-उत्तराखण्ड मेें जमीनों को आडवाणी की बेटी सहित तमाम एनजीओ को लुटाई जमीनों के पट्टे रद्द हो
-विजय बहुगुणा सरकार व विपक्ष को क्या सांप सुंघ गया
जिस प्रकार से हरियाणा, हिमाचल व महाराश्ट्र सहित अनैक राज्यों में वहां की सरकारों द्वारा नेताओं व नेताओं के रिष्तेदारों को जमीनें कोडियों के भाव से दी जाने पर बबाल मच रहा है। हिमाचल प्रदेष में प्रियंका गांधी व भ्रश्टाचार के खिलाफ जंग लड रहे अण्णा व केजरीवाल के आंखों के तारे प्रषांत भूशण, हरियाणा में सोनिया गांधी के दामाद बढ़ेरा व राहुल गांधी तथा महाराश्ट्र में भाजपा के राश्ट्रीय अध्यक्ष व संघ के आंखों के तारे गडकरी को जमीने दिये जाने पर बबाल मच रहा है। परन्तु अफसोस हे कि सन 2000 राज्य गठन के बाद उत्तराखण्ड में पहली मनोनीत प्रदेष सरकार के मुखिया नित्यानन्द स्वामी के राज में जिस प्रकार से भाजपा के आला नेताओं के बच्चों व प्यादों वहां की जमीने उनके एनजीओ व अन्य नाम से आवंटित की गयी वह परमपरा कांग्रेस के तिवारी राज से अब तक बहुत ही षर्मनाक ढ़ग से जारी है। उस मुद्दे पर न तो कांग्रेसी व नहीं भाजपाई मुंह खोलने के लिए तैयार नहीं है। सुत्रों के अनुसार राज्य गठन के बाद भाजपा के आला नेता लाल कृश्ण आडवाणी की बेटी प्रतिभा आडवाणी व उनके स्नेही तरूण विजय आदि के नाम चर्चा में आ रहे है। तिवारी से लेकर अब तक के राज में कई कांग्रेसी व अन्य लोगों को यहां की जमीने खैरात की तरह कोडियों के भाव आवंटित की गयी उन सब पर प्रदेष की राजनीति में एक प्रकार से सांप सुंघा हुआ है। जिस प्रकार वहां पर सेज के नाम पर या चुनाव जीतने के लिए विजय बहुगुणा ने जमीनी पट्टे का आवंटन किया वह सबके नये तरीके है। जिस प्रकार उप्र की सरकारों ने किसानों की जमीने सेज के नाम से औने पौने दामों में ले कर उसको बिल्डरों को आवंटित की उसका भण्डा वहां के जागरूक किसानों के व्यापक आंदोलन से हुआ। परन्तु उत्तराखण्ड में तिवारी के राज में पंत नगर कृर्शि विष्व विद्यालय की जमीने, भंवाली में महत्वपूर्ण टीबी संस्थान की जमीने सहित अनैक सोना उगलने वाली जमीने या तो नेताओं के रिष्तेदारों को आवंटित की गयी या पूंजी पतियों को औने पौने दामों पर लुटवा दी गयी। उत्तराखण्ड में भाजपा व कांग्रेस के सत्तासीनों को ये लगा षायद उत्तराखण्ड का कोई पूछने वाला नहीं है। यहां पर जिस प्रकार से नदी ही नहीं जंगल व गाड गदेरे व पर्वत कहीं जल विद्युत के नाम पर तो कहीं पर्यटन बढाने के नाम पर भू-जल माफियाओं को लुटा दी गयी है।
यहां सबसे षर्मनाक स्थिति यह हो गयी है कि प्रदेष में ठेकेदारी प्रथा में राजनीति का पतन हो गया हैं। षराब प जल विद्युत माफियाओं के गोद में दम तोड़ रही उत्तराखण्ड की राजनीति में न किसी को प्रदेष के हितों का भान हे व नहीं इनकी खुद की कहीं सम्मान है। ये कांग्रेस भाजपा के दिल्ली दरवारियों के दरवान प्रदेष की राजनीति में भाग्य विधाता बन जाते है। यहां पर क्षेत्रीय दलों के नेतृत्व की दिषाहीनता सत्तालोलुपता के कारण वे जनता से कट कर खुद आपसी द्वंद में लड़ झगड कर दम तोड़ चूके है। प्रदेष को इस त्रासदीी से उबारने के लिए तमाम आंदोलनकारी ताकतों ने एक जूट हो कर प्रदेष के संसाधनों की रक्षा के लिए सांझा आंदोलन नहीं चलाते हुए इन खैराद की तरह आवंटित किये गये पट्टों को रद्द नहीं किया तो यह सीमान्त प्रदेष नहीं बच पायेगा।
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