पुण्य तिथि पर लखनऊ में याद किये गये आजादी के महानायक चन्द्रसिंह गढ़वाली

लखनऊ में भी अगले साल से उत्तराखण्डी मनायेंगे 2 अक्टूबर को काला दिवस 

लखनऊ से दानसिंह रावल
फिरंगी हुकुमत का सूर्यास्त कभी न होने के दंभ को पेशावर काण्ड से  चूर-चूर करने वाले भारतीय आजादी के महानायक वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली की पुण्य तिथि पर भले ही देश के हुक्मरानों ने उनको भूला दिया हो परन्तु आज भी देश के लिए समर्पित लोगों के दिलों में वे राज करते है। उनकी पुण्य तिथि पर उनकी स्मृति को शतः शतः नमन् करने के लिए लखनऊ में भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की गयी। गौरतलब है 25 दिसम्बर 1891 में उत्तराखण्ड के पौड़ी जनपद में जन्मे वीरचन्द्रसिंह गढ़वाली  1 अक्टूबर 1979 में हुआ। आजादी के बाद उनकी घोर उपेक्षा इस बात से ही उजागर होती है कि उन पर डाक टिकट भी सरकार ने जनता की पुरजोर मांग के बाद 1994 में जारी किया।
पर्वतीय महापरिषद के बेनर तले मोनाल सांस्कृतिक संस्था के अध्यक्ष विक्रम सिंह बिष्ट के सोजन्य से लखनऊ के केशरबाग स्थित जयशंकर प्रसाद सभागार में वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली की याद में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
इस कार्यक्रम में पर्वतीय महापरिषद के अध्यक्ष ठाकुर सिंह मनराल व महासचिव  गणेश दत्त जोशी ने सहित तमाम उपस्थित जनसमुदाय ने आजादी के महानायक की पावन स्मृति को नमन् किया। इस अवसर पर दैनिक हिन्दुस्तान के स्थानीय सम्पादक नवीन चंद जोशी व ललित सिंह पोखरिया ने वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली को देश के उन अग्रणी महानायकों मे बताया जिनको आज भी वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे। इस अवसर पर ललित सिंह पोखरिया ने बताया कि 1957 में देश के प्रख्यात साहित्यकार राहुल सांस्कृत्यायन ने उन के विराट व्यक्तित्व को नमन् करते हुए एक पुस्तक को प्रकाशित की थी। पेशावर काण्ड से फिरंगी हुकुमत की चूलें हिलाने वाले वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली व उनके साथियों को कड़ी सजा मिली। वे 11 वर्ष, 3 माह व 11 दिन की सजा काटने के बाद 1943 में रिहा हुए थे। इस अवसर पर उनके साथ कुछ समय जेल में रहे स्वतंत्रता सैनानी  डा बेजनाथ सिंह ने जब सभा में वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली के विराट व्यक्तित्व को रोशन करने वाले संस्मरण सुनाये तो उपस्थित जनों की आंखें भर आयी। इस अवसर पर उपस्थित समाजसेवी अधिवक्ता दानसिंह रावल ने ऐलान किया कि आगामी वर्ष तक अगर मुजफरनगर काण्ड-94 के अभियुक्तों को दण्डित करने में देश की व्यवस्था असफल रहती है तो लखनऊ में रहने वाला विशाल उत्तराखण्डी समाज 2 अक्टूबर को संसद की चैखट पर 18 साल से इसी दिन मनाये जा रहे काला दिवस की तरह ही लखनऊ में भी काला दिवस मना कर अपना विरोध प्रकट करेंगे।

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