पुलिस से नहीं सीबीआई से जांच हो तिवारी प्रकरण की

-कहीं यह तिवारी की सम्पति पर काबिज होने का खतरनाक षडयंत्र तो नहीं है तिवारी को नींद की गोलियां देना

-एफआरआई से दूर बनाया जाय तिवारी का आवास 

देहरादून (प्याउ)। जिस प्रकार से उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी को कई साल से दवाइयों के साथ नींद की गोलियों की ओवरडोज देकर उनका स्वास्थ्य बिगाड़ने के खतरनाक षडयंत्र का सनसनीखेज खुलाशा तिवारी के ही ओएसडी भवानी भट्ट द्वारा किये जाने की खबरें इस पखवाडेत्र उत्तराखण्ड सहित देश के समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई। खबरों के अनुसार यह जब वे प्रदेश के मुख्यमंत्री थे उस समय से लेकर जब वे आंध्र प्रदेश के राज्यपाल के पद पर आसीन थे तब भी यह सिलसिला जारी था।  इस खबर के बाद बताया गया कि देहरादून  पुलिस की वरिष्ठ अधीक्षक नीरू गर्ग ने मीडिया में छपी खबरों को संज्ञान में लेते हुए शहर की पुलिस उपाधीक्षक टीडी बैला को इन आरोपों की सत्यता जानने के लिए जांच करके पुलिस अधिकारी बैला,  तिवारी के ओएसडी भट्ट के अलावा उनके निजी स्टाफ और सुरक्षा कर्मियों तथा अन्य संबंधित लोगों से बातचीत कर अपनी रिपोर्ट एक सप्ताह के अंदर देगी।
इन आरोपों में कितनी सच्चाई है यह तो जांच के बाद ही आम आदमियों को पता चलेगा या तिवारी व उनके करीबी ही इन खबरों की हकीकत को जानते होंगे। परन्तु यह सच है कि जब से कांग्रेसी दिग्गज रहे नारायणदत्त तिवारी की धर्मपत्नी डा. सुशीला तिवारी का आकस्मिक निधन हुआ तब से तिवारी के आसपास कुछ ऐसे लोगों ने अपना शिकंजा कस लिया जो अपने स्वार्थो की पूर्ति के लिए तिवारी की कमजोरियों का फायदा उठाते थे। तिवारी के करीबियों की अगर निष्पक्ष जांच सीबीआई द्वारा की जाय तो उनके मुखोटे खुद ही बेनकाब हो जायेंगे। तिवारी के करीब जुड़ने से पहले बदहाली व दर दर की ठोकरे खाने वाले यकायक चंद सालों में धनकुवैर कैसे बन गये। परन्तु निष्पक्ष जांच कौन करेगा? जब तिवारी प्रदेश के मुख्यमंत्री थे उस समय भी उनके करीबी पंत का रहस्यमय परिस्थितियों में हुई मृत्यु पर तमाम प्रकार के सवाल उठे? शासन प्रशासन ने इस पर आंखे मूंदे रखा। देहरादून में तिवारी के करीबियों में इस बात की चर्चा थी कि यह भी मौत भी स्वाभाविक नहीं थी अपितु तिवारी के करीबियों में चल रहे वर्चस्व की जंग का एक खौपनाक घटना मात्र थी। इसी वर्चस्व के संघर्ष का परिणाम था तिवारी के काफी करीबी रही उनके जैविक बेटे शेखर की माॅं उज्जवला व उनके बीच में देश में चर्चित विवाद। इसी देशव्यापी चर्चित विवाद में ही दिल्ली उच्च न्यायालय को तिवारी के डीएनए जांच के बाद उन्हें उज्जवला शर्मा के बेटे को उनका जैविक बेटा होने का निर्णायक फेसला सुनाना पडा। वहीं जानकारों के अनुसार तिवारी किसी भी प्रकार के विवाद में नहीं पडना चाहते थे परन्तु उनके करीबी आत्मघाती सलाहकार ने उनकी इच्छा को नजरांदाज करके अपने वर्चस्व को बनाये रखने के लिए इस विवाद को न्यायालय के बाहर समझोता तक नहीं होने दिया।  तिवारी के करीबियों में सबसे बडा नाम था दिवंगत पंत जी जो अब नहीं रहे, परन्तु जबसे आरेन्द्र शर्मा तिवारी के करीबी बने तब से एक प्रकार से तिवारी के दरवार में वही होता था जो आरेन्द्र शर्मा चाहते थे। उत्तराखण्ड में नारायणदत्त तिवारी भले ही मुख्यमंत्री रहे हों परन्तु जिस प्रकार से वहां पर कार्य होते रहे , उससे कभी विकास पुरूष के नाम से ख्यातिप्राप्त तिवारी उत्तराखण्ड के लिए विनाशपुरूष सा ही प्रतीत होने लेग। उनके विरोधी ही नहीं आम जनता में उनकी छवि इतनी दुषित हो गयी कि उन पर प्रदेश से सबसे बडे लोकगायक नरेन्द्रसिंह नेगी ने ‘नौछमी नारेण’ नामक गीत बनाया। जो उनके कुशासन को उखाड फैकने में महत्वपूर्ण साहयक हुआ।
अब सवाल उठता है कि तिवारी को नींद की गोलियां दे कर उनके स्वास्थ्य से खिलवाड करने का षडयंत्रकारी कैसे बेनकाब होगा। जबकि प्रदेश में तिवारी व तिवारी के करीबियों की ही सरकार है। तिवारी के सबसे करीबी आरेन्द्र शर्मा जो इस समय कांग्रेस की प्रदेश सरकार के मुखिया विजय बहुगुणा के सबसे करीबी सिपाहे सलारों में है। वहीं कभी तिवारी के ओएसडी रहे शंकरदत्त शर्मा भी इन दिनों मुख्यमंत्री के करीबी है। यही नहीं खुद तिवारी मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के बहुत करीबी है । उनको मुख्यमंत्री बनाने में जितना हाथ नारायणदत्त तिवारी का है उससे अधिक हाथ तिवारी के सबसे करीबी आरेन्द्र शर्मा का है। ऐसे में सरकार को इसकी जांच प्रदेश के पुलिस प्रशासन के बजाय सीबीआई से करानी चाहिए। प्रदेश मे ंकांग्रेस व भाजपा सहित तमाम अधिकांश नेता भी तिवारी के हैदारबाद जैसे वाले शर्मनाक प्रकरण के बाबजूद आज भी तिवारी के चरण स्पर्श करके वंदना करने में अपना शौभाग्य समझते है। जबकि प्रदेश की जनांकांक्षाओं को रौंदने में तथा प्रदेश में नौकरशाही व जनप्रतिनिधियों को बेलगाम करने की जो नींव तिवारी के कार्यकाल में लालबत्तियों, मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष सहित 56 घोटालों के प्रकरण हुए उसी के कारण कभी ईमानदार व चरित्रवान समझे जाना वाला उत्तराखण्ड आज भारत के भ्रष्टत्तम राज्यों की पंक्ति में खडा हे। देश के अग्रणी व अनुभवी तिवारी को अपनी रंगीन मिजाजी का दण्ड न केवल अपने राजनैतिक जीवन में चूकाना पडा अपितु उसका दण्ड विकास की पहली सीडी चढ़ रहे उत्तराखण्ड को चूकाना पडा। तिवारी अपने अनुभव से उत्तराखण्ड को हिमाचल बना सकते थे परन्तु अपने ऐसे ही रंगीन मिजाजी के कारण उनके करीबियों ने उत्तराखण्ड में जो कार्य किये उससे प्रदेश गठन की जनांकांक्षाओं पर न केवल ग्रहण लगा अपितु इस शर्मनाक पतन को देख कर राज्य गठन शहीदों व आंदोलनकारियों की आत्मा चित्कारने लगी। अब जब तिवारी के करीबियों पर ये आरोप लग रहे हैं तो प्रदेश की जनता ही नहीं देश की जनता भी जानना चाहती है कि आखिर तिवारी जेसे दिग्गज नेता को किसने अपना प्यादा बना कर अपने निहित स्वार्थो की पूर्ति करता रहा? वह कौन है जो तिवारी को नींद की गौलियां खिला कर उनसे अपने इशारों पर नाचने के लिए विवश करता रहा? आखिर वह कौन है जो तिवारी के अन्य करीबियों को एक एक कर उनसे दूर करता रहा? आखिर क्या यह तिवारी की घोषित व अघोषित सम्पति पर काबिज होने के लिए तो एक खतरनाक षडयंत्र तो नहीं है? यह सच है कि तिवारी के इस शर्मनाक पतन का अगर कोई दोषी उनके सिपाहे सलार या निजी स्टाफ के लोग नहीं अपितु खुद तिवारी हैं जो अपनी कमजोरियों के कारण अपने प्यादों के हाथों का एक मोहरा बन कर रहे गये। परन्तु उस आस्तीन के सांप को भी दुनिया बेनकाब होते देखना चाहती है जिसने तिवारी जेसे दिग्गज नेता के रंगीन मिजाजी को हथियार बना कर या नींद की गोलियां खिला कर अपने हाथों की कठपुतली बना दिया।  देश को शर्मसार करने वाले हैदारवाद राजभवन वाले प्रकरण में हो या शेखर प्रकरण में दोनों प्रकरणों में तिवारी के करीबियों का ही तिवारी को बेनकाब कराने में महत्वपूर्ण अदृश्य हाथ रहा। कुछ महिनों पहले उनके किसी करीबी व तिवारी जी के भतीजे के बीच नौकझोंक की खबरे सुनने में भी आयी ? अब क्या वही हाथ तिवारी को नींद की गौलियां दे रहा है? इसकी जांच करने के लिए एक ही रास्ता है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री स्वयं सीबीआई से इसकी जांच करायें। इसके साथ कांग्रेस नेतृत्व को भी चाहिए तिवारी को अपना प्यादा बनाने वालों को बेनकाब करने की निष्पक्ष जांच के लिए सीबीआई से अविलम्ब जांच की जाय। जिस प्रकार तिवारी का हैदराबाद राजनिवास प्रकरण व उससे पहले कई प्रकरण सामने आये उसको देख कर तिवारी का आवास एफआरआई जेसे संस्थान के क्षेत्र में बनाये रखना प्रशासन को खुद कटघरे में खडा करता है।  देश के विख्यात एफआरआई के शोध छात्र-छात्राओं युक्त परिसर से दूर तिवारी का निवास प्रशासन को बनाना चाहिए। परन्तु एक बात स्पष्ट है कि तिवारी के आसपास जो भी हो रहा है उससे एक बात स्पष्ट है कि वहां पर सबकुछ ठीकठाक नहीं है। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।

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