-देश में सबसे गरीब है मनमोहन, मोंटेक, मंत्री, सांसद, विधायक, नौकरशाह, बाबा और समाजसेवी
-देश में सबसे गरीब है मनमोहन, मोंटेक, मंत्री, सांसद, विधायक, नौकरशाह, बाबा और समाजसेवी
-आम गरंीब आदमी को अमीर घोषित करे सरकार
देश में योजना आयोग द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में गत पखवाडे दिये गये हलफनामे से जहां पूरा देश भौचंक्का है। देश में ही नहीं विदेश में भी भारत के योजना आयोग व सरकार की जो जगहंसाई हुई उसने देश के हुक्मरानों को पूरे विश्व के सामने बेनकाब कर दिया। सवाल आज यह नहीं है कि 32 रूपये या 26 रूपये वाला गरीब है या नहीं। मेरा मानना है कि इस देश में सबसे बड़े गरीब कोई है तो इस देश के हुक्मरान, नौकरशाह,इंजीनियर, डाक्टर, महत्वपूर्ण पदों में आसीन लोग, उद्यमी और समाजसेवी । यहां का कर्मचारी गरीब है यहां के अधिकारी व शिक्षिक गरीब है। यहां के मजदूर व बेरोजगार गरीब नहीं है। उन पर सरकार को टेक्स लगाना चाहिए। देश का अशिक्षित आदमी जो कानून का पालन करता है वह गरीब है। देश का आम आदमी जो मेहनत कश है वह गरीब है। देश की व्यवस्था के महत्वपूर्ण पदों में आसीन लोग गरीब है। क्योंकि देश की व्यवस्था हमेशा उन्हीें के लिए अपने संसाधनों व भत्तों को लुटाती है। किसी को चिंता नहीं कि जो लोग सौ रूपये देखने के लिए भी तरस जाते हैं उनका पेट व उनका परिवार कैसे पलता है।
सबसे गरीब तो यहां के जनप्रतिनिधी खासकर सांसद व विधायक है। यहां के नौकरशाह है। यहां के इंजीनियर व डाक्टर तथा शिक्षक अधिकारी है। यहां के समाजसेवी है। यहां के साधु संत है। सांसदों व विधायकों का वेतन व भत्ते कितनी बार बढ़ चूके है। साधु संतो के फाइव स्टारी ठाठ राजा महाराजाओं को मात करते है। नौकरशाहों की अकूत सम्पति किसी बड़े उद्यमी को भी शर्मशार करती है। राजनेताओं व समाजेवियों की सम्पतियां जिस तेजी से बढ़ रही है उसको देखते हुए उनकी गरीबी भी निरंतर बढ़ रही है।
ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय में देश के आम लोगों की गरीबी दूर करने के बजाय अमेरिका के प्यारे मनमोहन सिंह व मोंटेक को अपने साथियों की गरीबी दूर करने के उपाय सुझाने चाहिए।
आज देश का आम आदमी मंहगाई , भ्रष्टाचार व आतंक से सहमा हुआ हैं परन्तु क्या मजाल कोई उसकी तरफ देखे। इसका किसी को अंदाज तक नहीं। परन्तु सांसदों व सरकारी कर्मचारियों का वेतन कितनी बार बढ़ गया। कितनी बार उनके भ़त्ते बढ़ गये। फिर भी उसकी चिंता ही सारी व्यवस्था को है। सांसदों, विधायकों , व मोंटेक सिंह जैसे लोगों के लिए देश की व्यवस्था कितना खर्च कर रही है अगर इसके आंकड़े जारी किये जायें तो देश का आम गरीब आदमी का हार्ड टेक वेसे ही सुनते ही हो जाय। इस लिए मेरा निवेदन यह है कि इन जनप्रतिनिधियों व नौकरशाहों को जन्म जन्मांतर का आरक्षण किया जाय। देश में हर शहर में ही नहीं पूरे विश्व में इनके लिए सरकारी खर्च में अट्टालिकायें बनायी जाय। इनके ऐशोआराम में देश के सभी संसाधन खर्च किये जाय। बेचारे बहुत गरीब है।
देश में अगर जरा सी भी व्यवस्था में नैतिकता होती तो मनमोहन सिंह व मोंटेक सिंह आलुवालिया को उनकी गरीब की नई परिभाषा देने के लिए इनको तुरंत ससम्मान अमेरिका के लिए भैंट कर देना चाहिए था। देश के सांसदों का वेतन देश के आम गरीब आदमी के वेतन के समान होना चाहिए था। सरकार के किसी भी कर्मचारी का वेतन गरीबी की रेखा के निर्धारण आधार से पांच गुना अधिक नहीं होनी चाहिए। परन्तु अब पूरे विश्व में थू थू होने के बाद नहीं समिति का गठन किया गया। जो लोगों के आंखों में धूल झोंकेगी। बताया जा रहा है कि गरीबी रेखा को लेकर मचे बबाल को ठंडा करने के लिए प्रधानमंत्री के निर्देश पर ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया, सदस्य प्रोफेसर अभिजीत सेन, मिहिर शाह, सईदा हामीद और नरेंद्र जाधव ने सोमवार 3 अक्टूबर को साझा प्रेस कांफ्रेंस की और इस मसले पर पैदा हुए भ्रम को लेकर सफाई दी। इनमें से अधिकांश लोगों ने मोंटेक सिंह के खिलाफ झंडा उठा रखा था लेकिन प्रधानमंत्री के कहने पर योजना आयोग के सुप्रीम कोर्ट में दायर किये गये शपथपत्र को उन्होंने जायज ठहराया। अहलूवालिया ने कहा कि शपथ पत्र वापस नहीं होगा लेकिन यदि सुप्रीम कोर्ट कहेगा तो वे उसमें संशोधन कर सकते हैं। अहलूवालिया ने कहा कि 26ध्32 रुपये के आंकड़े तथ्यों पर आधारित हैं लेकिन ये आंकड़े योजना आयोग के नहीं हैं। जाति व आर्थिक आधार पर चल रही जनगणना के आंकड़े आने पर गरीबों की संख्या तय की जाएगी और उन्हें मिलने वाले लाभ तय किए जाएंगे। जाति आधारित गणना आने के बाद एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया जाएगा जो गरीबों की संख्या का आकलन करेगी। उच्चतम न्यायालय में जो हलफनामा दिया गया है, वह तेंदुलकर समिति द्वारा गरीबी की गणना के लिए दिए गए सुझाव पर आधारित है। उन्होंने इन आशंकाओं को खारिज किया कि तेंदुलकर समिति की गरीबी की रेखा से वे परिवार उस लाभ से वंचित हो जाएंगे, जिसके वे हकदार हैं। अहलूवालिया ने स्पष्ट किया कि तेंदुलकर समिति की गरीबी की रेखा का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा लोगों को गरीबी से उबारने के लिए किया जाएगा। लगता है सरकार गरीबी रेखा के इस पैमाने में आने वाली आबादी को तिकडम करके अमीर बनाने का नया ड्रामा कर रही है। इसमें वह कहा सफल होगी यह तो परमात्मा ही नहीं देश की आम जनता भी जानती है। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि मनमोहन सिंह व आलुवालिया किस देश के प्राणी है। अगर वे इस देश के होते तो कम से कम उन्हें देश के आम लोगों के दुख दर्द का भान तो होता। लगता है उनको अमेरिका के अलावा कुछ दूसरी चीज दिखाई ही नहीं देती।
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