देश में 65 साल में पहली बार बना कोई कबीना मंत्री 

-लोकशाही की रक्षा के लिए मिटाना होगा उत्तराखण्ड से जातिवाद का धृर्णित कलंक

- देश का एकमात्र प्रदेश है उत्तराखण्ड जहां बहुसंख्यक समाज को षडयंत्र के तहत लोकशाही के न्यायोचित हक हकूकों से व

ंचित किया गया‘आजादी के 65 साल बाद पहली बार उत्तराखण्ड का कोई राजपूत देष का कबीना मंत्री बना’! मेरे उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन के मित्र व पिथोरागढ़ मूल के पत्रकार व इंजीनियर जगदीष भट्ट ने जैसे ही यह बात कही तो उत्तराखण्ड पत्रकार परिशद के पूर्व महासचिव व टिहरी बडियारगढ़ क्षेत्र के मूल निवासी अग्रणी पत्रकार दाताराम चमोली ने कहा ‘हाॅं नहीं तो अभी तक जितने भी आजादी के बाद उत्तराखण्ड मूल के देष में कबीना मंत्री बने उनमें चाहे गोविन्द बल्लभ पंत हो, या हेमवती नन्दन बहुगुणा, ब्रहमदत्त ,नारायणदत्त तिवारी, कृश्णचंद पंत व भुवनचंद खण्डूडी जैसे नेता रहे हों परन्तु उत्तराखण्ड में राजपूत समाज का 65 साल तक एक भी मंत्री नहीं बना। प्रदेष में जनसंख्या के हिसाब से यह उपेक्षा कहीं उचित नहीं थी। पहली बार मनमोहन सिंह की सरकार के मंत्रीमण्डल में हुए अंतिम फेरबदल में हरीष रावत को राज्य मंत्री से कबीना मंत्री बनाये जाने से यह दीवार एक प्रकार से टूट गयी। 
मैने कहा कि नेहरू जी के मंत्रीमण्डल में भक्त दर्षन सिंह रावत जी मंत्री थे तो भट्ट जी ने कहा वे राज्य मंत्री रहे हैं। राज्यमंत्री तो सतपाल महाराज, बच्चीसिंह रावत भी रहे है। हालांकि उत्तराखण्ड मूल के आनन्द चंद जोषी भी जो मध्यप्रदेष के सांसद रहे राज्य मंत्री रहे। हंसी मजाक में कही गयी यह बात में मुझे भारतीय राजनीति में चल रहे अलोकतांत्रित प्रवृति की तरफ बरबस ध्यान गया। 
28 अक्टूबर को प्रधानमंत्री मनमोहन द्वारा अपने मंत्रीमण्डल में किये गये विस्तार में हरीष रावत सहित 7 कबीना मंत्री व डेढ़ दर्जन के करीब राज्य मंत्री बनाया गया। इस पर उत्तराखण्ड के दिग्गज कांग्रेसी नेता हरीष रावत को कबीना मंत्री बनाये जाने पर मेरे दो पत्रकार मित्रों ने जो सटीक प्रतिक्रिया की उससे उत्तराखण्ड में लोकषाही के नाम पर स्थापित राजनैतिक दल कांग्रेस व भाजपा के फेलाये गये जातिवादी शडयंत्र को पूरी तरह बेनकाब कर दिया। इनके घिनौने षडयंत्र से उत्तराखण्ड में लगभग 60 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या में भागीदारी निभाने वाले राजपूत समाज को बलात लोकशाही में भी न्यायोचित अवसर व सम्मान से ही नहीं हक हकूकों से भी वंचित किया हुआ है। 
देष की राजनीति की चाल व ढाल का जिसे भी जरा सा भी करीबी से भान हो वह यह जानता है कि देष की तमाम राजनैतिक दलों में (वामदलों को छोड़ कर) अधिकांष में जनसेवा व प्रतिभा के बजाय जाति, धर्म, क्षेत्र, व भाशा को ही सबसे बडी योग्यता मानी जाती है। भले ही ये अधिकांष दल व इनके नेता अपने भाशणों व घोशणा पत्रों में समाज में सर्वधर्म, जाति व क्षेत्र सम्भाव की दुहाई दें परन्तु अपने दल में संवेधानिक पदों, मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक ही नहीं न्यायपालिका, दायित्वधारी व नौकरषाही आदि महत्वपूर्ण पदों में आसीन करते समय जनसमर्थन, योग्यता के बजाय अपने निहित स्वार्थो व जाति-धर्म, क्षेत्र को ही वरियता देते हैं। 
लोकषाही को कलंकित करने वाली इस घृर्णित मनोवृति का बहुत ही षर्मनाक षिकार देष की आजादी के बाद उत्तराखण्ड को झेलना पडा। यहां इसके लिए देष की मुख्य राजनैतिक पार्टी भाजपा व कांग्रेस ने ही लोकषाही को षर्मसार करने वाला कृत्य किया। ऐसा नहीं कि आजादी के प्रारम्भिक दषको से 65 साल तक यहां पर बहुसंख्यक राजपूत समाज के कोई जनप्रिय व प्रतिभाषाली नेता नहीं हुए। भाजपा व कांग्रेस में कई बार सांसद रहे टिहरी के पूर्व नरेष आजादी विगत 4 दषक से अधिक समय तक यहां से सांसद रहे परन्तु क्या मजाल षासन प्रषासन को निश्पक्ष ढ़ग से संचालित करने के अनुभव होने के बाबजूद उनको नजरांदाज करके अन्य लोगों को कबीना मंत्री बनाये गये। यही नरेन्द्रसिंह बिश्ट, प्रताप सिंह नेगी, जंगबहादूर बिश्ट, त्रेपन सिंह नेगी, सतपाल महाराज, महेन्द्रपाल आदि नेता रहे। 
इसकी छोटी व्यथा कांग्रेस को छोड़ कर वीपी सिंह के साथ गये यहां के दिग्गज नेता चन्द्र मोहन सिंह नेगी ने कांग्रेस में वापसी की गुहार करने गये वरिश्ट काग्रेसी मित्र से कही कि भाई मैं उत्तर प्रदेष में इतने सालों तक विधायक रहा, मेरे से कनिश्टों को मंत्री बनाया गया परन्तु मुझे तिवारी जी ने हमेषा मंत्री बनते समय नजरांदाज किया। अब पहली बार वीपीसिंह ने मुझे यह सम्मान दिया तो ऐसे व्यक्ति को छोड कर मैं कांग्रेस में कैसे वापस आ सकता हूॅ।
देष के षासन प्रषासन व लोकतंत्र से इसी जातिवादी षिकंजे से मुक्त करने के लिए व उपेक्षित बहुसंख्यक समाज की भी सहभागिता बढ़ाने के लिए आजादी के बाद जहां अजा/अजजा को जहां विधायिका सहित षासन प्रषासन में भी आरक्षण का प्रावधान किया गया । वहीं मण्डल कमीषन को लागू करके भी उपेक्षित अन्य जातियों को आरक्षण दिया गया। इसके बाद देष की राजनीति का स्वरूप ही बिहार, उप्र, मध्यप्रदेष सहित तमाम राज्यों में पूरी तरह से बदल गया। परन्तु उत्तराखण्ड को इसी जातिवादी षिंकजे में जकड़ने के लिए अभिषापित होना पडा। उत्तराखण्ड देष का पहला ऐसा राज्य है मण्डल कमीषन की रिपोर्ट लागू होने के बाद षासन प्रषासन व विधायिका में जहां बहुसंख्यक समाज को शडयंत्र के तहत हाषिये में डाला गया है। यह सब यहां पर काबिज कांग्रेस व भाजपा के संकीर्ण मानसिकता के नेताओं व उनके प्यादों के तिकडम से हो रहा है। 
उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद भी भले ही वहां पर अधिकांष पार्टियों में सांसदों, विधायकों, जिला पंचायत सदस्यो व ब्लाक अध्यक्ष में बहुसंख्यक राजपूत समाज के प्रतिनिधियों का एकक्षत्र वर्चस्व हैं परन्तु दिल्ली में भाजपा व कांग्रेस की सत्ता में मठाधीष बने आकाओं ने राज्य गठन के 12 सालों में सभी निर्वाचित मुख्यमंत्री के पद पर विधायकों की भावनाओं को दरकिनारे करके जिस षर्मनाक ढ़ग से दिल्ली से सजातीय वर्चस्व को बलात बनाये रखने के लिए कभी नारायण दत्त तिवारी, तो कभी खण्डूडी, कभी निषंक व तो अब विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री के रूप में थोप कर प्रदेष की लोकषाही को रौंदने का कृत्य किया। पहली निर्वाचित विधानसभा में तिवारी को जहां कांग्रेस ने थोपा, वहीं दूसरे निर्वाचित विधानसभा में अधिकांष भाजपा विधायकों का मुख्यमंत्री भगतसिंह कोष्यारी बनाये जाने की मांग को जिस प्रकार से दिल्ली के भाजपा मठाधीषों ने भुवनचंद खण्डूडी को थोप कर रौंदा उससे प्रदेष की जनता हैरान रह गयी, उसके बाद खण्डूडी जी के सारंगी मोह व अलोकषाही व्यवहार से खिन्न विधायकों ने जब खुला विद्रोह किया तो भाजपा नेतृत्व ने भगतसिंह कोष्यारी, मोहन सिंह ग्रामवासी, केदारसिंह फोनिया व त्रिवेन्द्रसिंह रावत जैसे वरिश्ट, साफछवि के समर्पित नेताओं को नजरांदाज करके बलात रमेष पौखरियाल निषंक को देवभूमि के रूप में विख्यात उत्तराखण्ड का मुख्यमंत्री बनाया तो प्रदेष की जनता ही नहीं देष के प्रबुद्ध लोग भौचंक्के रह गये। फिर जब निषंक के ख्याति के अनुसार प्रदेष में कुषासन से चारों तरफ भाजपा की थू थू होने लगी तो जनता का नब्ज देख कर भाजपा ने फिर साफ छवि के जननेताओं के बजाय फिर से भुवनचंद खण्डूडी को ही मुख्यमंत्री के रूप में थोप दिया। यही नहीं प्रदेष की जनता के जख्मों को रौदते हुए भाजपा ने जिस प्रकार से चुनाव जीतने के लिए खण्डूडी है जरूरी का आत्मघाती नारा दिया, वह न केवल विधानसभा चुनाव में खुद खण्डूडी को अपितु पूरे प्रदेष से भाजपा को भी सत्ता से बेदखल करने वाला साबित हुआ। भाजपा की इस जातिवादी अलोकषाही प्रवृति से मुक्ति चाहने के लिए प्रदेष की जनता ने जिस कांग्रेस के पक्ष में अपना जनादेष दिया वह कांग्रेस ने जब अधिकांष विधायकों की भावना को नजरांदाज करके विजय बहुगुणा को थोपने का निर्णय लिया तो उसका जो प्रचण्ड विरोध हुआ उससे यह प्रकरण पूरे देष में कांग्रेसी नेतृत्व की संकीर्ण अलोकतांत्रित मनोवृति को पूरी तरह बेनकाब कर गयी। इसके बाद टिहरी लोकसभा उपचुनाव में भी वहां के वरिश्ट कांग्रेसी नेताओं को कांग्रेसी टिकट देने के बजाय विजय बहुगुणा के ही राजनीति में नौषिखिये बेटे साकेत को चुनावी दंगल में उतार कर प्रदेष को लोकषाही को ठेंगा दिखाने की धृश्ठता की गयी, जिसका जनता ने मुंहतोड़ जवाब दे कर विजय बहुगुणा की लोकसभाई सीट (जो मुख्यमंत्री बनने के बाद रिक्त हुई,) पर अपने मुख्यमंत्री पद पर आसीन रहते हुए वे अपने बेटे को तमाम षासन प्रषासन झोंक कर भी जीता न सके। यहां पर केवल मुख्यमंत्री या केन्द्रीय पद का सवाल नहीं है अपितु यह भेदभाव दायित्वधारी, नौकरषाही, न्याय पाालिका सहित षासन प्रषासन के तमाम संस्थानों में उच्च पदों पर आसीन किये जाते समय देखने को लगातार मिल रहा है। वर्तमान लोकसभा चुनाव में उत्तराखण्ड से पांच से पांच लोकसभा सांसद कांग्रेस की झोली में जनता ने डाला। परन्तु इस मंत्रीमण्डल के पुर्नगठन से पहले एक को भी कबीना मंत्री नहीं बनाया। वहीं हिमाचल में एक सांसद वीरभद्र के रूप में जीते तो वहां से आनन्द षर्मा व वीरभद्र को कबीना मंत्री बना दिया गया। परन्तु वरिश्ट कांग्रेसी नेता हरीष रावत व देष में लाखों समर्थक रखने वाले लोकसभा में आये दिन जनहित के मुद्दों को उठाने वाले सतपाल महाराज की न केवल मत्रिमण्डल के कबीना मंत्री बनाते समय उपेक्षा की गयी। केवल हरीष रावत को राज्य मंत्री का झुनझुना थमाया गया। वहीं विधानसभा चुनाव में इन दोनो वरिश्ठ नेताओं को नजरांदाज करते हुए जिस प्रकार से जनता व अधिकांष विधायकों से समर्थन से दूर रहने वाले विजय बहुगुणा को बलात जिस प्रकार से मुख्यमंत्री के पद पर थोपा गया। उससे कांग्रेस व भाजपा के द्वारा यहां खेले जा रहे इस घोर राजनैतिक शडयंत्र को प्रदेष की अधिकांष जनता के समझ में आ गया। इससे नजता में घोर आक्रोष फेला हुआ है। लोग इस बात से आक्रोषित हैं कि जनता में जहां फेले सवर्ण व दलित जातिवादी कुरितियां कानून व सामाजिक जागरूकता से दूर की जा रही है। वहीं राजनीति द्वारा फेलायी जा रही इस जातिवाद को क्यों समाज के जागरूक लोग, पत्रकार नजरांदाज कर रहे है। इससे समाज में जहां राग द्वेश बढ़ रहा है। 
मैं इस बात से हैरान हूॅ कि जब भी मैने इस षोशण के खिलाफ आवाज उठायी मेरे कुछ मित्र इसे जातिवाद को बढावा देने का आरोप मंडने को तैयार हो जाते है। वे इस सच्चाई को जानते हुए भी नजरांदाज करते है। यह जातिवादी प्रवृति प्रदेष के विकास व वहां की षांति के साथ लोकषाही को ग्रहण लगा रही है। जन्म से अपने आप को श्रेश्ठ व दूसरों को हेय मानने वाली यह प्रवृति को जब तक प्रखर विरोध करके जड़ से समाप्त नहीं किया जायेगा तब तक यह समाज सही अर्थो में आगे बढ़ ही नहीं सकता। प्रदेष के प्रतिभावानों की उपेक्षा कर बाहर के दागदार व नेताओं के प्यादों को यहां पर महत्वपूर्ण पदों पर आसीन किया जा रहा है। यहां पर प्रदेष लोकसेवा आयोग से लेकर अधिकांष महत्वपूर्ण मंत्रालयों, विभागों व लाभप्रद दायित्वधारी विभागों में जिस प्रकार से बहुसंख्यक समाज को निरंतर नजरांदाज किया जा रहा है वह बहुत ही खतरनाक शडयंत्र है। केवल बहुसंख्यक समाज को ही नहीं अपितु दलितों के हितों की भी निरंतर उपेक्षा की जा रही है। अगर संवैधानिक आरक्षण की बाध्यता न होती तो यहां सत्ता पर काबिज कांग्रेस व भाजपा के मठाधीष दलित वर्ग के साथ भी ऐसा ही अत्याचार करते। 
मै जड़ चेतन सभी में परमात्मा का परमांष मानते हुए सबको श्री हरि का स्वरूप समझता हूॅ। इसी कारण अज्ञानी लोगों द्वारा जाति, धर्म, रंग, क्षेत्र आदि के नाम पर दूसरों का षोशण करने या अन्याय करने पर मुझे गहरी पीड़ा होती है, मैं हर अन्याय के विरोध में आवाज उठाता हॅू। मैं नहीं चाहता हॅू कि किसी का षोशण जाति, धर्म या क्षेत्र के नाम पर किया जाये। मैं प्रतिभा के साथ साथ सभी की भागेदारी को षासन प्रषासन में देखना चाहता हॅू। 
समाज में जातिवाद या धर्म या क्षेत्रवाद फेलाने वालों को मैं समाज का दुष्मन मानता हॅू और इस जहर का मूक संरक्षण देने वालों को भी मैं समाज को उतना ही दुष्मन मानता हॅू। हालांकि प्रदेष की इस संकीर्ण जातिवादी व्यवस्था में प्रदेष में तीनों प्रमुख जातियों के कल्याण के लिए संगठन चलाने वाले मेरे करीबी मित्र है। इनमें उत्तराखण्ड षिल्पकार चेतना मंच के अध्यक्ष महेष चन्द्रा, अल्मोडा जनपद मूल के वल्र्ड ब्राह्मण फाउंडेषन के राश्ट्रीय उपाध्यक्ष व उत्तराखण्ड अध्यक्ष के सी पाण्डे व उत्तराखण्ड क्षेत्रिय कल्याण मंच के अध्यक्ष व्योमेन्द्र नयाल प्रमुख है। इसके बाबजूद मैं किसी जाति विषेश का बर्चस्व बनाने या किसी को उपेक्षित करने की किसी प्रकार की मानसिकता का प्रबल विरोधी हूॅ। 
अपने दोनों मित्रों की बात सुन कर भौचंक्का रहा, मेरे साथ उस समय अखिल भारतीय युवक कांग्रेस के चुनाव इंचार्ज राजपाल बिश्ट, देष के अग्रणी नेता रहे जगजीवन राम के करीबी सहयोगी टी सी गौतम, सुलतानपुर से आजाद खान व राकांपा के श्री पाण्डे भी खडे थे। हमारे सभी साथी इस बात पर हंसने लगे।
28 अक्टूबर को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मंत्रीमण्डल में हुए फेरबदल के बाद कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीष रावत के कबीना मंत्री बनने पर मैं , उनके दिल्ली निवास 9 तीन मूर्ति लेन पर अपने उत्तराखण्ड मानवाधिकार संगठन के अध्यक्ष एस के षर्मा, श्रीमती षर्मा, इंजीनियर जगदीष भट्ट, अग्रणी राजनैतिक विषलेशक टीसी गौतम व आजाद खाॅ के साथ वहां पंहुचा था। वहीं पर मुझे दाताराम चमोली सहित अपने कई पत्रकार बंधु भी मिले। यहां पर उत्तराखण्डी ही नहीं पूरे देष के विभिन्न समाज से जुडे समाजसेवी, कांग्रेसी, कर्मचारी सहित बडी संख्या में हरीष रावत के समर्थक पंहुचे हुए थे। भले ही मेरे मित्रों ने मजाक के तर्ज पर यह टिप्पणी की हो परन्तु यह गंभीर समस्या है जिसके खिलाफ उत्तराखण्ड के आज हर जागरूक आदमी को खडा उठना हैं। इसमें भी खासकर राजनैताओं, समाजसेविया व पत्रकारों को। अगर कल यही समस्या विकराल बनी या उपेक्षित समाज में आक्रोष बढ़ा और वह अपना वर्चस्व ही प्रदेष के हर क्षेत्र में बिहार,उप्र, तमिलनाडू या आंध्र की तरह करने लगा तो प्रदेष का कहीं हित नहीं होगा। प्रदेष में सभी को अपनी प्रतिभा के अनुसार सम्मान व अवसर मिले किसी को भी जाति, धर्म व क्षेत्र के कारण वरियता या उपेक्षा का दंष न झेलना पडे। तभी प्रदेष में स्वस्थ्य समाज की स्थापना होगी। परन्तु इस जड़ता को तोडने के मार्ग में स्थापित लोग व उनके प्यादे जहां ंतहां विरोध करेंगे। इन सबकी काॅंव काॅंव को नजरांदाज करके आज नयी पीढ़ी को इस तथ्य को समाने रख कर करना चाहिए कि अगर यह भेदभाव व उपेक्षा मेरी होती तो मुझे कैसे लगता। तभी प्रदेष में सच्चा लोकतंत्र स्थापित होगा। षेश श्रीकृश्ण कृपा। हरि औम तत्सत्। श्रीकृणाय् नमो।

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