी, एस एस रावत, राजेन्द्रसिंह, त्रिलोक सिंह रावत, नीरज पंवार, अंकित राणा, जसपाल, अंकित खंडूडी, कवि पृथ्वी सिंह केदारखण्डी, ंजलीरामं, जगदीश,ं चंदन दर्पण, ंअमित आर्य, खेम चन्द्रा, वेद प्रकाश, भवान चंद, दलवीर गोदियाल, हरीश आर्य, ललित मोहन पाण्डे, कवि ओम प्रकाश आर्य, भुवन चंद, ंतरूण चैहान, देवेन्द्र चैहान, आर बी ढौडियाल, प्रताप रावत, पत्रकार दयाल सिंह बिष्ट, विकास चमोली, सुश्री शिवानी सिंह, रोहित, धीरज जोशी, कलम सिंह रावत, धनसिंह नेगी, नन्दन मेहता, विद्यादत्त, साहित्यकार डा. भगवती प्रसाद मिश्र, एन सी बिनवाल, आर पी चमोली, के सी पाण्डे, वी एस नेगी, अर्जुन सिंह गुसांई, योगेन्द्रं सिंह, उत्तराखण्ड क्लब के बीपी पुरी, जी एस रौतेला, विक्रम सिंह रावत, सुनील दत्त बन्दूणी, होशियार सिंह रावत, गुड्डी देवी रावत, बी एस रावत, अधिवक्ता आशुतोष, नरेन्द्र बड्थ्वाल, शिवचरण मुण्डेपी, बलराम सरस्वती आदि सम्मलित थे। इस अवसर पर आंदोलनकारियों को श्रद्वांजलि अर्पित करने के लिए एस एस रावत एलआईसी द्वारा बड़ी संख्या में लाये गये पोस्टर नुमा बेनरों से श्रद्वांजलि स्थल सजाया हुआ था। वहीं आंदोलनकारियों ने काले रिब्बन लगा कर अपने विरोध का इजहार किया। सभा के प्रारम्भ में हीं राज्य जनांदोलन के शहीदों की स्मृति को शतः शतः नमन् करने के लिए एक मिनट का मौन रखा गया।
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