-उत्तराखण्ड को कश्मीर बनाने का षडयंत्र है रूद्रपुर दंगे
-भाजपा के मुख नहीं मुखौटे हैं खंडूडी/
-उत्तराखण्ड को कश्मीर बनाने का षडयंत्र है रूद्रपुर दंगे/
- निशंक को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना कर सम्मानित किया भाजपा ने/
भारतीय जनता पार्टी के शासन में भ्रष्टाचार व कुशासन से त्रस्त उत्तराखण्ड प्रदेश में भाजपा की नौका का बंठाधार होने की आशंका से भयभीत हो कर, भाजपा आला नेतृत्व ने अपने उत्तराखण्ड प्रदेश के मुख्यमंत्री निशंक को आनन फानन में हटाते हुए पूर्व मुख्यमंत्री खंडूडी की ताजपोशी प्रदेश में जिस सुशासन देेने के नाम पर की थी, उसका मुखोटा भी खुद भाजपा आला नेतृत्व ने प्रदेश में भाजपा की छवि को आम जनता की नजरों में अपने कुशासन से तार-तार करने वाले निशंक को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का गरीमामय पद पर आसीन करके बेनकाब कर दिया हे। इस ताजपोशी से साफ हो गया कि खंडूडी उत्तराखण्ड में भाजपा के मुखोटे हैं मुख नही। प्रदेश की जनता को आशाा थी कि खंडूडी अपने भरत निशंक द्वारा उनको दिये गये तथाकथित वनवास से लोकशाहीं का ंपाठ सीख चूके होंगे। परन्तु ंगत सप्ताह उनका व्यवहार व कार्यो को देख कर मुझे भी जो थोड़ी सी आशा भी थी वह ंटूट कर बिखर गयी। ंमुझे आशा थी कि वे अपने इस ंनंये अवतार से जातिवाद व क्षेत्रवाद तथा भ्रष्टाचार से तबाह हो रहे प्रदेश को सहीं दिशा देने का केवल मुंह जुबानी बयान देने के बजाय उस पर खुद भी अमल करते। परन्तु उन्होंने सत्तासीन होने के बाद न अपनी वह अलोकशाही प्रवृति छोड़ी व नहीं अपने पर लगने वाले जातिवाद व क्षेत्रवादी प्रवृति के लगे दागों को धोने का ही काम कर पाये। उनके द्वारा कि गयी पहली तीन नियुक्तियों ही उन पर लगे इन आरोपों का खुद बयान करती है। प्रदेश की प्रतिंभाओं को समायोजित करने की न तो उनमे ं ललक ही दिखायी देती है व नहीं वे अंधा बांटे रेवड़ी अपने अपने दे ।वहीं प्रदेश से भ्रष्टाचार का सुपाडा ही साफ करने की हुकार भरने वाले भुवन ंचंद खंडूडी की हकीकत यह है कि वे भाजपा सरकार द्वारा वर्ष 2007 में 56 घोटालों की जांच के लिए गठित घोटालों की जांच निष्पक्ष कराने के लिए खुद ंखंडूडी कितने संवेदनशील हैं यह उनके ंहाल में दिये गये बयानों से ही उजागर हो रही है कि ये आरोप लगाने कांग्रेस की आदत ही बन गयी है। अपने पूर्व मुख्यमंत्री निशंक सरकार ंके जिन घोटालों के बारे में ंखंडूडी अपने राजनैतिक वनवास के दिनों में ंआये दिन घडियाली आंसू बहाते नजर आते थे, सत्ता मिलते ही उनको वे घोटाले कहीं नजर नहीं आ रंहे है। आयेंगे कैसे उनके आला नेतृत्व ने निशंक की महान सेवाओं से खुश हो कर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाने का ऐलान तो कर दिया है। खंडूडी जी की हिम्मत नहीं कि वे अपने इस लाडले भरत के कारनामों के खिलाफ कार्यवाही करना तो रहा दूर वे मुंह भी खोल पायें। इसंसे साफ ंहो गया कि उनकी प्राथमिकता केवल ंप्रदेश की राजसत्ता की गद्दी है। उनको प्रदेश के हितों से कहीं दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं। केवल अपनी छवि बनाने के नाम पर वे कानूनों का मकड़ जाल बना कर ंजनता की आंखों में धूल झोकने का काम क र रहे है । अगर उनमें जरा सी भी ईमानदारी होती तो वे अविलम्ब स्टर्जिया, जल विद्युत परियोजनाओं व अन्य भूमि घोटालों से सम्बंधित अपंने भरत निशंक के कार्यकाल के कार्यो की ंनिष्पक्ष जांच कराने का सीबीआई से ंअनुरोध करके प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक ईमानदार मुहिम छेड़ते। परन्तु उन्होंने केवल अण्णा हजारे की टीम को बुला कर उनकी लोकप्रियता को अपने पक्ष में भुनाने का नाटक किया। खंडूडी अगर ईमानदार रहते तो वे कभी निशंक के इन कारनामों को नजरांदाज नहीं करते । उनको आंला नेतृत्व की चिंता तो हैं परन्तु भ्रष्टाचार से तबाह हो रहे उत्तराखण्ड की तनिक सी भी चिंता नहीं है। अगर होती तो वे मुजफरनगर काण्ड-94 के अभियुक्तों को दण्डित करने के लिए गुजरात व सिख दंगो के दोषियों को सजा दिलाने के लिए नये सिरे से नये जांच आंयोग के गठन करते।
ंगौरतलब है कि उन पंर अलौकतांत्रिक व्यवहार, जातिवाद व क्षेत्रवाद का जो आरोप पहले कार्यकाल में लगता रहा इस कार्यकाल के प्रारम्भ मे ं ही उन दागों व आरोपों को झुटलंाने के लिए उन्होंने कोई ऐसी पहल की हो यह ंदिखाई तक नहीं ंदेती। नई दिल्ली में उनके ंदूसरी बार मुख्यंमंत्री बनने के बाद पहली बार जब उनको मै उत्तराखण्ड निवास में मिला, उनको मैने आंदोलनकारी संगठनों की तरफ से ंराष्ट्रपति को 2 ंअक्टूबर को दी जाने वाले ज्ञापन का प्रति भेंट की। तो उस समय मैने वहां पर उनके व्यवहार में किसी प्रकार के बदलाव को महसूस नहीं किया। समझदार आदमी अपनी असफलताओं व लोगों की आलोचनाओं से सिखता है। दिल्ली स्थित उत्तराखण्ड निवास में उनका जन्म दिन मनाया जा रहा था, ंउत्तराखण्ड शिल्पकार चेतना मंच के पदाधिकारी ंअपने अध्यक्ष ंमहेशं चंद्रा व भाजपा नेता बी आर टम्टा के नेत्त्व मेें ढोल-रणसिंगा बजा कर खंडूडी जी का अभिनन्दन कर रहे थे। दर्जनों लोग उनको व उनकी धर्मपत्नी को ंबधाईयां दे रहे थे। खंडूडी व निशंक से लेकर तिवारी के कार्यकाल में ंउनके ंजनंसम्पर्क को करीबी से देखने के बाद मुझे लगा कि खंडूडी को आज भी लोकशाही का पहला ंपंा ठ सिखने की जरूरत है। ंसेना के ंउच्च अधिकारी के पद से सेवा निवृत व भाजपा के रांजनेता बनने के कई वर्षो वाद भी उनकी जनरली ंहनक में कोई कमी नहीं आयी। लोकशाही में ंजनप्रतिनिधी ंको जनमुखी ंव्यवहार की आशा व अपेक्षा की जाती। उनके पहले दिल्ली पदार्पंण पर मेने देखा कि ंमुख्यमंत्री ंसे मिलने जाने वाले आम लोगों को उनके दूसरी मंजिल पर स्थित कार्यालय में जा कर मुख्यमंत्री से मुलाकात व बधाई देने या उनसे समय लेंने के कार्यालय तक जाने की इजाजत ंनहीं थी। नीचे से केवल दूरभाष से अपने खास खास लोगों को ही उपर बुलाया जा रहा था। जबकि तिवारी से निशंक के कार्यंकाल में मुख्यमंत्री के इस कार्यालय तक आम आदमी पंहुच संकता था। खुद ंखंडूडी के पहले कार्यकाल में आम आदमी जहां तक पंहुच सकता था अब दूसरे कार्यकाल में वहां तक नहीं पंहुच रहा था। और तो और पत्रकारों को भी नीचे ही रहना पडा। खंडूडी जी को यह समझना चाहिए कि वे एक जिले या एक जाति के मुख्यमंत्री नहीं अपितु पूरे प्रदेश के मुख्यमंत्री है। वे केवल भारतीय जनता पार्टी के हितों या अपने निहित स्वार्थो की पूति के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं ंबनाये गये अपितु वे उत्तराखण्ड प्रदेश की जनता के हितों की रक्षा के लिए एक जनसेवक के रूप में उनकी सेवा करने के लिए बनाया गया है। शासक द्वारा प्रदेश की प्रतिभाओं को प्रदेश के हित के लिए अपनी सेवाओं को प्रदान करने का अवसर देनां चाहिए, बिना किसी संकीर्ण भेदभाव के। केवल जातिविशेष के लोगों को नौकरशाही, न्यायपालिका, कार्यपालिका, ंदर्जाधारी, मंत्री मण्डल आदि पदो में इकतरफी नियुक्ति से लोकशाही व समाज के विकास में अवरोध होता है। ंलंोकशाही कमजोर होती है। लोेगों में रंाग द्वेष व भ्रष्टाचार बढ़ता है। ंप्रदेश में ग्यारह सालों में भाजपा कांग्रेस ने एक ही कृत्य किया प्रदेश के शासन प्रशासन में जातिवाद-क्षेत्रवाद व भ्रष्टाचार के कारण तबाही के गर्त में पंहुच चूका है। ंअमन व शांति के लिए विख्यात ंउत्तराखण्ड की सरजमी पर आज रूद्रपुर में हुए दंगे का कलंक ंलग गया है। इसी कारण ईमानदारी के लिए विख्यात प्रदेश आज देश में भ्रष्टाचारी के शीर्ष पायदान पर आसीन है। उत्तराखण्ड से रत्ती भर का भी लगाव नही ं है। प्रदेश के इन हुक्मरानों के कारण प्रदेश में जनसंख्या पर आधारित परिसीमन थोप कर इसे कश्मीर की तरह अशांत क्षेत्र बनाने का षडयंत्र किया जा रहा है । ंजब तक प्रदेश की जनता जाति, क्षेत्र व धर्म से उपर उठ कर प्रदेश के हितों की रक्षा के लिए इन सत्तांधों को दूर नहीं करेगी तब तक प्रदेश को नहीं बचाया जा सकता।
शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि औम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।
-उत्तराखण्ड को कश्मीर बनाने का षडयंत्र है रूद्रपुर दंगे/
- निशंक को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना कर सम्मानित किया भाजपा ने/
भारतीय जनता पार्टी के शासन में भ्रष्टाचार व कुशासन से त्रस्त उत्तराखण्ड प्रदेश में भाजपा की नौका का बंठाधार होने की आशंका से भयभीत हो कर, भाजपा आला नेतृत्व ने अपने उत्तराखण्ड प्रदेश के मुख्यमंत्री निशंक को आनन फानन में हटाते हुए पूर्व मुख्यमंत्री खंडूडी की ताजपोशी प्रदेश में जिस सुशासन देेने के नाम पर की थी, उसका मुखोटा भी खुद भाजपा आला नेतृत्व ने प्रदेश में भाजपा की छवि को आम जनता की नजरों में अपने कुशासन से तार-तार करने वाले निशंक को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का गरीमामय पद पर आसीन करके बेनकाब कर दिया हे। इस ताजपोशी से साफ हो गया कि खंडूडी उत्तराखण्ड में भाजपा के मुखोटे हैं मुख नही। प्रदेश की जनता को आशाा थी कि खंडूडी अपने भरत निशंक द्वारा उनको दिये गये तथाकथित वनवास से लोकशाहीं का ंपाठ सीख चूके होंगे। परन्तु ंगत सप्ताह उनका व्यवहार व कार्यो को देख कर मुझे भी जो थोड़ी सी आशा भी थी वह ंटूट कर बिखर गयी। ंमुझे आशा थी कि वे अपने इस ंनंये अवतार से जातिवाद व क्षेत्रवाद तथा भ्रष्टाचार से तबाह हो रहे प्रदेश को सहीं दिशा देने का केवल मुंह जुबानी बयान देने के बजाय उस पर खुद भी अमल करते। परन्तु उन्होंने सत्तासीन होने के बाद न अपनी वह अलोकशाही प्रवृति छोड़ी व नहीं अपने पर लगने वाले जातिवाद व क्षेत्रवादी प्रवृति के लगे दागों को धोने का ही काम कर पाये। उनके द्वारा कि गयी पहली तीन नियुक्तियों ही उन पर लगे इन आरोपों का खुद बयान करती है। प्रदेश की प्रतिंभाओं को समायोजित करने की न तो उनमे ं ललक ही दिखायी देती है व नहीं वे अंधा बांटे रेवड़ी अपने अपने दे ।वहीं प्रदेश से भ्रष्टाचार का सुपाडा ही साफ करने की हुकार भरने वाले भुवन ंचंद खंडूडी की हकीकत यह है कि वे भाजपा सरकार द्वारा वर्ष 2007 में 56 घोटालों की जांच के लिए गठित घोटालों की जांच निष्पक्ष कराने के लिए खुद ंखंडूडी कितने संवेदनशील हैं यह उनके ंहाल में दिये गये बयानों से ही उजागर हो रही है कि ये आरोप लगाने कांग्रेस की आदत ही बन गयी है। अपने पूर्व मुख्यमंत्री निशंक सरकार ंके जिन घोटालों के बारे में ंखंडूडी अपने राजनैतिक वनवास के दिनों में ंआये दिन घडियाली आंसू बहाते नजर आते थे, सत्ता मिलते ही उनको वे घोटाले कहीं नजर नहीं आ रंहे है। आयेंगे कैसे उनके आला नेतृत्व ने निशंक की महान सेवाओं से खुश हो कर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाने का ऐलान तो कर दिया है। खंडूडी जी की हिम्मत नहीं कि वे अपने इस लाडले भरत के कारनामों के खिलाफ कार्यवाही करना तो रहा दूर वे मुंह भी खोल पायें। इसंसे साफ ंहो गया कि उनकी प्राथमिकता केवल ंप्रदेश की राजसत्ता की गद्दी है। उनको प्रदेश के हितों से कहीं दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं। केवल अपनी छवि बनाने के नाम पर वे कानूनों का मकड़ जाल बना कर ंजनता की आंखों में धूल झोकने का काम क र रहे है । अगर उनमें जरा सी भी ईमानदारी होती तो वे अविलम्ब स्टर्जिया, जल विद्युत परियोजनाओं व अन्य भूमि घोटालों से सम्बंधित अपंने भरत निशंक के कार्यकाल के कार्यो की ंनिष्पक्ष जांच कराने का सीबीआई से ंअनुरोध करके प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक ईमानदार मुहिम छेड़ते। परन्तु उन्होंने केवल अण्णा हजारे की टीम को बुला कर उनकी लोकप्रियता को अपने पक्ष में भुनाने का नाटक किया। खंडूडी अगर ईमानदार रहते तो वे कभी निशंक के इन कारनामों को नजरांदाज नहीं करते । उनको आंला नेतृत्व की चिंता तो हैं परन्तु भ्रष्टाचार से तबाह हो रहे उत्तराखण्ड की तनिक सी भी चिंता नहीं है। अगर होती तो वे मुजफरनगर काण्ड-94 के अभियुक्तों को दण्डित करने के लिए गुजरात व सिख दंगो के दोषियों को सजा दिलाने के लिए नये सिरे से नये जांच आंयोग के गठन करते।
ंगौरतलब है कि उन पंर अलौकतांत्रिक व्यवहार, जातिवाद व क्षेत्रवाद का जो आरोप पहले कार्यकाल में लगता रहा इस कार्यकाल के प्रारम्भ मे ं ही उन दागों व आरोपों को झुटलंाने के लिए उन्होंने कोई ऐसी पहल की हो यह ंदिखाई तक नहीं ंदेती। नई दिल्ली में उनके ंदूसरी बार मुख्यंमंत्री बनने के बाद पहली बार जब उनको मै उत्तराखण्ड निवास में मिला, उनको मैने आंदोलनकारी संगठनों की तरफ से ंराष्ट्रपति को 2 ंअक्टूबर को दी जाने वाले ज्ञापन का प्रति भेंट की। तो उस समय मैने वहां पर उनके व्यवहार में किसी प्रकार के बदलाव को महसूस नहीं किया। समझदार आदमी अपनी असफलताओं व लोगों की आलोचनाओं से सिखता है। दिल्ली स्थित उत्तराखण्ड निवास में उनका जन्म दिन मनाया जा रहा था, ंउत्तराखण्ड शिल्पकार चेतना मंच के पदाधिकारी ंअपने अध्यक्ष ंमहेशं चंद्रा व भाजपा नेता बी आर टम्टा के नेत्त्व मेें ढोल-रणसिंगा बजा कर खंडूडी जी का अभिनन्दन कर रहे थे। दर्जनों लोग उनको व उनकी धर्मपत्नी को ंबधाईयां दे रहे थे। खंडूडी व निशंक से लेकर तिवारी के कार्यकाल में ंउनके ंजनंसम्पर्क को करीबी से देखने के बाद मुझे लगा कि खंडूडी को आज भी लोकशाही का पहला ंपंा ठ सिखने की जरूरत है। ंसेना के ंउच्च अधिकारी के पद से सेवा निवृत व भाजपा के रांजनेता बनने के कई वर्षो वाद भी उनकी जनरली ंहनक में कोई कमी नहीं आयी। लोकशाही में ंजनप्रतिनिधी ंको जनमुखी ंव्यवहार की आशा व अपेक्षा की जाती। उनके पहले दिल्ली पदार्पंण पर मेने देखा कि ंमुख्यमंत्री ंसे मिलने जाने वाले आम लोगों को उनके दूसरी मंजिल पर स्थित कार्यालय में जा कर मुख्यमंत्री से मुलाकात व बधाई देने या उनसे समय लेंने के कार्यालय तक जाने की इजाजत ंनहीं थी। नीचे से केवल दूरभाष से अपने खास खास लोगों को ही उपर बुलाया जा रहा था। जबकि तिवारी से निशंक के कार्यंकाल में मुख्यमंत्री के इस कार्यालय तक आम आदमी पंहुच संकता था। खुद ंखंडूडी के पहले कार्यकाल में आम आदमी जहां तक पंहुच सकता था अब दूसरे कार्यकाल में वहां तक नहीं पंहुच रहा था। और तो और पत्रकारों को भी नीचे ही रहना पडा। खंडूडी जी को यह समझना चाहिए कि वे एक जिले या एक जाति के मुख्यमंत्री नहीं अपितु पूरे प्रदेश के मुख्यमंत्री है। वे केवल भारतीय जनता पार्टी के हितों या अपने निहित स्वार्थो की पूति के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं ंबनाये गये अपितु वे उत्तराखण्ड प्रदेश की जनता के हितों की रक्षा के लिए एक जनसेवक के रूप में उनकी सेवा करने के लिए बनाया गया है। शासक द्वारा प्रदेश की प्रतिभाओं को प्रदेश के हित के लिए अपनी सेवाओं को प्रदान करने का अवसर देनां चाहिए, बिना किसी संकीर्ण भेदभाव के। केवल जातिविशेष के लोगों को नौकरशाही, न्यायपालिका, कार्यपालिका, ंदर्जाधारी, मंत्री मण्डल आदि पदो में इकतरफी नियुक्ति से लोकशाही व समाज के विकास में अवरोध होता है। ंलंोकशाही कमजोर होती है। लोेगों में रंाग द्वेष व भ्रष्टाचार बढ़ता है। ंप्रदेश में ग्यारह सालों में भाजपा कांग्रेस ने एक ही कृत्य किया प्रदेश के शासन प्रशासन में जातिवाद-क्षेत्रवाद व भ्रष्टाचार के कारण तबाही के गर्त में पंहुच चूका है। ंअमन व शांति के लिए विख्यात ंउत्तराखण्ड की सरजमी पर आज रूद्रपुर में हुए दंगे का कलंक ंलग गया है। इसी कारण ईमानदारी के लिए विख्यात प्रदेश आज देश में भ्रष्टाचारी के शीर्ष पायदान पर आसीन है। उत्तराखण्ड से रत्ती भर का भी लगाव नही ं है। प्रदेश के इन हुक्मरानों के कारण प्रदेश में जनसंख्या पर आधारित परिसीमन थोप कर इसे कश्मीर की तरह अशांत क्षेत्र बनाने का षडयंत्र किया जा रहा है । ंजब तक प्रदेश की जनता जाति, क्षेत्र व धर्म से उपर उठ कर प्रदेश के हितों की रक्षा के लिए इन सत्तांधों को दूर नहीं करेगी तब तक प्रदेश को नहीं बचाया जा सकता।
शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि औम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।
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