मनमोहन सरकार का हाथ अमेरिका के साथ 

2 अक्टूबर 2012 को अपने जन्म दिन पर यदि महात्मा गांधी जीवित रहते तो वे इस बात का सबसे बडा प्रायश्चित करते कि उन्होंने कांग्रेस को 15 अगस्त 1947 को फिरंगियों से मिली आजादी के दि नही क्यों समाप्त नहीं की। खासकर उनके नाम की आड में जनता की आंखों में धूल झोंक रही कांग्रेस की वर्तमान मनमोहनी सरकार जिस प्रकार से विदेशी कम्पनियों को देश में बुलाने के लिए अपनी सरकार को भी दाव पर लगाने के लिए उतारू है, उससे फिरंगी हुकुमत को देश से बाहर खदेड़ने के लिए विदेशी वस्तुओं व अंग्रेजो भारत छोड़ो का नारा दे कर देश में स्वदेशी को अपनाने का ऐतिहासिक जनांदोलन चलाने वाले महात्मा गांधी की आत्मा अवश्य आंसू बहाती। 
आज देश के व्यापारियों, किसानों व मजदूरों के कल्याण के नाम पर जो आर्थिक सुधार किये जा रहे हैं उससे दिन दुगुनी रात चैगुनी मंहगाई बढ़ रही है। आम आदमी का जीना ही इस सरकार ने दुश्वार कर दिया है। आम आदमी से शिक्षा, चिकित्सा, न्याय ही नहीं रोजगार से वंचित हो रहा है।
विदेशी अमेरिकी कम्पनी वालमार्ट को भारत के विशाल बाजार पर काबिज कराने के लिए मनमोहन सिंह अपनी सरकार को ही दाव पर लगा रहे है। ममता बनर्जी ने इस सप्रंग गठबंधन से समर्थन वापस ले लिया। दु्रमुक सरकार से इस विदेशी कम्पनियों को भारत में लाने की जिद्द छोड़ने के लिए काफी दवाब बना चूका है। झारखण्ड विकास पार्टी ने अपना समर्थन वापस ले लिया है। परन्तु क्या मजाल भारत व आम आदमी के हितों के प्रति उदासीन रहने वाले मनमोहन सिंह अमेरिकी की डगमगाती अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए उसकी बडी कम्पनियों को देश में लाना चाहते है। जिस प्रकार मनमोहन सिंह परमाणु समझोते के समय अपनी सरकार को दाव पर लगाने के लिए दिन रात एक कर दिया था, उसी प्रकार मनमोहन सिंह अब अपनी सरकार अमेरिकी कम्पनी को भारत में अपना शिकंजा कसने के लिए आमंत्रित करने के लिए कर रहे है। अगर कांग्रेस को जरा भी महात्मा गांधी व इस देश से लगाव रहता तो वह देश में स्वदेशी को बढ़ावा देते। जिस वालमार्ट का वह स्वागत किसानों के लिए वाजिफ मूल्य देने वाला, स्टोरेज आदि व बिचोलियों को कम करके आम जनता को सस्ता माल उपलब्ध कराने का दम भर रहे है। जब यह काम एक अमेरिकी कम्पनी कर सकती है तो क्यों मनमोहन सिंह या अन्य भारत की सरकारें इस देश में नहीं कर सकती है। जितने हजारों करोड़ रूपये को मनमोहन सिंह की सरकार ने भारत में फिरंगी सम्राज्ञी के गुलामी की पालकी यानी काॅमनवेल्थ संगठन का खेल कराने में लगाया और इसमें हजारों करोड़ का घोटाला कराया अगर इतने पैसे से देश में खाद्यान्नों के संग्रहण के लिए स्टोरेज बनाने व विपणन की सही श्रंखला बनाने में लगाते। सबसे हैरानी की बात है कि पैसे पेड में नहीं लगते का जुमला पढ़ने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपनी यूपीए सरकार की सालगिरह पर जो भोज दिया उसमें एक आदमी के लिए 7721 रूपये की लागत पढ़ी। वही सरकार आम आदमियों के लिए 16 रूपये को पर्याप्त बताती है उसको किस मुह से देश में आम आदमियों के हित में काम करने का दंभ भरती हुए ‘कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ’ की हुंकार लगाती है। इसके साथ ही कांग्रेस पार्टी की यह मनमोहनी सरकार विदेश दोरों पर ही सेकडों करोड़ रूपये स्वाहा कर देती हो वह किस मुंह से जनता से देश की डगमगाती अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने का आवाहन कर रही है। देश की जनता देश के लिए स्वयं सादगी के प्रतीक  गांधी, लाल बहादूर श्शास्त्री व अब ममता के बचनों पर विश्वास करती है न की मनमोहन सोनिया या मोंटेक जैसे देश के आम लोगों का जीवन अपने कुशासन से पतीत करने वाली की बातों पर नहीं।    सच तो यह है कांग्रेस का नारा होना चाहिए कांग्रेस का हाथ अमेरिका के साथ । खासकर उस अमेरिका को जहां की संस्कृति व प्रवृति से स्वयं महात्मा गांधी इतनी दूरी बनाते थे कई निमंत्रण आने के बाद भी वे अमेरिका जाने को किसी भी कीमत पर तैयार नहीं हुए। ऐसे महात्मा गांधी के नाम पर विदेशी भाशा, विदेशी खानपान व विदेशियों के इशारे पर देश को संचालित करने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, मोंटेक आलूवालिया, चिदंम्बरम व कपिल सिब्बल जैसे नेताओं की सरकार रहेगी तो देश की हालत गुलामी से भी बदतर होगी। गांधी जी के हर सपने की जिस निर्ममता से हत्या की गयी उससे साफ हो गया कि देश की सरकारों को गांधी से नहीं अपितु देश की गद्दी से ही लगाव है।  

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