मुजफरनगर काण्ड-94 को 18 साल बाद भी दण्डित न किये जाने के विरोध में

2 अक्टूबर को संसद की चैखट पर उत्तराखण्डियों ने मनाया काला दिवस 

दिल्ली/देहरादून(प्याउ)। मुजफरनगर काण्ड -94 की 18 वीं बरसी पर  देश विदेश में रहने वाले सवा करोड़ उत्तराखण्डियों ने जहां उत्तराखण्ड राज्य गठन के अमर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर प्रमुख कार्यक्रम राज्य गठन जनांदोलन के प्रमुख संगठनों व सामाजिक संगठनों के प्रमुख पदाधिकारियों ने उत्तराखण्ड आंदोलनकारी संगठनों की समन्वय समिति के बेनर तले संसद की चैखट पर काला दिवस के रूप में धरना दिया। इस अवसर पर राष्ट्रपति को ज्ञापन दिया गया। वहीं दूसरी तरफ मुजफरनगर के शहीदी स्थल सहित पूरे उत्तराखण्ड व देश-विदेश में शहीदों को श्रद्धांजलि सभाये आयोजित की गयी।
            2 अक्टूबर 2012 को गांधी जयंती के दिन 18 साल बाद भी देश की व्यवस्था द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय व देश की सर्वोच्च जांच ऐजेन्सी सीबीआई द्वारा दोषी ठहराये गये अपराधियों को  देश की व्यवस्था द्वारा दण्डित करने के बजाय पद्दोन्नित करके पुरस्कृत करने के विरोध में आक्रोशित व आहत उत्त्राखण्डियों ने  संसद की चैखट में काला दिवस मना कर देश के हुक्मरानों का धिक्कारा। इस आशय का एक ज्ञापन राष्ट्रपति महोदया को भी भैंट किया गया। ज्ञापन में राष्ट्रपति से देश की व्यवस्था के रक्षकों द्वारा देश के संविधान व मानवता को रौंदने वाले इस जघन्य काण्ड के दोषियों को तत्काल सजा दे कर भारतीय संस्कृति व न्याय की रक्षा करने का गुहार की लगाई गयी। उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन के प्रमुख संगठनों ने उत्तराखण्ड आंदोलनकारी संगठनों की समन्वय समिति के बैनर तले आयोजित इस काला दिवस में उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा, उत्तराखण्ड राज्य लोकमंच, उत्तराखण्ड जनमोर्चा, उत्तराखण्ड महासभा, उत्तराखण्ड क्रांतिदल, उत्तराखण्ड परिषद, म्यर उत्तराखण्ड, उत्तराखण्ड कौथिक ग्रुप, उत्तराखण्ड आर्य समाज सहित उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन के सभी प्रमुख आंदोलनकारी संगठनों व उत्त्राखण्ड के प्रमुख सामाजिक संगठनों ने भाग लेते हुए मुजफ्फरनगर काण्ड-94 सहित राज्य गठन जनांदोलन के सभी शहीदों को अपनी भाव भीनी श्रद्वांजलि अर्पित करते हुए ‘उत्त्राखण्ड के शहीद अमर रहे, मुजफ्फरनगर काण्ड के  दोषियों को सजा दो, मनमोहनसिंह-बहुगुणा शर्म करो’ आदि गगनभेदी नारे लगाये। इस अवसर पर आंदोलनकारियों ने उत्त्राखण्ड प्रदेश की अब तक की सरकारों को प्रदेश के आत्मसम्मान व जनांकांक्षाओं को रौंदने पर कड़ी भत्र्सना करते हुए उनको राव-मुलायम से बदतर बताया।
गौरतलब है कि   देश की एकता, अखण्डता व विकास के लिए समर्पित रहे ‘उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन’ में गांधी जयंती की पूर्व संध्या 1 अक्टूबर 1994 को, 2 अक्टूबर 1994 को आहुत लाल किला रेली में भाग लेने आ रहे शांतिप्रिय हजारों उत्तराखण्डियों को,  मुजफ्फरनगर स्थित रामपुर तिराहे पर अलोकतांत्रिक ढ़ग से बलात रोक कर जो अमानवीय जुल्म, व्यभिचार व कत्लेआम उत्त्र प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार व केन्द्र में सत्तसीन नरसिंह राव की कांग्रेसी सरकार ने किये, उससे न केवल भारतीय संस्कृति अपितु मानवता भी शर्मसार हुई। परन्तु सबसे खेद कि बात है कि जिस भारतीय गौरवशाली संस्कृति में नारी को जगत जननी का स्वरूप मानते हुए सदैव वंदनीय रही है वहां पर उससे व्यभिचार करने वाले सरकारी तंत्र में आसीन इस काण्ड के अपराधियों को दण्डित करने के बजाय शर्मनाक ढ़ग से संरक्षण देते हुए पद्दोन्नति दे कर पुरस्कृत किया गया। सबसे हैरानी की बात है कि जिस मुजफ्फरनगर काण्ड-94 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मानवता पर कलंक बताते हुए इसे  शासन द्वारा नागरिकों पर किये गये बर्बर नाजी अत्याचारों के समकक्ष रखते हुए इस काण्ड के लिए तत्कालीन मुजफ्फनगर जनपद(उप्र) के जिलाधिकारी अनन्त कुमार सिंह व पुलिस अधिकारियों डीआईजी बुआ सिंह व नसीम इत्यादि को सीधे दोषी ठहराते हुए इनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने का ऐतिहासिक फैसला दिया था। यही नहीं माननीय उच्च न्यायालय ने केन्द्र व राज्य सरकार को उत्तराखण्ड के विकास के प्रति उदासीन भैदभावपूर्ण दुरव्यवहार करने का दोषी मानते हुए दोनों सरकारों को यहां के विकास के लिए त्वरित कार्य करने का फैसला भी दिया था। जिस काण्ड पर देश की सर्वोच्च जांच ऐजेन्सी सीबीआई ने जिन अधिकारियों को दोषी ठहराया था, जिनको महिला आयोग से लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग दोषी मानता हो  परन्तु दुर्भाग्य है कि इस देश में जहां सदैव ‘सत्यमेव जयते’ का उदघोष गुंजायमान रहता हो, वहां पर उच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के बाद अपराधियों व उनके आकाओं के हाथ इतने मजबूत रहे कि देश की न्याय व्यवस्था उनको दण्डित करने में आज 18 साल बाद भी अक्षम रही है। भारतीय व्यवस्था के इसी बौनेपन से आक्रोशित देश विदेश में रहने वाले सवा करोड़ उत्त्राखंडी 1994 से निरंतर आज तक देश की व्यवस्था के शीर्षपदों पर आरूढ़ सत्तसीनों की सोई हुई आत्मा को जागृत करने के लिए एवं उनको उनके दायित्व बोध कराने के लिए निरंतर 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन काला दिवस मना कर न्याय की गुहार लगाते है
इस काण्ड से पीडि़त उत्तराखण्ड की सवा करोड़ जनता को आशा थी कि राज्य गठन के बाद उत्तराखण्ड की राज्य सरकार इस काण्ड के दोषियों को सजा दिलाने को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का काम करेगी। परन्तु हमारा दुर्भाग्य रहा कि वहां पर स्वामी, कोश्यारी, तिवारी, खंडूडी , निशंक व विजय बहुगुणा जैसे पदलोलुप नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन रहे। इनके शासन में इस काण्ड के अपराधियों को दण्डित करने के बजाय उनको संरक्षण देने की शर्मनाक कृत्य किया गया।
संसद की चोखट पर काला दिवस मनाने वालों में उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष देवसिंह रावत,  जनमोर्चा के दलबीर रावत, खुशहाल सिंह बिष्ट, जगदीश भट्ट, विनोद नेगी, सतेन्द्र रावत, देशबंधु बिष्ट, उत्तराखण्ड राज्य लोकमंच के वृजमोहन उप्रेती के प्रतिनिधि राजू, उत्तराखण्ड महासभा के अनिल पंत, उत्तराखण्ड क्रांतिदल के उपाध्यक्ष प्रताप शाही , दिनेश जोशी, उत्तराखण्ड मानवाधिकार संगठन के अध्यक्ष एस के शर्मा, उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के सुरेश नौटियाल, पत्रकार व्योमेश जुगरान, दाताराम चमोली व चारू तिवारी,  उत्तराखण्ड आर्य समाज विकास समिति के महासचिव रमेश हितैषी, समाजसेवी हरीश प्रकाश आर्य, उत्त्राखण्ड परिषद के मोहन बिष्ट, म्यर उत्तराखण्ड के देवेन्द्र बिष्ट, जगमोहन रावत, महिन्दर रावत, समाजसेवी नन्दनसिंह रावत, पत्रकार चारू तिवारी,नजमोर्चा के पूर्व महासचिव रामभरोसे ढौडियाल,   गिरीश चंद आर्य, पृथ्वीपाल पर्नवाल, पृथ्वीसिंह केदाखण्डी, भगवात सिंह, रंजीत सिंह रमोला, जनमोर्चा के हुक्मसिंह कण्डारी, राजेन्द्रसिंह रावत, अनिल कुकरेती, मोहन रावत, परमवीर सिंह रावत, मानसिंह, हिमांशु पुरोहित, भुवनचंद, रतनमोहन नेगी, वीरेन्द्र रावत, प्रदीप रावत,ओम प्रकाश आर्य, किशोर रावत, सुन्दरसिंह, उत्तराखण्ड कौथिक ग्रुप के भारत सिंह, गिरीश बिष्ट,सुरजीत रौतेला, कमात, बहादूर राम, भुवन चंद, दिनेश कुमार, लक्ष्मण आर्य, कैलाश बैलवाल,  भारत सिंह रावत, नन्दन सिंह रावत, समाजसेवी के एम पाण्डे, पूर्व मुख्यमंत्री भगतसिंह कोश्यारी के निजी सचिव जगदीश भाकुनी, पत्रकार उर्मिलेश भट्ट, सुभाष डबराल, धनसिंह नेगी, सुरेन्द्र सिंह रावत, विशन राम, त्रिभुवन चन्द्र मठपाल, त्रिलोक सिंह रावत, कुलदीप सिंह बिष्ट, महिप रावत, प्रतापसिंह राणा, श्याम प्रसाद खंतवाल, हंसा अमोला, मीना भण्डारी, शिवराज सिंह रावत, वाई एन पाण्डे, उदय राम पंत, मनोज पालिवाल, जे एस रावत,  ओम प्रकाश, एम एस रौतेला, गीता रौतेला, बी एल साम, वरिष्ट राजनेता टी एस गौतम,महेन्द्रसिंह रावत, खेम सिंह, प्रभु दयाल सिंह, मनोज सिंह नेगी, अनिल सिंह, मौ. आजाद, श्री सैक्सेना व श्री पाण्डे सहित अनैक प्रमुख आंदोलनकारी उपस्थित थे। इस अवसर पर राष्ट्रपति को ज्ञापन भेंट करने खुशहाल सिंह बिष्ट व अनिल पंत गये। सभा का संचालन इस आयोजन के संयोजक देवसिंह रावत ने किया।


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